Home / Interview/ Talks / प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से साक्षात्कार: मैं देश को आश्वस्त करना चाहूंगा कि जब और जैसी वैक्सीन उपलब्ध हो जायेगी,सभी को टीका लगाया जाएगा, कोई भी पीछे नहीं रहेगा;हमने महामारी के उठाव के एक नाजुक दौर में लॉकडाउन लगाया; इस महामारी से सकारात्मक सीख मिली वह थी वितरण तंत्र का महत्व है जो अंतिम छोर तक पहुंचता हैं attacknews.in

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से साक्षात्कार: मैं देश को आश्वस्त करना चाहूंगा कि जब और जैसी वैक्सीन उपलब्ध हो जायेगी,सभी को टीका लगाया जाएगा, कोई भी पीछे नहीं रहेगा;हमने महामारी के उठाव के एक नाजुक दौर में लॉकडाउन लगाया; इस महामारी से सकारात्मक सीख मिली वह थी वितरण तंत्र का महत्व है जो अंतिम छोर तक पहुंचता हैं attacknews.in

प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने अपने इस साक्षात्कार में कोविड-19 में भारत सरकार की भूमिका के साथ- किसानो,श्रमिकों और आम नागरिकों के साथ-साथ विकसित होती देश की अर्थव्यवस्था पर अपनी बात विस्तार के साथ सामने रखी-

प्रश्न: भारत में मार्च में पहले लॉकडाउन के माध्यम से कोरोनावायरस के खिलाफ लड़ाई शुरू करने के सात महीने हो चुके हैं। आपका क्या मूल्यांकन है कि हमारा प्रदर्शन कैसा रहा?

प्रधान मंत्री: मुझे यकीन है कि हम सभी इस बात से सहमत होंगे कि इस वायरस के बारे में कुछ पता नहीं था। अतीत में ऐसा पहले कुछ भी नहीं हुआ था। इसलिए, इस नए अज्ञात दुश्मन से निपटने के दौरान ही हमारी प्रतिक्रिया भी विकसित हुई है।

मैं कोई स्वास्थ्य विशेषज्ञ नहीं हूं लेकिन मेरा आकलन संख्याओं पर आधारित है। मुझे लगता है कि हमें अपने कोरोनोवायरस से युद्ध का आकलन इस बात से करना चाहिए कि हम कितनी ज़िंदगियां बचा पाये।
वायरस बहुत ही समस्याजनक साबित हो रहा है। एक समय लगा गुजरात जैसे कुछ स्थान हॉट स्पॉट हैं और केरल, कर्नाटक आदि में स्थिति नियंत्रण में है। कुछ महीनों के बाद, गुजरात में हालात सुधरे लेकिन केरल में हालात बदतर हो गए।

इसी लिए मैं कहता हूं कि गफलत के लिए कोई जगह नहीं है। मैंने हाल ही में 20 अक्टूबर को राष्ट्र को दिए अपने संदेश में इसी बात पर जोर दिया कि आगे बढ़ने का एकमात्र तरीका मास्क पहनना, हाथ धोना और सामाजिक दूरी जैसी सावधानियां बरतना है, क्योंकि ‘जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं।’

प्रश्न: लेकिन क्या व्यापक रूप से आपकी अपेक्षा के अनुरूप काम हुआ या आपको लगातार बदलाव और नवाचार करना पड़ा?

प्रधान मंत्री: हमने आगे बढ़ कर सक्रिय होने का फैसला किया और समय पर देशव्यापी लॉकडाउन शुरू किया। हमने लॉकडाउन की शुरुआत की तब संक्रमण के कुल मामले कुछ ही सैकड़ों में थे जबकि अन्य देशों में हजारों में केस आने के बाद लॉकडाउन किया गया। हमने महामारी के उठाव के एक नाजुक दौर में लॉकडाउन लगाया।

हमें न केवल लॉकडाउन के विभिन्न चरणों के लिए व्यापक समय मिला बल्कि हमें अनलॉक प्रक्रिया भी सही मिली जिससे हमारी अर्थव्यवस्था का अधिकांश हिस्सा भी पटरी पर आ रहा है। अगस्त और सितंबर के आंकड़े हमारी इस बात के संकेत देते हैं।

भारत ने कोविड -19 महामारी से निबटने में वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया। हमारी यह एप्रोच लाभकारी सिद्ध हुई।

अब अध्ययनों से पता चलता है कि इस प्रतिक्रिया से हमें एक ऐसी स्थिति से बचने में मदद मिली जिसके कारण कई और मौतों के साथ वायरस का तेजी से प्रसार हो सकता था। समय पर लॉकडाउन लगाने के अलावा, भारत मास्क पहनने को अनिवार्य करने, कांटैक्ट ट्रेसिंग एप्लिकेशन का उपयोग करने और रैपिड एंटीजन परीक्षण की व्यवस्था करने वाले पहले देशों में से एक था।

इस व्यापक आयाम की महामारी से निबटने में यदि देश एकजुट नहीं होता तो इसका प्रबंधन करना संभव नहीं होता। इस वायरस से लड़ने के लिए पूरा देश एक साथ खड़ा हो गया। कोविड योद्धा, जो हमारे अग्रिम पंक्ति के स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं, ने अपने जीवन को खतरे में जानते हुए भी इस देश के लिए लड़ाई लड़ी।

प्रश्न: आपको सबसे बड़ी सीख क्या मिली?

प्रधान मंत्री: पिछले कुछ महीनों में जो एक सकारात्मक सीख मिली वह थी वितरण तंत्र का महत्व है जो अंतिम छोर तक पहुंचता हैं। इस वितरण तंत्र का अधिकांश भाग हमारी सरकार के पहले कार्यकाल में बनाया गया था और इसने सदी में एक बार होने वाली किसी महामारी का सामना करने में हमारी काफी मदद की। मैं सिर्फ दो उदाहरण दूंगा। सबसे पहले, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर व्यवस्था से हम लाखों लोगों के बैंक खातों में नकद का तुरंत सीधे हस्तांतरण करने में सक्षम हुए। यह पूरा बुनियादी ढांचा पिछले छह वर्षों में बनाया गया था इससे यह संभव हुआ। पहले अपेक्षाकृत छोटी प्राकृतिक आपदाओं में भी राहत गरीबों तक नहीं पहुंच पाती थी और बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार होता था। लेकिन हम भ्रष्टाचार की किसी भी शिकायत के बिना बहुत कम समय में लोगों को बड़े पैमाने पर राहत देने में सक्षम हुए। वह प्रशासन में प्रौद्योगिकी की शक्ति की निशानी है। इसके विपरीत 1970 के दशक में चेचक की महामारी के दौरान भारत ने किस तरह का प्रदर्शन किया था शायद आप अपने पाठकों को यह बता सकें।

और दूसरा, करोड़ों लोगों का इतने कम समय में व्यवहार परिवर्तन – मास्क पहनना और सामाजिक दूरी बनाए रखना। बिना किसी ज़ोर जबरदस्ती के सार्वजनिक भागीदारी पाने का यह एक विश्व मॉडल है।

केंद्र और राज्य सरकारें एक टीम की भांति सहज तरीके से काम कर रही हैं, सार्वजनिक और निजी क्षेत्र एक साथ आए हैं, सभी मंत्रालय कंधे से कंधा मिलाकर विविध जिम्मेदारियों में व्यस्त हैं, और लोगों की भागीदारी ने एकजुट और प्रभावी लड़ाई सुनिश्चित की है।

प्रश्न: भारत में कोविड-19 के प्रसार की स्थिति के बारे में आपका क्या आकलन है?

प्रधान मंत्री: वायरस के शुरुआती दौर में किए गए प्रो-एक्टिव उपायों से हमें महामारी के खिलाफ अपने बचाव की तैयारी करने में मदद मिली। हालांकि, एक भी असामयिक मृत्यु अत्यंत दर्दनाक है परंतु हमारे जितने बड़े, खुलेपन वाले और कनेक्टिविटी वाले देश के लिए यह महत्वपूर्ण है कि हमारे यहां दुनिया में सबसे कम कोविड-19 मृत्यु दर है। हमारी मरीजों के ठीक होने की दर लगातार ऊंची बनी हुई है और हमारे संक्रमण के सक्रिय मामले काफी गिर रहे हैं। सितंबर के मध्य में लगभग 97,894 दैनिक मामलों के शिखर से, हम अक्टूबर के अंत में लगभग 50,000 नए मामलों की रिपोर्ट कर रहे हैं। यह संभव हुआ क्योंकि पूरा भारत एक साथ आया और उसने टीम इंडिया के रूप में काम किया।

प्रश्न: हाल के रुझान सक्रिय और घातक दोनों मामलों में कमी दर्शा रहे हैं। उम्मीद हैं कि सबसे खराब हालात का समय बीत गया है। क्या आप भी सरकार के पास उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर इस बात से सहमत हैं?

प्रधान मंत्री: यह एक नया वायरस है। जिन देशों ने शुरू में इसके प्रकोप को नियंत्रित किया था वे अब इसके फिर से बढने की रिपोर्ट कर रहे हैं।

भारत के भौगोलिक विस्तार, जनसंख्या घनत्व और यहां के नियमित सामाजिक समारोहों को ध्यान में रखते हुए हम इन संख्याओं को देखना और दूसरों के साथ तुलना करना चाहते हैं। हमारे कई राज्य अनेक देशों से बड़े हैं।

हमारे देश के भीतर ही इसका प्रभाव बहुत विविध है – कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां यह बहुत कम है, जबकि कुछ राज्य हैं जहां यह बहुत केंद्रित और लगातार बना हुआ है। फिर भी यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि 700 से अधिक जिलों वाले देश में, कुछ राज्यों के कुछ जिलों में ही इसका प्रभाव नज़र आता है।

नए मामलों, मृत्यु दर और कुल सक्रिय मामलों की हमारी नवीनतम संख्या कुछ समय पहले की तुलना में कम होने का संकेत देती है, फिर भी हमें आत्मसंतुष्ट हो कर नहीं बैठ जाना है। यह वायरस अब भी फैला हुआ है। वह हमारी ढिलाई से पनपता है।

मुझे लगता है कि हमें स्थिति को संभालने के लिए अपनी क्षमताओं को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, लोगों को अधिक जागरूक बनाना चाहिए तथा अधिक सुविधाएं तैयार करनी चाहिए और इस उक्ति के अनुसार चलना चाहिए कि ‘सर्वश्रेष्ठ की आशा रखें, लेकिन सबसे बुरे के लिए भी तैयार रहें’।

प्रश्न: कोविड-19 महामारी ने अर्थव्यवस्था को कमजोर किया है। आपने जीवन और आजीविका के बीच सही संतुलन बना कर इससे निबटने का प्रयास किया है। आपके विचार से सरकार इस प्रयास में कितनी सफल रही है?

प्रधानमंत्री: हमें आजादी मिले सात दशक से अधिक समय हो गया है, लेकिन अब भी कुछ लोगों को यह औपनिवेशिक हैंगओवर है कि लोग और सरकारें दो अलग-अलग संस्थाएं हैं। यह विपत्ति सरकार पर आई है यह धारणा इस मानसिकता से निकलती है। महामारी ने 130 करोड़ लोगों को प्रभावित किया है और सरकार और नागरिक दोनों मिलकर इसका मुकाबला करने के लिए काम कर रहे हैं।

जब कोविड-19 शुरू हुआ, तब दुनिया भर के विभिन्न देशों में मरने वाले लोगों की संख्या देख कर भय होता था। रोगियों की संख्या अचानक बढ़ जाने से उनकी स्वास्थ्य प्रणाली चरमरा रही थी। बूढ़े और जवान दोनों अंधाधुंध मर रहे थे। उस समय, हमारा उद्देश्य भारत में वैसी स्थिति से बचना और जीवन को बचाना था। यह वायरस एक अज्ञात दुश्मन की तरह था। यह अभूतपूर्व था।
जब कोई अदृश्य शत्रु से लड़ रहा होता है, तो उसे समझने में समय लगता है और उसका मुकाबला करने के लिए एक प्रभावी रणनीति तैयार करता है। हमें 130 करोड़ भारतीयों तक पहुंचना था और उन्हें वायरस के खतरों से अवगत कराना था और उन्हें उन तरीकों से अवगत कराना था जिसे अपनाकर हम खुद को और अपने परिवार के सदस्यों को बचा सकते हैं।

यह बहुत ही चुनौतीपूर्ण काम था। जन चेतना को जगाना महत्वपूर्ण था। जन चेतना का जागरण जनभागीदारी से ही संभव हो पाता है। जनता कर्फ्यू के माध्यम से, थालियां बजा कर या सामूहिक रूप से दीपक जलाकर सामूहिक राष्ट्रीय संकल्प का संकेत देते हुए हमने सभी भारतीयों को एक मंच पर लाने के लिए जन भागदारी का इस्तेमाल किया। इतने कम समय में जन जागरूकता का यह एक अविश्वसनीय उदाहरण है।

प्रश्न: और आर्थिक रणनीति क्या थी?

प्रधानमंत्री: जान बचाना केवल कोविड-19 से जान बचाने तक सीमित नहीं था। यह गरीबों को पर्याप्त भोजन और आवश्यक चीजें प्रदान करने के बारे में भी था। यहां तक कि जब अधिकांश विशेषज्ञ और समाचार पत्र सरकार से कॉर्पोरेट क्षेत्र के लिए आर्थिक पैकेज जारी करने के लिए कह रहे थे, हमारा ध्यान कमजोर आबादी के बीच जीवन को बचाने के लिए था। हमने पहले गरीब लोगों, प्रवासियों, किसानों की पीड़ा को कम करने के लिए पीएम गरीब कल्याण पैकेज की घोषणा की।

एक विशेष अंतर्दृष्टि और समझ जो हमें जल्द ही मिली थी वह यह थी कि कृषि क्षेत्र वह है जहां उत्पादकता पर समझौता किए बिना सामाजिक दूरी का नियम अधिक स्वाभाविक रूप से बनाए रखा जा सकता है। इसलिए, हमने शुरू से ही कृषि गतिविधियों को लगभग शुरू से ही अनुमति दी। हम सभी इस क्षेत्र में आज परिणाम देखते हैं कि इतने महीनों के व्यवधान के बावजूद यह क्षेत्र असाधारण रूप से अच्छा प्रदर्शन कर रहा है।

लोगों की तात्कालिक और मध्यम अवधि की जरूरतों को पूरा करने के लिए खाद्यान्न का रिकॉर्ड वितरण, श्रमिक विशेष रेलगाड़ियों का परिचालन और उपज की सक्रिय खरीद की गई।

लोगों द्वारा उठाई जा रही कठिनाइयों को दूर करने के लिए हम आत्मनिर्भर भारत पैकेज लेकर आए। इस पैकेज में समाज के सभी वर्गों और अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों के समक्ष खड़े मुद्दों को संबोधित किया गया था।

इससे हमें उन सुधारों को करने का अवसर मिला जो दशकों से होने की प्रतीक्षा कर रहे थे लेकिन किसी ने विगत में पहल नहीं की। कोयला, कृषि, श्रम, रक्षा, नागरिक उड्डयन इत्यादि जैसे क्षेत्रों में सुधार किए गए जो हमें उस उच्च विकास पथ पर वापस लाने में मदद करेंगे जिस पर हम संकट से पहले थे।

हमारे प्रयास परिणाम दे रहे हैं क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था पहले से ही उम्मीद से अधिक तेजी से पटरी पर लौट रही है।

प्रश्न: आपकी सरकार ने दूसरी पीढ़ी के दो प्रमुख सुधारों की शुरुआत की है – खेत और श्रम सुधार। वांछित आर्थिक लाभांश देने वाली इन पहलों के प्रति आप कितने आशावादी हैं, विशेष रूप से समग्र आर्थिक मंदी और राजनीतिक विरोध के प्रकाश में?

प्रधानमंत्री: विशेषज्ञ लंबे समय से इन सुधारों की वकालत करते रहे हैं। यहां तक कि राजनीतिक दल भी इन सुधारों के नाम पर वोट मांगते रहे हैं। सभी की इच्छा थी कि ये सुधार हो। मुद्दा यह है कि विपक्षी दल यह नहीं चाहते कि इसका श्रेय हमें मिले।

हम क्रेडिट भी नहीं चाहते हैं। हम किसानों और श्रमिकों के कल्याण को ध्यान में रखते हुए ये सुधार लाए हैं। वे हमारे ट्रैक रिकॉर्ड के कारण हमारे इरादों को समझते हैं और उन पर भरोसा करते हैं।

हम पिछले छह वर्षों में कृषि क्षेत्र में कदम दर कदम सुधार कर रहे हैं। इसलिए हमने आज जो कुछ किया है, वह 2014 में शुरू किए गए कार्यों की श्रृंखला का एक हिस्सा है। हमने कई बार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को बढ़ाया और वास्तव में, हमने पहले की सरकारों की तुलना में एमएसपी पर किसानों से कई गुना अधिक खरीद की। सिंचाई और बीमा दोनों में भारी सुधार हुए। किसानों के लिए प्रत्यक्ष आय सहायता सुनिश्चित की गई।

भारतीय खेती में जो कमी रही है वह यह है कि हमारे किसानों को उनके खून पसीने की मेहनत का पूरा लाभ नहीं मिलता । इन सुधारों द्वारा लाया गया नया ढांचा हमारे किसानों को मिलने वाले मुनाफे में काफी वृद्धि करेगा। जैसे अन्य उद्योगों में होता है कि एक बार लाभ अर्जित करने के बाद, अधिक उत्पादन के लिए उस क्षेत्र में वापस निवेश किया जाता है। लाभ और पुनर्निवेश का एक चक्र जैसा उभरता है। खेती के क्षेत्र में भी, यह चक्र अधिक निवेश, नवाचार और नई तकनीक के लिए दरवाजे खोलेगा।

इस प्रकार, ये सुधार न केवल कृषि क्षेत्र बल्कि संपूर्ण ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बदलने की अपार क्षमता रखते हैं।

एमएसपी पर देखें, केवल पूरे रबी विपणन सीजन में, केंद्र सरकार ने 389.9 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद की, जो कि ऑल टाइम रिकॉर्ड है, जिसमें 75,055 करोड़ रुपये एमएसपी के रूप में किसानों को दिए गए।

चालू खरीफ विपणन सीजन में, 159.5 लाख मीट्रिक टन धान की खरीद की गई है, जबकि पिछले साल इसी दौरान 134.5 लाख मीट्रिक टन खरीद थी – 18.62% की वृद्धि। यह सब तब हुआ जब हम तीन अध्यादेश लाए, जिन्हें अब संसद ने पारित कर दिया है।

यूपीए-2 (2009-10 से 2013-14) के पांच वर्षों की तुलना में धान के लिए किसानों को एमएसपी का भुगतान 1.5 गुना, गेहूं का 1.3 गुना, तिलहन का 10 गुना और दलहनों का भी कई गुना हुआ। यह उन लोगों के झूठ और फरेब को साबित करता है जो एमएसपी के बारे में अफवाहें फैला रहे हैं।

प्रश्न: और श्रम सुधारों के बारे में क्या कहेंगे?

प्रधानमंत्री: ये सुधार बहुत श्रमिक समर्थक हैं। अब वे सभी लाभ और सामाजिक सुरक्षा के हकदार हैं, भले ही उन्हें निश्चित अवधि के लिए काम पर रखा गया हो। श्रम सुधार रोजगार के अवसर पैदा करने के साथ-साथ न्यूनतम मजदूरी सुधार सुनिश्चित करेंगे, अनौपचारिक क्षेत्र में श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा प्रदान करेंगे और सरकारी हस्तक्षेप को कम करके श्रमिक को मजदूरी का समय पर भुगतान सुनिश्चित करेंगे और श्रमिकों की व्यावसायिक सुरक्षा को प्राथमिकता देंगे। इस प्रकार बेहतर काम का माहौल बनाने में योगदान होगा।

पिछले कुछ हफ्तों में, हमने वह सब कर दिया है जो हमने करने के लिए तय किया था। 1,200 से अधिक धाराओं वाले 44 केंद्रीय श्रम कानूनों को सिर्फ चार में समाहित कर दिया गया है। अब सिर्फ एक पंजीकरण, एक मूल्यांकन और एक रिटर्न भरनी होगी। आसान अनुपालन के साथ, इससे व्यवसायों को निवेश करने और कर्मचारी और नियोक्ता दोनों के लिए फायदे की स्थिति बनेगी तथा एक स्थिर व्यवस्था बनेगी।

विनिर्माण क्षेत्र को देखें। पिछले छह वर्षों में, हमने नई विनिर्माण इकाइयों के लिए कॉर्पोरेट कर की दर में 15% की कटौती से लेकर एफडीआई सीमा बढ़ाने और अंतरिक्ष, रक्षा और जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में निजी निवेश की अनुमति दी है। हमने विनिर्माण क्षेत्र के लिए कई सुधारात्मक उपाय किए, श्रम सुधार को छोड़ कर। अब हमने वह भी कर दिया है। हमने ऐसा ही किया है।

यह अक्सर कहा जाता था कि औपचारिक क्षेत्र में भारत में श्रम से अधिक श्रम कानून थे। श्रम कानूनों ने अक्सर श्रमिक को छोड़कर सभी की मदद की। समग्र विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक भारत के कार्यबल को औपचारिकता का लाभ नहीं मिलता।

मुझे विश्वास है कि पिछले कुछ महीनों में किए गए ये सुधार विनिर्माण और कृषि दोनों क्षेत्रों में विकास दर और रिटर्न को बढ़ाने में मदद करेंगे। इसके अलावा, यह दुनिया को यह भी संकेत देंगे कि यह एक नया भारत है जो बाजार और बाजार की ताकतों पर विश्वास करता है।

प्रश्न: एक आलोचना यह है कि कर्मचारियों की छंटनी लचीलेपन को 300 लोगों को रोजगार देने वाले कारखानों तक बढ़ाया गया है। लेकिन इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़ों और अन्य क्षेत्रों में विशाल कारखाने इनसे भी अधिक को रोजगार देते हैं। सभी फैक्ट्रियों में इस लचीलेपन का विस्तार क्यों नहीं किया गया है? इसके अलावा, हड़ताल के अधिकार के बारे में आलोचनाओं के बारे में आपके क्या विचार हैं?

प्रधानमंत्री: भारत एक दोहरी समस्या से पीड़ित था: हमारे श्रम कानून ऐसे थे कि अधिकांश श्रमिकों के पास कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं थी। और कंपनियां श्रम कानूनों के डर से अधिक श्रमिकों को काम पर रखना नहीं चाहती थीं, जिससे श्रमिक बहुल उत्पादन गिरता था। निरीक्षक-राज प्रणाली और जटिल श्रम कानूनों का नियोक्ताओं पर गहरी परेशानी वाला प्रभाव था।

हमें इस मानसिकता से बाहर आने की जरूरत है कि उद्योग और श्रम हमेशा एक-दूसरे के साथ संघर्ष में रहते हैं। ऐसा तंत्र क्यों नहीं है जहां दोनों को समान रूप से लाभ हो? चूंकि श्रम कानून एक समवर्ती विषय है, इसलिए वह राज्य सरकारों को उनकी विशिष्ट स्थिति और आवश्यकताओं के अनुसार उसमें संशोधन करने के लिए लचीलापन देता है।

हड़ताल के अधिकार पर बिल्कुल भी अंकुश नहीं लगाया गया है। वास्तव में, ट्रेड यूनियनों को एक नए अधिकार के साथ मजबूत किया गया है, जिससे उन्हें वैधानिक मान्यता प्राप्त हो सके।

हमने नियोक्ता-कर्मचारी के संबंध को अधिक व्यवस्थित बना दिया है। नोटिस की अवधि का प्रावधान कर्मचारियों और नियोक्ताओं के बीच किसी भी शिकायत के सौहार्दपूर्ण निपटारे का अवसर देता है।

प्रश्न: जीएसटी प्रणाली कोविड-19 से काफी तनाव में आ गई है। केंद्र ने अब पैसे उधार लेने और राज्यों को स्थान्तरित करने पर सहमति व्यक्त की है। लेकिन आगे के हालात को देखते हुए, आप राज्य सरकारों की स्थिति के बारे में क्या सोचते हैं?

प्रधान मंत्री: पिछले छह वर्षों में हमारे सभी कार्यों में प्रतिस्पर्धी और सहकारी संघवाद की भावना देखी गई है। हमारा जितना बड़ा एक देश केवल केंद्र के एक स्तंभ पर विकसित नहीं हो सकता, उसे राज्यों के दूसरे स्तंभ की जरूरत है। इस दृष्टिकोण के कारण कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई भी मजबूत हुई। सामूहिक रूप से निर्णय लिए गए। मुझे उनके सुझावों और इनपुट्स को सुनने के लिए सीएम के साथ कई बार वीडियो-कॉन्फ्रेंस करनी पड़ी, जिनका इतिहास में कोई उदाहरण नहीं है।

जीएसटी की बात करें तो यह सभी मायनों में एक असाधारण वर्ष है। अधिकांश धारणाओं और गणनाओं में सदी में कभी आने वाली महामारी को ध्यान में नहीं रखा गया था। फिर भी, हमने आगे बढ़ने के लिए विकल्प प्रस्तावित किए हैं और अधिकांश राज्य उनके साथ सहमत हैं। एक आम सहमति विकसित हो रही है।

attacknews.in

About Administrator Attack News

Dr.Sushil Sharma Admin/Editor

Check Also

मनमोहन सिंह ने बहुमत वाली नरेन्द्र मोदी सरकार को औंधे मुंह गिरने वाली बताकर कांग्रेस की सरकार बनने पर GST का नया संस्करण लागू करने की बात कही attacknews.in

नयी दिल्ली, पांच मई । पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने रविवार को कहा कि देश …

नरेन्द्र मोदी का साक्षात्कार: कांग्रेस पार्टी का घोषणापत्र आतंकवाद पर नरम और पाकिस्तान की विचारधारा वाला attacknews.in

नयी दिल्ली 9 अप्रैल । कांग्रेस के घोषणापत्र को लेकर उस पर हमला बोलते हुए …

पढ़िये राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की जुबानी आतंकवादी मसूद अजहर के छोड़े जाने और हाईजैक हुए विमान के यात्रियों की जान बचाने की घटना attacknews.in

नई दिल्ली 12 मार्च । 2019 के चुनावी घमासान में 20 वर्ष पुरानाा  कंधार विमान अपहरण …

भारत का मूल प्राण समाजनीति और समाज शक्ति हैं और इसमें भी राजनीति हो जाती हैं attacknews.in

नयी दिल्ली, 25 नवंबर। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार को कहा कि भारत का मूल-प्राण राजनीति …

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने राम मंदिर निर्माण के लिए होने वाले आंदोलन पर खतरनाक परिणाम के संकेत दिए attacknews.in

लखनऊ, 12 नवम्‍बर ।ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने अयोध्‍या में राम मंदिर …