नयी दिल्ली, 24 जून । सरकार ने अंतरिक्ष गतिविधियों की निगरानी, समन्वय और इसमें निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने के लिए ‘राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन एवं प्राधिकरण केंद्र’ (आईएन-स्पेस) के गठन का फैसला किया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल की यहां बुधवार को हुई बैठक में इसके संबंध में प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। आईएन-स्पेस का एक संचालक मंडल (बोर्ड) होगा जो भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और निजी क्षेत्र के बीच समन्वय स्थापित करेगा। बोर्ड की रूपरेखा को आने वाले दिनों में अंतिम रूप दिया जायेगा। आत्मनिर्भर भारत पैकेज की घोषणा करते हुये सरकार ने कहा था कि वह अंतरिक्ष गतिविधियों में निजी क्षेत्र को अवसर प्रदान करेगी।
अंतरिक्ष विभाग के राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने बैठक के बाद संवाददाताओं को इसकी जानकारी देते हुये कहा कि यह एक “ऐतिहासिक एवं नयी राह का सृजन करने वाला” फैसला है। सत्तर साल से देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम को बेहद गोपनीय रखा गया और निजी क्षेत्र को इससे दूर रखा गया।
उन्होंने कहा कि आईएन-स्पेस देश के अंतरिक्ष क्षेत्र के बुनियादी ढांचों और परिसंपत्तियों का अधिकतम इस्तेमाल सुनिश्चित करेगा। इससे देश में अंतरिक्ष क्षेत्र के वैज्ञानिकों एवं अन्य विशेषज्ञों को रोजगार के ज्यादा अवसर मिलेंगे जिससे ‘ब्रेनड्रेन’ रोकने में भी मदद मिलेगी।
मंत्रिमंडल ने उत्तर प्रदेश में कुशीनगर हवाई अड्डे को अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा घोषित किए जाने को दी स्वीकृति
केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने उत्तर प्रदेश में कुशीनगर हवाई अड्डे को अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के रूप में घोषित किए जाने को स्वीकृति दे दी है।
कुशीनगर हवाई अड्डा श्रावस्ती, कपिलवस्तु, लुंबिनी (कुशीनगर खुद एक बौद्ध सांस्कृतिक स्थल है) जैसे बौद्ध सांस्कृतिक स्थलों के निकट स्थित है और “अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे” के रूप में घोषित होने से हवाई यात्रियों के लिए संपर्क में सुधार होगा, साथ ही उन्हें प्रतिस्पर्धी लागत वाले यात्रा के ज्यादा विकल्प मिलेंगे। अंतरराष्ट्रीय सीमा के काफी नजदीक होने के कारण यह सामरिक लिहाज से काफी अहम स्थान है।
कुशीनगर उत्तर प्रदेश के उत्तर-पूर्वी हिस्से में स्थित है और गोरखपुर से 50 किलोमीटर पूर्व में है। साथ ही यह प्रमुख बौद्ध तीर्थ स्थलों में से एक भी है।
मंत्रिमंडल ने केन्द्रीय सूची में अन्य पिछड़ा वर्ग के भीतर उप-श्रेणीकरण के मुद्दे के परीक्षण के लिए संविधान के अनुच्छेद 340 के अंतर्गत गठित आयोग के कार्यकाल के विस्तार को दी स्वीकृति
केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के उप-श्रेणीकरण के मुद्दे के परीक्षण के लिए गठित आयोग के कार्यकाल में 6 महीने यानी 31.01.2021 तक विस्तार को स्वीकृति दे दी है।
रोजगार सृजन की संभावना सहित प्रभाव :
ओबीसी की वर्तमान सूची में शामिल ऐसे समुदाय जिन्हें केन्द्र सरकार के पदों पर नियुक्ति और केन्द्र सरकार के शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में ओबीसी के लिए आरक्षण योजना का कोई खास लाभ नहीं है, उनको आयोग की सिफारिशों के कार्यान्वयन का लाभ मिलने का अनुमान है। आयोग द्वारा ओबीसी की केन्द्रीय सूची में अभी तक हाशिये पर पड़े ऐसे समुदायों को लाभ पहुंचाने के लिए सिफारिशें किए जाने का अनुमान है।
व्यय :
व्यय में आयोग की स्थापना और प्रशासन से संबंधित लागत शामिल हैं, जिसका बोझ सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण विभाग द्वारा उठाया जाएगा।
लाभ :
इससे उन जातियों/ समुदायों से संबंधित सभी लोगों फायदा होगा, जो एसईबीसी की केन्द्रीय सूची में शामिल हैं लेकिन केन्द्र सरकार के पदों और केन्द्र सरकार के शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिए वर्तमान ओबीसी आरक्षण योजना का उन्हें फायदा नहीं हुआ था।
कार्यान्वयन सूची
आयोग के कार्यकाल के विस्तार के लिए आदेश और विचारार्थ विषयों को इस संबंध में माननीय राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने के बाद राष्ट्रपति द्वारा एक आदेश के रूप में राजपत्र में अधिसूचित किया जाएगा।
पृष्ठभूमि :
2 अक्टूबर, 2017 को राष्ट्रपति की स्वीकृति के साथ संविधान के अनुच्छेद 340 के अंतर्गत इस आयोग की स्थापना की गई थी। न्यायाधीश (सेवानिवृत्त)श्रीमती जी. रोहिणी की अध्यक्षता वाले आयोग ने 11 अक्टूबर, 2017 को काम शुरू कर दिया था और तब से ओबीसी का उप-श्रेणीकरण करने वाले सभी राज्यों/ संघ शासित क्षेत्रों और राज्य पिछड़ा वर्ग आयोगों के साथ संवाद किया जा रहा है। आयोग ने कहा कि उसे अपनी रिपोर्ट जमा करने के लिए कुछ और समय की आवश्यकता होगी, क्योंकि वर्तमान ओबीसी की केन्द्रीय सूची में दिख रहे दोहराव, अस्पष्टताओं, विसंगतियों, भाषाई या ट्रांसक्रिप्शन से संबंधित गलतियों को दूर किए जाने की जरूरत है। इसीलिए आयोग ने अपने कार्यकाल को 31 जुलाई, 2020 तक बढ़ाने की मांग की थी। हालांकि कोविड-19 महामारी के चलते देश भर में लागू लॉकडाउन और यात्रा पर बंदिशों के चलते आयोग उसे मिले काम को पूरा करने में नाकाम रहा। इसलिए, आयोग के कार्यकाल में 6 महीने यानी 31.01.2021 तक विस्तार किया जा रहा है।
अंतरिक्ष क्षेत्र में ऐतिहासिक सुधारों की शुरुआत
अंतरिक्ष क्षेत्र से संबंधित गतिविधियों में निजी क्षेत्र की भागीदारी को मंजूरी
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आज अंतरिक्ष गतिविधियों के समस्त क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने के उद्देश्य से अंतरिक्ष क्षेत्र में दूरगामी सुधारों को मंजूरी दी है। यह निर्णय भारत को बदलने तथा देश को आत्मनिर्भर और तकनीकी रूप से आधुनिक बनाने के प्रधानमंत्री के दीर्घकालिक दृष्टिकोण के अनुरूप है।
भारत अंतरिक्ष क्षेत्र में उन्नत क्षमताओं वाले चंद देशों में एक है। इन सुधारों से क्षेत्र को नई ऊर्जा तथा गतिशीलता प्राप्त होगी जिससे देश को अंतरिक्ष गतिविधियों के अगले चरण में तेजी से आगे बढ़ने में मदद मिलेगी।
इससे न केवल इस क्षेत्र में तेजी आएगी बल्कि भारतीय उद्योग विश्व की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकेगा। इसके साथ ही प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बड़े पैमान पर रोजगार की संभावनाएं हैं और भारत एक ग्लोबल टेक्नोलॉजी पावरहाउस बन रहा है।
प्रमुख लाभः
अंतरिक्ष क्षेत्र प्रौद्योगिकीय उन्नयन तथा हमारे औद्योगिक आधार के विस्तार में एक प्रमुख उत्प्रेरक की भूमिका निभा सकता है। प्रस्तावित सुधार अंतरिक्ष परिसंपत्तियों, डाटा एवं सुविधाओं तक बेहतर पहुंच के माध्यम सहित अंतरिक्ष परिसंपत्तियों तथा गतिविधियों के सामाजिक-आर्थिक उपयोग को बढ़ायेंगे।
नवसृजित भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन तथा प्रमाणीकरण केंद्र (इन-स्पेस) भारतीय अंतरिक्ष अवसंरचना का उपयोग करने हेतु निजी क्षेत्र की कंपनियों के लिए समान अवसर उपलब्ध करायेगा। यह बढ़ावा देने वाली नीतियों तथा अनुकूल नियामकीय वातावरण के जरिये अंतरिक्ष गतिविधियों में निजी क्षेत्र की आरंभिक सहायता करेगा, उन्हें बढ़ावा तथा दिशा-निर्देश देगा।
सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम अंतरिक्ष गतिविधियों को ‘न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड‘ एक ‘ आपूर्ति प्रेरित‘ मॉडल से ‘मांग प्रेरित‘ मॉडल की ओर पुनःस्थापित करने की कोशिश करेगा जिससे कि हमारी अंतरिक्ष परिसंपत्तियों का इष्टतम उपयोग सुनिश्चित हो सके।
ये सुधार इसरो को अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों, नई प्रौद्योगिकियों, खोज मिशनों तथा मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रमों पर अधिक फोकस करने में सक्षम बनायेगा। कुछ ग्रह संबंधी खोज मिशनों को भी ‘अवसर की घोषणा‘ तंत्र के जरिये निजी क्षेत्र के लिए खोला जा सकेगा।
कैबिनेट ने प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत ‘शिशु ऋणों’ की त्वरित अदायगी पर 12 माह की अवधि के लिए 2% ब्याज सब्सिडी को मंजूरी दी
ऋणों की नियमित अदायगी को प्रोत्साहित किया जाएगा
यह योजना ‘कोविड-19’ से उत्पन्न व्यवधान से निपटने में छोटे कारोबारियों की मदद करेगी
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आज पात्र उधारकर्ताओं को प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (पीएमएमवाई) के तहत सभी शिशु ऋण खातों पर 12 माह की अवधि के लिए 2% की ब्याज सब्सिडी देने की योजना को मंजूरी दे दी।
यह योजना उन ऋणों के लिए मान्य होगी जो इन मानदंडों को पूरा करते हैं – 31 मार्च, 2020 को बकाया थे; और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के दिशा-निर्देशों के अनुसार 31 मार्च 2020 को तथा योजना की परिचालन अवधि के दौरान गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) श्रेणी में नहीं थे।
ब्याज सब्सिडी उन महीनों के लिए देय होगी, जिनमें खाते एनपीए की श्रेणी में नहीं आते हैं। इनमें वे महीने भी शामिल है, जिनमें खाते एनपीए बनने के बाद फिर से निष्पादित परिसंपत्ति बन जाते हैं। यह योजना लोगों को प्रोत्साहित करेगी जो ऋणों की नियमित अदायगी करेंगे।
योजना की अनुमानित लागत लगभग 1,542 करोड़ रुपये होगी जो भारत सरकार द्वारा मुहैया कराई जाएगी।
पृष्ठभूमि:
यह योजना एमएसएमई से संबंधित कई उपायों में से एक उपाय को लागू करने के लिए है, जिनकी घोषणा ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान के तहत की गई है। पीएमएमवाई के तहत आय सृजन गतिविधियों के लिए दिए जाने वाले 50,000 रुपये तक के ऋणों को ‘शिशु ऋण’ कहा जाता है। पीएमएमवाई ऋण दरअसल सदस्य उधारदाता संस्थानों जैसे कि अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों और मुद्रा लिमिटेड में पंजीकृत माइक्रो फाइनेंस संस्थानों द्वारा दिए जाते हैं।
अब भी कहर ढा रहे कोविड-19 संकट और इसके परिणामस्वरूप किए गए लॉकडाउन ने उन सूक्ष्म और लघु उद्यमों के कारोबार को बुरी तरह बाधित किया है जो शिशु मुद्रा ऋणों के माध्यम से वित्त पोषित होते हैं। छोटे कारोबारी आम तौर पर अत्यंत कम परिचालन मार्जिन पर व्यवसाय करते हैं, और वर्तमान लॉकडाउन का उनके नकदी प्रवाह पर अत्यंत प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है जिससे उनकी कर्ज अदायगी क्षमता खतरे में पड़ गई है। इस वजह से वे कर्ज अदायगी में डिफॉल्ट या चूक कर सकते हैं और इसके परिणामस्वरूप भविष्य में संस्थागत ऋणों तक उनकी पहुंच पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
31 मार्च 2020 तक की स्थिति के अनुसार, पीएमएमवाई की ‘शिशु’ श्रेणी के तहत तकरीबन 1.62 लाख करोड़ रुपये की कुल ऋण राशि के साथ लगभग 9.37 करोड़ ऋण खाते बकाया थे।
कार्यान्वयन रणनीति:
यह योजना भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) के माध्यम से कार्यान्वित की जाएगी और 12 माह तक परिचालन में रहेगी।
जिन उधारकर्ताओं को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के ‘कोविड-19 नियामकीय पैकेज’ के तहत उनके बैंकों द्वारा मोहलत दी गई है उनके लिए यह योजना मोहलत अवधि के पूरा होने के बाद शुरू होगी और 12 माह की अवधि तक जारी रहेगी यानी 01 सितंबर, 2020 से 31 अगस्त, 2021 तक जारी रहेगी। अन्य उधारकर्ताओं के लिए यह योजना 01 जून, 2020 से प्रभावी होगी और 31 मई, 2021 तक जारी रहेगी।
प्रमुख प्रभाव:
इस योजना को अभूतपूर्व परिस्थितियों से निपटने के लिए एक विशिष्ट कदम या उपाय के रूप में तैयार किया गया है और इसका उद्देश्य ऋण की लागत को कम करके ‘पिरामिड के निचले भाग’ वाले उधारकर्ताओं की वित्तीय मुश्किलों को कम करना है। योजना से इस सेक्टर को बहुप्रतीक्षित राहत मिलने की उम्मीद है, जिससे छोटे कारोबारियों को धन की कमी के कारण कर्मचारियों की छंटनी किए बिना ही अपना कामकाज निरंतर जारी रखने में मदद मिलेगी।
संकट की इस घड़ी में अपना कामकाज निरंतर जारी रखने के लिए एमएसएमई को आवश्यक सहायता देने से इस योजना का अर्थव्यवस्था पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ने और इसके साथ ही आर्थिक पुनरुत्थान को संबल मिलने की उम्मीद है, जो भविष्य में रोजगार सृजन के लिए अत्यंत जरूरी है।