अमरनाथ यात्रा 28 जून से शुरू; 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 और 35-ए को रद्द करने के कारण रोकना पड़ा था,पंजीकरण देश के 37 पंजाब नेशनल बैंक, जम्मू-कश्मीर बैंक और येस बैंक की शाखाओं के माध्यम से होगा attacknews.in

जम्मू 13 मार्च । जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले में इस बार विश्व प्रसिद्ध अमरनाथ यात्रा 28 जून से शुरू हो जाएगी। 56 दिवसीय विश्व प्रसिद्ध अमरनाथ यात्रा 28 जून से शुरू होने और 22 अगस्त को इसका समापन होगा।

शनिवार को श्री अमरनाथजी श्राइन बोर्ड (एसएएसबी) की बैठक में यह निर्णय लिया गया। जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल एवं श्री अमरनाथजी श्राइन बोर्ड (एसएएसबी) ने शनिवार को यहां राजभवन में बोर्ड की 40वीं बैठक की अध्यक्षता की। इस बैठक में कई वरिष्ठ अधिकारियों ने हिस्सा लिया।

बोर्ड ने तीर्थयात्रियों की पूरी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुये 56 दिवसीय यात्रा शुरू होने की तारीख तय की है।

अमरनाथ यात्रा हिंदू कैलेंडर के अनुसार असाढ़ चतुर्थी (28 जून) को शुरू होने जा रहा है और 22 अगस्त को श्रावण पूर्णिमा (रक्षा बंधन) के दिन समाप्त होगा।
बोर्ड ने यह भी जानकारी दी कि इस वर्ष की यात्रा कोविड-19 को लेकर सरकार की तरफ से जारी दिशानिर्देशों के अनुसार होगी।

यात्रा के लिए अग्रिम पंजीकरण एक अप्रैल से शुरू हो जाएगा। पंजीकरण देश के 37 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में स्थित पंजाब नेशनल बैंक, जम्मू-कश्मीर बैंक और येस बैंक की नामित शाखों के माध्यम से होगा।

बोर्ड अमरनाथ की सुबह और शाम की आरती के लाइव प्रसारण की भी व्यवस्था करेगा ताकि यात्रा न कर पाने वाले लोग बाबा बर्फानी के दर्शन कर सकें। तीर्थयात्री यात्रा को लेकर सही समय और अन्य जानकारियां हासिल करने के लिए गूगल प्ले स्टाेर पर उपलब्ध ‘श्री अमरनाथजी यात्रा’ ऐप डाउनलोड कर सकते हैं।

गत वर्ष विश्वव्यापी कोरोना वायरस के प्रकोप को देखते हुए इस यात्रा के आयोजन को रद्द करना पड़ा था।
बोर्ड ने कहा है कि लोगों की धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखते हुए सुबह और शाम की आरती का लाइव टेलीकास्ट/ वर्चुअल दर्शन जारी रखेगा। इसके अलावा पारंपरिक अनुष्ठान पिछली बार की तरह होते रहेंगे।

गौरतलब है कि पिछले वर्ष अमरनाथ यात्रा को पांच अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर में प्रभावी अनुच्छेद 370 और 35-ए को रद्द करने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिये जाने के कारण बीच में ही रोकना पड़ा था।

‘बोल बम’ के उद्घोष से ‘शिवमय’ हुआ उत्तर प्रदेश; मंदिरों में दर्शनों के लिए लगा रहा आस्था का जनमानस और कहीं निकली शिवबारात तो गुंजायमान होता रहा ” “हर-हर महादेव” attacknews.in

लखनऊ 11 मार्च । आदि देव ‘महादेव’ और शक्ति की देवी ‘पार्वती’ के शुभ विवाह के मंगल प्रतीक ‘शिवरात्रि’ के अवसर पर गुरूवार को उत्तर प्रदेश ‘शिवमय’ हो गया। भाेर दो बजे से नदी के पावन तटों और शिवालयों से उठा आस्था का ज्वार देर शाम तक थमने का नाम नहीं ले रहा था।

बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी,संगम नगरी प्रयागराज,मर्यादा पुरूषोत्तम की नगरी अयोध्या और कान्हा की नगरी मथुरा समेत राज्य के कण कण में आज सिर्फ और सिर्फ शिव भक्ति ही समायी हुयी थी। ‘बोल बम’, ‘हर हर महादेव’,हर हर बम बम’ और ‘जय बाबा की ‘ के गगनभेदी उदघोष के बीच शिवालयों में अनवरत गूंज रही घंटे घड़ियाल की सुरमयी ध्वनि ने समूचे वातावरण को ‘शिवमय’ बना दिया था।

राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में कहीं महाकाल का रूद्राभिषेक मंत्रोच्चार के बीच सम्पन्न हो रहा था तो कहीं वृहद भंडारों का आयोजन किया गया था। इस दौरान आकर्षक ढंग से निकली शिव बारातों ने सबका मन मोह लिया। मंदिरों में जलाभिषेक के लिये भोर से लगी श्रद्धालुओं की लंबी कतार में देर शाम तक लेशमात्र भी कमी नहीं आयी थी। मंदिरों मे प्रबंध तंत्र के तौर पर तैनात शिवभक्त पवित्र शिवलिंग पर चढ़े बेलपत्र,पुष्प, भांग,धतूरा,चंदन,फल आदि को हटाने में लगातार लगे हुये थे,दूसरी ओर उतनी ही पूजन सामग्री भगवान भोलेनाथ पर भक्तगण अर्पित किये जा रहे थे।

इस दौरान सुरक्षा के पुख्ता बंदोबस्त किये गये थे। सीसीटीवी और ड्रोन के जरिये शिवालयों की निगरानी की जा रही थी। मंदिर के बाहर पुलिसकर्मी यातायात व्यवस्था को दुरूस्त करने में लगे रहे वहीं शिवालयों पर भी वे स्थानीय प्रबंधन के साथ भक्तगणों की कतार को सुव्यवस्थित करने में मशगूल दिखायी पड़े।

गंगा,यमुना,गोमती आदि अन्य पावन नदियों के तटों पर भी श्रद्धालुओं का रेला नजर आया। इस मौके पर पुलिस के गोताखोर किसी अप्रिय घटना को टालने के लिये मुस्तैद रहे।

वाराणसी से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार ज्योर्तिलिंग काशी विश्वनाथ के दरबार में शाम तक करीब ढाई लाख श्रद्धालु हाजिरी लगाकर बाबा भोलेनाथ का जलाभिषेक कर चुके थे। मैदागिन से चौक थाना और लक्सा के छोर पर लगी कतार पर जमे श्रद्धालु हर हर बम बम के उदघोष के साथ अपनी बारी का इंतजार करते दिखे। भोर चार बजे से लगी कतार दोपहर तक उतनी ही लंबी दिखायी दे रही थी। धूप की परवाह किये बगैर बच्चे,बुजुर्ग और महिलायें आस्था के समंदर में गोते लगाते दिखायी पड़े।

बाबा विश्वनाथ मंदिर के अलावा बीएचयू विश्‍वनाथ दरबार, रामेश्‍वर, तिलभांडेश्‍वर महादेव, मारकंडेश्‍वर महादेव आदि प्रमुख शिवालयों में आस्‍था का सैलाब हिलाेरें मारता दिखायी पड़ा।

प्रयागराज में माघ मेला के अंतिम स्नान पर्व महाशिवरात्रि के अवसर पर कोरोना से बेपरावाह बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने संगम में आस्था की डुबकी लगाई। तड़के चार बजे से ही श्रद्धालुओं की भीड़ ने गंगा,यमुना और अन्त: सलिला स्वरूप में प्रवाहित सरस्वती के सभी आठों घाट पर स्नान के बाद पूजन के बाद पण्डों को दान दिया। स्नान के बाद बचे कुछ कल्पवासी मां गंगा से अगले वर्ष मिलने का आशीर्वाद लेकर अपने घरों को रवाना हुए।

शहर के मनकामेश्वर मन्दिर, तक्षकेश्वरनाथ मन्दिर, हटकेश्वरनाथ मन्दिर, सोमेश्वर महादेव मन्दिर, कमौरी महादेव मन्दिर, पड़िला महादेव मन्दिर आदि में सुबह से श्रद्धालु बाबा के दरबाद में पहुंचकर पिण्डी पर दूध, बेलपत्र, धतूरा, भंग के साथ अबीर-गुलाल भी लगाया। भीड को देखते हुए मन्दिर परिसर के बाहर बैरिकेटिंग लगाई गयी है। थोडे थोडे लोगों को धीरे धीरे मन्दिर में भोलेनाथ का दर्शन के लिए भेजा जा रहा था। विभिन्न इलाकों में भ्गवान भोलेनाथ की बारात भी निकाली गयी। इस दौान बाबा की बारात में नंदी, भूत-प्रेत, साधु-महात्मा के साथ बैण्ड बाजा बजते हुए गली मुहल्ले से निकाली गयी। श्रद्धालुओं ने बारात पर फूलों की वर्षाकर स्वागत भी किया।

आगरा में महाशिवरात्रि के अवसर पर ताजमहल में शिव पूजा करने पहुंचीं हिंदूवादी संगठन की महिला पदाधिकारी और दो कार्यकर्ताओं को सीआईएसएफ (केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल) ने हिरासत में ले लिया। तीनों को पुलिस के हवाले कर दिया गया है। पुलिस उनसे पूछताछ कर रही है। सेंट्रल टैंक के पास डायना बेंच पर हिंदू महासभा की प्रांतीय अध्यक्ष मीना दिवाकर विधि-विधान से आरती करने लगीं। इसी दौरान सीआईएसएफ के जवानों ने उन्हें पकड़ लिया।

लखनऊ में मनकामेश्वर मंदिर में भाेर से ही श्रद्धालुओं की लंबी कतार लग गयी थी। बोल बम के उदघोष के बीच श्रद्धालुओं ने शिव शक्ति की आराधना की और जलाभिषेक कर पुष्प बेल पत्र चढ़ाये। बुद्धेश्वर मंदिर में भी भक्तों की लंबी कतार देर शाम तक लगी रही। इस दौरान सुरक्षा के चाक चौबंद इंतजाम किये गये थे।

कानपुर के आनंदेश्वर मंदिर में सारा दिन श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा। ग्रीनपार्क स्टेडियम तक लगी कतार देर शाम तक देखी गयी। उधर,वनखंडेश्वर, सिद्धेश्वर,नागेश्वर मंदिरों में भी श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा।

जौनपुर में त्रिलोचल महादेव जलालपुर, दियावांनाथ, गौरीशंकर धाम सुजानगंज, साईनाथ, करशूल नाथ, पाताल नाथ, गोमतेश्वर नाथ केराकत, पांचों शिवाला, सर्वेश्वरनाथ, सहित अन्य शिवालयों पर सवेरे से ही श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाते देखे गये। हर हर महादेव के जयघोष करते हुए अपनी बारी आने का इन्तजार करते रहे और जलाभिषेक किया। ऐतिहासिक शिव मंदिर त्रिलोचन महादेव में आज सुबह से से भगवान शिव की पूजा अर्चना कर जलाभिषेक व रुद्राभिषेक कर रहे हैं।

औरैया जिले में महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर जिलाधिकारी सुनील कुमार वर्मा के नेतृत्व में भगवान भोले नाथ की पहली बार भव्य बारात निकाली गयी। बारात रामलीला मैदान से शुरू हुई और महाकालेश्वर मंदिर देवकली पर जाकर समाप्त हुई जहां पर भक्तों ने पूजन अर्चन की।

बस्ती मण्डल के बस्ती,सिद्वार्थनगर तथा संतकबीरनगर जिले में भदेश्वरनाथ मन्दिर,हरदेवा,देवरिया शिव मन्दिर, थानेस्वर नाथ शिव मन्दिर,पंचवटी मन्दिर,मोतीसागर,कटेस्वरनाथ,सिद्धेश्वरनाथ,बौरहवा बाबा सहित शिवालयो मे श्रद्वालुओ द्वारा जलाभिषेक किया गया, मन्दिर परिसर मे मेला भी लगा हुआ था ।

झांसी में महाशिवरात्रि के अवसर पर शिव बारात निकाली गयी। यात्रा मुरली मनोहर चौराहे से शुरू हुई जिसमें भगवान शिव और दैवीय बारातियों का रूप धर कलाकारों ने तो हिस्सा लिया। बारात गाजे बाजे के साथ आगे बढ़ी तो नाचते गाते और खुशी से झूमते भक्तों का सैलाब सड़कों पर नजर आया। बारात के आगे महिलाएं कलश सिर पर लेकर चलीं और पीछे लगभग हर उम्र का शिव भक्त भगवान भोले के भक्ति गीतों पर थिरकता हुआ नजर आया।

बारात शहर के व्यस्तम इलाकों बड़ा बाजार, मानिक चौक, सिंधी चौराहे, रानी महल , मिनर्वा चौराहा और सैंयर गेट होते हुए मढ़िया महादेव महाकालेश्वर मंदिर पहुंची।

हरिद्वार में आसमान से पुष्प वर्षा के बीच महाकुम्भ का पहला शाही स्नान सम्पन्न:अखाड़ों के साधु-सन्यासियों ने हर-हर महादेव और हर-हर गंगे का जयघोष करते हुए ब्रहमकुंड पर गंगा में आस्था की डुबकी लगाई attacknews.in

हरिद्वार/देहरादून, 11 मार्च । उत्तराखंड के हरिद्वार में पावन गंगा के तट पर गुरुवार को महाकुम्भ का पहला शाही स्नान परम्परा अनुरूप हर-हर महादेव और वैदिक मंत्रोच्चारण के मध्य सम्पन्न हो गया।

साधु-संत और श्रद्वालुओं पर हेलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा और विभिन्न अखाड़ों द्वारा नृत्य करते गंगा स्नान करने की प्रक्रिया से हर की पौड़ी ही नहीं, अपितु पूरा कुम्भ क्षेत्र अद्भुत धार्मिक वातावरणमय हो गया। पहली बार देश में किन्नर सन्तों द्वारा शाही स्नान करने से यह महाकुम्भ भारत ही नहीं, अपितु विश्व में ऐतिहासिक बन गया।

महाशिवरात्रि के दिन हुए इस शाही स्नान का हिमालय की कन्दराओं ही नहीं अपितु विश्व भर के साधु, सन्तों ने उत्साह और श्रद्वा से पुण्य लाभ लिया।

धार्मिक आस्थाओं से ओतप्रोत कुंभ नगरी

प्रत्येक बारह वर्षों बाद आयोजित होने वाले महाकुम्भ में महाशिवरात्रि के दिन गुरुवार को प्रथम शाही स्नान परम वैभव, दिव्य-भव्य रूप से सकुशल आयोजित हुआ।

अखाड़ों के साधु-सन्यासियों ने हर-हर महादेव और हर-हर गंगे का जयघोष करते हुए ब्रहमकुंड पर गंगा में आस्था की डुबकी लगाई।

गुरुवार को सबसे पहले श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा के संतजनों ने जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज, अन्तर्राष्ट्रीय अध्यक्ष महंत प्रेमगिरि महाराज, अन्तर्राष्ट्रीय अध्यक्ष महंत सोहन गिरि, महामंडलेश्वर स्वामी विमल गिरि आदि ने सबसे पहले शाही स्नान किया। हर हर महादेव, हर हर गंगे के जयघोष के साथ साधु-संत गंगा स्नान करके निर्धारित रूट से वापस अखाडे़ की छावनी में वापस लौटे। अग्नि, आवाहन के साथ ही किन्नर अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी, आवाहन अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ स्वामी कृष्णा नंद और बड़ी संख्या में नागा सन्यासियों ने भी शाही स्नान किया।

उज्जैन स्थित स्वयंभू श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर को सन् १२३५ ई. में इल्तुत्मिश द्वारा विध्वंस कर दिया गया था आज इसके वैभव से विश्वभर में पहचान हैं attacknews.in

डा सुशील शर्मा

उज्जैन के महाकालेश्वर महादेव की मान्यता भारत के प्रमुख बारह ज्योतिर्लिंगों में है। महाकालेश्वर मंदिर का माहात्म्य विभिन्न पुराणों में विस्तृत रूप से वर्णित है।

महाकवि तुलसीदास से लेकर संस्कृत साहित्य के अनेक प्रसिध्द कवियों ने इस मंदिर का वर्णन किया है। लोक मानस में महाकाल की परम्परा अनादि है। उज्जैन भारत की कालगणना का केंद्र बिन्दु था और महाकाल उज्जैन के अधिपति आदि देव माने जाते हैं।

इतिहास के प्रत्येक युग में-शुंग, कुशाण, सात वाहन, गुप्त, परिहार तथा अपेक्षाकृत आधुनिक मराठा काल में इस मंदिर का निरंतर जीर्णोध्दार होता रहा है। वर्तमान मंदिर का पुनर्निर्माण राणोजी सिंधिया के काल में मालवा के सूबेदार रामचंद्र बाबा शेणवी द्वारा कराया गया था। वर्तमान में भी जीर्णोध्दार एवं सुविधा विस्तार का कार्य हो रहा है।

महाकालेश्वर की प्रतिमा दक्षिणमुखी है। तांत्रिक परम्परा में प्रसिध्द दक्षिण मुखी पूजा का महत्व बारह ज्योतिर्लिंगों में केवल महाकालेश्वर को ही प्राप्त है। ओंकारेश्वर में मंदिर की ऊपरी पीठ पर महाकाल मूर्ति की तरह इस तरह मंदिर में भी ओंकारेश्वर शिव की प्रतिष्ठा है। तीसरे खण्ड में नागचंद्रेश्वर की प्रतिमा के दर्शन केवल नागपंचमी को होते है।

विक्रमादित्य और भोज की महाकाल पूजा के लिए शासकीय सनदें महाकाल मंदिर को प्राप्त होती रही है। वर्तमान में यह मंदिर महाकाल मंदिर समिति के तत्वावधान में संरक्षित है।

महाकालेश्वर मंदिर भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मध्यप्रदेश राज्य के उज्जैन नगर में स्थित, महाकालेश्वर भगवान का प्रमुख मंदिर है।

पुराणों, महाभारत और कालिदास जैसे महाकवियों की रचनाओं में इस मंदिर का मनोहर वर्णन मिलता है। स्वयंभू, भव्य और दक्षिणमुखी होने के कारण महाकालेश्वर महादेव की अत्यन्त पुण्यदायी महत्ता है। इसके दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है, ऐसी मान्यता है।

महाकवि कालिदास ने मेघदूत में उज्जयिनी की चर्चा करते हुए इस मंदिर की प्रशंसा की है।

१२३५ ई. में इल्तुत्मिश के द्वारा इस प्राचीन मंदिर का विध्वंस किए जाने के बाद से यहां जो भी शासक रहे, उन्होंने इस मंदिर के जीर्णोद्धार और सौन्दर्यीकरण की ओर विशेष ध्यान दिया, इसीलिए मंदिर अपने वर्तमान स्वरूप को प्राप्त कर सका है। प्रतिवर्ष और सिंहस्थ के पूर्व इस मंदिर को सुसज्जित किया जाता है।

इतिहास से पता चलता है कि उज्जैन में सन् ११०७ से १७२८ ई. तक यवनों का शासन था। इनके शासनकाल में अवंति की लगभग ४५०० वर्षों में स्थापित हिन्दुओं की प्राचीन धार्मिक परंपराएं प्राय: नष्ट हो चुकी थी। लेकिन १६९० ई. में मराठों ने मालवा क्षेत्र में आक्रमण कर दिया और २९ नवंबर १७२८ को मराठा शासकों ने मालवा क्षेत्र में अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया। इसके बाद उज्जैन का खोया हुआ गौरव पुनः लौटा और सन १७३१ से १८०९ तक यह नगरी मालवा की राजधानी बनी रही। मराठों के शासनकाल में यहाँ दो महत्त्वपूर्ण घटनाएँ घटीं – पहला, महाकालेश्वर मंदिर का पुनिर्नर्माण और ज्योतिर्लिंग की पुनर्प्रतिष्ठा तथा सिंहस्थ पर्व स्नान की स्थापना, जो एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। आगे चलकर राजा भोज ने इस मंदिर का विस्तार कराया।

मंदिर एक परकोटे के भीतर स्थित है। गर्भगृह तक पहुँचने के लिए अब कई रास्ते है। इसके ठीक उपर ओंकारेश्वर शिवलिंग स्थापित है।

मंदिर का क्षेत्रफल पहले १०.७७ x १०.७७ वर्गमीटर और ऊंचाई २८.७१ मीटर था अब इसका विस्तार किया जा रहा है ।

महाशिवरात्रि एवं श्रावण मास में हर सोमवार को इस मंदिर में अपार भीड़ होती है। मंदिर से लगा स्वप्रवाहित होने वाला जलस्रोत कोटितीर्थ हैं जिसका स्वप्रवाह प्रशासन ने 90 के दशक में इसलिए बंद कर दिया था कि, यह जल्दी जल्दी भर जाता था और इसे खाली करने के उपकरण उपलब्ध नहीं थे,इस कार्य को स्वयं मैंने देखा है ।

ऐसी मान्यता है कि इल्तुत्मिश ने जब मंदिर को तुड़वाया तो शिवलिंग को इसी कोटितीर्थ में फिकवा दिया था। बाद में इसकी पुनर्प्रतिष्ठा करायी गयी।

इसके बाद सन १९६८ के सिंहस्थ महापर्व के पूर्व मुख्य द्वार का विस्तार कर सुसज्जित कर लिया गया था। इसके अलावा निकासी के लिए एक अन्य द्वार का निर्माण भी कराया गया था। लेकिन दर्शनार्थियों की अपार भीड़ को दृष्टिगत रखते हुए बिड़ला उद्योग समूह के द्वारा १९८० के सिंहस्थ के पूर्व एक विशाल सभा मंडप का निर्माण कराया और अब इसका विस्तार विशाल परिसर के रूप मे किया जा रहा है ।

महाकालेश्वर मंदिर की व्यवस्था के लिए एक प्रशासनिक समिति का गठन किया गया था जो इसकी व्यवस्था का संचालन करती हैं, जिसके निर्देशन में यहाँ की व्यवस्था सुचारु रूप से चल रही है।

90 के दशक में ही इसके ११८ शिखरों पर १६ किलो स्वर्ण की परत चढ़ाई गई थी । अब मंदिर में दान के लिए इंटरनेट सुविधा भी चालू है।

श्री महाकालेश्वर की नगरी उज्जैन का महात्म्य:

वर्तमान उज्जैन नगर विंध्यपर्वतमाला के समीप और पवित्र तथा ऐतिहासिक क्षिप्रा नदी के किनारे समुद्र तल से 1678 फीट की ऊंचाई पर 23°डिग्री.50′ उत्तर देशांश और 75°डिग्री .50′ पूर्वी अक्षांश पर स्थित है।

नगर का तापमान और वातावरण समशीतोष्ण है। यहां की भूमि उपजाऊ है। कालजयी कवि कालिदास और महान रचनाकार बाणभट्ट ने नगर की खूबसूरती को जादुई निरूपति किया है।

कालिदास ने लिखा है कि दुनिया के सारे रत्न उज्जैन में हैं और समुद्रों के पास सिर्फ उनका जल बचा है। उज्जैन नगर और अंचल की प्रमुख बोली मीठी मालवी बोली है। हिंदी भी प्रयोग में है।

उज्जैन इतिहास के अनेक परिवर्तनों का साक्षी है। क्षिप्रा के अंतर में इस पारम्परिक नगर के उत्थान-पतन की निराली और सुस्पष्ट अनुभूतियां अंकित है। क्षिप्रा के घाटों पर जहाँ प्राकृतिक सौन्दर्य की छटा बिखरी पड़ी है, असंख्य लोग आए और गए। रंगों भरा कार्तिक मेला हो या जन-संकुल सिंहस्थ या दिन के नहान, सब कुछ नगर को तीन और से घेरे क्षिप्रा का आकर्षण है।

उज्जैन के दक्षिण-पूर्वी सिरे से नगर में प्रवेश कर क्षिप्रा ने यहां के हर स्थान से अपना अंतरंग संबंध स्थापित किया है। यहां त्रिवेणी पर नवगृह मंदिर है और कुछ ही गणना में व्यस्त है। पास की सड़क आपको चिन्तामणि गणेश पहुंचा देगी। धारा मुड़ गई तो क्या हुआ? ये जाने पहचाने क्षिप्रा के घाट , सुबह-सुबह महाकाल और हरसिध्दि मंदिरों की छाया का स्वागत करते है।

क्षिप्रा जब पूर आती है तो गोपाल मंदिर की देहलीज छू लेती है। दुर्गादास की छत्री के थोड़े ही आगे नदी की धारा नगर के प्राचीन परिसर के आस-पास घूम जाती है। भर्तृहरि गुफा, पीर मछिन्दर और गढकालिका का क्षेत्र पार कर नदी मंगलनाथ पहुंचती है। मंगलनाथ का यह मंदिर सान्दीपनि आश्रम और निकट ही राम-जनार्दन मंदिर के सुंदर दृश्यों को निहारता रहता है। सिध्दवट और काल भैरव की ओर मुडकर क्षिप्रा कालियादेह महल को घेरते हुई चुपचाप उज्जैन से आगे अपनी यात्रा पर बढ जाती है।

कवि हों या संत, भक्त हों या साधु, पर्यटक हों या कलाकार, पग-पग पर मंदिरों से भरपूर क्षिप्रा के मनोरम तट सभी के लिए समान भाव से प्रेरणाम के आधार है।

आज जो नगर उज्जैन नाम से जाना जाता है वह अतीत में अवंतिका, उज्जयिनी, विशाला, प्रतिकल्पा, कुमुदवती, स्वर्णशृंगा, अमरावती आदि अनेक नामों से अभिहित रहा। मानव सभ्यता के प्रारंभ से यह भारत के एक महान तीर्थ-स्थल के रूप में विकसित हुआ। पुण्य सलिला क्षिप्रा के दाहिने तट पर बसे इस नगर को भारत की मोक्षदायक सप्तपुरियों में एक माना गया है।

संगम की रेती पर संयम,श्रद्धा एवं कायाशोधन का कल्पवास समाप्त:अमृत से सिंचित,पितामह ब्रह्मदेव के यज्ञ से पवित्र पतित पावनी गंगा, श्यामल यमुना और अन्त स्वरूप सलिला के रूप में प्रवाहित सरस्वती के संगम क्षेत्र में माघी पूर्णिमा तक चला”कल्पवास” attacknews.in

प्रयागराज 27 फरवरी ।अमृत से सिंचित और पितामह ब्रह्मदेव के यज्ञ से पवित्र पतित पावनी गंगा, श्यामल यमुना और अन्त स्वरूप सलिला के रूप में प्रवाहित सरस्वती के संगम क्षेत्र में माघी पूर्णिमा स्नान के साथ ही एक माह का संयम, अहिंसा, श्रद्धा एवं कायाशोधन का कल्पवास भी समाप्त हो गया।

पुराणों और धर्मशास्त्रों में कल्पवास को आत्मा शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति के लिए जरूरी बताया गया है। यह मनुष्य के लिए आध्यात्म की राह का एक पड़ाव है जिसके जरिए स्वनियंत्रण एवं आत्मशुद्धि का प्रयास किया जाता है। हर वर्ष श्रद्धालु एक महीने तक संगम के विस्तीर्ण रेती पर तंबुओं की आध्यात्मिक नगरी में रहकर अल्पाहार, तीन समय गंगा स्नान, ध्यान एवं दान करके कल्पवास करते है।

हांडिया के टेला ग्राम निवासी रमेश चतुर्वेदी संगम लोअर मार्ग पर शिविर में रहकर 20 साल से पत्नी के साथ सेवा का कल्पवास कर रहे हैं। सेवा परमोधर्म : का भाव लेकर लोकतंत्र में धर्मतंत्र की स्थापना के लिए प्रयासरत है। इनका मानना है कि अकेला चना भाड़ नहीं तोड सकता लेकिन किसी को तो आगे बढ़कर प्रयास करना ही होगा।

श्री चतुर्वेदी ने बताया कि संगम क्षेत्र में एक माह तक जो भी आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव मिलता है, उसका वर्णन नहीं जा किया जा सकता केवल महसूस किया जाता है। यह सौभाग्य अब फिर 11 माह बाद मिल सकेगा भी या नहीं कुछ नहीं कह सकते। यह जरूर कह सकते है कि वह जब जिसे चाहेंगी। किसी भी परिस्थिति में अपने पास बुला ही लेंगी।

उन्होने बताया कि कल्पवास के पहले शिविर के मुहाने पर तुलसी और शालिग्राम की स्थापना कर नित्य पूजा करते हैं। कल्पवासी परिवार की समृद्धि के लिए अपने शिविर के बाहर जौ का बीज अवश्य रोपित करता है। कल्पवास समाप्त होने पर तुलसी को गंगा में प्रवाहित कर देते हैं और शेष को अपने साथ ले जाते हैं।

श्री चतुर्वेदी ने बताया कि भारत की आध्यात्मिक सांस्कृतिकए सामाजिक एवं वैचारिक विविधताओं को एकता के सूत्र में पिरोने वाला माघ मेला भारतीय संस्कृति का द्योतक है। इस मेले में पूरे भारत की संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। उन्हाेने बताया कि शनिवार को माघी पूर्णिमा स्नान के साथ एक माह का कल्पवास समाप्त हुआ।

वैदिक शोध एवं सांस्कृतिक प्रतिष्ठान कर्मकाण्ड प्रशिक्षण केन्द्र के पूर्व आचार्य डा आत्माराम गौतम ने बताया कि प्रत्येक वर्ष फरवरी महीने के मध्य में कल्पवास खत्म हो जाता था। माघ अथवा कुंभ एवं अर्द्ध कुंभ मेले में दो कालखंड होते हैं। मकर संक्रांति से माघ शुक्लपक्ष की संक्रांति तक बिहार और झाारखंड के मैथिल ब्राह्मण कल्पवास करते हैं। दूसरे खण्ड पौष पूर्णिमा से माघी पूर्णिमा तक कल्पवास किया जाता है। माघ में कल्पवास ज्यादा पुण्यदायक माना जाता है। इसलिए 90 प्रतिशत से अधिक श्रद्धालु पौष पूर्णिमा से माघी पूर्णिमा तक कल्पवास करते हैं।पर इसबार कल्पवासियों और संतों की तपस्या कुछ अधिक खिंच गया। इसकी वजह यह है कि 37 साल बाद पौष पूर्णिमा जनवरी महीने के अंत में लगी। इसलिए माघ महीना पूरे फरवरी तक रहेगा। बीते कुछ वर्षों में पौष पूर्णिमा 10 जनवरी के आसपास पड़ती थी। मकर संक्रांति 14 अथवा 15 जनवरी को ही रहती है।

आचार्य डा आत्माराम गौतम ने बताया कि ऐसी स्थिति में 20 फरवरी से पहले कल्पवास खत्म हो जाता था। चालू में मकर संक्रांति 14 जनवरी और पौष पूर्णिमा 28 जनवरी को पड़ी। माघ शुक्लपक्ष की संक्रांति 13 फरवरी को थी और माघी पूर्णिमा 27 फरवरी को है, इस तरह लगभग फरवरी महीना तक कल्पवास चला।

कल्पवास का वास्तविक अर्थ है कायाकल्प। यह कायाकल्प शरीर और अन्तःकरण दोनों का होना चाहिए। इसी द्विविध कायाकल्प के लिए पवित्र संगम तट पर जो एक महीने का वास किया जाता है उसे कल्पवास कहा जाता है।

प्रयागराज मे कुम्भ बारहवें वर्ष पड़ता है लेकिन यहाँ प्रतिवर्ष माघ मास मे जब सूर्य मकर राशि मे रहते हैं तब माघ मेला एवं कल्पवास का आयोजन होता है।

मत्स्यपुराण के अनुसार कुम्भ में कल्पवास का अत्यधिक महत्व माना गया है।

आचार्य गौतम ने बताया कि आदिकाल से चली आ रही इस परंपरा के महत्व की चर्चा वेदों से लेकर महाभारत और रामचरितमानस में अलग अलग नामों से मिलती है। बदलते समय के अनुरूप कल्पवास करने वालों के तौर तरीके में कुछ बदलाव जरूर आए हैं लेकिन कल्पवास करने वालों की संख्या में कमी नहीं आई है। आज भी श्रद्धालु भयंकर सर्दी में कम से कम संसाधनों की सहायता लेकर कल्पवास करते हैं।

उन्होने बताया कि कल्पवास के दौरान कल्पवासी को जमीन पर सोना होता है। इस दौरान फलाहार या एक समय निराहार रहने का प्रावधान होता है। कल्पवास करने वाले व्यक्ति को नियम पूर्वक तीन समय गंगा में स्नान और यथासंभव अपने शिविर में भजन कीर्तन प्रवचन या गीता पाठ करना चाहिए।

आचार्य ने बताया कि मत्स्यपुराण में लिखा है कि कल्पवास का अर्थ संगम तट पर निवास कर वेदाध्यन और ध्यान करना। कुम्भ में कल्पवास का अत्यधिक महत्व माना गया है। इस दौरान कल्पवास करने वाले को सदाचारी शांत चित्त वाला और जितेन्द्रीय होना चाहिए। कल्पवासी को तट पर रहते हुए नित्यप्रति तप, हाेम और दान करना चाहिए।

समय के साथ कल्पवास के तौर-तरीकों में कुछ बदलाव भी आए हैं। बुजुर्गों के साथ कल्पवास में मदद करते-करते कई युवाए युवतियां माता.पिता, सास.ससुर को कल्पवास कराने और सेवा में लिप्त रहकर अनजाने में खुद भी कल्पवास का पुण्य पा जाते हैं। आचार्य गौतम ने बताया कि पौष कल्पवास के लिए वैसे तो उम्र की कोई बाध्यता नहीं है लेकिन माना जाता है कि संसारी मोहमाया से मुक्त और जिम्मेदारियों को पूरा कर चुके व्यक्ति को ही कल्पवास करना चाहिए क्योंकि जिम्मेदारियों से बंधे व्यक्ति के लिए आत्मनियंत्रण कठिन माना जाता है।

कुम्भ, अर्द्ध कुम्भ और माघ मेला दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समागम है जिसकी दुनिया में कोई मिसाल नहीं मिलती। इसके लिए किसी प्रकार का न/न तो प्रचार किया जाता है और न ही इसमें आने के लिए लोगों से मिन्नतें की जाती हैं। तिथियों के पंचांग की एक तारीख पर करोड़ों लोगों को कुम्भ में आने के निमंत्रण का कार्य करती है।

आचार्य ने बताया कि प्रयागराज मे जब बस्ती नहीं थी, तब संगम के आस-पास घोर जंगल था। जंगल मे अनेक ऋषि-मुनि जप तप करते थे। उन लोगों ने ही गृहस्थों को अपने सान्निध्य मे ज्ञानार्जन एवं पुण्यार्जन करने के लिये अल्पकाल के लिए कल्पवास का विधान बनाया था। इस योजना के अनुसार अनेक धार्मिक गृहस्थ ग्यारह महीने तक अपनी गृहस्थी की व्यवस्था करने के बाद एक महीने के लिए संगम तट पर ऋषियों मुनियों के सान्निध्य मे जप तप साधना आदि के द्वारा पुण्यार्जन करते थे। यही परम्परा आज भी कल्पवास के रूप मे विद्यमान है।
महाभारत में कहा गया है कि एक सौ साल तक बिना अन्न ग्रहण किए तपस्या करने का जो फल मिलता है माघ मास में कल्पवास करने भर से प्राप्त हो जाता है।

कल्पवास की न्यूनतम अवधि एक रात्रि की है। बहुत से श्रद्धालु जीवनभर माघ मास गंगा यमुना और सरस्वती के संगम को समर्पित कर देते हैं। विधान के अनुसार एक रात्रि, तीन रात्रि,तीन महीना, छह महीना छह वर्ष, 12 वर्ष या जीवनभर कल्पवास किया जा सकता है।

डा गौतम ने बताया कि पुराणों में तो यहां तक कहा गया है कि आकाश तथा स्वर्ग में जो देवता हैं वे भूमि पर जन्म लेने की इच्छा रखते हैं। वे चाहते हैं कि दुर्लभ मनुष्य का जन्म पाकर प्रयाग क्षेत्र में कल्पवास करें।

भारत के क्षेत्र में दर्शन करने के लिए आसान बनाई जा रही है “छोटा कैलाश” की यात्रा,कैलाश—मानसरोवर यात्रा का आयोजन संभव न होने की परिस्थिति में महत्वपूर्ण होगा यह दर्शनीय स्थल attacknews.in

पिथौरागढ, 26 फरवरी । कैलाश—मानसरोवर यात्रा का आयोजन इस वर्ष भी संभव न होने की आशंकाओं के मददेनजर कुमांउ मंडल विकास निगम ने चीन के साथ लगती सीमा पर भारतीय क्षेत्र में स्थित शिव के धाम ‘छोटा कैलाश’ को एक प्रमुख तीर्थस्थल के रूप में विकसित करने का प्रस्ताव तैयार किया है ।

निगम के अध्यक्ष केदार जोशी ने यहां बताया, ‘आदि कैलाश के रूप में भी विख्यात छोटा कैलाश को भगवान शिव का असली घर माना जाता है और देश भर के शिवभक्तों के लिए यह सर्वश्रेष्ठ तीर्थस्थल हो सकता है ।’

उन्होने कहा कि सीमा सडक संगठन द्वारा पिछले साल जून में व्यास घाटी को मोटर मार्ग से जोड दिए जाने के बाद छोटा कैलाश तक संपर्क (कनेक्टिविटी) भी बेहतर हुई है, इससे तीर्थयात्रियों का वहां तक जाना भी सुविधाजनक हो गया है ।

भारत—चीन सीमा पर स्थित लिपुलेख दर्रे के जरिए हर वर्ष होने वाली कैलाश—मानसरोवर यात्रा के लिए निगम नोडल एजेंसी है । पिछले साल कोविड 19 महामारी के कारण यह यात्रा नहीं हो पाई और इस बार भी अब तक इसके लिए तैयारी बैठकों के न होने के कारण इसके आयोजन की संभावनाएं नहीं लग रही हैं ।

यात्रा के संबंध में हर साल फरवरी के पहले सप्ताह में विदेश मंत्रालय तैयारी बैठकें करता है ।

निगम के अध्यक्ष जोशी ने बताया कि वह अप्रैल में स्वयं छोटा कैलाश जाने की योजना बना रहे हैं जिससे वहां आधारभूत संरचनाओं की स्थिति का जायजा लिया जा सके ।

जोशी का मानना है कि अगर सुविधाएं बढाई जाएं तो ज्यादा तीर्थयात्री छोटा कैलाश की यात्रा पर आएंगे । जून से शुरू होने वाली छोटा कैलाश की तीर्थयात्रा पर अभी करीब एक हजार श्रद्धालु प्रतिवर्ष पहुंच रहे हैं ।

उन्होंने कहा कि निगम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को छोटा कैलाश की यात्रा का निमंत्रण देना चाहता है जिससे इसे धार्मिक पर्यटन के एक गंतव्य के रूप में बढावा मिलेगा ।

दलाई लामा ने भारत की पुलिस को करूणा और अहिंसा की रक्षक बताकर आपराधिक न्याय प्रणाली में मौत की सजा की खिलाफत की attacknews.in

नयी दिल्ली, 17 फरवरी । दलाई लामा ने बुधवार को कहा कि जब तक पुलिस कार्रवाई की मंशा व्यापक लोगों की भलाई है तब तक अपने काम में उनकी दृढ़ता ठीक है।

दलाई लामा ने कहा, ‘‘दृढ़ता सामान्य रूप से अनुशासन का एक तरीका है। यह हिंसक है या नहीं, यह पूरी तरह से उसकी मंशा पर निर्भर करता है। पुलिस के रूप में, कुछ परिस्थितियों में, आपको कठोर तरीकों का इस्तेमाल करने की आवश्यकता है, लेकिन लोगों की सुरक्षा व्यापक मंशा होनी चाहिये ।

दलाई लामा भारतीय पुलिस फाउंडेशन के अनुरोध पर ‘‘पुलिसिंग में संवेदना और करूणा’’ विषय पर व्याख्यान दे रहे थे ।

वह हिमाचल प्रदेश में धर्मशाला में अपने निवास से पुलिस बल के सदस्यों को टलीकान्फ्रेंसिंग के माध्यम से संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने लोगों का करूणामय और संवेदनशली बनाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि इस प्रकार की शिक्षा किसी की भी तालीम का एक हिस्सा होना चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘‘पश्चिम में… अंग्रेजों ने आधुनिक शिक्षा की शुरुआत की, लेकिन आपको देश की हजार साल पुरानी परंपराओं को बनाए रखने की भी कोशिश करनी चाहिए, जो अहिंसा, करुणा, सहानुभूति है।’’

धर्म गुरू ने कहा, ‘‘हमें धर्मनिरपेक्ष तरीके से छात्रों को शिक्षित करने पर अधिक ध्यान देना चाहिए। इस तरह की शिक्षा लोगों को अपने आप अधिक दयावान बनाएगी ।’’

उन्होंने कहा, ‘‘भारतीय पुलिस करुणा और अहिंसा की रक्षक है ।’’

तिब्बत के आध्यात्मिक नेता दलाई लामा 1959 के तिब्बती विद्रोह के दौरान भाग जाने के बाद से भारत में निर्वासित जीवन बिता रहे हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘मेरा सारा जीवन सुरक्षाकर्मियों के साथ बीता है । मैने चीनी पुलिस के साथ नौ साल और भारतीय पुलिस के साथ 60 साल बिताए हैं और भारतीय पुलिस लोकतंत्र और सिद्धांतों पर काम करती है।’’

आपराधिक न्याय प्रणाली के बारे में पूछे जाने पर दलाई लामा ने कहा कि वह मौत की सजा के खिलाफ हैं।

तीर्थराज प्रयाग में दुनिया के सबसे बडे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक माघ मेला में विभिन्न संस्कृति और भाषाओं के संगम के साथ कई परम्पराओं का भी एक साथ आदान प्रदान होता है attacknews.in

प्रयागराज, 01 फरवरी । तीर्थराज प्रयाग में दुनिया के सबसे बडे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक माघ मेला में विभिन्न संस्कृति और भाषाओं के संगम के साथ कई परम्पराओं का भी एक साथ आदान प्रदान होता है।

त्रिवेणी के विस्तीर्ण रेती पर अलग-अलग भाषा, संस्कृति, परंपरा और पहनावे को एक साथ देखा और महसूस किया जा सकता है। यहां किसी को आने का आमंत्रण व निमंत्रण नहीं दिया जाता बावजूद इसके सब नियत तिथि पर पहुंच कर एक माह का पौष पूर्णिमा के पावन पर्व पर श्रद्धा की डुबकी के साथ ही संयम, अहिंसा, श्रद्धा एवं कायाशोधन के लिए श्कल्पवास करते हैं।

भारत की राष्ट्रीयता का आधार वसुधैव कुटुंबकम का चिंतन रहा है। संगम तट पर विभिन्न संस्कृतियों, भाषा और परंपरा को मिलते देख “लघु भारत” के दर्शन का बोध होता है। प्रयाग प्रजापति का क्षेत्र है जहाँ गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का मिलन होता हैं।

मत्स्यपुराण में लिखा है कि साठ सहस्त्र वीर गंगा की और स्वयं भगवान भास्कर जमुना की रक्षा करते हैं। यहाँ जो वट है उसकी रक्षा स्वयं शूलपाणि करते हैं। पाँच कुंड हैं जिनमें से होकर जाह्नवी बहती है। माघ महीने में यहाँ सब तीर्थ आकर वास करते हैं। इससे यह महीने पुण्य का फलदायी बताया गया है।

माघ मेला में लोगों की सेवा कर रहे फतेहपुर के भूमा निकेतन आश्रम के करीब 70 वर्षीय बाबा शिव प्रसाद अवस्थी उर्फ पेड़ा बाबा ने बताया कि भारत ने सदैव समूचे विश्व को एक परिवार के रूप में देखा है। भारत सभी के सुख और निरामयता की कामना करता रहा। यहां की यह पहचान मानव समूहों के संगम, उनके सम्मिलन और सहअस्तित्व की लंबी प्रक्रिया से निकल कर बनी है। हम सहिष्णुता से शक्ति पाते हैं बहुलता का स्वागत करते हैं और विविधता का गुणगान करते हैं। यह शताब्दियों से हमारे सामूहिक चित्त और मानस का अविभाज्य हिस्सा है। यही हमारी राष्ट्रीय पहचान है।

गृहस्थ संत चमक दूमक से दूर कड़ाके की ठंड में भी सदैव नंगे पैर रहने वाले बाबा अवस्थी ने बताया कि वह पिछले करीब 40 साल से हर साल माघ मेला आकर अस्थायी आश्रम में गृहस्थ, साधु और संतों समेत वहां पहुंचने वाले किसी भी सम्प्रदाय के लोगों की सेवा नि:स्वार्थ रूप से करते हैं। उन्हें वैराग्य करीब 30 वर्ष की आयु से हो गया । उसके बाद उन्होंने भौतिक सुखों का परित्याग कर दिया।

उन्होंने बताया कि जिस प्रकार “दीपक स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाश देता है उसी तरह अपने को तपाकर दूसरों के लिए जीना ही सच्चे मानवधर्म का कर्तव्य है। इसी को अपना लक्ष्य मानकर दूसरो की पीड़ा से विह्वल बाबा ने बताया कि दूसरों की सेवा कर उन्हें आत्मिक संतोष मिलता है।

बाबा अवस्थी ने बताया कि संगम तट पर तंबुओं की अस्थायी आध्यात्मिक नगरी में दान-दया और परोपकार सहयोग के आधार पर विकसित हुयी मानवता का संगम प्रत्यक्ष देखने को मिलता है। यहां तीर्थयात्री को पवित्रता, मांगलिकता और अमरत्व के भाव से स्नान करने का एक अवसर प्राप्त होता है। प्रयागराज ही वह एक पवित्र स्थली हैं जहां पतित पावनी गंगाए श्यामल यमुना और अन्त: सलिला स्वरूपा में प्रवाहित सरस्वती का मिलन होता है। माघ मेला का आध्यात्मिक, बौद्धिक, पौराणिक और वैज्ञानिक आधार भी है। एक प्रकार से माघ स्नान ज्ञान का अनूठा संगम सामने लाता है।

बाबा अवस्थी ने बताया कि माघ मेला देश की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विविधताओं को पल्लवित करने के साथ सामाजिक समरसता, एकता और सद्भाव बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है। दूर दराज से संगम आने वाले श्रद्धालुओं और कल्पवासियों की संस्कृति, भाषा, पहनावा भले ही भिन्न हो लेकिन उनकी मंशा एक ही होती है। वह भले ही एक दूसरे की भाषा नहीं समझते लेकिन उनकी भाव-भंगिमा एक दूसरे से मितव्यता पूर्वक जोड़ती है। किसी के मन में एक दूसरे के प्रति राग और द्वेष नहीं रहता। एक दूसरे की भाषा नहीं समझते हुए भी किसी भी चीज का प्रेम पूर्वक सुगमता से आदान प्रदान करते हैं।

गृहस्थ संत ने बताया कि बारह महीने में से एक महीना अपने स्थान का त्यागकर प्रयाग में आकर रहने से वैराग्य पैदा होता है। यहां पर दान,ध्यान और अन्य धार्मिक कार्यों के करने से एक प्रकार से पुर्नजन्म होता है। क्योंकि परिवार और भौतिक सुखों का प्ररित्याग कर संगम तट पर एक माह का कल्पवास एक कठिन साधाना है। प्रयाग संगम में राजा-रंक, स्वस्थ्य-अस्वस्थ्य, पंगु और कोढ़ी, हिन्दू, मुस्लिम, सिख और ईसाई आदि सभी श्रद्धा से ओतप्रोत हो आस्था की डुबकी लगाते हैं।

उन्होंने बताया कि उनके आश्रम के शिविर मे विभिन्न सम्प्रदायों के 50 श्रद्धालु रहते हैं।

पकर संक्रांति के पहले स्नान पर्व 14 जनवरी को उनके आश्रम में बांदा जिले के परसौदा गांव निवासी बसीर नामक श्रद्धालु त्रिवेणी में आस्था की डुबकी लगाया और गाांव वापस लौट गया। यहां किसी को कोई असहजता महसूस नहीं होती। डुबकी लगाते समय श्रद्धालु एक दूसरे को न/न जानते हुए भी सहायक बनते हैं। बाबा अवस्थी ने बताया कि माघ मेले का रंग ही ऐसा आध्यात्मिकता से ओतप्रोत होता है जिसमें लोग रच और बस जाना चाहते हैं। यह मेला श्रद्धालुओं को एक निश्चित तिथि पर अपनी तरफ बिना आमंत्रण और निमंत्रण के अपनी ओर आकर्षित करता हैं। यहां आने वाले लोगों को पूरे भारत की विविधता एक स्थान पर सिमटी मिल जाती है और जो लोग आध्यात्मिक पर्यटन पर आते हैं उनके लिए इससे भव्य कोई आयोजन दूसरा नहीं हो सकता।

पुराणों के अनुसार माघ माह में समस्त तीर्थ प्रयाग में एकत्र होते हैं इसीलिए इसे प्रयागराज कहते हैं। महाकवि गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीराचरितमानस में प्रयागराज की महत्ता का वर्णन बहुत रोचक तरीके से इस प्रकार किया है-

“माघ मकर गति रवि जब होई, तीरथपतिहिं आव सब कोई। देव दनुज किन्नर नर श्रेनी सादर मज्जंहि सकल त्रिवेनी।”

इसी भावना के अनुरूप तीर्थराज प्रयाग का माघ मेला, देश और दुनिया के विभिन्न संस्कृति और भाषाओं वाले करोड़ों श्रद्धालुओं का संगम बनता है। यह मेला शांति सामंजस्य और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक भी है।

प्रयाग में सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ शुरू होने वाले एक मास के कल्पवास से एक कल्प ब्रह्मा का एक दिन का पुण्य मिलता है। आदिकाल से चली आ रही इस परंपरा के महत्व की चर्चा वेदों से लेकर महाभारत और रामचरितमानस में अलग-अलग नामों से मिलती है। आज भी कल्पवास नई और पुरानी पीढ़ी के लिए आध्यात्म की राह का एक पड़ाव हैए जिसके जरिए स्वनियंत्रण और आत्मशुद्धि का प्रयास किया जाता है। बदलते समय के अनुरूप कल्पवास करने वालों के तौर.तरीके में कुछ बदलाव जरूर आए हैं लेकिन कल्पवास करने वालों की संख्या में कमी नहीं आई।

उन्होंने बताया कि जिस प्रकार सनातन धर्म को अनादि कहा जाता है उसी प्रकार प्रयाग की महिमा का कोई आदि और अंत नहीं है। ब्रह्मपुराण के अनुसार तीर्थराज प्रयाग सभी तीर्थों में श्रेष्ठ और इसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रदाता कहा गया है। पद्मपुराण में कहा गया है कि यह यज्ञ भूमि है। देवताओं द्वारा सम्मानित इस भूमि में थोड़ा भी किया गया दान का फल अनंत काल तक रहता है।

अयोध्या में डेढ़-दो साल में तैयार हो जाएगी भव्य राम मंदिर की पहली मंजिल,अयोध्या के सूनेपन को दूर करने के लिए माता सीता का भी भव्य मंदिर बनेगा attacknews.in

सहारनपुर 08 जनवरी । दुनिया भर में करोड़ों हिन्दुओं की आस्था के प्रतीक भव्य राम मंदिर की पहली मंजिल का निर्माण कार्य अगले दो सालों में पूरा होने की उम्मीद है।

विश्व हिंदू परिषद(विहिप) के शीर्ष नेताओं में से एक एवं श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के विशेष आमंत्रित सदस्य दिनेश कुमार ने शुक्रवार को पत्रकारों से कहा कि श्रीराम के भक्तों की अयोध्या में उनके जन्म स्थान पर भव्य मंदिर निर्माण और रामलला के दर्शन करने की इच्छा डेढ़-दो साल के भीतर हो जाने वाली है।

दिनेश कुमार ने मंशाराम द्वारा उसी स्थल पर 60 वर्ष पूर्व बनाए गए शिव मंदिर में जलाभिषेक किया और पूजा-अर्चना भी की। उसी स्थल पर विहिप नेता दिनेश कुमार ने पत्रकारों से कहा कि अयोध्या में राम जन्मभूमि ट्रस्ट के पास जो 70 एकड़ भूमि उपलब्ध हैं उसमें से 6 एकड़ भूमि पर भगवान श्रीराम का विशाल मंदिर बनेगा और उसी परिसर में माता सीता का मंदिर भी बनाया जाएगा।

उन्होने कहा कि माता सीता द्वारा खुद को भूमि में समाए जाने के बाद अयोध्या हमेशा उजड़ी और सूनी रही। साधु-संतों और धर्माचार्यों की मंशा के मुताबिक अयोध्या के सूनेपन को दूर करने के लिए माता सीता का भी भव्य मंदिर बनेगा।

उन्होंने कहा कि जन्मभूमि स्थल पर डेढ़-दो साल के भीतर मंदिर के एक मंजिल का निर्माण पूरा हो जाएगा और रामलला वहां स्थापित हो जाएंगे। उसके बाद देश-दुनिया के रामभक्त वहां पहुंचकर अपनी आस्था के मुताबिक भगवान श्रीराम के दर्शन कर सकेंगे और पूजा-अर्चना भी कर सकेंगे।

पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर अत्याचार की पराकाष्ठा:हर साल1000 लड़कियां बनाई जाती हैं मुसलमान;अधेड़ और बुड्ढों मुसलमानों से जबरन करवाया जा रहा है नाबालिग हिंदू लड़कियों का निकाह attacknews.in

इस्लामाबाद 1 जनवरी ।नेहा को वो भजन बहुत प्यारे हैं जिनसे चर्च में संगीत गूंजने लगता है लेकिन पिछले साल उससे इन्हें गाने का मौका छीन लिया गया. 14 साल की उम्र में नेहा का जबरन धर्म बदल कर 45 साल के एक शख्स से उसकी शादी करा दी गई।

नेहा से शादी करने वाले शख्स के बच्चे नेहा से दोगुनी उम्र के हैं. आपबीती सुनाती नेहा की आवाज बेहद धीमी है और कभी कभी फुसफुसाहटों में बदल जाती है. नीले स्कार्फ से अपने सिर और चेहरे को ढंके नेहा फिर से हिम्मत जुटाती है और अपनी कहानी बताती है. उसका पति अब जेल में है और उस पर नाबालिग लड़की के बलात्कार का आरोप है. सुरक्षा गार्डों ने उसके पति के भाई के पास से एक पिस्टल जब्त किया और तब से नेहा छिप कर रह रही है. उसने बताया, “वह बंदूक लेकर मुझे मारने आया था.”

पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यक वर्ग की नेहा जैसी करीब एक हजार लड़कियों से हर साल जबरन इस्लाम कबूल कराया जाता है,मुख्य रूप से नाबालिग और शादी के लिए सहमति देने की उम्र में नहीं पहुंची लड़कियों से शादी के लिए यह किया जाता है।

मानवाधिकार कार्यकर्ता बताते हैं कि कोरोना महामारी के दौरान तालाबंदी में यह काम और तेजी से हुआ है. इस दौर में लड़कियां स्कूल नहीं जा रही हैं और अपने इलाके में ज्यादा दिखाई देती हैं. परिवार कर्ज में डूबे हैं और दुल्हनों के तस्कर इंटरनेट पर और इलाके में खूब सक्रिय हैं।

अमेरिकी रक्षा विभाग ने पाकिस्तान को धार्मिक आजादी के उल्लंघन के लिए “खासतौर से चिंता में डालने वाला देश” घोषित किया है. पाकिस्तान की सरकार इससे इनकार करती है. यह घोषणा अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग की समीक्षा का हिस्सा है. इस समीक्षा के मुताबिक कम उम्र की अल्पसंख्यक हिंदू, ईसाई और सिख समुदाय की लड़कियों का “जबरन इस्लाम में धर्मांतरण के लिए अपहरण किया जाता है. इनकी जबरन शादी की जाती है और बलात्कार होता है.”

बाल यौन शोषण के लती

धर्मांतरित की जाने वाली ज्यादातर लड़कियां दक्षिणी सिंध प्रांत के गरीब हिंदू समुदाय की होती हैं लेकिन दो नए मामलों में ईसाई लड़कियां हैं और तब से देश भर में यह मामला गर्म है. आमतौर पर लड़कियों को शादी के लिए लड़कियां खोज रहे पुरुष या उनके रिश्तेदार और दोस्त अगवा कर लेते हैं. कई बार तो ताकतवर जमींदार अपने बकाया कर्जे के लिए भी लड़कियों को उठवा लेते हैं और पुलिस दूसरी तरफ देखती रहती है. एक बार धर्मांतरण होने के बाद उनकी तुरंत ही शादी कर दी जाती है।

पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग के मुताबिक अकसर शादी करने वाले लोग उम्र में कई गुना बड़े और पहले से शादीशुदा होते हैं।

जबरन धर्मांतरणों की अकसर अनदेखी की जाती है क्योंकि इसमें शामिल मौलवियों से लेकर मजिस्ट्रेट और भ्रष्ट पुलिस वालों की कमाई होती है।

बच्चों के अधिकार के लिए काम करने वाले बताते हैं कि मौलवी धर्मांतरण और शादी कराते हैं तो मजिस्ट्रेट शादियों को मान्यता देते हैं और पुलिस वाले ऐसे मामलों से या तो आंख मूंदे रहते हैं या फिर जांच में बाधा डालते हैं।

बाल अधिकार कार्यकर्ता जिबरान नासिर इस नेटवर्क को ऐसा “माफिया” कहते हैं जो गैर मुस्लिम लड़कियों को अपना शिकार बनाता है क्योंकि वो सबसे कमजोर हैं और आसानी से निशाना बन जाती हैं. नासिर बताते हैं कि इन लड़कियों को बाल यौनशोषण के लती बुड्ढों के हवाले कर दिया जाता है.

मकसद बाल यौन शोषण

इस पूरी कवायद का लक्ष्य इस्लाम में नए लोगों को शामिल करने की बजाय कुंवारी लड़कियां हासिल करना है. पाकिस्तान की 22 करोड़ आबादी में अल्पसंख्यकों की तादाद महज 3.6 फीसदी है. जो लोग जबरन धर्म परिवर्तन की रिपोर्ट दर्ज कराते हैं उनमें से कइयों पर ईशनिंदा जैसे आरोप लगा दिए जाते हैं।

दक्षिणी सिंध प्रांत के सामंती काशमोर इलाके में 13 साल की सोनिया कुमारी को अगवा किया गया. एक दिन बाद पुलिस ने उसके मां बाप को बताया कि उसे हिंदू से मुसलमान बना दिया गया. उसकी मां उसकी वापसी के लिए गिड़गिड़ाती रही जिसका वीडियो इंटरनेट पर बहुत सारे लोगों ने देखा, “खुदा के लिए, कुरान के लिए, आप जिसे भी मानते हो, कृपा करके मेरी बेटी वापस कर दो, उसे जबरन हमारे घर से उठा लिया गया है.”

हालांकि एक हिंदू सामाजिक कार्यकर्ता को एक पत्र मिला जो परिवार वालों से जबरन लिखवाया गया था. इस पत्र में दावा किया गया कि 13 साल की लड़की ने अपनी मर्जी से धर्म बदला और 36 साल के आदमी से शादी की जो पहले से शादीशुदा है और दो बच्चों का बाप है।

इस सामाजिक कार्यकर्ता ने ताकतवर जमींदारों के डर से अपनी पहचान नहीं जाहिर करने को कहा. मां बाप ने आखिर उम्मीद छोड़ दी।

अपराधियों के हथकंडे

आरजू रजा 13 साल की उम्र में मध्य कराची के अपने घर से गायब हो गईं. इस ईसाई लड़की के मां बाप ने उसके गायब होने की रिपोर्ट दर्ज कराई और पुलिस से उसे ढूंढने की गुहार की. दो दिन बात अधिकारियों ने बताया कि वह मुसलमान बन गई है और 40 साल के मुस्लिम पड़ोसी से शादी कर ली है. यहां शादी के लिए रजामंदी देने की उम्र 18 साल है. आरजू के मैरेज सर्टिफिकेट में उसकी उम्र 19 साल बताई गई है।

जिस मौलवी ने आरजू की शादी कराई उसका नाम काजी अहमद मुफ्ती जान रहीमी है. बाद में उस पर तीन और नाबालिगों की शादी कराने के आरोप लगे।

आरजू के मामले में गिरफ्तारी का वारंट होने के बावजूद वह कराची शहर के होलसेल राइस मार्केट में मौजूद टूटे फूटे दफ्तर से अपना काम कर रहा है।समाचार एजेंसी एपी के रिपोर्टर जब उसके दफ्तर पहुंचे तो रहीमी वहां से भाग निकला. वहां मौजूद मुल्ला कैफतुल्ला उस परिसर में मौजूद आधे दर्जन मौलवियों में हैं जो शादियां कराते हैं. उन्होंने बताया कि एक और मौलवी को कम उम्र के बच्चों की शादी कराने के लिए जेल में डाला गया है। कैफतुल्ला के मुताबिक वो खुद केवल 18 साल से ऊपर के लड़कियों की ही शादियां कराते हैं. हालांकि उन्होंने यह भी कहा “इस्लाम के मुताबिक 14 या 15 साल की लड़की की शादी जायज है.”

वायरल वीडियो का असर

आरजू की मां रीता रजा का कहना है कि पुलिस उनके परिवार की अपील को तब तक नजरअंदाज करती रही जब तक कि कोर्ट के सामने उन्होंने रोते और गुहार लगाते वीडियो रिकॉर्ड नहीं कराया. यह वीडियो वायरल हो गया और पाकिस्तान में इसे लेकर सोशल मीडिया पर खूब बवाल हुआ. इसके बाद अधिकारी हरकत में आने पर मजबूर हुए.

नासिर ने बताया, “10 दिन तक मां बाप पुलिस स्टेशन, सरकारी अधिकारी और अलग अलग राजनीतिक दलों के दफ्तरों के चक्कर काटते रहे. उन्हें तब तक किसी ने समय नहीं दिया जब तक कि वीडियो वायरल नहीं हो गया. यहां सचमुच दुर्भाग्यपूर्ण यही बात है.”

अधिकारियों ने आरजू के पति को गिरफ्तार कर लिया लेकिन उसकी मां का कहना है कि उसकी बेटी अब तक घर नहीं आई है. रजा का कहना है कि उनकी बेटी अपने पति के घरवालों से डरी हुई है.

चर्च के भजन पसंद करने वाली नेहा का कहना है कि उसे उसकी एक आंटी ने शादी में धोखे से फंसाया. उसने नेहा को अपने बीमार बेटे को देखने के लिए अस्पताल चलने को कहा. आंटी सांदस बलोच ने कई साल पहले इस्लाम कबूल कर लिया था और अपने पति के साथ उसी इमारत के एक अपार्टमेंट में रहती है जिसके दूसरे अपार्टमेंट में नेहा का परिवार रहता है।

पड़ोसी ने फंसाया

नेहा याद करती है, “मां ने मुझे सिर्फ यही पूछा कि तुम कब लौटोगी.” नेहा को आंटी अस्पताल की बजाय अपने ससुराल ले गई और कहा कि वह अपने देवर से उसकी शादी कराएगी. नेहा ने इंकार किया, “मैंने कहा कि मैं नहीं कर सकती, मैं बहुत छोटी हूं और मैं ऐसा नहीं चाहती, वह बूढ़ा है. उसने मुझे थप्पड़ मारा और एक कमरे में बंद कर दिया. ” नेहा ने बताया कि उसे दो लोग लेकर गए, एक ने उससे शादी की और दूसरे ने उस शादी को रिकॉर्ड किया. उन्होंने उसकी उम्र 19 साल बताई. डर के मारे वह चुप रही क्योंकि आंटी ने शादी से इनकार पर दो साल के भाई को नुकसान पहुंचाने की धमकी दी

धर्म बदलने का पता उसे तब चला जब उसे शादी के सर्टिफिकेट पर दस्तखत करने के लिए कहा गया, वहां उसका नया नाम फातिमा लिखा था. एक हफ्ते तक उसे एक कमरे में बंद रखा गया. उसका पति पहली रात में उसके पास आया और उस घड़ी को याद कर नेहा की आंखों में आंसू आ गए, “मैं रात भर चिल्लाती रही. मेरे दिमाग में ऐसी तस्वीर है जिसे मैं खरोच कर भी नहीं निकाल सकती. मैं उससे नफरत करती हूं.”

मां ने भी ठुकराया

उसकी बड़ी बेटी हर रोज उसे खाना देने आती थी. नेहा ने उससे भागने में मदद करने को कहा. हालांकि वह औरत अपने पिता से डरी हुई थी लेकिन उसने शादी के एक हफ्ते बाद उसे एक बुर्का और पांच सौ पाकिस्तानी रुपये दिए. नेहा जब अपने घर आई तो उसके परिवार वालों ने उससे मुंह मोड़ लिया. नेहा ने बताया, “मैं जब घर आई और रोकर मां को आंटी के बारे में बताया, उसने क्या कहा था क्या धमकियां दी थीं, लेकिन वह अब मुझे नहीं चाहतीं.” नेहा का कहना है कि उसके घर वाले उसके पति से डरते हैं. इसके अलावा पाकिस्तान के रुढ़िवादी समाज में ऐसी लड़की जिसका बलात्कार हुआ और शादी हुई उसकी दोबारा शादी बहुत मुश्किल है. मानवाधिकार कार्यकर्ता कहते हैं कि उन्हें अकसर बोझ के रूप में देखा जाता है।

नेहा की मां और उसकी आंटी ने बात करने से मना कर दिया. उसके पति के वकील का कहना है कि उसने अपनी इच्छा से शादी की और धर्म बदला. नेहा को कराची के एक चर्च में संरक्षण मिला. वह चर्च परिसर में ही पादरी के परिवार के साथ रहती है. उनका कहना है कि वो अकसर रातों को उठकर चीखने लगती है. नेहा एक दिन स्कूल जाना चाहती है लेकिन फिलहाल तो बिल्कुल टूट चुकी है. नेहा बताती है, “शुरू शुरू में तो मेरे लिए हर रात भयानक थी लेकिन अब यह कभी कभी होता है जब मुझे वह याद आता है और मैं अंदर से कांपने लगती हूं. पहले मैं वकील बनना चाहती थी लेकिन अब मैं नहीं जानती कि मैं क्या करूंगी. मेरी मां भी मुझे नहीं चाहती.”

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चयन में चीन का हस्तक्षेप रोकने को तिब्बत नीति पर किए हस्ताक्षर,अमेरिका स्थापित करेगा अपना दूतावास attacknews.in

वाशिंगटन, 28 दिसंबर । अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक ऐसे विधेयक पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें तिब्बत में अमेरिकी वाणिज्य दूतावास स्थापित करने और यह सुनिश्चित करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय गठबंधन बनाने की बात की गई है कि अगले दलाई लामा का चयन केवल तिब्बती बौद्ध समुदाय के लोग करें एवं इसमें चीन का कोई हस्तक्षेप नहीं हो।

‘तिब्बती नीति एवं समर्थन कानून 2020’ में तिब्बत संबंधी विभिन्न कार्यक्रमों एवं प्रावधानों में संशोधन किया गया है।

ट्रंप ने रविवार को कोरोना वायरस से निपटने के लिए राहत देने और संघीय सरकार को धन मुहैया कराने के लिए 2300 अरब डॉलर के पैकेज के तहत रविवार को इस विधेयक को मंजूरी दी।

चीन के विरोध के बावजूद अमेरिकी सीनेट ने पिछले सप्ताह इसे सर्वसम्मति से पारित किया था, जिसमें तिब्बतियों को उनके आध्यात्मिक नेता का उत्तराधिकारी चुनने के अधिकार को रेखांकित किया गया है और तिब्बत के मुद्दों पर एक विशेष राजनयिक की भूमिका का विस्तार किया गया है।

विधेयक के तहत तिब्बत संबंधी मामलों पर अमेरिका के विशेष राजनयिक को यह अधिकार दिया गया है कि वह यह सुनिश्चित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन कर सकता है कि अगले दलाई लामा का चयन सिर्फ तिब्बती बौद्ध समुदाय करे।

इसमें तिब्बत में तिब्बती समुदाय के समर्थन में गैर-सरकारी संगठनों को सहायता का प्रस्ताव है। इसमें अमेरिका में नये चीनी वाणिज्य दूतावासों पर तब तक पाबंदी की बात है जब तक तिब्बत के ल्हासा में अमेरिकी वाणिज्य दूतावास की स्थापना नहीं की जाती

अयोध्या मस्जिद की नींव गणतंत्र दिवस के दिन रखी जाएगी,शनिवार को सामने आएगा मस्जिद का स्वरूप और नक्शा attacknews.in

अयोध्या, 18 दिसम्बर । श्रीराम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद के बाद उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर अयोध्या के रौनाही में मिली पांच एकड़ जमीन पर मुस्लिम पक्षकार जल्द ही मस्जिद निर्माण का कार्य शुरू कर सकते है।

इंडो इस्लामिक कल्चर फाउंडेशन के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार अयोध्या के रौनाही में मिली पांच एकड़ जमीन पर सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड द्वारा बनाया गया ट्रस्ट इंडो इस्लामिक कल्चर फाउंडेशन इस मामले में 26 जनवरी से मस्जिद निर्माण का कार्य शुरू कर सकता है यानी 26 जनवरी को मस्जिद की नींव रखी जा सकती है।

बाबरी मस्जिद के स्थान पर बनने वाली मस्जिद का खाका इस शनिवार को सामने रखा जाएगा और इसके लिए यहां आवंटित पांच एकड़ जमीन पर इसकी आधारशिला गणतंत्र दिवस पर रखी जाएगी। मस्जिद निर्माण के लिए बनाये गए ट्रस्ट के एक सदस्य ने इस बारे में बताया।

इंडो-इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन (आईआईसीएफ) के सचिव अतहर हुसैन ने बताया, ‘‘ट्रस्ट ने 26 जनवरी 2021 को अयोध्या मस्जिद की आधारशिला रखने का फैसला किया है क्योंकि सात दशक पहले इसी दिन हमारा संविधान अस्तित्व में आया था। हमारा संविधान बहुलवाद पर आधारित है जो कि हमारी मस्जिद परियोजना का मूलमंत्र है।’’

सुन्नी वक्फ बोर्ड ने मस्जिद के निर्माण के लिए छह महीने पहले आईआईसीएफ का गठन किया था।

परियोजना के मुख्य वास्तुकार प्रोफेसर एस एम अख्तर ने इसे अंतिम रूप दे दिया है जिसके बाद आईआईसीएफ ने 19 दिसंबर को मस्जिद परिसर का खाका सार्वजनिक करने का फैसला किया है। इस परिसर में एक मल्टी स्पेशलिटी अस्पताल, एक सामुदायिक रसोई और एक पुस्तकालय होगा।

अख्तर ने बताया, ‘‘मस्जिद में एक समय में 2,000 लोग नमाज अदा कर सकेंगे और इसका ढांचा गोलाकार होगा।’’

उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल नौ नवंबर को अयोध्या में विवादित रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल पर राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया था और केंद्र को मस्जिद निर्माण के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ जमीन मुहैया कराने का निर्देश दिया था।

राज्य सरकार ने अयोध्या की सोहावाल तहसील के धन्नीपुर गांव में पांच एकड़ जमीन आवंटित की थी।

अख्तर ने कहा, ‘‘नयी मस्जिद बाबरी मस्जिद से बड़ी होगी लेकिन उसी तरह का ढांचा नहीं होगा। परिसर के मध्य में अस्पताल होगा। पैगंबर ने 1400 साल पहले जो सीख दी थी उसी भावना के अनुरूप मानवता की सेवा की जाएगी।’’

उन्होंने कहा, ‘‘अस्पताल महज कंक्रीट का ढांचा नहीं होगा बल्कि मस्जिद की वास्तुकला के अनुरूप इसे तैयार किया जाएगा। इसमें 300 बेड की स्पेशलिटी इकाई होगी जहां डॉक्टर बीमार लोगों का मुफ्त इलाज करेंगे।’’ उन्होंने कहा कि मस्जिद का निर्माण इस तरह से होगा कि इसमें सौर ऊर्जा के निर्माण की भी व्यवस्था की जाएगी।

हुसैन ने कहा, ‘‘जब हम धन्नीपुर में अस्पताल परियोजना के बारे में बात करते हैं तो एक चीज निश्चित है कि यह मल्टी स्पेशलिटी अस्पताल होगा।’’ सामुदायिक रसोई में आसपास के गरीबों के लिए दिन में दो बार भोजन परोसा जाएगा।’’

आईआईसीएफ के सचिव ने कहा, ‘‘अस्पताल के लिए हम कॉरपोरेट घरानों से भी मदद की उम्मीद कर रहे हैं। दान के संबंध में मंजूरी मिलने पर कई लोग सहायता करना चाहेंगे। हम विदेशी अंशदान विनियमन कानून (एफसीआरए) के तहत आवेदन करेंगे और विदेशों में भारतीय मूल के मुस्लिमों से धनराशि की मदद देने का अनुरोध करेंगे।’’

‘कार सेवकों’ ने 1992 में दिसंबर में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया था। उनका दावा था कि अयोध्या में मस्जिद को प्राचीन राम मंदिर के स्थान पर बनाया गया था।

शमी के पेड़ का है बड़ा ज्योतिष और औषधीय महत्व:इसकी पूजा करने से होती है मनोकामनाओं की सिद्धि और होता हैं शनिदेव से होने वाली अनिष्टकारी परेशानियों का शमन attacknews.in

जालौन 12 दिसंबर । हमारी संस्कृति में परंपरा में पेड पौधों का विशेष महत्व है । हिंदू धर्म में तो प्रकृति पूजा का विशेष स्थान है और इसी कारण कुछ पेड पौधों का औषधीय महत्व होने के साथ साथ धार्मिक महत्व बहुत अधिक है ऐसा ही एक पेड़ है “ शमी ” का।

हिंदू धर्म ग्रंथों में मनुष्य का शरीर प्रक़ृति के पांच आधारों जल, वायु, अग्नि ,आकाश और धरती से बना माना गया है और स्वस्थ रहने के लिए इन पंच तत्वों का संतुलन में रहना ही अनिवार्य माना गया है। धरती पर पाये जाने वाले पेड पौधे मानव जीवन के लिए बहुत लाभप्रद हैं । शमी भी ऐसे पेडों में शामिल है जिसका ज्योतिषशास्त्र में बड़ा महत्व है क्योंकि यह ग्रहों को प्रभावित करने वाला पेड़ माना गया है।

इस संबंध में ज्योतिष आचार्य राम नरेश व्यास ने खास बातचीत में कहा कि हिंदू धर्म ग्रंथों में प्रकृति को देवता कहा गया है। पंचभूतों में से एक धरती पर उगने वाले पेड पौधों में से कुछ औषधीय महत्व के तो होते ही है साथ ही हमारे ग्रह-नक्षत्रों के बुरे प्रभाव को कम करने के काम भी आते हैं।

पण्डित बताते हैं कि हमारे धर्म शास्त्रों में नवग्रहों से संबंधित पेड़-पौधों का जिक्र मिलता है, इन्हीं में से एक है शमी का पौधा या वृक्ष। शमी का संबंध शनि देव से है। नवग्रहों में “शनि महाराज” को दंडाधिकारी का स्थान प्राप्त है, इसलिए जब शनि की दशा या साढ़ेसाती आती है,तब जातक के अच्छे-बुरे कर्मों का पूरा हिसाब होता है इसलिये शनि के कोप से लोग भयभीत रहते हैं।

पीपल और शमी दो ऐसे वृक्ष हैं, जिन पर शनि का प्रभाव होता है। पीपल का वृक्ष बहुत बड़ा होता है, इसलिए इसे घर में लगाना संभव नहीं होता। शनिवार की शाम को शमी वृक्ष की पूजा की जाए और इसके नीचे सरसों तेल का दीपक जलाया जाए, तो शनि दोष से कुप्रभाव से बचाव होता है।

शमी एक चमत्कारिक पौधा भी माना जाता है, क्योंकि जो व्यक्ति इसे घर में रखकर इसकी पूजा करता है उसे कभी धन की कमी नहीं होती। शनि के दोषों को कम करना चाहते हैं तो हर शनिवार शनि को शमी के पत्ते चढ़ाना चाहिए। इस उपाय शनि बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं और कार्यों की बाधाएं दूर हो सकती हैं।

“शमी” का पौधा, तेजस्विता एवं दृढता का प्रतीक है। इसमें प्राकृतिक तौर पर अग्नितत्व की प्रचुरता होती है इसलिए इसे यज्ञ में अग्नि को प्रज्जवलित करने के लिए उपयोग में लाया जाता है।

जन्मकुंडली में यदि शनि से संबंधित कोई भी दोष है तो शमी के पौधे को घर में लगाना और प्रतिदिन उसकी सेवा-पूजा करने से शनि की पीड़ा समाप्त होती है।

सोमवार को शमी के पौधे में एक लाल मौली बांधे, इसे रातभर बंधे रहने दें। अगले दिन सुबह वह मौली खोलकर एक चांदी की डिबिया या ताबीज में भरकर तिजोरी में रखें, कभी धन की तंगी नहीं होगी।

शनिवार को पेड़ के सबसे निचले भाग में उड़द की काली दाल और काले तिल चढ़ाएं।

ज्योतिषाचार्य के अनुसार शमी के वृक्ष पर कई देवताओं का वास होता है। सभी यज्ञों में शमी वृक्ष की समिधाओं का प्रयोग शुभ माना गया है।

शमी के कांटों का प्रयोग तंत्र-मंत्र बाधा और नकारात्मक शक्तियों के नाश के लिए होता है । शमी के पंचांग (फूल, पत्ते, जड़ें, टहनियां और रस) का इस्तेमाल कर शनि संबंधी दोषों से जल्द मुक्ति पाई जा सकती है। इसे वह्निवृक्ष भी कहा जाता है।

आयुर्वेद की दृष्टि में तो शमी अत्यंत गुणकारी औषधी मानी गई है। कई रोगों में इस वृक्ष के अंग काम आते हैं। परिवार को रोग व्याधियों से बचाने में शमी का महत्व बहुत अधिक है।

शनिवार को शाम के समय शमी के पौधे के गमले में पत्थर या किसी भी धातु का एक छोटा सा शिवलिंग का दूध चढाने और विधि-विधान से पूजन करने के बाद महामृत्युंजय मंत्र की एक माला का जाप करने से स्वयं या परिवार में यदि किसी को भी कोई रोग होगा तो वह जल्दी ही दूर हो जाता है।

यदि आप बार-बार दुर्घटनाग्रस्त हो रहे हों तो शमी के पौधे के नियमित दर्शन से दुर्घटनाएं रुकती हैं।

घर-परिवार, नौकरी या कारोबार की परेशानियां दूर करने के लिए गणपति की पूजा शुभ मानी जाती है। गणेशजी को भी दूर्वा के समान शमी पत्र भी प्रिय है गणेशजी को हर बुधवार शमी के पत्ते भी चढ़ा सकते हैं मान्यता है कि शमी में शिव का वास होता है, इसी वजह से ये पत्ते गणेशजी को चढ़ाते हैं। शमी पत्र चढ़ाने से बुद्धि तेज होती है, घर की अशांति दूर होती है।

शमी के पेड़ का है बड़ा ज्योतिष और औषधीय महत्व:इसकी पूजा करने से होती है मनोकामनाओं की सिद्धि और होता हैं शनिदेव से होने वाली अनिष्टकारी परेशानियों का शमन attacknews.in

जालौन 12 दिसंबर । हमारी संस्कृति में परंपरा में पेड पौधों का विशेष महत्व है । हिंदू धर्म में तो प्रकृति पूजा का विशेष स्थान है और इसी कारण कुछ पेड पौधों का औषधीय महत्व होने के साथ साथ धार्मिक महत्व बहुत अधिक है ऐसा ही एक पेड़ है “ शमी ” का।

हिंदू धर्म ग्रंथों में मनुष्य का शरीर प्रक़ृति के पांच आधारों जल, वायु, अग्नि ,आकाश और धरती से बना माना गया है और स्वस्थ रहने के लिए इन पंच तत्वों का संतुलन में रहना ही अनिवार्य माना गया है। धरती पर पाये जाने वाले पेड पौधे मानव जीवन के लिए बहुत लाभप्रद हैं । शमी भी ऐसे पेडों में शामिल है जिसका ज्योतिषशास्त्र में बड़ा महत्व है क्योंकि यह ग्रहों को प्रभावित करने वाला पेड़ माना गया है।

इस संबंध में ज्योतिष आचार्य राम नरेश व्यास ने खास बातचीत में कहा कि हिंदू धर्म ग्रंथों में प्रकृति को देवता कहा गया है। पंचभूतों में से एक धरती पर उगने वाले पेड पौधों में से कुछ औषधीय महत्व के तो होते ही है साथ ही हमारे ग्रह-नक्षत्रों के बुरे प्रभाव को कम करने के काम भी आते हैं। पण्डित बताते हैं कि हमारे धर्म शास्त्रों में नवग्रहों से संबंधित पेड़-पौधों का जिक्र मिलता है, इन्हीं में से एक है शमी का पौधा या वृक्ष।

शमी का संबंध शनि देव से है। नवग्रहों में “शनि महाराज” को दंडाधिकारी का स्थान प्राप्त है, इसलिए जब शनि की दशा या साढ़ेसाती आती है,तब जातक के अच्छे-बुरे कर्मों का पूरा हिसाब होता है इसलिये शनि के कोप से लोग भयभीत रहते हैं। पीपल और शमी दो ऐसे वृक्ष हैं, जिन पर शनि का प्रभाव होता है। पीपल का वृक्ष बहुत बड़ा होता है, इसलिए इसे घर में लगाना संभव नहीं होता। शनिवार की शाम को शमी वृक्ष की पूजा की जाए और इसके नीचे सरसों तेल का दीपक जलाया जाए, तो शनि दोष से कुप्रभाव से बचाव होता है। शमी एक चमत्कारिक पौधा भी माना जाता है, क्योंकि जो व्यक्ति इसे घर में रखकर इसकी पूजा करता है उसे कभी धन की कमी नहीं होती। शनि के दोषों को कम करना चाहते हैं तो हर शनिवार शनि को शमी के पत्ते चढ़ाना चाहिए। इस उपाय शनि बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं और कार्यों की बाधाएं दूर हो सकती हैं।

“शमी” का पौधा, तेजस्विता एवं दृढता का प्रतीक है। इसमें प्राकृतिक तौर पर अग्नितत्व की प्रचुरता होती है इसलिए इसे यज्ञ में अग्नि को प्रज्जवलित करने के लिए उपयोग में लाया जाता है। जन्मकुंडली में यदि शनि से संबंधित कोई भी दोष है तो शमी के पौधे को घर में लगाना और प्रतिदिन उसकी सेवा-पूजा करने से शनि की पीड़ा समाप्त होती है। सोमवार को शमी के पौधे में एक लाल मौली बांधे, इसे रातभर बंधे रहने दें। अगले दिन सुबह वह मौली खोलकर एक चांदी की डिबिया या ताबीज में भरकर तिजोरी में रखें, कभी धन की तंगी नहीं होगी। शनिवार को पेड़ के सबसे निचले भाग में उड़द की काली दाल और काले तिल चढ़ाएं।

ज्योतिषाचार्य के अनुसार शमी के वृक्ष पर कई देवताओं का वास होता है। सभी यज्ञों में शमी वृक्ष की समिधाओं का प्रयोग शुभ माना गया है। शमी के कांटों का प्रयोग तंत्र-मंत्र बाधा और नकारात्मक शक्तियों के नाश के लिए होता है । शमी के पंचांग (फूल, पत्ते, जड़ें, टहनियां और रस) का इस्तेमाल कर शनि संबंधी दोषों से जल्द मुक्ति पाई जा सकती है। इसे वह्निवृक्ष भी कहा जाता है। आयुर्वेद की दृष्टि में तो शमी अत्यंत गुणकारी औषधी मानी गई है। कई रोगों में इस वृक्ष के अंग काम आते हैं। परिवार को रोग व्याधियों से बचाने में शमी का महत्व बहुत अधिक है। शनिवार को शाम के समय शमी के पौधे के गमले में पत्थर या किसी भी धातु का एक छोटा सा शिवलिंग का दूध चढाने और विधि-विधान से पूजन करने के बाद महामृत्युंजय मंत्र की एक माला का जाप करने से स्वयं या परिवार में यदि किसी को भी कोई रोग होगा तो वह जल्दी ही दूर हो जाता है। यदि आप बार-बार दुर्घटनाग्रस्त हो रहे हों तो शमी के पौधे के नियमित दर्शन से दुर्घटनाएं रुकती हैं।

घर-परिवार, नौकरी या कारोबार की परेशानियां दूर करने के लिए गणपति की पूजा शुभ मानी जाती है। गणेशजी को भी दूर्वा के समान शमी पत्र भी प्रिय है गणेशजी को हर बुधवार शमी के पत्ते भी चढ़ा सकते हैं मान्यता है कि शमी में शिव का वास होता है, इसी वजह से ये पत्ते गणेशजी को चढ़ाते हैं। शमी पत्र चढ़ाने से बुद्धि तेज होती है, घर की अशांति दूर होती है।

उत्तराखंड में उच्च गढ़वाल हिमालयी क्षेत्र में स्थित केदारनाथ, यमुनोत्री के कपाट शीतकाल के लिए बंद attacknews.in

देहरादून, 16 नवंबर ।भैया दूज के पावन पर्व पर उत्तराखंड में उच्च गढ़वाल हिमालयी क्षेत्र में स्थित केदारनाथ और यमुनोत्री धामों के कपाट भारी बर्फबारी के बीच सोमवार को शीतकाल के लिए बंद हो गए।

रुद्रप्रयाग जिले में स्थित भगवान भोले शंकर को समर्पित केदारनाथ मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं के साथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उत्तराखंड के उनके समकक्ष त्रिवेंद्र सिंह रावत भी उपस्थित रहे ।

उत्तरकाशी जिले में गंगोत्री मंदिर के कपाट रविवार को अन्नकूट—गोवर्धन पूजा के पर्व पर बंद किए गए थे। उत्तराखंड के चारधामों में से तीन धामों—गंगोत्री, केदारनाथ और यमुनोत्री— के कपाट अब बंद हो चुके हैं। चमोली में बद्रीनाथ धाम के कपाट 19 नवंबर को अपराह्न तीन बजकर 35 मिनट पर बंद किए जाएंगे और इसके साथ ही इस वर्ष की चारधाम यात्रा का समापन हो जाएगा ।

मंदिर में आठ बजकर 30 मिनट पर कपाट बंद होने से पहले सोमवार तड़के ही परंपरागत पूजा शुरू हुईं और भगवान शिव की समाधि पूजा की गयी । इस पूजा में केदारनाथ मंदिर के पुजारी एवं परंपरागत तीर्थ पुरोहित, स्थानीय प्रशासन और चारधाम देवस्थान बोर्ड के अधिकारियों के अलावा योगी और रावत भी शामिल हुए।

कपाट बंद होने के बाद केदारनाथ भगवान की पंचमुखी उत्सव मूर्ति शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकेश्वर मंदिर उखीमठ के लिए रवाना कर दी गयी। शीतकाल के दौरान श्रद्धालु उखीमठ में ही भगवान केदार के दर्शन कर सकेंगे ।

इस वर्ष कोविड-19 के कारण देर से जुलाई में शुरू हुई यात्रा में 1.35 हजार से ज्यादा श्रद्धालुओं ने बाबा केदार के दर्शन किए ।

सोमवार अपराह्न सवा 12 बजे उत्तरकाशी जिले में स्थित यमुनोत्री धाम के कपाट शीतकाल के लिए बंद हो गये। बारिश और बर्फबारी के बीच कपाट बंद होने के दौरान धार्मिक अधिकारियों, तीर्थ—पुरोहितों और चारधाम देवस्थानम् प्रबंधन बोर्ड के अधिकारियों के साथ बड़ी संख्या में श्रद्धालु भी मौजूद थे। इस अवसर पर मंदिर को फूलों से सजाया गया था ।

कपाट बंद होने के पश्चात मां यमुना की उत्सव डोली उनके मायके खरसाली के लिए रवाना हो गयी, जहां शीतकाल के दौरान उनका प्रवास रहेगा ।

देवस्थानम् बोर्ड के मीडिया प्रभारी डॉ हरीश गौड़ ने बताया कि इस वर्ष यमुनोत्री धाम में आठ हजार श्रद्धालुओं ने दर्शन किए ।