दाऊद इब्राहिम,विजय माल्या हो या नीरव मोदी भारत में कानून से बचकर भागने वाले लोगों के लिए ब्रिटेन सुरक्षित पनाहगाह क्यों है; ब्रिटेन भागे अपराधियों पर प्रकाश डालती किताब का विमोचन attacknews.in

लंदन, 21 मार्च । भारतीय नागरिकों के प्रत्यर्पण के कुछ हाई-प्रोफाइल और साथ ही कम चर्चित मामलों पर एक नयी किताब में यह पता लगाने की कोशिश की गई है कि भारत में कानून से बचकर भागने वाले लोगों के लिए ब्रिटेन सुरक्षित पनाहगाह क्यों है।

‘एस्केप्ड : ट्रू स्टोरीज ऑफ इंडियन फ्यूजिटिव्स इन लंदन’ नाम की किताब का सोमवार को विमोचन हुआ। इसमें ऐसे 12 मामलों का उल्लेख किया गया है जिनमें भारत में वांछित कथित अपराधियों पर कर्ज न चुकाने से लेकर हत्या तक के मुकदमे चल रहे हैं।

यह किताब लंदन के पत्रकारों और अध्ययनकर्ताओं दानिश तथा रूही खान ने लिखी है। इस किताब में किंगफिशर एयरलाइंस के पूर्व प्रमुख विजय माल्या और हीरा कारोबारी नीरव मोदी के मामलों का भी जिक्र है जिन पर भारत में धोखाधड़ी और धन शोधन के आरोप लगे हैं। साथ ही इसमें पूर्व भारतीय नौसेना अधिकारी रवि शंकरन तथा संगीतकार नदीम सैफी समेत कुछ ऐतिहासिक मामलों का भी उल्लेख है।

दानिश खान ने कहा, ‘‘इन 12 मामलों को व्यक्तियों के खिलाफ लगे आरोपों की महत्ता के तौर पर चुना गया है क्योंकि उनके मामलों की सुनवाई में दिलचस्प दलीलें रखी गईं और रोचक फैसले सुनाए गए।’’

लंदन में पत्रकार के तौर पर हाल के अदालती मामलों की रिपोर्टिंग करने वाले दंपति ने कहा कि उन्होंने अपने खुद के विचार और की गई रिपोर्टिंग के बारे में लिखा है। साथ ही उन्होंने ब्रिटिश अभिलेखों, अखबारों के पुराने रिकॉर्ड और संसदीय रिपोर्टों को खंगाला।

प्रत्यर्पण के कुछ पुराने मामलों में दाऊद इब्राहिम, इकबाल मिर्ची का भी जिक्र है जिन्होंने उस समय लंदन में पैर जमाए जब अंडरवर्ल्ड डॉन के लिए पश्चिम एशिया पसंदीदा स्थान था और यह उनके लिए सही साबित हुआ क्योंकि वह भारत में प्रत्यर्पण के खिलाफ लड़ाई जीत गए।

लेखकों ने कहा कि उन्होंने किताब में इस पर प्रकाश डालने की कोशिश की है कि कैसे मिर्ची ने बंबई के मोहल्लों से उठकर लंदन में अपना साम्राज्य खड़ा किया।

अमेरिकन वैज्ञानिक शोध में खुलासा:कोरोना वायरस को तेजी से,आसानी से और किफायती तरीके से मार सकते हैं पराबैंगनी किरणों का उत्सर्जन करने वाले एलईडी बल्ब attacknews.in

न्यूयॉर्क, 15 दिसंबर । पराबैंगनी (यूवी) प्रकाश उत्सर्जक डायोड (यूवी-एलईडी) कोरोना वायरस को तेजी से, आसानी से और किफायती तरीके से मारने में कारगर साबित हो सकते हैं।

एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है।

अध्ययन में कहा गया है कि इस नवोन्मेष का इस्तेमाल वातानुकूलन और जल प्रणालियों में भी किया जा सकता है।

‘जर्नल ऑफ फोटोकेमिस्ट्री एंड फोटोबॉयोलॉजी बी: बॉयोलॉजी’ में प्रकाशित अनुसंधान के तहत कोरोना वायरसों के परिवार के किसी वायरस पर यूवी-एलईडी विकिरण की विभिन्न तरंगों की रोगाणुनाशन क्षमता का आकलन किया गया।

अमेरिका स्थित ‘अमेरिकन फ्रेंड्स ऑफ तेल अवीव यूनिवर्सिटी’ के अध्ययन की सह लेखिका हदस ममने ने कहा, ‘‘पूरी दुनिया कोरोना वायरस को नष्ट करने के प्रभावी समाधान ढूंढ रही है।’’

वैज्ञानिक ने कहा कि किसी बस, ट्रेन, खेल के मैदान या विमान को रासायनिक पदार्थों के छिड़काव से संक्रमणमुक्त करने में लोगों और रसायन को सतह पर काम करने के लिए समय की आवश्यकता होती है।

ममने ने कहा, ‘‘एलईडी बल्बों पर आधारित संक्रमणमुक्त करने की प्रणालियां वायु-संचरण प्रणाली एवं एयर कंडिशनर में लगाई जा सकती हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हमने पाया कि पराबैंगनी किरणें उत्सर्जित करने वाले एलईडी बल्बों की मदद से कोरोना वायरस को मारना बहुत आसान है। मैंने सस्ते और आसानी से उपलब्ध एलईडी बल्बों की मदद से वायरस को मारा।’’

अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि प्रणाली को इस तरह से डिजाइन किया जाना चाहिए, ताकि व्यक्ति प्रकाश के सीधे संपर्क में न आए क्योंकि घरों के भीतर सतहों को संक्रमणमुक्त करने के लिए यूवी-एलईडी का इस्तेमाल बहुत खतरनाक होगा।

सर्वे में खुलासा: कोरोना महामारी के कारण घट गई भारतीय परिवारों की बचत,नौकरी छूटना, वेतन कटौती या भुगतान में देरी प्रमुख वजह बनी attacknews.in

नयी दिल्ली, 15 दिसंबर । कोविड-19 महामारी की वजह से परिवारों की बचत में गिरावट आई है। एक सर्वे में बड़ी संख्या में उपभोक्ताओं ने कहा है कि महामारी की वजह से उनकी बचत कम हुई है।

सर्वे में कहा गया है कि नौकरी छूटना, वेतन कटौती या भुगतान में देरी जैसी वजहों से परिवारों की बचत प्रभावित हुई है।

लोकलसर्किल्स के उपभोक्ताओं के रुख पर छमाही सर्वे में कहा गया है कि महामारी के अब नौ माह हो गए हैं। बड़ी संख्या में उपभोक्ता रोजगार गंवाने और वेतन कटौती की वजह से अपनी वित्तीय स्थिति में आई गिरावट से उबर नहीं पाए हैं।

सर्वे में शामिल 8,240 लोगों में से 68 प्रतिशत ने कहा कि कोविड-19 महामारी की वजह से पिछले आठ माह में उनकी बचत घटी है।

यह सर्वे त्योहारी सीजन के दौरान उपभोक्ताओं के खर्च के रुख, अगले चार माह के लिए खर्च की योजना, परिवार की आमदनी को लेकर उम्मीद तथा मार्च तक बचत की स्थिति के आकलन के लिए किया गया है।

सर्वे पर देश के 302 जिलों से करीब 44,000 प्रतिक्रियाएं मिलीं। इसमें 62 प्रतिशत पुरुष और 38 प्रतिशत महिलाएं शामिल हैं। सर्वे में शामिल लोगों में से 55 प्रतिशत पहली श्रेणी के शहरों से है। 26 प्रतिशत दूसरी श्रेणी और 19 प्रतिशत तीसरी और चौथी श्रेणी के शहरों या ग्रामीण जिलों से हैं।

सर्वे के अनुसार, करीब 50 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे अगले चार माह के दौरान विवेकाधीन उत्पाद या संपत्तियां खरीदने पर खर्च करेंगे। ‘‘करीब 10 प्रतिशत लोगों का कहना था कि अगले चार माह में उनकी विवेकाधीन खरीद पर 50,000 रुपये से अधिक खर्च करने की योजना है। वहीं 21 प्रतिशत ने कहा कि इस अवधि में वे 10,000 से 50,000 रुपये खर्च करेंगे।

भारत में जल्द आ रही है “जामुन वाइन” : देश में मधुमेह की बढ़ती समस्या को देखते हुए वैज्ञानिकों ने किया विकास,बीमारी को नियंत्रित करने में निभाएगी महत्वपूर्ण भूमिका attacknews.in

नयी दिल्ली 07 दिसंबर । देश में मधुमेह की बढ़ती समस्या को देखते हुए वैज्ञानिकों ने जामुन वाइन का विकास कर लिया है जो न केवल सालों भर उपलब्ध रहेगा बल्कि इस बीमारी को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा ।

जामुन के फल और गुठली को मधुमेह रोगियों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है । मधुमेह रोगियों की बढ़ती संख्या के साथ इस फल की मांग भी बढ़ रही है। जामुन बाजार में सीमित समय तक ही उपलब्ध रहता है परन्तु इसके फलों से बनी वाइन, जूस, बार, सिरका, जैली जैसे मूल्य वर्धित उत्पाद पूरे साल अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं। मूल्य वर्धित उत्पाद ताजे फल के समान ही पौष्टिक, स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक होते हैं। जामुन को कई स्वास्थ्य और औषधीय लाभों के कारण “सुपर फ्रूट” के रूप में भी जाना जाता है। यह फल पेट दर्द और मूत्र रोग को राहत देने के लिए उपयोगी माना जाता है।

केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान लखनऊ के निदेशक शैलेन्द्र राजन के अनुसार बायोएक्टिव यौगिक कैंसर, हृदय रोग, मधुमेंह, अस्थमा और गठिया में प्रभावी हैं। जामुन के फल एंटी-ऑक्सीडेंट के धनी हैं। मधुमेह और कैंसर रोधी गुणों के कारण इसके महत्व को विकसित देशों ने भी स्वीकार किया है।

जामुन के मूल्य संवर्धित प्रोडक्ट्स में वाइन का विशेष महत्व उद्यमियों द्वारा इंगित किया गया है क्योंकि औषधीय गुणों के अतिरिक्त जामुन वाइन स्वाद एवं सुगंध में भी बेहतरीन है। जामुन के फल सामान्य तापक्रम पर जल्दी खराब हो जाते हैं परंतु मूल्यवान बायोएक्टिव यौगिकों से भरपूर होने के कारण प्रसंस्करण के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। कई गैर-किण्वित उत्पादों की अतिरिक्त ब्रांडी, डिस्टिल्ड शराब और वाइन जैसे किण्वित उत्पाद काफी संख्या में बनाए जा रहे हैं और लोकप्रिय भी हो रहे हैं। जामुन के फलों में किण्वन के लिए आवश्यक पर्याप्त शर्करा पाई जाती है इसलिए दुनिया के कई देशों में वाइन बनाने के लिए लिए एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में इसका उपयोग किया जा रहा है। जामुन के मूल्यवर्धक उत्पादों विशेषकर वाइन औषधीय गुण से भरपूर होते हैं। जामुन अपने मधुमेह रोधी गुणों के लिए मशहूर है। यह जाम्बोलिन नामक ग्लाइकोसाइड की उपस्थिति के कारण होता है।

जाम्बोलिन अग्न्याशय द्वारा इंसुलिन स्राव में सुधार करता है। रक्त में शर्करा का अधिक स्तर होने पर जामुन का एक अन्य महत्वपूर्ण घटक एल्कॉजिक एसिड स्टार्च के शर्करा में रूपांतरण को नियंत्रित करने में सहायक है।

जामुन के मूल्य वर्धित उत्पाद विशेषकर वाइन बनाने वाली कंपनियां पल्प (गूदे) के उत्पादन के लिए सीआईएसएच की किस्मों के पौध लगाने में रुचि रखती हैं। वे संस्थान द्वारा विकसित जामवंत किस्म के लिए संस्थान से संपर्क करते हैं। इस किस्म में 90 प्रतिशत से अधिक गूदा पाया जाता है। कई कंपनियों ने जामुन वाइन का उत्पादन प्रारम्भ किया है और बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन करने के लिए इच्छुक हैं। कच्चे माल की आवश्यकता को आंशिक रूप से जंगल से भी पूरा किया जा सकता है। जामुन के पर्याप्त गूदे के उत्पादन के लिए जामुन की सुनियोजित बागवानी की आवश्यकता है इसलिए, सीआईएसएच किस्मों की मांग बढ़ रही है, जो ताजे फलों के विपणन के अतिरिक्त वाइन बनाने के लिए भी उपयुक्त है।

उपयुक्त फलों से मदिरा पुरातनकाल से तैयार की जा रही है और उचित मात्रा में शर्करा युक्त जामुन के फलों से उत्कृष्ट रेड वाइन बनाई जा सकती है। जामुन उत्तम वाइन बनाने के लिए उपयुक्त फलों में से एक है क्योंकि इसमें स्वाद, शर्करा और टैनिन का अच्छा संतुलन है। हृदय रोगियों द्वारा वाइन के बढ़ते उपयोग के साथ, जामुन वाइन की अपनी सम्भावनाएं हैं क्योंकि यह कई प्रसिद्ध जैव सक्रिय यौगिकों में भी समृद्ध है। जामुन को विभिन्न स्वादों, सुगंध और रंग के साथ विभिन्न प्रकार की वाइन में परिवर्तित किया जा सकता है। जामुन वाइन उद्योग शैशवावस्था में है और धीरे-धीरे इसका प्रचलन बढ़ेगा। इस तरह यह उपयोग न केवल स्वास्थ्यवर्धक उत्पादों के उत्पादन में सहायक होगा बल्कि वाइन उद्योग के कई बाइप्रोडक्ट्स भी बनाए जा सकेंगे।

देश के विभिन्न क्षेत्रों में जामुन के पेड़ बहुतायत में मिलते हैं। इनका उपयोग मुख्यतः आदिवासियों द्वारा जंगली जामुन के फल तोड़कर खाने एवं बेचने के लिए किया जाता है। जामुन के वाइन उद्योग के विकसित होने से जंगल से आदिवासियों द्वारा एकत्रित फलों को भी मूल्यवान उत्पादों में परिवर्तित करने का अवसर मिलेगा और वनों पर आधारित लोगों की आजीविका में भी सुधार होगा।

वैज्ञानिकों ने गनिया घास से बनाया सैनिटाइजर: कीटाणुओं को मारने की क्षमता बाजार में मौजूद बडी—बडी कंपनियों के सैनिटाइजरों के मुकाबले कहीं अधिक होने का दावा attacknews.in

देहरादून, तीन दिसंबर । उत्तराखंड में वैज्ञानिकों ने गनिया घास से निकले तेल का इस्तेमाल कर हैंड सैनिटाइजर बनाया है जिसके विभिन्न किस्म के कीटाणुओं के खिलाफ प्रभावी होने का दावा किया गया है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि यह हैंड सैनिटाइजर हर्बल है जिसमें इस्तेमाल किया जाने वाला एल्कोहॉल भी गन्ने के शीरे से तैयार किया जा रहा है । उन्होंने दावा किया है कि सैनिटाइजर में कीटाणुओं को मारने की क्षमता बाजार में मौजूद बडी—बडी कंपनियों के सैनिटाइजरों के मुकाबले कहीं अधिक है ।

उन्होंने साथ ही बताया कि बहुत ही जल्द इसे बाजार में उतारा जाएगा जिसके लिए उद्योगों से बातचीत चल रही है ।

यह सैनिटाइजर देहरादून की सेलाकृई फार्मासिटी में स्थित उत्तराखंड सरकार द्वारा संचालित संगंध पौध केंद्र (कैप) में गनिया घास के संगंध तेल से तैयार किया गया है जिसकी कीटाणु रोधी प्रकृति है ।

कैप के प्रमुख डा नृपेंद्र चौहान ने बताया कि उत्तराखंड में बहुतायत से जंगली तौर पर उगने वाली गनिया घास पर किए गये विभिन्न प्रयोगों में इसे सैनिटाइजर बनाने के लिए बहुत बढ़िया पाया गया ।

चौहान ने दावा किया है कि गनिया घास के बने संगंध तेल की कीटाणु रोधी प्रकृति के कारण उसका उपयोग मानव त्वचा के लिए पूरी तरह सुरक्षित है ।

उन्होंने बताया कि यह हाथों की त्वचा पर पाए जाने वाले सभी प्रकार के बैक्टीरिया और फंगस तथा उनसे होने वाले खुजली को समाप्त कर देता है ।

एक सर्वेंक्षण में पाया गया कि उत्तराखंड में 2.6 लाख हेक्टेअर क्षेत्र गनिया घास से आच्छादित है और अगर केवल 10 प्रतिशत क्षेत्र में उत्पादित घास का ही इस्तेमाल किया जाए तो कुल 104 कुंतल संगंध तेल निकाला जा सकता है ।

चौहान ने कहा कि गनिया घास पर शोध टिहरी जिले के धनोल्टी क्षेत्र के जबरखेत गांव में शुरू किया गया था । गनिया घास पर हुए तीन वर्षों के गहन अध्ययन व शोध के उपरांत यह सैनिटाइजर बनाया गया ।

उन्होंने बताया कि पारंपरिक रूप से भी स्थानीय लोग गनिया घास का औषधीय उपयोग सूजन, खांसी, सर्दी, अस्थमा, क्रोनिक ब्रोंकाइटिस आदि के लिए करते रहे हैं ।

वरिष्ठ वैज्ञानिक ने कहा कि कोविड 19 से बचाव के लिए हाथों की नियमित स्वच्छता आवश्यक है और इसके लिए साधारण साबुन, हैंड वॉश और हैंड सैनिटाइजर तीनों विकल्पों में से गनिया घास के तेल का उपयोग किया जा सकता है ।

मई में ‘गनिया हर्बल हेंड सैनिटाइजर’ नाम से इसका वृहद उत्पादन शुरू किया गया और पहले 1000 लीटर सैनिटाइजर का निर्माण किया गया । इसमें आधा लीटर की 2000 बोतलें व 60 मिलीलीटर की 650 बोतलें तैयार की गयीं और लॉकडाउन के दौरान इनका निशुल्क वितरण किया गया ।

उन्होंने बताया कि कैप ने गनिया सैनिटाइजर के लिए कोटद्वार के एक उद्यमी को नॉन—एक्सलूसिव लाइसेंस दे दिया है जो शीघ्र ही इसका उत्पादन कर उसे बाजार में उतारेगा । चौहान ने बताया कि कई अन्य उद्यमियों से भी लाइसेंस के लिए बातचीत चल रही है।

गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति के आह्वान पर गुर्जरों ने बयाना में फिर शुरू कियाआंदोलन,गुर्जर समाज के लोग दो धड़ों में बंट जाने से शुरूआत में अलग-अलग प्रदर्शन हुए,कई ट्रेनों का मार्ग बदला गया attacknews.in

जयपुर, एक नवंबर । गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति के आह्वान पर गुर्जरों ने रविवार को बयाना में फिर आंदोलन शुरू कर दिया। समाज के युवा बड़ी संख्या में पीलूपुरा में रेलवे पटरियों पर बैठ गए। इस बीच राज्य के युवा व खेल मंत्री अशोक चांदना गुर्जर नेता किरोड़ी सिंह बैंसला से मिलने रविवार रात हिंडौन पहुंचे हालांकि उनकी मुलाकात नहीं हो सकी।

इससे पहले गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति की बैठक बयाना के पीलूपुरा गांव में हुई। वहां समिति के नेता विजय बैंसला ने गुर्जरों के एक प्रतिनिधि मंडल के सरकार के साथ शनिवार को हुए समझौते को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि इस समझौते में कुछ नहीं है और वे समिति द्वारा उठाए गए बिंदुओं पर कार्रवाई चाहते हैं।

गुर्जर समाज के युवा दिल्ली-मुंबई रेल लाईन पर बैठ गए। उन्होंने बयाना हिंडौन सड़क मार्ग को भी अवरुद्ध कर दिया। यह पूछे जाने पर कि क्या आंदोलन लंबा चलेगा, समिति के संयोजक कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला ने मीडिया से कहा, ‘ यह सरकार पर निर्भर करता है।’

इस बीच बैंसला से मिलने राज्य के खेल व युवा मंत्री चांदना रविवार रात हिंडौन पहुंचे। लेकिन बैंसला की तबीयत नासाज होने के कारण उनकी मुलाकात नहीं हो सकी। इसके बाद वह आंदोलन स्थल पीलूपुरा रवाना हुआ लेकिन आंदोलन के चलते रास्ता बंद कर दिए जाने के कारण उन्हें बीच रास्ते से जयपुर लौटना पड़ा।

उन्होंने कहा कि वह कर्नल बैंसला के बुलावे पर ही आए थे और कर्नल बैंसला व समिति के सदस्यों से मिलना चाहते थे जो संभव नहीं हो पाया।

उल्लेखनीय है कि गुर्जरों के एक प्रतिनिधि मंडल ने शनिवार को जयपुर में सरकार के साथ बातचीत की थी। उसके बाद दोनों पक्षों में 14 बिंदुओं पर सहमति बनी थी लेकिन कर्नल बैंसला इसमें शामिल नहीं हुए।

इस बीच रेलवे ने राजस्थान के बयाना में गुर्जर आंदोलन को देखते हुए कई ट्रेनों का मार्ग बदल दिया है। उत्तर पश्चिम रेलवे के प्रवक्ता ने बताया कि गुर्जर आंदोलन के कारण हिंडौन सिटी-बयाना रेलखंड पर रेल यातायात अवरुद्ध होने के कारण सात गाड़ियों का मार्ग बदला गया है।

इस बीच संभावित आंदोलन को लेकर पुलिस प्रशासन सतर्क है। कई जिलों में मोबाइल इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गयी हैं वहीं सरकार ने भरतपुर, धौलपुर, सवाई माधोपुर, दौसा, टोंक, बूंदी, झालावाड़ व करौली जिले में पहले ही राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू कर दिया है।

आंदोलन से दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे पर यातायात प्रभावित होगा। बयाना-हिंडौन सड़क मार्ग पर भी यातायात प्रभावित हुआ है।

उल्लेखनीय है कि गुर्जरों के एक प्रतिनिधि मंडल ने शनिवार को यहां सरकार के साथ बातचीत की थी। उसके बाद दोनों पक्षों में 14 बिंदुओं पर सहमति बनी थी लेकिन कर्नल बैंसला इसमें शामिल नहीं हुए ।

गुर्जरों ने रेलवे ट्रेक की फिश प्लेटें उखाड़ीं

राजस्थान में गुर्जरों ने अपनी मांगों को लेकर शुरु किये आंदोलन के तहत आज भरतपुर में आंदोलनकारियों ने दिल्ली-मुम्बई रेलवे ट्रैक पर कब्जा करने के बाद डूमरिया और फतेहसिंहपुरा रेलवे स्टेशनों के बीच पटरियों की फिश प्लेट को उखाड़ दिया।

प्राप्त जानकारी के अनुसार गुर्जर आंदोलनकारी रेलवे ट्रेक पर बैठ गये है और इस रेल मार्ग पूरी तरह अवरुद्ध कर दिया है। आंदोलनकारियों की भीड़ ने करीब एक किलोमीटर के रेलवे ट्रैक की फिश प्लेट उखाड़ दी हैं। साथ ही भरतपुर के आगरा-जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 21 के साथ बयाना-हिंडौन मार्ग को भी अवरुद्ध कर दिया है।

गुर्जर आरक्षण को लेकर पीलूपुरा में जुटे गुर्जर

राजस्थान में गुर्जर आरक्षण के लिए आंदोलन पर गुर्जर समाज के लोग दो धड़ों में बंट जाने से इस मामले में गुर्जरों के एक गुट की राज्य सरकार के साथ उनकी मांगों के कई बिन्दुओं पर सहमति बनने के बावजूद गुर्जर नेता कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के नेतृत्व में समाज के लोग भरतपुर जिले के बयाना क्षेत्र के पीलूपुरा में जुटे हैं।

राज्य सरकार ने गुर्जर नेता हिम्मत सिंह गुर्जर के नेतृत्व में आये 41 गुर्जर नेताओं के प्रतिनिधिमंडल से शनिवार रात वार्ता की और उनकी मांगों के 14 बिंदुओं पर सहमति बनी लेकिन कर्नल बैंसला इस बातचीत में शामिल नहीं हुए। इसके बाद अपराह्न में श्री बैंसला पीलूपुरा शहीद स्थल पर सभा करने के लिए पहुंचे।

वैज्ञानिकों ने कहा:कोरोना महामारी के दौरान बाहर भोजन करना,किराने का सामान खरीदना हवाई यात्रा से अधिक खतरनाक हो सकता है:विमानों, रेस्तरां, किराने की दुकानों में खतरे की तुलना आसानी से नहीं की जा सकती attacknews.in

नयी दिल्ली, एक नवम्बर । हाल ही में हुए एक अध्ययन में दावा किया गया है कि कोविड-19 महामारी के दौरान बाहर भोजन करना और किराने का सामान खरीदना हवाई यात्रा से अधिक खतरनाक हो सकता हैं।

कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तरह की तुलना इन बातों की जानकारी के बिना नहीं की जा सकती कि क्या इन प्रत्येक परिदृश्यों में मास्क पहनने और सामाजिक दूरी बनाये रखने संबंधी मानदंडों का ठीक से पालन किया जाता है।

अमेरिका में हार्वर्ड टी एच चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के वैज्ञानिकों, एयरलाइंस, हवाई अड्डों और विमान निर्माताओं द्वारा वित्त पोषित शोध में कहा गया है कि उच्च दक्षता वाले पार्टिकुलेट एयर (एचईपीए) फिल्टरों से बने विमानों में वेंटिलेशन प्रणाली के जरिये स्वच्छ और ताजा हवा की आपूर्ति करती है जो 99 प्रतिशत से अधिक उन कणों को छानती है जो कोविड-19 का कारण बन सकते हैं।

हालांकि, अमेरिका में मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) के अर्नोल्ड आई बार्नेट सहित शोधकर्ताओं ने कहा कि एचईपीए फिल्टर विमानों में प्रभावी ढंग से काम नहीं कर सकते हैं जैसा कि रिपोर्ट से पता चलता है।

स्वास्थ्य और सुरक्षा की समस्याओं पर केन्द्रित सांख्यिकी के प्रोफेसर बार्नेट ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘एचईपीए फिल्टर बहुत अच्छे हैं, लेकिन अमेरिकी एयरलाइनों के सुझाव के अनुसार प्रभावी नहीं हैं। वे पूरी तरह से सुरक्षित नहीं हैं और इन फिल्टरों के बावजूद संक्रमण के कई उदाहरण हैं।’’

एमआईटी के वैज्ञानिक ने कहा, ‘‘कोविड-19 के लिए किसी भी प्रक्रिया को पूरी तरह से सक्षम नही समझा जा सकता है।’’

अमेरिका में हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में मेडिसिन विभाग से अबरार करण ने भी विमान में संक्रमण खतरे के बारे में चिंता व्यक्त की।

करण ने ट्वीट किया, ‘‘हवाई यात्रा पर विचार करने वालों के लिए, वास्तविकता यह है कि जब विमानों में वेंटिलेशन सिस्टम होता है, तो हमें इस बात का अच्छा अनुमान नहीं होता है कि विमान में ही कोविड-19 के कितने मामले हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हम यह पता लगाने के लिए सही तरीके की जांच नहीं कर रहे हैं।’’

वैज्ञानिकों ने पहली बार सूर्य से प्रकाशित चंद्रमा की सतह पर पानी की मौजूदगी की पुष्टि की,यह खोज इस ओर इशारा करती है कि चंद्रमा की सतह पर हर जगह पानी के अणु हो सकते है attacknews.in

वाशिंगटन, 27 अक्टूबर । वैज्ञानिकों ने पहली बार सूर्य से प्रकाशित चंद्रमा की सतह पर पानी की मौजूदगी की पुष्टि की है। यह खोज इस ओर इशारा करती है कि चंद्रमा की सतह पर हर जगह पानी के अणु हो सकते हैं और ये केवल ठंडी तथा छायादार जगहों पर ही नहीं होते जैसा कि पहले समझा जाता था।

अमेरिका के हवाई विश्वविद्यालय समेत अन्य संस्थानों के अनुसंधानकर्ताओं ने नासा की स्ट्रेटोस्फीयरिक ऑब्जर्वेटरी फॉर इन्फ्रारेड एस्ट्रोनोमी (सोफिया) के डेटा का इस्तेमाल करते हुए क्लेवियस क्रेटर में पानी के अणुओं (एच2ओ) का पता लगाया है। यह क्रेटर चंद्रमा पर स्थित सबसे बड़े गड्ढों में से एक है और उसके दक्षिणी गोलार्द्ध पर स्थित है। इसे पृथ्वी से देखा जा सकता है।

इससे पहले भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के चंद्रयान-1 मिशन के दौरान चंद्रमा की सतह पर किये गये अध्ययन समेत अन्य अध्ययनों में हाइड्रोजन के एक प्रकार का पता लगाया गया था, वहीं नासा के वैज्ञानिकों का कहना था कि पानी और उसके करीबी रासायनिक संबंधी हाइड्रॉक्सिल (ओएच) के बीच फर्क स्पष्ट नहीं हो पाया है।

पत्रिका ‘नेचर एस्ट्रोनॉमी’ में प्रकाशित वर्तमान अध्ययन का ब्योरा से पता चलता है कि क्लेवियस क्रेटर क्षेत्र में 100 से 412 भाग प्रति दस लाख की सांद्रता वाला पानी है जो चंद्रमा की सतह पर फैली धूल के एक घन मीटर आयतन वाले क्षेत्र में है और करीब-करीब 12 औंस की पानी की एक बोतल के बराबर है।

अनुसंधानकर्ताओं ने तुलना के तौर पर कहा है कि सोफिया ने चंद्रमा की सतह पर पानी की जितनी मात्रा का पता लगाया है, सहारा रेगिस्तान में उससे सौ गुना ज्यादा पानी है।

हवाई यूनिवर्सिटी की प्रमुख अध्ययनकर्ता केसी होनीबॉल ने कहा, ‘‘सोफिया के अध्ययन से पहले हम जातने थे कि एक प्रकार का हाइड्रेशन (जलयोजन) होता है। लेकिन हम यह नहीं जानते थे कि कितना होता है और उसमें उस पानी के कितने अणु हैं जो हम रोजाना पीते हैं। या फिर साफ-सफाई में इस्तेमाल होने जैसा पानी ज्यादा है।’’

उन्होंने कहा कि पानी की बहुत कम मात्रा का पता चला है लेकिन यह खोज नये प्रश्न उत्पन्न करती है कि पानी का सृजन कैसे हुआ और यह बिना हवा वाली चंद्रमा की सतह पर कैसे रहता है।