बीमार हथिनी के लिए विशेष एम्बुलेंस का इंतजाम
मथुरा 6 जनवरी । बीमार हथिनी ‘एम्मा’ को झारखण्ड से हाथी संरक्षण केन्द्र चुरमुरा (फरह) मथुरा लाने के लिए वाइल्डलाइफ एसओएस ने विशेष रूप से डिजाइन किए गए हाथी एम्बुलेंस का प्रयोग किया था। यह हथिनी पांच जनवरी को हाथी संरक्षण केन्द्र फरह में लाई गई थी।
बीमार हथिनी को उसके मालिकों से मुक्त कराने के बाद विशेष एम्बुलेंस से उसे पशु चिकित्सा विशेषज्ञों और हाथियों की देखभाल करने वाली एक टीम की देखरेख में धनबाद से मथुरा के हाथी संरक्षण केन्द्र में लाने के दौरान टीम को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। बीमार पशु को 1000 मील से भी अधिक दूरी को तय कराना एक चुनौती थी। वाइल्डलाइफ एसओएस के पशु चिकित्सकों द्वारा प्रारंभिक जांच में पता चला कि हथिनी को पैरों में गंभीर दर्द है जिसके कारण वह अपने आगे के दोनों पैरों पर स्वयं का ही भार उठाने में असमर्थ है।
डीएफओ,धनबाद बिमल लाकरा ने बताया कि हथनी को अवैध रूप से राज्य की सीमाओं के पार ले जाया जा रहा था तथा अवैध दस्तावेज के आधार पर वन विभाग द्वारा इसे जब्त किया गया था।
वाइल्डलाइफ एसओएस की पशु चिकित्सा सेवाओं के उप-निदेशक डॉ. इलियाराजा, ने बताया कि ‘एम्मा’ के लिए उसके नाजुक और संवेदनशील पैरों पर खड़ा होना कठिन साध्य है क्योकिं उसके पैरों में कांच, कीलें और पत्थर के टुकड़े लगे हुए थे। इन्हे यद्यपि निकाल दिया गया है लेकिन उसके घाव का दर्दे उसकी बीमारी को एक प्रकार से बढ़ा रहा हैं। हथनी के पैरों में दर्द है और वह ऑस्टियोआर्थराइटिस (जोड़ों की बीमारी) से पीड़ित है कुपोषण के कारण उसकी स्वास्थ्य स्थिति भी काफी खराब है। 40 वर्षीय इस हथिनी से काम लेने के लिए उसके मालिक उसे देशी शराब पिलाते थे।
’वाइल्डलाइफ एसओएस के सह-संस्थापक और सीईओ कार्तिक सत्यनारायण ने कहा उन्हें जल्दी से हथनी को अस्पताल लाना था, जिससे उसकी सही तरीके से सेवा एवं चिकित्सा हो सके। उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि उसे उसके मालिक द्वारा शराब पिलाई जाती थी जो उसकी अपार क्रूरता और उपेक्षा को दर्शाता है।
वन विभाग ने उसके मालिकों पर वन्यजीव कानूनों के उल्लंघन और गंभीर उपेक्षा का आरोप लगाकर उसे मुक्त कराया था तथा वाइल्डलाइफ एसओएस से हथिनी को हाथी अस्पताल में चिकित्सा उपचार और देखभाल प्रदान करने की सहायता करने का भी अनुरोध किया था।
इसके मालिकों द्वारा इसके साथ की जा रही क्रूरता के बारे में हाथी संरक्षण केन्द्र फरह के निदेशक बैजू राज ने बताया कि इस 40 वर्षीय हथनी की जिन्दगी में राहत के पल बहुत ही कम थे, उसे भीख मांगने, धार्मिक जुलूस, शादी समारोह, पर्यटक सवारी जैसी गतिविधि के लिए नियमित रूप से इस्तेमाल किया जाता था। रात में, उसे कसकर बाँध दिया जाता था जिसकी वजह से वह लेटने और आराम करने में असमर्थ थी। उसे मिठाइयों और तले हुए खाद्य पदार्थों से निर्मित अस्वस्थ आहार खिलाया जाता था।
उन्होंने बताया कि हथनी के पैरों में दर्द के बावजूद उसे देशी शराब पिला कर काम करने के लिए मजबूर किया जाता रहा। हथिनी के मालिकों स्वीकार किया कि वे उसे उचित चिकित्सा उपचार नहीं दिला सकते थे। उसके मालिकों का कहना था कि स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से निपटने के लिए वे कैद में रखे हाथियों को शराब और तम्बाकू तक का सेवन कराते है जब कि चिकित्सकों के अनुसार यह शराब हाथी के लिए किसी विष से कम नहीं होती। वैसे भी इस तरह की अमानवीय हरकत खतरनाक साबित हो सकती है, क्योंकि भीड़भाड़ वाले इलाके में हाथी अनियंत्रित भी हो सकते है तथा निर्दोष दर्शकों की जान खतरे में पड़ सकती है।