नयी दिल्ली, पांच अप्रैल। केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने उच्च न्यायपालिका में अनुसूचित जाति, जनजाति ओर पिछड़ी जातियों के न्यायाधीशों की ‘नहीं के बराबर’ उपस्थिति का मुद्दा उठाया और कहा कि अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निरोधक कानून से जुड़े उच्चतम न्यायालय के हालिया फैसले के खिलाफ ‘स्वत:स्फूर्त’ प्रदर्शन इस बात का सूचक कि इस संस्था को लेकर लोगों में ‘चिताएं’ हैं।
राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के अध्यक्ष ने आज यहां ‘हल्ला बोल, दरवाजा खोल’ अभियान के बारे में घोषणा की।
यह अभियान उन्होंने शीर्ष अदालत और उच्च न्यायालयों में दलित, आदिवासी, ओबीसी, गरीब और अल्पसंख्यक वर्गों के लोगों को ‘उचित’ प्रतिनिधित्व दिए जाने की मांग पर जोर देने के मकसद से शुरू किया है।
कुशवाहा ने कहा, ‘‘ चाय बेचने वाले का बेटा प्रधानमंत्री बन सकता है और दिहाड़ी मजदूर के बच्चे आईएएस अधिकारी बन सकते हैं। उच्चतम न्यायालय को श्वेत पत्र के साथ सामने आना चाहिए और हमें बताना चाहिए कि कितने न्यायाधीश गरीब परिवारों से आए हैं।’’
बीते दो अप्रैल ‘भारत बंद’ के दौरान हुए हिंसक प्रदर्शनों का हवाला देते हुए मंत्री ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के फैसले के खिलाफ ‘राष्ट्रीय स्तर पर हुए स्वत:स्फूर्त प्रदर्शन’ चिंता का विषय हैं।
उन्होंने कहा कि यह दलितों की चिंता को दिखाता है।
कुशवाहा ने कहा कि शीर्ष अदालत को सिर्फ न्याय नहीं देना चाहिए, बल्कि न्याय देते हुए दिखना भी चाहिए, लेकिन यह तब होगा जब उच्च न्यायपालिका में समाज के सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व मिले।
उन्होंने कहा कि प्रतिनिधित्व की कमी की वजह से इन वर्गों को न्यायपालिका में बहुत ज्यादा विश्वास नहीं है।attacknews.in