जयपुर 29 जनवरी । समानांतर साहित्य उत्सव के तीसरे दिन बिज्जी की बैठक मंच पर न्यायमूर्ति विनोद शंकर दवे की आत्मकथा पर आधारित हाल ही में प्रकाशित पुस्तक ‘एक अदालत अंतर्मन में” चर्चा का आयोजन रखा गया। जस्टिस दवे से पूर्व महाधिवक्ता गिरधारी बापना और शायर लोकेश कुमार सिंह साहिल ने संवाद किया।
जस्टिस दवे ने अपनी आत्मकथा के कई अनछुए पहलुओं पर चर्चा की एवं न्यायपालिका तथा न्यायिक फैसलों को लेकर श्रोताओं के सवालों का भी जवाब दिया।
जस्टिस दवे ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के चार न्यायधीशों की प्रेस कॉन्फ्रेंस पर हुए विवाद पर बताया कि अगर समय रहते चीफ जस्टिस मिश्रा इन जजों के पत्र का जवाब दे देते तो शायद इस प्रेस कॉन्फ्रेंस की जरूरत ही नहीं पड़ती। इससे न्यायपालिका की साख पर जो हुआ उसकी नौबत नहीं आती और इतना बड़ा विवाद खड़ा नहीं होता।
जस्टिस दवे ने कहा कि भारत ऐसा देश है जहां न्याय हमेशा विलंब से प्राप्त होता है और इसके पीछे ब्रिटिश अदालतों की अवधारणा रही है। भारत अभी भी इससे मुक्त नहीं हो पाया है।
उन्होंने मजिठिया आयोग के प्रश्न पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
ज्यूडिशरी में परिवारवाद के प्रश्न का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि मै इसके बिल्कुल विरुद्ध हूं लेकिन अगर परिवार में कोई सक्षम है तो इसमें कोई बुराई नहीं है।
ज्यूडिशरी में राजनीतिक हस्तक्षेप पर उन्होंने कहा कि जब कॉलेजियम नहीं तब जजों की नियुक्ति चीफ जस्टिस की अनुशंसा पर करते थे जो अब नहीं।
पूर्व एडवोकेट जनरल बापना ने जस्टिस दवे को एक संवेदनशील जज बताते हुए कहा कि उनके कोर्ट में जब भी फैसला किया गया उससे दोनों पक्ष हमेशा खुश होकर निकलते थे। किसी को भी किसी शिकायत का मौका नहीं देते थे। उनकी छवि एक पारदर्शी न्यायाधीश की रही है।
लोकेश कुमार सिंह साहिल ने जस्टिस दवे से कई सवाल व्यक्तिगत जीवन की घटनाओं और फैसलों पर किए जिनका बेबाकी और बड़ी खूबसूरती से जवाब दिया। विशेषकर उन्होंने अपनी महिला सखी के बारे में बेबाक जवाब दिया, जिसका जिक्र उन्होंने अपनी आत्मकथा में भी किया है।attacknews.in