दिल्ली की कोर्ट ने वर्ष 2008 के बाटला हाउस मुठभेड़ मामले में पुलिस अधिकारी मोहन चंद शर्मा की हत्या करने करने वाले इंडियन मुजाहिद्दीन का आतंकवादी आरिज खान को दोषी करार दिया attacknews.in

नयी दिल्ली, 08 मार्च । दिल्ली की एक अदालत ने 2008 बाटला हाउस मुठभेड़ मामले में अभियुक्त आरिज खान को पुलिस निरीक्षक मोहन चंद शर्मा की हत्या के मामले में दोषी करार दिया है।

अदालत ने सोमवार को अपने फैसले में आरिज खान को दिल्ली पुलिस निरीक्षक की हत्या करने तथा अन्य मामलों में दोषी करार दिया।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश संदीप यादव ने फैसला सुनाते हुए कहा,“ यह प्रमाणित हो चुका है कि आरिज खान ने अपने अन्य साथियों के साथ मिलकर पुलिस अधिकारी मोहन चंद शर्मा की हत्या की है। ”

पैंतीस वर्षीय आरिज खान कथित रूप से इंडियन मुजाहिद्दीन से जुड़ा हुआ है। दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा ने 10 वर्षों से फरार चल रहे आरिज खान को फरवरी 2018 में गिरफ्तार कर लिया था।

आरिज खान पर भारतीय दंड संहिता की धारा 302, 307, 333 और 353 के विभिन्न मामले दर्ज किए गए हैं।

गौरतलब है कि 19 सितंबर 2008 को दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा और इंडियन मुजाहिद्दीन के कथित आतंकवादियों के बीच एक मुठभेड़ हुई थी जिसमें दो आतंकवादी मारे गए थे। इंडियन मुजाहिद्दीन के आतंकवादी राजधानी दिल्ली में सिलसिलेवार बम धमाके के आरोपी हैं।

बाटला हाउस एनकाउंटर मामले में दिल्ली की पटियाला हाउस अदालत ने आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन के आरिज खान को दोषी करार दिया है। अदालत ने उसे भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 186, 353, 333, 302, 207, 174A और 34 के तहत दोषी पाया है। सजा का ऐलान 15 मार्च को किया जाएगा। एनकाउंटर के वक्त आरिज भागने में कामयाब रहा था। 2008 में हुए बाटला हाउस एनकाउंटर केस के बाद से ही आरिज फरार था और 2018 में नेपाल से गिरफ्तार किया गया।

आतंकी आरिज खान को बाटला हाउस एनकाउंटर में जान गंवाने वाले इंस्पेक्टर मोहन शर्मा की हत्या के लिए दोषी बनाया गया है। वहीं पुलिसकर्मी बलवंत सिंह-राजवीर को जान से मारने की कोशिश भी आरिज ने की थी। अदालन आरिज को दोषी करार देते हुए जांच अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वो आरिज के परिवार की आर्थिक स्थिति के बारे में जानकारी लेकर अदालत को बताएं। इसी के बाद कोर्ट यह तय करेगी कि उसके परिवार से कितनी राशि वसूल की जा सकती है।

बता दें कि 13 सिंतबर साल 2008 में दिल्ली के करोल बाग, कनॉट प्लेस, इंडिया गेट और ग्रेटर कैलाश में बम धमाके हुए थे, जिसमें 26 लोगों की मौत हुई थी। जबकि 133 गंभीर रुप से घायल भी हुए थे। दिल्ली पुलिस और अन्य जांच एजेंसियों ने जांच में पाया था कि इस बम ब्लास्ट को आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन ने अंजाम दिया। आरिज ने साथी साजिद के साथ दिल्ली की लाजपत राय मार्केट से अलार्म घड़ी, सर्किट वायर, प्रेशर कुकर और दूसरे सामान लाया। जिसके बाद उसने आतिफ आमीन के साथ जीके एम ब्लॉक मार्केट में बम रखा।

बटला हाउस एनकाउंटर जिसे आधिकारिक तौर पर ऑपरेशन बाटला हाउस के रूप में जाना जाता है। सितंबर 19, 2008 को दिल्ली के जामिया नगर इलाके में इंडियन मुजाहिदीन के संदिग्ध आतंकवादियों के खिलाफ की गयी मुठभेड़ थी, जिसमें दो संदिग्ध आतंकवादी आतिफ अमीन और मोहम्मद साजिद मारे गए, दो अन्य संदिग्ध सैफ मोहम्मद और आरिज़ खान भागने में कामयाब हो गए, जबकि एक और आरोपी ज़ीशान को गिरफ्तार कर लिया गया।

इस मुठभेड़ का नेतृत्व कर रहे एनकाउंटर विशेषज्ञ और दिल्ली पुलिस निरीक्षक मोहन चंद शर्मा इस घटना में शहीद हो गए।

मुठभेड़ के दौरान स्थानीय लोगों की गिरफ्तारी हुई, जिसके खिलाफ अनेक राजनीतिक दलों(राजनीति करने के मकसद से), कार्यकर्ताओं और विशेष रूप से जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के शिक्षकों और छात्रों ने व्यापक रूप से विरोध प्रदर्शन किया। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) जैसे कई राजनीतिक संगठनों ने संसद में मुठभेड़ की न्यायिक जांच करने की मांग उठाई, और बाद में जैसे-जैसे समाचार पत्रों में मुठभेड़ के “नए संस्करण” प्रदर्शित होने लगे।

जौनपुर में 11 साल की बच्ची का अपहरण कर बलात्कार के बाद हत्या के बलात्कारी को फांसी की सजा;दरिंदगी के सदमे से एक माह में बच्ची के पिता की हो गई थी मौत attacknews.in

जौनपुर, 08 मार्च । उत्तर प्रदेश में जौनपुर जिले के अपर सत्र न्यायाधीश पास्को एक्ट ( प्रथम ) रवि यादव ने दुष्कर्म व हत्या के जुर्म में आज मृत्युदंड तथा दस हजार रुपए जुर्माना की सजा सुनायी ।

अभियोजन पक्ष के अनुसार जिले में मड़ियाहूं कोतवाली क्षेत्र में छह अगस्त 2020 को आरोपित बालगोविंद अपने ससुराल मड़ियाहूं कोतवाली क्षेत्र के कुम्भ गाँव में रह रहा था। वह 11 साल की बच्ची को बिस्कुट व टॉफी देने के बहाने अगवाकर अपने साथ ले गया और उसके साथ दुष्कर्म किया। इस दौरान बच्ची का मुंह व गला दबाकर उसकी हत्या कर दी । सबूत मिटाने के लिये उसके चेहरे पर एसिड डालकर जला दिया।

बच्ची का शव आठ अगस्त को मक्के के खेत से बरामद हुआ। घटना की एफआईआर बच्ची के पिता ने मड़ियाहूं कोतवाली में दर्ज कराई । बेटी से दरिंदगी का सदमा पिता नहीं सह सके। एक माह बाद उनकी भी मृत्यु हो गई। पुलिस ने विवेचना करके आरोप पत्र कोर्ट में दाखिल किया।

अहिल्याबाई होल्कर के महेश्वर किले के मालिकाना हक को लेकर रिचर्ड होल्कर द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका पर इंदौर हाईकोर्ट ने राज्य शासन से दो सप्ताह में मांगा जवाब attacknews.in

इंदौर, 08 मार्च । मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ ने खरगोन जिले स्थित अहिल्याबाई होल्कर के महेश्वर किले के मालिकाना हक को लेकर दायर एक पुनर्विचार याचिका पर राज्य शासन के एक दर्जन संबंधित जिम्मेदारों से आगामी दो सप्ताह में जवाब तलब किया है।

न्यायाधीश सुजॉय पॉल और न्यायाधीश शैलेन्द्र शुक्ला की युगलपीठ ने याचिकाकर्ता रिचर्ड होलकर के द्वारा शीघ्र सुनवाई के आग्रह पर आज सुनवाई की। इससे पहले गत 20 जनवरी को न्यायालय ने राज्य शासन को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब तलब किया था। निर्धारित समय सीमा में जवाब न देने पर आज अदालत दोबारा राज्य शासन से दो सप्ताह में जवाब देने के आदेश जारी किया है।

याचिका में कहा गया है कि तत्कालीन स्वर्गीय महाराजा यशवंत राव होल्कर द्वितीय की स्वर्गीय पत्नी और महारानी अनुराधा दुबे के मुख्यतारनामे (पॉवर ऑफ़ अटर्नी) के जरिये याची रिचर्ड होल्कर का महेश्वर के किले पर मालिकाना हक है।

लिहाजा किले के मालिकाना हक राज्य सरकार और खासगी ट्रस्ट से लेकर उन्हें सौंपा जाये।

इससे पहले अक्टूबर 2020 को उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ ने ही एक जनहित याचिका समेत संबंधित विषय पर दायर अन्य दो याचिकाओं को निराकृत करते हुए एक आदेश जारी किया था।

इस आदेश में अदालत ने तत्कालीन होलकर राजवंश की 250 से ज्यादा ऐसी संपत्तियों को जिसकी देखरेख करने का दायित्व खासगी ट्रस्ट के पास हैं, इन सभी संपत्तियों को मध्यप्रदेश शासन को अपने अधिकार में लेने का आदेश दिया था।

इसके फलस्वरूप राज्य शासन ने महेश्वर का किला सहित 150 से ज्यादा संपत्तियों को अपने अधिकार में ले लिया था।

इसी बीच खासगी ट्रस्ट ने उच्च न्यायालय के इस आदेश को उच्चतम न्यायालय के समक्ष चुनौती दी थी।

इस पर उच्चतम न्यायालय ने खासगी ट्रस्ट को अंतरिम राहत देते हुए यथास्थिति बनाये रखने के आदेश मध्यप्रदेश सरकार को दिए हैं।

रिचर्ड होलकर द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका में प्रमुख सचिव सामान्य प्रशासन विभाग, संभागीय आयुक्त इंदौर, कलेक्टर इंदौर और खरगोन समेत एक दर्जन जिम्मेदारों और संबंधितों को पक्षकार बनाया गया हैं।

याचिका की आगामी सुनवाई 01 अप्रैल 2021 को संभावित हैं।

बलात्कारी को जमानत देने की शर्त बलात्कार पीड़िता के साथ विवाह करने का कहने से विवाद में आईं सुप्रीम कोर्ट ने अब कहा कि,”हम महिलाओं का सर्वाधिक सम्मान करते हैं” attacknews.in

नयी दिल्ली, आठ मार्च । प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अगुवाई में उच्चतम न्यायालय की एक पीठ ने 14 वर्षीय गर्भवती बलात्कार पीड़िता को गर्भपात की मंजूरी देने संबंधी याचिका की सुनवाई करते हुए सोमवार को टिप्पणी की कि न्यायालय महिलाओं का सर्वाधिक सम्मान करता है।

पीठ ने कहा कि न्यायपालिका की गरिमा उसके वकीलों एवं ‘बार’ के हाथों में है।

पीठ ने 14 वर्षीय गर्भवती बलात्कार पीड़िता की उस याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की, जिसमें याचिकाकर्ता ने करीब 26 सप्ताह के गर्भ समापन की अनुमति मांगी है।

प्रधान न्यायाधीश के साथ न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यन इस मामले की सुनवाई कर रहे हैं।

‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’ पर पीठ का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब न्यायालय की उस हालिया टिप्पणी को लेकर उसकी आलोचना हुई, जिसमें उसने एक अन्य मामले में बलात्कार के आरोपी से पूछा था कि क्या वह पीड़िता से विवाह करना चाहता है। इस घटना की पीड़िता से जब बलात्कार हुआ था, उस समय वह नाबालिग थी।

माकपा पोलितब्यूरो की सदस्य वृंदा करात ने प्रधान न्यायाधीश को इस संबंध में पत्र लिखकर उनसे अपनी यह टिप्पणी वापस लेने को कहा था। न्यायालय ने आरोपी की अग्रिम जमानत याचिका पर एक मार्च को सुनवाई करते हुए कथित रूप से यह टिप्पणी की थी। कई महिला अधिकार कार्यकर्ताओं, नागरिकों, बुद्धिजीवियों, लेखकों और कलाकारों ने भी प्रधान न्यायाधीश को पत्र लिखकर मांग की थी कि वह माफी मांगे और इन टिप्पणियों को वापस लें।

पहले यह कहा था कि आरोपी से पीड़िता के साथ विवाह करने के बारे में पूछने संबंधी शीर्ष अदालत की टिप्पणी ‘न्यायिक रिकॉर्ड’ पर आधारित थी, जिनमें व्यक्ति ने अपने हलफनामे में कहा था कि वह अपनी रिश्तेदार और नाबालिग पीड़िता के 18 वर्ष का हो जाने के बाद उससे विवाह करेगा।

पीठ ने इस मामले का जिक्र करते हुए सोमवार को कहा, ‘‘हमें याद नहीं कि वैवाहिक बलात्कार का कोई मामला हमारे सामने आया हो… हम महिलाओं का सर्वाधिक सम्मान करते हैं।’’

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘हमारी प्रतिष्ठा हमेशा बार के हाथों में होती है।’’

मामले में दलीलें देने पेश हुए वकीलों ने भी इस बात का समर्थन किया।

सोमवार के लिए सूचीबद्ध मामले में याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील वी के बीजू ने कहा कि लोगों का एक वर्ग संस्थान की गरिमा को ठेस पहुंचा रहा है और इससे निपटने के लिए एक तंत्र की आवश्यकता है।

भारतीय विधिज्ञ परिषद (बीसीआई) ने न्यायालय का समर्थन करते हुए कहा कि कार्यकर्ता सर्वोच्च न्यायपालिका को “बदनाम” न करें और उसकी कार्यवाहियों का इस्तेमाल “राजनीतिक फायदे” के लिये न करें।

पीठ ने एक मार्च को आरोपी की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की थी। महाराष्ट्र राज्य विद्युत उत्पादन कंपनी लिमिटेड में कार्यरत आरोपी ने उसकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज करने के बंबई उच्च न्यायालय के पांच फरवरी के आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी।

इस मामले की सुनवाई कर रही पीठ में न्यायमूर्ति बोबडे, न्यायमूर्ति बोपन्ना और न्यायमूर्ति रामसुब्रमण्यन भी शामिल थे।

पीठ ने आरोपी से पूछा था, ‘‘क्या तुम उससे (पीड़िता) से विवाह करने के इच्छुक हो । अगर उसके साथ तुम्हारी विवाह करने की इच्छा है तो हम इस पर विचार कर सकते हैं, नहीं तो तुम्हें जेल जाना होगा ।’’

पीठ ने आरोपी से यह भी कहा, ‘‘हम तुम पर विवाह करने का दबाब नहीं बना रहे हैं ।’’

इससे पहले याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुये अधिवक्ता ने कहा कि आरोपी पीड़िता के साथ शुरूआत में विवाह करने का इच्छुक था लेकिन लड़की ने इनकार कर दिया था और अब उसकी शादी किसी और से हो गयी है ।

दो दशक पुराने प्रतिबंधित संगठन सिमी की आतंकी गतिविधियों को लेकर हुई बैठक मामले में गुजरात की अदालत ने सभी 127 आरोपियों को किया बरी attacknews.in

सूरत, 06 मार्च । गुजरात में सूरत शहर की एक अदालत ने प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ इंडिया यानी सिमी की बैठक में लगभग 20 साल पहले यहां कथित तौर पर शिरकत करने के एक मामले के सभी 127 आरोपियों को आज बरी कर दिया।

यह फ़ैसला चीफ़ जूडिशियल मैजिस्ट्रेट ए दवे की अदालत ने सुनाया। 18 दिसंबर 2001 को शहर के अठवा लाइन थाना क्षेत्र के संग्रामपुर में हुई उक्त बैठक के सिलसिले में गिरफ़्तार किए गए कुल 127 आरोपियों में पांच की ग़ैरक़ानूनी गतिविधि निरोधक क़ानून के तहत दर्ज इस मुक़दमे की सुनवाई के दौरान ही मौत हो चुकी थी। इसलिए तकनीकी तौर पर 122 आरोपी वास्तव में बरी हुए।

मध्यप्रदेश में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने देश की सभी उच्च न्यायालयों को फैसलों की प्रति स्थानीय भाषा में उपलब्ध करवाने को कहा attacknews.in

जबलपुर, 06 मार्च । राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आज कहा कि वह चाहते हैं कि देश की सभी उच्च न्यायालय, अपने अपने प्रदेश की अधिकृत भाषा में जनजीवन के महत्वपूर्ण पक्षों से जुड़े निर्णयों का प्रमाणित अनुवाद करें और उच्चतम न्यायालय की भांति एक साथ उपलब्ध और प्रकाशित कराएं।

श्री कोविंद ने यहां मानस भवन में ऑल इंडिया स्टेट ज्यूडिशियल एकेडमीज डायरेक्टर्स रिट्रीट कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इस मौके पर सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस शरद अरविंद बोबडे, राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद रफीक भी मौजूद रहे।

उन्होंने कहा कि उन्हें बहुत प्रसन्नता हुई, जब उनके विनम्र सुझाव पर उच्चतम न्यायालय ने इस दिशा में कार्य करते हुए अपने निर्णयों का अनुवाद, नौ भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराया। वे इस प्रयास से जुड़े सभी लोगों को बधाई देते हैं।

राष्ट्रपति ने कहा कि स्वाधीनता के बाद बनाए गए भारत के संविधान की उद्देशिका को हमारे संविधान की आत्‍मा समझा जाता है। इसमें चार आदर्शों-न्‍याय, स्‍वतंत्रता, अवसर की समानता और बंधुता-की प्राप्ति कराने का संकल्‍प व्‍यक्‍त किया गया है। इनमें भी ‘न्‍याय’ का उल्‍लेख सबसे पहले है।

सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस शरद अरविंद बोबडे ने कहा कि आज का कार्यक्रम एक नई प्रक्रिया का आरंभ है। संवाद, नए आयाम स्थापित करता है एवं आज हम इसी प्रकार के संवाद का प्रारंभ कर रहे है। न्याय एक अनोखी प्रक्रिया है।

उन्होंने कहा कि न्यायदान के लिए मानव स्वभाव, सामाजिक परिवेश, राजनीतिक व्यवस्था को समझना जरूरी है।

सीजेआई श्री बोबडे ने कहा कि समय के साथ विकसित होते कानून को समझना जरूरी है। ऐसे में किसी भी न्यायाधीश को न्याय व्यवस्था को तैयार करने की प्रक्रिया को समझना एक रोचक विषय है। इस विषय पर काफी शोध हुआ है।

उन्होंने कहा कि कालांतर में न्यायिक अकादमी स्थापित हुई जो उत्तम कार्य कर रही है पर न्यायिक प्रशिक्षण के तौर तरीकों को बदलना होगा। मेरे विचार में ऑल इंडिया ज्यूडियशयल एकेडमी डायरेक्टर रिट्रीट एक संवाद स्थापित करेगी ताकि अनुभव के आदान प्रदान से हम उत्कृष्टता पा सकें।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मध्यप्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने कहा कि विगत लगभग एक वर्ष से संपूर्ण विश्व सहित भारत कोविड 19 की महामारी से जूझता रहा। संकट की इस घड़ी में भी न्यायपालिका ने कार्य को बाधित नहीं होने दिया।

उन्होंने कहा कि हमारी न्यायपालिका ने जो महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है उसकी जितनी प्रशंसा की जाए वह कम है।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि मध्यप्रदेश सरकार जो निष्कर्ष निकलेंगे, उन्हें उच्च न्यायालय के साथ मिलकर जमीन पर उतारने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी।

उन्होंने कहा कि त्वरित न्याय कैसे मिले, सस्ता न्याय और सुलभ न्याय कैसे मिले। इस दिशा में बेहतर परिणाम प्राप्त करने के लिए दक्ष मानव संसाधन की जरूरत है। मुझे विश्वास है कि हम जो चिंतन करेंगे उसमें से निश्चित तौर पर बेहतर निष्कर्ष निकलेंगे।

श्री चौहान ने कहा कि जितनी भी व्यवस्थाएं मानव सभ्यता के उदय के बाद बनीं हैं, अंतत: उनका एक ही लक्ष्य है, एक ही केंद्र है आम आदमी को कैसे सुखी कर पाएं।

उन्होंने कहा कि रोटी, कपड़ा, मकान आदि भौतिक आवश्यकताएं यदि पूरी हो जाएं तो मनुष्य सुखी हो जाएगा।

कार्यक्रम में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनवी रमना ने पुस्तक मध्यप्रदेश का न्यायिक इतिहास और न्यायालय का विमोचन किया एवं इसकी प्रथम प्रति राष्ट्रपति श्री कोविंद को भेंट की गयी।

देश की न्यायिक व्यवस्था का आधारभूत अंग है लोअर ज्यूडिशरी-कोविंद

राष्ट्रपति  कोविन्द ने आज कहा कि लोअर ज्यूडिशरी देश की न्यायिक व्यवस्था का आधारभूत अंग है।

श्री कोविंड  कहा कि देश में 18,000 से ज्यादा न्यायालयों का कंप्यूटरीकरण हो चुका है। लाकडाउन की अवधि में, जनवरी, 2021 तक पूरे देश में लगभग 76 लाख मामलों की सुनवाई वर्चुअल कोर्ट्स में की गई। हमारी लोअर ज्यूडिशरी, देश की न्यायिक व्यवस्था का आधारभूत अंग है। उसमें प्रवेश से पहले, सैद्धांतिक ज्ञान रखने वाले कानून के विद्यार्थी को कुशल एवं उत्कृष्ट न्यायाधीश के रूप में प्रशिक्षित करने का महत्वपूर्ण कार्य हमारी न्यायिक अकादमियां कर रही हैं।

उन्होंने कहा कि अब जरूरत है कि देश की अदालतों, विशेष रूप से जिला अदालतों में लंबित मुकदमों को शीघ्रता से निपटाने के लिए न्यायाधीशों के साथ ही अन्य न्यायिक एवं अर्ध न्यायिक अधिकारियों के प्रशिक्षण का दायरा बढ़ाया जाए। उन्होंने राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड, विशिष्ट पहचान कोड और क्यूआर कोड जैसी पहल को वैश्विक स्तर पर सराहा जा रहा है। ई-कोर्ट, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, ई-कार्यवाही, ई-फाइलिंग और ई-सेवा केंद्रों की मदद से न्यायिक प्रशासन के लिए न्याय को आसान करना आसान है।

देश के हर व्यक्ति को सस्ता और त्वरित न्याय मिले– कोविंद

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि हमें देश के लोगों को शीघ्र, सुलभ व किफायती न्याय उपलब्ध कराने के प्रयास करना होगा। इसके लिये लोगों को उनकी अपनी बोली और भाषा में न्याय दिलाने की दिशा में कार्य करना होगा।

श्री कोविंद ने कहा कि निचली अदालतें देश की न्यायिक व्यवस्था का आधारभूत अंग है। इनमें प्रवेश से पहले, सैद्धांतिक ज्ञान रखने वाले विधि छात्रों को कुशल एवं उत्कृष्ट न्यायाधीश के रूप में प्रशिक्षित करने का महत्वपूर्ण कार्य हमारी न्यायिक अकादमियाँ कर रही हैं। अब जरूरत है कि देश की अदालतों, विशेष रूप से जिला अदालतों, में लंबित मुकदमों को शीघ्रता से निपटाने के लिए न्यायाधीशों के साथ ही अन्य न्यायिक अधिकारियों के प्रशिक्षण का दायरा बढ़ाया जाए।

“तांडव”मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा:केन्द्र के दिशा निर्देशों में डिजिटल प्लेटफॉर्म के खिलाफ कार्रवाई करने के कोई उचित प्रावधान नहीं attacknews.in

दिल्ली,पांच मार्च । उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि सोशल मीडिया के नियमन पर केन्द्र के दिशानिर्देशों में अनुचित विषयवस्तु दिखाने वाले डिजिटल प्लेटफॉर्म के खिलाफ उचित कार्रवाई के कोई प्रावधान नहीं हैं।

न्यायालय ने वेब सीरीज तांडव को ले कर दर्ज प्राथमिकियों पर अमेजन प्राइम वीडियो की भारत प्रमुख अपर्णा पुरोहित को गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा प्रदान की।

न्यायाधीश अशोक भूषण और न्यायमूर्ति आर एस रेड्डी की पीठ ने वेब सीरीज तांडव को ले कर दर्ज प्राथमिकियों पर अग्रिम जमानत का अनुरोध करने वाली पुरोहित की याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस भी जारी किया।

न्यायालय ने कहा कि सोशल मीडिया पर केन्द्र के नियमन महज दिशानिर्देश हैं, इनमें डिजिटल प्लेटफॉर्म के खिलाफ कार्रवाई को लेकर कोई प्रावधान नहीं हैं।

केन्द्र की ओर से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार उचित कदमों पर विचार करेगी, डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए किसी भी तरह के नियमों को अदालत के समक्ष पेश किया जाएगा।

शीर्ष अदालत ने पुरोहित को अपनी याचिका में केन्द्र को भी पक्षकार बनाने को कहा। तांडव, नौ कड़ियों वाली एक वेब श्रंखला है जिसमें बालीवुड अभिनेता सैफ अली खान, डिंपल कपाड़िया और मोहम्म्द जीशान अय्यूब ने अभिनय किया है।

पुरोहित पर उत्तर प्रदेश पुलिस का अनुचित चित्रण करना,और हिंदू देवी देवताओं के बारे में अपमानजनक बात दिखाने के आरोप हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी, निजी अस्पतालों को कोरोना महामारी काल में बुजुर्गों को भर्ती करने करने और उनके उपचार को प्राथमिकता देने को कहा attacknews.in

नयी दिल्ली, चार मार्च । उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान सरकारी चिकित्सा संस्थानों के साथ-साथ निजी अस्पतालों में भी बुजुर्ग लोगों को भर्ती करने और उपचार में प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति आर.एस.रेड्डी की पीठ ने अपने चार अगस्त 2020 के आदेश में परिवर्तन करते हुए यह कहा। उस आदेश में शीर्ष न्यायालय ने कोरोना वायरस के जोखिम को देखते हुए बुजुर्ग लोगों को भर्ती एवं उपचार में प्राथमिकता देने का निर्देश केवल सरकारी अस्पतालों को दिया था।

पीठ ने याचिकाकर्ता एवं वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी कुमार की इस दलील पर गौर किया कि ओडिशा और पंजाब के अलावा किसी भी अन्य राज्य ने शीर्ष अदालत के पहले जारी निर्देशों के अनुपालन के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी नहीं दी है।

न्यायालय ने बुजुर्ग लोगों को राहत प्रदान करने से संबंधित कुमार के नए सुझावों पर जवाब देने के लिए सभी राज्यों को तीन हफ्ते का समय दिया।

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने कहा कि शीर्ष न्यायालय के निर्देशों के अनुपालन के लिए राज्यों को नई मानक संचालन प्रक्रिया जारी करने की जरूरत है।

कुमार ने याचिका दायर कर न्यायालय से अनुरोध किया था कि महामारी काल में बुजुर्ग लोगों को अधिक देखभाल एवं सुरक्षा की जरूरत है अत: इस संबंध में निर्देश जारी किए जाने चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने ओवर दी टॉप (ओटीटी)” प्लेटफॉर्म पर अश्लील सामग्रियो को प्रसारित करने से रोकने के लिए सख्त नियमों की जरूरत बताई attacknews.in

नयी दिल्ली, चार मार्च। उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि ‘ओवर दी टॉप (ओटीटी) प्लेटफॉर्म’ पर कई बार किसी न किसी तरह की अश्लील सामग्री दिखाई जाती है और इस तरह के कार्यक्रमों पर नजर रखने के लिए एक तंत्र की आवश्यकता है।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि वह सोशल मीडिया के नियमन संबंधी सरकार के हालिया दिशा-निर्देशों के बारे में शुक्रवार को जानकारी दें। इसी दिन अमेजन प्राइम की इंडिया प्रमुख अर्पणा पुरोहित की याचिका पर भी सुनवाई की जाएगी।

पीठ ने कहा, ‘‘संतुलन कायम करने की आवश्यकता है क्योंकि कुछ ओटीटी प्लेटफॉर्म पर अश्लील सामग्री भी दिखाई जा रही है।’’

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस शरद अरविंद बोबडे ने देश में मुकदमे से पहले न्यायाधीश के साथ मध्यस्थता कराने का इंतजाम करने को कहा;मध्यस्थता में संबंधित पक्षों के बीच समझौता कानून के दायरे के अंदर होना चाहिए attacknews.in

पटना 27 फरवरी। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबेडे ने आज कहा कि अदालतों पर निर्भरता कम करने के लिए मुकदमे से पहले किसी न्यायाधीश के साथ मध्यस्थता कराकर समझौते का प्रयास किया जाना चाहिए ।

मुख्य न्यायाधीश श्री बोबेडे ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद की मौजूदगी में पटना उच्च न्यायालय के शताब्दी भवन का उद्घाटन करने के बाद कहा कि यह समय है कि विवादों के निपटारे के लिए मुकदमे से पहले किसी न्यायाधीश के साथ मध्यस्थता कराने का इंतजाम किया जाना चाहिए । इससे दीवानी और अपराधिक मामलों के निपटारे में मदद मिलेगी तथा अदालत पर निर्भरता भी कम होगी ।

उन्होंने कहा कि मुकदमे से पूर्व मध्यस्थता में संबंधित पक्षों के बीच समझौता कानून के दायरे के अंदर होना चाहिए ।

न्यायमूर्ति श्री बोबेडे ने न्यायपालिका और न्यायिक फैसलों में तकनीक के महत्व की चर्चा करते हुए कहा कि न्याय व्यवस्था की विभिन्न प्रक्रियाओं की दक्षता में सुधार लाने के लिए हाल में भारी निवेश किया गया है । अब न्यायिक प्रक्रियाओं में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का इस्तेमाल आसानी से किया जा रहा है । कोरोना वैश्विक महामारी ने इस बारे में लोगों की सोच को बदला है ।

भारतीय न्यायिक सेवा (आईजेएस) का होगा गठन – रविशंकर

केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने आज कहा कि भारतीय न्यायिक सेवा (आईजेएस) का शीघ्र गठन किया जाएगा और इसकी परीक्षा केंद्रीय लोकसेवा आयोग (यूपीएससी) लेगा ।

श्री प्रसाद ने शनिवार को पटना उच्च न्यायालय के शताब्दी भवन के उद्घाटन समारोह में कहा कि भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) और भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) की तर्ज पर ही भारतीय न्यायिक सेवा (आईजेएस) का गठन किया जाएगा ताकि इस सेवा से कुशाग्र युवा प्रतिभा जुड़ सकें । उन्होंने कहा कि इस अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के लिए यूपीएससी परीक्षा लेगा, जो आईएएस और आईपीएस के लिए परीक्षा का आयोजन करता है।

कानून का राज कायम करना सिर्फ सरकार का काम नहीं,न्यायपालिका की भी बहुत बड़ी भूमिका – नीतीश

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लोगों को न्याय दिलाने के लिए सरकार की ओर से न्यायपालिका की जरूरतों को पूरा करने का वचन देते हुए कहा कि कानून का राज कायम करना सिर्फ सरकार का काम नहीं है, न्यायपालिका की भी बहुत बड़ी भूमिका है ।

श्री कुमार ने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबेडे और केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद की मौजूदगी में पटना उच्च न्यायालय के शताब्दी भवन के उद्घाटन कार्यक्रम में कहा कि अपराध नियंत्रण के लिए जरूरी है कि ट्रायल का काम तेजी से चलता रहे।

उन्होंने कहा कि विधायिका कानून तो बना सकती है लेकिन सबसे बड़ी भूमिका न्यायपालिका की है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि वर्ष 2005 में जब उन्हें राज्य में काम करने का मौका मिला तब अपराध के मामले में ट्रायल की पटना उच्च न्यायालय के स्तर पर मॉनीटरिंग की गयी और तेजी से ट्रायल हुआ । न्यायाधीशगण को जिस जिले की जिम्मेवारी थी उस पर उन्होंने नजर रखा। न्यायालय ने काम किया और अपराधियों को सजा मिलनी शुरू हुई। इससे बिहार में अपराध की घटनाओं में कमी आयी।

बॉम्बे की अदालत ने ISIS आतंकवादी अरीब मजीद को दी जमानत:आदेश में कहा कि जब मामले की सुनवाई बहुत धीमी गति से चल रही हो तोे ऐसे में जेल में रखने की अनुमति नहीं दे सकते attacknews.in

मुंबई, 23 फरवरी । बॉम्बे उच्च न्यायालय ने मंगलवार को आईएसआईएल के साथ आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त होने के आरोप में आईएसआईएल के आतंकवादी अरीब मजीद की जमानत मंजूर कर ली।

छह साल से अधिक समय जेल में बिताने के बाद अरीब मजीद को न्यायाधीश संभाजी शिंदे और मनीष पितले की खंडपीठ द्वारा कड़ी शर्तों पर जमानत दी गई।

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि जब मामले की सुनवाई बहुत धीमी गति से चल रही हो तोे ऐसे में मजीद को जेल में रखने की अनुमति नहीं दे सकते।

अदालत ने मजीद की जमानत रखी बरकरार

बंबई उच्च न्यायालय ने मंगलवार को 27 वर्षीय अरीब मजीद की जमानत का विशेष अदालत का आदेश बरकरार रखा।

मजीद पर आईएसआईएस से संबंध होने का आरोप है।

न्यायमूर्ति एसएस शिंडे और न्यायमूर्ति मनीष पिटले की एक खंडपीठ ने राष्ट्रीय अन्वेषण अिभकरण (एनआईए) की ओर से दायर उस याचिका का निपटारा किया, जिसमें उसने आईएसआईएस के कथित सदस्य मजीद को जमानत देने के फैसले को चुनौती दी थी।

पीठ ने कहा कि वह मुकदमा लंबित होने के आधार पर निचली अदालत के मजीद को जमानत देने का आदेश बरकरार रख रही है, ना कि मामले के गुण-दोष आधार पर।

उच्च न्यायालय ने मजीद को एक लाख रुपये बतौर मुचलका जमा कराने और ठाणे जिले के कल्याण से बाहर नही जाने का निर्देश भी दिया, जहां वह रहता है।

एनआईए के अनुसार, मजीद कथित तौर पर आतंकवादी संगठन आईएसआईएस में शामिल होने सीरिया गया था और आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए भारत लौटा है।

मजीद को एनआईए ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम और भादंवि के प्रावधानों के तहत 2014 में गिरफ्तार किया था। एनआईए की एक विशेष अदालत ने पिछले साल मार्च में मजीद को जमानत दे दी थी।

मध्यप्रदेश की समस्त पंचायतों में होने वाले भ्रष्टाचार और कार्यवाही की जानकारी  सार्वजनिक करने का आदेश:राज्य सूचना आयुक्त राहुल ने दियाऐतिहासिक निर्णय attacknews.in

भोपाल 23 फरवरी ।मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने ऐतिहासिक निर्णय देते हुए पंचायतों में होने वाले भ्रष्टाचार की जानकारी और इन मामलों में दोषी पदाधिकारियों को पद से हटाने की पूरी कार्रवाई को  वेबसाइट पर उपलब्ध कराने के आदेश दिए है। इसके अलावा सिंह ने अपने आदेश में इन प्रकरणों में पदाधिकारियों से शासकीय राशि की वसूली की तमाम जानकारी भी आम जनता को देेनेे को कहा है।

आयोग का मानना है कि फाइलों में सालों से दफ़न इन कार्यवाही के उजागर होने से पंचायत में भ्रष्टाचार निरोधी पारदर्शी व्यवस्था में कसावट आएगी।

किन धाराओं के तहत होती है पंचायत में कार्यवाही

सरकारी राशि में गबन करने पर मप्र में जिलों से लेकर गांव तक पंचायत नेटवर्क में दोषी पंचायत पदाधिकारियों के विरुद्ध मप्र पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज अधिनियम 1993-94 की धारा 40 और 92 के तहत कार्यवाही की जाती है। धारा-40 पंचायत के पदाधिकारियों को हटाने के संबंध में है और धारा 92 में शासकीय धन की वसूली के प्रावधान है।

धारा-40 के तहत मात्र 4 महीने में होती है कार्यवाही, पर सालों से लंबित है प्रकरण

दरअसल पंचायत स्तर पर अक्सर राजनीतिक दवाब के चलते कार्यवाही फाइलों में दबकर रह जाती है।

राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने अपने आदेश में कहा कि अभी जिले से लेकर ग्राम पंचायत स्तर तक धारा-40 और 92 की कार्रवाई में पारदर्शिता का  अभाव है, जिसके चलते इन प्रकरणों में की गई कार्रवाई की जानकारी प्रभावित व्यक्तियों एवं आम जनता की पहुंच में नहीं है। सिंह ने अपने निर्णय में ये भी कहा कि धारा-40 की व्यवस्था को पारदर्शी बनाने के लिए समय-समय पर शासन स्तर पर कई निर्णय लिए गए। ज़मीनी स्तर पर उनका पालन नहीं किया जा रहा है। राज्य सूचना आयोग ने अपने निर्णय में अवर मुख्य सचिव पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग द्वारा जारी 2016 में दिशा-निर्देश का उल्लेख किया है। इसमें निर्देश दिया गया था कि जिलास्तर पर मासिक बैठक की जाए और धारा-40 के तहत कार्यवाही निर्धारित 4 महीने की समय अवधि में सुनिश्चित की जाए। साथ ही प्रत्येक माह की गई कार्रवाई से भोपाल पंचायत राज मंत्रालय को ई-मेल के माध्यम से सूचित करने के भी निर्देश थे। अवर मुख्य सचिव ने अपने आदेश में यह भी कहा था कि अगर 4 महीने में निराकरण नहीं किया गया तो यह विधि का उल्लंघन है और संबंधित जिले के अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन किसी भी जिले के कलेक्टर द्वारा ये जानकारी नियमित रूप से हर महीने मॉनिटरिंग करके भोपाल मंत्रालय में नहीं भेजी जाती है। वहीं जिन मामलों में मंत्रालय स्तर पर आदेश जारी कर कार्यवाही की जाती है, उसमें अक़्सर कार्यवाही नहीं होती है। सिंह ने अपने आदेश में अवर मुख्य सचिव पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग द्वारा जारी 2020 के आदेश का जिक्र भी किया है,  जिसमें प्रदेश के सभी जिलों के कलेक्टरों को पंचायत में हुए गबन के मामलों में दोषी पदाधिकारियों की सेवा समाप्ति से लेकर उनके विरुद्ध आपराधिक प्रकरण तक कायम करने के निर्देश जारी हुए थे।

क्या असर होगा जानकारी सावर्जनिक करने से

राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने अपने आदेश में कहा कि मांगी गई जानकारी के दो आयाम है। एक तो जिस प्रभावित व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई हो रही है,  उसको भी यह जानने का हक है कि उसके खिलाफ किस आधार पर कार्रवाई की गई है। दूसरा आम जनता जिन्हें यह जानने का हक है कि उनके चुने हुए प्रतिनिधि एवं शासकीय कर्मचारी को किस गबन के आधार पर हटाया गया एवं शासकीय राशि की वसूली के लिए क्या कार्रवाई की गई। सिंह का मानना है यह जानकारी पब्लिक प्लेटफॉर्म पर आने से पंचायत राज व्यवस्था में कसावट के साथ-साथ भ्रष्टाचार निरोधी पारदर्शी व्यवस्था सुनिश्चित हो सकेगी। इस आदेश के बाद मप्र के जिले से लेकर ग्राम पंचायत स्तर तक पंचायतों में भ्रष्टाचार से संबंधित की गई कार्यवाही कंप्यूटर के एक क्लिक पर कोई भी आम आदमी देख सकता है।

आयोग ने दिया शासन को जानकारी का फॉरमेट, अब इस प्रारूप में सारी जानकारी होगी उपलब्ध

राज्य सूचना आयोग धारा-19 के तहत किसी भी जानकारी को एक विशेष प्रारूप में जारी करने के लिए लोक प्राधिकारी को निर्देशित कर सकता है।

राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने एक प्रारूप जारी किया है, जिसके तहत जानकारी को पब्लिक प्लेटफॉर्म पर साझा किया जाएगा। इस प्रारूप में 6 कॉलम है। इसमें ग्राम/जनपद/जिला पंचायत की जानकारी है। किस धारा के तहत की गई कार्यवाही एवं आदेश की प्रति अपलोड करने के साथ-साथ अगर F.I.R की कार्रवाई की गई है तो उसकी जानकारी का भी कॉलम है।

व्यवस्था बनाने के लिए 3 महीने का समय कलक्टरों को, इसके बाद कलेक्टरों के विरुद्ध होगी ज़ुर्माने की कार्यवाही

इन प्रकरणो में कसावट लाने में सिंह ने अवर मुख्य सचिव सामान्य प्रशासन विभाग को निर्देशित किया है कि आयोग के आदेश की प्रति कलेक्टरों को भेजकर आदेश का पालन सुनिश्चित कराएं।

आयोग ने कलेक्टरों को 3 महीने का समय दिया है यह जानकारी अपने जिले की वेब पेज पर साझा करें। आयुक्त राहुल सिंह ने आदेश में यह भी साफ किया है कि 3 महीने बाद अगर किसी व्यक्ति द्वारा यह शिकायत की जाती है कि उक्त जानकारी वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं है तो आयोग धारा-18 के तहत लोक प्राधिकारी जिले के कलेक्टर को जिम्मेदार मानते हुए उनके विरुद्ध जुर्माने की कार्रवाई करेगा। धारा-18 में आयोग को सिविल कोर्ट की सीमित शक्तियां प्राप्त है, जिसमे आवेदक बिना अपील दायर किए सीधे आयोग में निःशुल्क शिकायत कर सकते है।

इस शिकायत पर की कार्रवाई

रीवा जिले के सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी ने पंचायत विभाग में हो रही कार्रवाई को प्राप्त करने की कोशिश की, लेकिन यह जानकारियां उन्हें अपील दायर करने के बाद भी उपलब्ध नहीं हुई। इसके बाद उन्होंने इस प्रकरण की शिकायत की। इसमें उन्होंने रीवा जिले एवं अन्य जिलों में भी इस तरह की जानकारी उपलब्ध नहीं होने की बात राज्य सूचना आयोग के सामने की।

बिहार के गोपालगंज में नाबालिग से बलात्कार के बाद हत्यारे को सुनाई अदालत ने फांसी की सजा attacknews.in

गोपालगंज, 20 फरवरी । बिहार में गोपालगंज जिले की एक अदालत ने नाबालिग के साथ दुष्कर्म करने के बाद उसकी हत्या करने के आरोप में शनिवार को एक व्यक्ति को फांसी की सजा सुनायी।

अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश सह लैंगिक उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम 2012 (पास्को) के विशेष न्यायाधीश बालेंद्र शुक्ला ने यहां मामले में दोनों पक्षों की दलीले सुनने के बाद जिले के सिधवलिया थाना क्षेत्र के बखरौर गांव निवासी जय किशोर शाह को यह सजा सुनाई है।

आरोप के अनुसार, 25 अगस्त 2020 को सिधवलिया थाना क्षेत्र के बखरौर गांव में नौ वर्षीय किशोरी गांव के ही जय किशोर शाह के घर जाकर उसके बच्चे के साथ खेल रही थी। इसी बीच जयकिशोर ने दुष्कर्म करने के बाद नाबालिग की हत्या कर दी थी और घर में ताला बंद कर फरार हो गया था। बाद में संदेह के आधार पर घर का ताला तोड़ने पर छज्जे से शव बरामद किया गया था।
इस मामले को लेकर सिधवलिया थाने में कांड संख्या 187/2020 दर्ज किया गया था। कांड के अनुसंधानक की तरफ से आरोप पत्र समर्पित किए जाने के बाद मामले की सुनवाई चल रही थी।

CBI ने मध्यप्रदेश में बिना पेपर दिये 10वीं-12वी परीक्षा में हजारों छात्रों को उतीर्ण करने के घोटाले में शामिल कोचिंग सेंटरों और अधिकारियों के खिलाफ जालसाजी का अनुपूरक चालान पेश किया attacknews.in

भोपाल, 17 फरवरी । केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग (एनआईओएस) की ओर से आयोजित सेकेंड्री और सीनियर सेकेंड्री परीक्षाओं में जालसाजी के मामले में भोपाल स्थित विशेष अदालत के समक्ष आठ आरोपियों के खिलाफ अनुपूरक चालान पेश किया है।

सीबीआई की ओर से आज मुहैया करायी गयी जानकारी के अनुसार यह परीक्षा अप्रैल 2017 में आयोजित की गयी थी और जुलाई 2018 में सीबीआई की ओर से प्रकरण दर्ज किया गया था। जांच के बाद दो आरोपियों के खिलाफ मई 2019 में चालान (आरोपपत्र) पहले ही दाखिल किया जा चुका है।

नेशनल इस्टीट्यूट ओपन स्कूलिंग (एनआईओएस) में अप्रैल 2017 में आयोजित माध्यमिक और वरिष्ठ माध्यमिक परीक्षाओं के दौरान गड़बड़ घोटाले में सीबीआई ने कुल 8 आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र मध्य प्रदेश के भोपाल जिले की विशेष अदालत के सामने दायर कर दिया है. इस मामले में आरोप है कि जिन परीक्षार्थियों को पास दिखाया गया था वह परीक्षा में शामिल ही नहीं हुए थे.

सीबीआई प्रवक्ता आरसी जोशी के मुताबिक, आरोपपत्र में जिन आरोपियों के नाम शामिल किए गए हैं उनमें आशीष मेसी, मनोज कुमार बोरा, राजेश कुमार, संदीप कुमार, धनीराम, भास्कर मेथी, राहुल कुमार और अनीश कुमार यादव के नाम शामिल हैं।

सीबीआई प्रवक्ता के मुताबिक, मामला नेशनल इस्टीट्यूट ओपन स्कूलिंग (एनआईओएस) की अप्रैल 2017 में में हुई परीक्षा में धांधली से जुड़ा हुआ है. इस मामले में आरोप लगा था कि मध्य प्रदेश के सीहोर रतलाम और उमरिया जैसे तीन परीक्षा केंद्रों पर उक्त यूनिवर्सिटी द्वारा आयोजित 10वीं और 12वीं की परीक्षाओं में बड़ी संख्या में ऐसे छात्र शामिल नहीं हुए थे जिन्हें यूनिवर्सिटी द्वारा पास दिखाया गया था।

यह भी आरोप लगाया गया था कि आरोपियों ने छात्रों के परीक्षा केंद्रों उत्तर पुस्तिका आदि की उपस्थिति सीट में जालसाजी और हेराफेरी की. आरोपियों द्वारा कथित रूप से अनुपस्थित विद्यार्थियों की अनुपयोगी उत्तर पुस्तिकाओं का इस्तेमाल किया गया. इस मामले में काफी हो-हल्ला मचने के बाद सीबीआई ने 23 जुलाई 2018 को जांच के लिए मामला दर्ज कर लिया।

जांच के बाद सीबीआई ने इस मामले में अपना पहला आरोपपत्र दो मुख्य आरोपियों के खिलाफ 13 मई 2019 को कोर्ट के सामने दाखिल किया था. सीबीआई प्रवक्ता के मुताबिक, पहला आरोपपत्र दायर होने के बाद भी सीबीआई की जांच इस मामले में जारी रही और अब इस मामले में आठ और आरोपियों को सीबीआई की जांच में दोषी पाया गया. लिहाजा इन सभी के खिलाफ अब सीबीआई की विशेष अदालत के सामने आरोप पत्र दायर किया गया है मामले की जांच अभी भी जारी है।

ध्यान रहे कि सरकारी परीक्षा क्षेत्रों में भी गड़बड़ घोटाले के कई मामले लगातार सामने आते रहे हैं. इनमें मध्य प्रदेश में व्यापम घोटाला, उत्तर प्रदेश में हुआ यूपी पीएससी घोटाला आदि के नाम मुख्य रूप से शामिल हैं।

NIOS स्‍कैम: सीबीआई ने 26 ठिकानों पर की थी छापेमारी, मिले थे कई अहम सुराग:

28 नवम्बर 2018 की रिपोर्ट के अनुसार नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ ओपन स्कूलिंग यानि NIOS घोटाले की जांच कर रही केंद्रीय जांच ब्यूरो ने बीते दो दिनों 25 और 26 नवम्बर में 6 राज्यों मध्य प्रदेश, हरियाणा, ओडिशा, नई दिल्ली, असम और सिक्किम के साथ ही साथ एनआईओएस के एक अधिकारी के परिसर व अध्‍ययन केंद्रों सहित कुल 26 जगहों पर सर्च ऑपरेशन चलाया।

सर्च ऑपरेशन में सीबीआई को हार्ड डिस्क, कंप्यूटर, उत्तर पत्र (Answer Sheet), फीस भुगतान और परीक्षा हॉल की सीट योजना बरामद की थी।

सीबीआई ने एनआईओएस के एक अज्ञात अधिकारी के खिलाफ एचआरडी मंत्रालय के आदेश पर बीते 23 जुलाई को मुकदमा दर्ज किया था।

आपको बता दें कि नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ ओपन स्कूलिंग यानि एनआईओएस की दसवीं और बारहवीं की परीक्षा में ऐसे 2000 हजार से ज्‍यादा छात्र पास कर दिए गए जो परीक्षा में बैठे ही नहीं थे। जांच में यह भी पता चला है कि इस हेराफेरी में एनआईओएस के कुछ अधिकारी, छात्र और प्राइवेट लोग भी शामिल हैं।

बताया गया कि एक बड़ी रकम गुवाहाटी स्थित एनआईओएस के एक कमर्चारी के खाते में भेजी गई थी। यह रकम दिल्ली स्थित एक व्यक्ति के खाते से भेजी गई।

गौरतलब है कि शैक्षणिक सत्र 2016-17 में हजारों की संख्या में बिना पेपर दिए छात्र पास हुए थे। यह सब कोचिंग सेंटर और एनआईओएस के संलिप्त अधिकारियों की मिलीभगत से चल रहा था। ये वही कोचिंग सेंटर हैं जिनके गली-मोहल्ले में 9वीं पास सीधे 10वीं और 11वीं फेल 12वीं कक्षा पास करें का इश्तहार जगह-जगह चिपके रहते हैं। ये कोचिंग सेंटर ही पैसों के दम पर बिना परीक्षा दिए ही छात्रों को पास कराने का ठेका उठाते हैं और ओपन स्कूल के अधिकारियों की मदद से उन्हें पास करा देते हैं।

यौन शोषण का खुलासा होने के बाद पत्रकार एम जे अकबर ने प्रिया रमानी को फंसाना चाहा,अदालत में रमानी बरी हुई,अकबर पर चलेगा मुकदमा attacknews.in

नयी दिल्ली, 17 फरवरी । दिल्ली की एक अदालत ने पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं वरिष्ठ पत्रकार एम जे अकबर की ओर से दायर आपराधिक मानहानि मामले में पत्रकार प्रिया रमानी को बुधवार को बरी कर दिया।

रमानी ने वर्ष 2018 में ‘मी टू’ अभियान के दौरान अकबर पर उनका यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगाया था।

अदालत की ओर से करीब दो बजे आदेश सुनाने की उम्मीद थी लेकिन इसमें विलंब हुआ क्योंकि न्यायाधीश ने कहा कि फैसले में सुधार की आवश्यकता थी।

अदालत ने कहा, “ यौन शोषण के मामलों को उठाने वाली महिलाओं को मानहानि का दावा करने वाली शिकायतों के आधार पर दंडित नहीं किया जा सकता।”

अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलें पूरी होने के बाद एक फरवरी को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। पत्रकार प्रिया रमानी ने एम जे अकबर के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे।

एमजे अकबर ने प्रिया रामानी के खिलाफ यह कहते हुए आपराधिक मानहानि का मुकदमा दायर किया था कि प्रिया रमानी ने Me Too कैंपेन के दौरान किए गए ट्वीट से उनकी मानहानि हुई है. जबकि उनके ऊपर इस तरीके के आरोप इससे पहले कभी नहीं लगे थे।अदालत में इस मामले पर विस्तृत बहस के बाद आज यह फैसला सुनाया गया है।

प्रिया रमानी को बरी करते हुए दिल्ली की अदालत ने अपने आदेश में टिप्पणी करते हुए कहा- “एक महिला को सालों बाद भी सही अपनी शिकायत रखने का हक है।

अदालत ने कहा है कि एक ऐसा शख्स जिसकी सामाजिक प्रतिष्ठा अच्छी हो, वह यौन उत्पीड़न करने वाला भी हो सकता है. यौन उत्पीड़न से सामाजिक प्रतिष्ठा और मनोबल भी गिरता है. छवि के अधिकार को मर्यादा के अधिकार की कीमत पर नहीं सुरक्षित किया जा सकता.”

गौरतलब है कि साल 2018 में मी टू अभियान के तहत रमानी ने अकबर पर यौन दुर्व्यवहार के आरोप लगाए थे. अकबर ने 15 अक्टूबर 2018 को रमानी के खिलाफ कथित तौर पर उन्हें बदनाम करने के लिए शिकायत दर्ज कराई थी. इसी दौरान अकबर ने 17 अक्टूबर 2018 को केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।

साल 2017 में रमानी ने वोग के लिए एक लेख लिखा जहां उन्होंने नौकरी के साक्षात्कार के दौरान पूर्व बॉस द्वारा यौन उत्पीड़न किए जाने के बारे में बताया. एक साल बाद उन्होंने खुलासा किया कि लेख में उत्पीड़न करने वाले व्यक्ति एमजे अकबर थे।

हालांकि, इससे पहले, अदालत में अकबर ने प्रिया रमानी की तरफ से लगाए गए यौन उत्पीड़न के सभी आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया था।अकबर ने अदालत को बताया था कि रमानी के आरोप काल्पनिक थे और इससे उनकी प्रतिष्ठा और छवि को नुकसान पहुंचा है।दूसरी ओर प्रिया रमानी ने इन दावों का समर्थन करते हुए कहा कि उन्होंने विश्वास, सार्वजनिक हित और सार्वजनिक भलाई के लिए ये बातें सबके सामने लाईं।