जम्मू कश्मीर पर चीन का भी कब्ज़ा, बोलने का हक़ नहीं
नयी दिल्ली 31 अक्टूबर ।भारत ने जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख के केन्द्र शासित प्रदेश के रूप में अस्तित्व में आने पर चीन की तीखी प्रतिक्रिया का आज तगड़ा जवाब दिया और कहा कि चीन ने भी इन प्रदेशों की ज़मीन के बड़े हिस्से पर कब्ज़ा कर रखा है और चीन समेत किसी भी देश को जम्मू कश्मीर के बारे में बोलने का कोई अधिकार नहीं है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने यहां नियमित ब्रीफिंग में जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख के बारे में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के बयान के बारे में सवालों के जवाब में कहा कि चीन इस मुद्दे पर भारत के सतत एवं स्पष्ट रुख से अच्छी तरह से परिचित है। जम्मू कश्मीर राज्य को जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख के दो केन्द्र शासित प्रदेशों में बांटने का मामला पूरी तरह से भारत का आंतरिक मामला है।
उन्होंने कहा, “हम चीन सहित अन्य देशों से अपेक्षा करते हैं कि वे भारत के आंतरिक मामलों पर उसी तरह से टिप्पणी से परहेज करें जैसे भारत भी अन्य देशों के आंतरिक मसलों पर टिप्पणी करने से करता है। जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख भारत का अभिन्न हिस्सा है। हमारी अपेक्षा है कि अन्य देश भारत की संप्रभुता एवं प्रादेशिक अखंडता का सम्मान करें।”
श्री कुमार ने कहा कि जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख के केन्द्र शासित प्रदेशों के बड़े भूभाग पर चीन का कब्ज़ा बना हुआ है। उसने 1963 के चीन पाकिस्तान सीमा समझौते के जरिये पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के कुछ भूभाग को अवैध रूप से प्राप्त किया है। भारत 1947 में पाकिस्तान द्वारा अवैध ढंग से कब्जाए गये भूभाग पर तथाकथित चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की परियोजनाओं को लेकर चीन एवं पाकिस्तान दोनों को अपनी चिंताओं से अवगत कराता रहा है।
उन्होंने कहा कि जहां तक भारत एवं चीन के बीच सीमा मसले का संबंध है, दोनों देश 2005 के दिशानिर्देशक सिद्धांतों एवं राजनीतिक मानदंडों के आधार पर शांतिपूर्ण बातचीत के माध्यम से एक निष्पक्ष, उचित एवं परस्पर स्वीकार्य समाधान निकालने के लिए सहमत हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच चेन्नई में हुई दूसरी अनौपचारिक शिखर वार्ता में भी इसे दोहराया गया था। इसबीच दोनों पक्ष सीमावर्ती क्षेत्र में शांति एवं स्थिरता बनाये रखने पर भी राजी हुए हैं।
करतारपुर गलियारे में उद्घाटन में जाने वालों को राजनीतिक मंजूरी लेनी होगी:
कांग्रेस नेता एवं पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू द्वारा करतारपुर गलियारे के उद्घाटन अवसर पर पाकिस्तान सरकार के निमंत्रण पत्र को स्वीकार करने की खबरों के बीच विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को कहा कि सभी आमंत्रित लोगों को पाकिस्तान जाने के लिए नियमानुसार राजनीतिक मंज़ूरी लेनी होगी।
ऐसी रिपोर्टें आयीं हैं कि श्री सिद्धू ने नौ नवंबर को करतारपुर गलियारे के उद्घाटन अवसर पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के निमंत्रण को स्वीकार कर लिया है।
कश्मीर मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण नहीं हुआ, दूसरों को भी अनुमति देगा भारत
सरकार ने जम्मू कश्मीर में यूरोपीय सांसदों के एक दल के दौरे को नियमों के अनुरूप बताते हुए आज कहा कि इससे कश्मीर मसले का अंतरराष्ट्रीयकरण कतई नहीं हुआ है और भविष्य में अगर कोई अन्य अंतरराष्ट्रीय दल केन्द्र शासित प्रदेशों की यात्रा का अनुरोध करता है तो उस पर ज़मीनी परिस्थितियों और उसकी मंशा के आधार पर विचार किया जाएगा।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने यहां इस बारे में सवालों का जवाब देते हुए कहा कि सरकार का यह दायित्व है कि यदि कोई विदेशी मेहमान किसी गैरसरकारी संगठन के निमंत्रण पर या उनके प्रायोजित कार्यक्रम में भारत आता है और सरकार से कहीं जाने या कुछ देखने का आग्रह करता है तो सरकार देशहित एवं उसके मकसद को जानने के बाद यदि उचित समझती है तो उसका प्रबंध करती है।
उन्होंने कहा कि विदेश मंत्रालय के ध्यान में यह विषय लाया गया कि यूरोपीय सांसदों का एक दल घाटी का दौरा करना चाहता है और उनमें विविध विचारों के लोग शामिल हैं तो हमने इसकी सुविधा उन्हें मुहैया करायी।
यह पूछे जाने पर कि अगर कोई अन्य अंतरराष्ट्रीय समूह या दल जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख जाना चाहेगा तो क्या सरकार उसकी अनुमति देगी?, प्रवक्ता ने कहा, “हम निश्चित रूप से उस अनुरोध पर ज़मीनी हालात को देखने एवं उनकी मंशा को समझने के बाद अनुमति देने का विचार करेंगे। अंतिम निर्णय लेने से पहले सभी पहलुओं को देखा जाएगा”
उन्होंने कहा कि यूरोपीय सांसदों के दल ने महसूस किया है कि जम्मू कश्मीर में किस प्रकार से आतंकवाद भारत के लिए खतरा बन गया है। उन्होंने कहा कि इन सांसदों ने कहा था कि वे यह समझना चाहते हैं कि आतंकवाद किस प्रकार से भारत को प्रभावित कर रहा है। उन्हें ज़मीनी हालात की कुछ समझ भी हासिल हुई है। उन्हें आतंकवाद के खतरे का अंदाज़ा लगा है। आतंकवाद किस प्रकार से भारत खासकर जम्मू कश्मीर के लिए खतरा है।
यूरोपीय सांसदों की यात्रा से भारत के इस आंतरिक मसले का अंतरराष्ट्रीयकरण होने के विपक्ष के आरोपों के बारे में प्रवक्ता ने कहा कि लोगों के मन में मुद्दे को लेकर अंतरराष्ट्रीय समझ पैदा करने एवं मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करने में बहुत फर्क होता है। हमारे दृष्टिकोण अथवा परिप्रेक्ष्य को साझा करने से मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण नहीं होता है। हमारा अन्य देशों एवं थिंक टैंकों के साथ संवाद का मकसद भारत के विचारों से अवगत कराना है।
उन्होंने कहा कि राजनयिक समुदाय के साथ संपर्क में आना मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करना नहीं होता है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने विभिन्न मंचों पर भारत के विचारों को रखा है।