नयी दिल्ली, 22 जुलाई । सोशल मीडिया पर फेक न्यूज और झूठी अफवाहें फैलने के बाद भीड़ द्वारा पीट पीटकर हत्या (लिंचिंग) की घटनाएं हाल में देश के कई हिस्सों से सामने आई हैं। इन घटनाओं ने इंटरनेट और सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर सवाल खड़े करने के साथ इस पर लगाम की जरूरत पैदा की है। इसी मुददे पर पेश हैं साइबर कानून विशेषज्ञ और अधिवक्ता पवन दुग्गल से पांच सवाल :
प्रश्न : फेक न्यूज पर लगाम लगाने के लिए आपके सुझाव क्या हैं? विशेषकर लिंचिंग की घटनाओं और अगले साल होने वाले आम चुनाव के मद्देनजर?
उत्तर : व्हाटसएप और अन्य सोशल मीडिया साइट के पास टेक्नोलॉजी है जिससे वे हरेक डिवाइस में कंटेंट पता कर सकती हैं। वह ऐसे उपाय कर सकती हैं कि आपत्तिजनक जानकारी का प्रसार ना हो। लेकिन वह ऐसा नहीं कर रही हैं। उन्हें लगता है कि बिना मेहनत, बिना पैसा खर्च किए ज्यादा से ज्यादा भारतीयों का डेटा लिया जा सकता है। इस पर सख्ती की जरूरत है।
प्रश्न : खबर है कि व्हाटसएप ने ब्लाग लिखकर कहा है कि वह टेस्टिंग कर रहे हैं कि इसके माध्यम से एक साथ एक मैसेज को केवल पांच जगह भेजा जा सकेगा। इसके बाद मैसेज भेजने पर रोक होगी? क्या इस तरह की कोई व्यवस्था अफवाहों से होने वाले अपराधों या फेक न्यूज को रोकने में कामयाब रहेगी?
उत्तर : बिल्कुल भी नहीं। कारण यह है कि एजेंट एक-एक करके पांच सौ लोगों को मैसेज फारवर्ड करेंगे। वे परोक्ष तरीके अपनाएंगे। और फिर कट एंड पेस्ट करने पर तो कोई रोक नहीं है। समस्या यह है कि घर में आग लगी हुई है और व्हाटसएप कह रहा है कि मैं 200 किलोमीटर दूर जाउंगा पानी लेने के लिए, फिर आग बुझाउंगा। उनके पास पूरी टेक्नोलाजी है, पूरी क्षमता है, लेकिन वे जानबूझकर देरी कर रहे हैं ताकि भारतीय कानून के अधीन नहीं आएं। इस मामले में सख्ती की जरूरत है जो भारत सरकार की तरफ से नजर नहीं आ रही।
प्रश्न : क्या हमारे आईटी /सूचना प्रौद्योगिकी/ कानून के प्रावधान इन विषयों से निपटने के लिए पर्याप्त हैं या उन्हें लागू करने की समस्या है ?
उत्तर : कानून में खामियां क्या, प्रावधान ही नहीं है। वर्तमान आईटी कानून सोशल मीडिया के बारे में बात ही नहीं करता। हालांकि आईटी कानून में कुछ प्रावधान हैं जिन्हें हम सोशल मीडिया पर लागू कर सकते हैं जैसे ‘इंटरमीडियरी लायबिलिटी’/बिचौलिया दायित्व/। राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में इनके तहत कारवाई नहीं हो पा रही है। एक अलग कानून होना चाहिए जो फेक न्यूज और झूठी अफवाहों को फैलने से रोक सके। ट्रोलिंग को रेगुलेट कर सके।
प्रश्न : क्या विदेश की सोशल मीडिया कंपनियों पर भारत के कानून उसी तरह से लागू होते हैं जैसे भारतीय कंपनियों पर?
उत्तर : व्हाटसएप कह रहा है कि यहां हमारा दफ्तर नहीं है। हम अमेरिकी कंपनी हैं और वहीं के कानून के अधीन हैं। वे भूल जाते हैं कि आईटी एक्ट में धारा एक और 75 हैं जो कहती हैं कि हर वह कंपनी जो चाहे भारत की हो या बाहर की हो जिसकी सेवाएं भारत में कम्प्यूटर के डिवाइस पर उपलब्ध हो, वह भारतीय कानून के दायरे में होगी। अगर व्हाटसएप को अपना कारोबार करना है तो भारतीय कानून का पालन करना होगा।
प्रश्न : सस्ते इंटरनेट के इस दौर में फेक न्यूज और झूठी अफवाहों को लेकर जागरूकता की कितनी जरूरत है?
उत्तर : भारत के जो उपभोक्ता हैं उन्हें कानूनी मामलों की ज्यादा जानकारी नहीं है। वे बिना सोचे समझे चीजों को फारवर्ड करते हैं। इसलिए फारवर्ड की जा रही सामग्री पर जागरूकता का प्रसार जरूरी है।attacknews.in