तमिलनाडु में वेदांता के स्टरलाइट संयंत्र को खोलने की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने आधी अधूरी जानकारी के साथ केंद्र सरकार को आक्सीजन की कमी की वजह से मर रहे लोगों पर लगा दी फटकार attacknews.in

नयी दिल्ली, 23 अप्रैल । उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि आक्सीजन की कमी की वजह से लोग मर रहे हैं तो ऐेसे में तमिलनाडु सरकार 2018 से बंद पड़ी वेदांता की स्टरलाइट तांबा संयंत्र इकाई अपने हाथ में लेकर कोविड-19 मरीजों की जान बचाने के लिये आक्सीजन का उत्पादन क्यों नहीं करती ?

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने दो टूक शब्दों में कहा, ‘‘हमारी दिलचस्पी वेदांता या ए, बी, सी के चलाने में नहीं है। हमारी दिलचस्पी आक्सीजन के उत्पादन में है। किसी न किसी को कुछ न कुछ ठोस तो कहना चाहिए क्योंकि इस समय आक्सीजन की कमी की वजह से लोग मर रहे हैं।’’

शीर्ष अदालत तमिलनाडु के तूतीकोरिन स्थित वेदांता के स्टरलाइट संयंत्र को खोलने के लिये दायर आवेदन पर सुनवाई कर रही थी। वेदांता का कहना था कि वह हजारों टन आक्सीजन का उत्पादन करके इसे मुफ्त में उपलब्ध करायेगा ताकि मरीजों का इलाज हो सके।

तमिलनाडु सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सी एस वैद्यनाथन ने कानून व्यवस्था की स्थिति का हवाला दिया और कहा कि जिला कलेक्टर आज सवेरे वहां लोगों से इस बारे में बात करने गये थे।

उन्होंने कहा, ‘‘लोगों में पूरी तरह से अविश्वास है।’’ इस संयंत्र को लेकर हुये आन्दोलन के दौरान वहां 13 व्यक्तियों की जान चली गयी थी।

इस पर पीठ ने कहा, ‘‘कल आपने कानून व्यवस्था की स्थिति की बारे में हमें नहीं बताया। अगर बताया होता तो शायद आज स्थिति भिन्न होती। क्या आपने हलफनामा दाखिल किया है।’’ इस पर वैद्यनाथन ने कहा कि वह इसे दाखिल करेंगें।

प्रभावित परिवारों के संगठन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोन्साल्विज ने कहा कि राज्य सरकार आक्सीजन के उत्पादन के लिये संयंत्र अपने हाथ में ले सकती है।

उन्होंने कहा, ‘‘अगर तमिलनाडु सरकार यह संयंत्र अपने हाथ में लेती है और आक्सीजन का उत्पादन करती है तो इसमें हमें कोई दिक्कत नहीं है लेकिन यह मुद्दा तो समूचे देश का है।’’

पीठ ने कहा, ‘‘देश की राष्ट्रीय संपदा का नागरिकों में समान रूप से वितरण होना चाहिए।’’

केन्द्र की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इस समय देश को आक्सीजन की अत्यधिक आवश्यकता है और ऐसा भी नहीं है कि प्रत्येक राज्य आक्सीजन का उत्पादन करती है।

मेहता ने कहा, ‘‘केन्द्र सरकार का इससे कोई सरोकार नहीं है कि संयंत्र वेदांता चलाती है या वैद्यनाथन के मुवक्किल इसका संचालन करते हैं। अगर लोग मर रहे हैं तो कानून व्यवस्था की समस्या कोई आधार नहीं हो सकता है। अगर हमारे पास 1000 टन उत्पादन की क्षमता है तो हमें इसका उत्पादन क्यों नहीं करना चाहिए।’’

पीठ ने मेहता से कहा कि, ‘‘इस बिन्दु पर आपको ज्यादा प्रयास करने की जरूरत नहीं है। हम इसे देखेंगे। ’’

शीर्ष अदालत ने इस मामले में तमिलनाडु सरकार को हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया और कहा कि इसमें अब 26 अप्रैल को आगे सुनवाई होगी।

इस मामले में बृहस्पतिवार को वेदांता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने अवदेन तत्काल सुनवाई करने का अनुरोध किया था। उनका कहना था कि रोजाना लोग मर रहे हैं और ‘‘हम कोविड-19 रोगियों के उपचार के लिए ऑक्सीजन का उत्पादन एवं आपूर्ति कर सकते हैं।’’

साल्वे ने कहा था, ‘‘यदि आज आप हमें अनुमति दे देते हैं तो हम पांच से छह दिन में काम शुरू कर सकते हैं। कंपनी हर रोज कई टन ऑक्सीजन का उत्पादन कर सकती है और यह इसकी नि:शुल्क आपूर्ति को तैयार है।’’

तमिलनाडु सरकार ने हालांकि रिकॉर्ड का हवाला देते हुए कहा था कि कंपनी द्वारा कोई भी ऑक्सीजन उत्पादन दो से चार सप्ताह से पहले शुरू नहीं किया जा सकता।

शीर्ष अदालत ने पूर्व में खनन दिग्गज वेदांता की तूतीकोरिन स्थित स्टरलाइट कॉपर इकाई से संबंधित याचिका पर जल्द सुनवाई से इनकार कर दिया था जो प्रदूषण संबंधी चिंताओं के चलते मई 2018 से बंद है।

न्यायालय ने पिछले साल दो दिसंबर को वेदांता लिमिटेड की अंतरिम याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें स्टरलाइट कॉपर संयंत्र का निरीक्षण करने और प्रदूषण स्तर का आकलन करने के वास्ते एक महीने के लिए काम करने की अनुमति मांगी थी ।

गुजरात के चर्चित इशरत जहां मुठभेड़ प्रकरण में सीबीआई अदालत ने दो तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों समेत तीन पुलिसकर्मियों को आरोपमुक्त किया attacknews.in

 

अहमदाबाद, 31 मार्च । गुजरात के चर्चित इशरत जहां मुठभेड़ प्रकरण में सीबीआई की एक विशेष अदालत ने राज्य के दो तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों समेत तीन पुलिसकर्मियों को आज यहां आरोपमुक्त कर दिया।

विशेष जज विपुल रावल ने इस मामले में जेल में भी रह चुके सेवा निवृत पुलिस उपाधीक्षक तरुण बारोट, आईपीएस अधिकारी जी एल सिंघल और तत्कालीन सहायक सब इन्स्पेक्टर अनाजु चौधरी को आरोप मुक्त कर दिया।

उनकी आरोप मुक्ति अर्ज़ी पर सुनवाई के दौरान अदालत ने यह भी कहा कि आरोपी पुलिस अधिकारी अपनी ड्यूटी के तहत काम कर रहे थे।

ज्ञातव्य है कि 15 जून 2004 को अहमदाबाद में गुजरात पुलिस ने मुंबई निवासी कॉलेज छात्रा इशरत जहां (19), उसके पुरुष मित्र प्रणयेश पिल्लई उर्फ़ जावेद शेख़ और दो अन्य कथित पाकिस्तानी युवकों को एक मुठभेड़ में मार गिराया था।

पुलिस का कहना था कि ये सभी आतंकी संगठन लश्करे तैयबा से जुड़े थे और तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या के इरादे से आए थे।

बाद में केंद्र की तत्कालीन सम्प्रग सरकार ने इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपा था और उसने इसे फ़र्ज़ी मुठभेड़ क़रार देते हुए उक्त तीनो समेत गुजरात पुलिस के सात पुलिस अधिकारियों/कर्मियों को आरोपी बनाया था और उन्हें गिरफ़्तार भी किया था।

इनमे से दो पूर्व आईपीएस डी जी वणजारा और पुलिस अधिकारी एन के अमीन को सीबीआई की अदालत ने मई 2019 में आरोपमुक्त किया था।

आज आरोपमुक्त किया गए तीन के साथ ही अगस्त 2019 में आरोपमुक्ति की अर्ज़ी देने वाले एक अन्य पुलिस अधिकारी के जी परमार की सुनवाई के दौरान ही मृत्यु हो चुकी थी।

उससे पहले इस मामले के एक अन्य आरोपी पुलिस अधिकारी और पूर्व डीजीपी पी पी पांडेय को सीबीआई अदालत ने फरवरी 2018 में आरोपमुक्त कर दिया था।

गुजरात सरकार ने सीबीआई को इन सातों पर अभियोजन की अनुमति नहीं दी थी और इसी कारण से अदालत को आगे की सुनवाई को रद्द करते हुए उनके ख़िलाफ़ आरोप समाप्त करने पड़े।

पाकिस्तानी आतंकवादी को NIA अदालत ने सुनाई 10 साल कठोर कारावास की सजा:दिल्ली समेत भारत के विभिन्न स्थानों पर आतंकवादी हमले करने की साजिश रचने का किया था खुलासा attacknews.in

नयी दिल्ली, 31 मार्च । दिल्ली की एक विशेष एनआईए अदालत ने दिल्ली समेत भारत के विभिन्न स्थानों पर आतंकवादी हमले करने की साजिश रचने के लिए लश्कर-ए-तैयबा के एक पाकिस्तानी आतंकवादी को 10 साल की जेल की सजा सुनाई है। एक अधिकारी ने बुधवार को यह जानकारी दी।

पटियाला हाउस अदालत में एनआईए मामलों के विशेष न्यायाधीश ने पाकिस्तानी लश्कर-ए-तैयबा आतंकवादी बहादुर अली को आईपीसी, यूए(पी) कानून, शस्त्र काननू, विस्फोटक कानून, विस्फोटक सामग्री कानून, विदेशी कानून और इंडियन वायरलेस टेलीग्राफी कानून की धाराओं में शुक्रवार को सजा सुनाई।

अदालत ने उसे 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई और उस पर जुर्माना भी लगाया।

एनआईए के एक अधिकारी ने बताया कि जुलाई 2016 में दर्ज यह मामला पाकिस्तान स्थित प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा द्वारा भारत में आतंकवादी हमले करने की साजिश रचने से जुड़ा है।

उन्होंने बताया कि साजिश के तहत अली अपने दो साथियों अबू साद और अबू दर्दा के साथ मिलकर गैरकानूनी तरीके से जम्मू कश्मीर में घुसा ताकि दिल्ली समेत भारत के अलग-अलग स्थानों पर आतंकवादी हमले कर सके। इन्होंने पाकिस्तान और पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में स्थित लश्कर के आकाओं के इशारे पर भारत में घुसपैठ की।

उन्होंने बताया कि अली को कुपवाड़ा से गिरफ्तार किया गया और उसके पास से बड़ी संख्या में हथियार बरामद किए गए।

पूछताछ के दौरान अली ने आतंकवादी संगठन में भर्ती, लश्कर के विभिन्न प्रशिक्षण शिविर, हथियार चलाने के लिए आतंकवादियों को दिए जाने वाले प्रशिक्षण, लश्कर के आतंकवादियों द्वारा भारत में आतंकवादी हमले करने के लिए उकसाने और पीओके में लश्कर के लॉन्चिंग पैड की जानकारियों का खुलासा किया।

एनआईए ने जनवरी 2017 में अली के खिलाफ आरोपपत्र दायर किया था।

बाद में लश्कर-ए-तैयबा के दो अन्य पाकिस्तानी आतंकवादियों साद और दर्दा को कुपवाड़ा में फरवरी 2017 में एक मुठभेड़ में मार गिराया गया।

एनआईए अधिकारी ने बताया कि पूछताछ के दौरान अली के दो साथियों जहूर अहमद पीर और नजीर अहमद पीर को भी गिरफ्तार किया गया। ये दोनों जम्मू कश्मीर के रहने वाले हैं। आरोपपत्र में नामजद अन्य आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चल रहा है।

जयपुर की अदालत ने देशद्रोह के आरोप में SIMI के स्लीपर सेल से जुड़े मामले में बारह दोषियों को आजीवन कारावास की सजा देकर एक को बरी कर दिया attacknews.in

जयपुर 30 मार्च । राजस्थान में जयपुर जिला एवं सेशन न्यायालय ने स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट आफ इंडिया (सिमी) के स्लीपर सेल से जुड़े मामले में आरोपियों को आज दोषी ठहराते हुए बारह लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई जबकि एक आरोपी को बरी कर दिया।

न्यायाधीश उमाशंकर व्यास ने आज यह फैसला सुनाते हुये वर्ष 2014 में गिरफ्तार सिमी के राजस्थान स्लीपर सेल से जुड़े इस मामले में 13 लोगों में 12 को आतंकवादी गतिविधियों में दोषी करार दिया गया जबकि एक को इस मामले में बरी कर दिया।

इसके बाद इन बारह दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई। अदालत ने देशद्रोह एवं विस्फोट रखने आदि आरोप में इन्हें दोषी माना और सजा सुनाई गई।

दोषी पाये गये आरोपियों में अब्दुल मजीद, मोहम्मद वाहिद, मोहम्मद उमर, मोहम्मद आकिब, मोहम्मद वकार, मोहम्मद अम्मार, बरकत अली, मशरफ इकबाल, मोहम्मद मारूफ, अशरफ अली, मोहम्मद साकिब अंसारी, वकार अजहर एवं मोहम्मद सज्जाद शामिल हैं जबकि जोधपुर के रहने वाले आरोपी इशरफ इकबाल को बरी कर दिया गया।

इनमें एक बिहार का रहने वाला हैं जबकि शेष सभी राजस्थान के रहने वाले हैं।

एटीएस एवं एसओजी ने इस मामले में 177 गवाहों के बयान कराये गये तथा 506 दस्तावेज पेश किये गये।

उल्लेखनीय है कि राजस्थान में सिमी की स्लीपर सेल से जुड़ा यह मामला करीब सात साल पुराना है।

दिल्ली में गिरफ्तार हुए आतंकवादियों से मिली जानकारी के आधार पर प्रदेश में एटीएस एवं एसओजी की टीमों ने 2014 में जयपुर, सीकर एवं अन्य जिलों में तेरह संदिग्ध युवकों को गिरफ्तार किया था।

इन पर आरोप था कि ये प्रतिबंधित संगठन सिमी से जुड़े है और राजस्थान में आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए बम बनाने आदि काम में लगे हुए थे।

मध्यप्रदेश में लव जेहाद को रोकने के लिए धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2021 राजपत्र में प्रकाशन के साथ प्रदेश में लागू attacknews.in

भोपाल, 30 मार्च। मध्यप्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2021 गजट नोटिफिकेशन के बाद तत्काल प्रभाव से प्रदेश में लागू हो गया है। विधानसभा द्वारा पारित अधिनियम राज्यपाल की अनुमति के बाद मध्यप्रदेश राजपत्र (असाधारण) में 27 मार्च को प्रकाशित हो गया है।

आधिकारिक जानकारी के अनुसार मध्यप्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम में एक धर्म से अन्य धर्म में विधि विरूद्ध संपरिवर्तन का प्रतिषेध, धर्म संपरिवर्तन के विरूद्ध परिवाद, धारा के उपबंधों के उल्लंघन के लिये दण्ड आदि का प्रावधान किया गया है। किसी व्यक्ति का धर्म संपरिवर्तन करने के आशय के साथ किया गया विवाह अकृत तथा शून्य होगा। इस संबंध में संपरिवर्तित व्यक्ति अथवा उसके माता-पिता या सहोदर भाई या बहन या न्यायालय की अनुमति से किसी व्यक्ति जो रक्त, विवाह या दत्तक ग्रहण संरक्षकता या अभिरक्षा जो भी लागू हो, द्वारा स्थानीय सीमाओं के भीतर न्यायालय में याचिका प्रस्तुत कर सकेंगे।

इंदौर हाईकोर्ट ने महिला जस्टिस को व्हाट्सएप और अन्य सोशल मीडिया माध्यम से आपत्तिजनक संदेश भेजने वाले वकील को पागल घोषित कर मानसिक जांच कराने के दिए निर्देश attacknews.in

इंदौर, 29 मार्च । मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ ने एक महिला न्यायाधीश को आपत्तिजनक संदेश भेजने वाले एक वकील की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए आरोपी वकील की मानसिक जांच कराने के निर्देश जारी किए हैं।

एकलपीठ के न्यायाधीश रोहित आर्य ने मामले की बीते 26 मार्च (शुक्रवार को) सुनवाई करने के बाद अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया था।जिसे आज जारी किया गया है।

एकलपीठ ने इस नियमित जमानती आवेदन की सुनवाई करते हुए जारी निर्देश में उल्लेख किया कि 37 वर्षीय आरोपी अधिवक्ता जो की विवाहित और उसके चार बच्चे है के खिलाफ प्राथमिक आरोप यह है कि उन्होंने ‘एक महिला न्यायाधीश को व्हाट्सएप और अन्य सोशल मीडिया पोर्टल के माध्यम से अपमानजनक और आपत्तिजनक संदेश भेजे, जिसकी वजह से उन्हें बेहद असहज और शर्मिंदगी महसूस हुई।

’ न्यायाधीश श्री आर्य ने टिप्पणी करते हुए लिखा ‘मामला में एक योग्य चिकित्सक या मनोचिकित्सक के माध्यम से आरोपी अधिवक्ता की मानसिक जांच कराने के लिए निर्देशित किया जाता है।

साथ ही निर्देश दिया जाता है कि आरोपी की मानसिक जांच कर, इसकी रिपोर्ट से न्यायालय को अवगत कराया जाए।

’ न्यायालय ने जारी निर्णय में कहा ‘न्यायालय में उपस्थित अतिरिक्त महाधिवक्ता पुष्यमित्र भार्गव को भी निर्देशित किया जाता है कि यदि उन्हें आवश्यक लगे तो वे जारी इन निर्देशों का अनुपालन पुलिस अधीक्षक और अन्य प्राधिकारियों के माध्यम से सुनिश्चित करें।

’ इस मामले की सुनवाई के दौरान नियमित जमानत आवेदन पेश करने वाले आरोपी की पैरवी अधिवक्ता बी बी सिंह ने की।

राज्य शासन की ओर से शासकीय अधिवक्ता रंजीत सेन ने पक्ष रखा और आपत्तिकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अविनाश सिरपुरकर और अधिवक्ता सीमा शर्मा ने विरोध किया।

16 फरवरी से न्यायिक अभिरक्षा में कैद आरोपी अधिवक्ता के इस जमानती आवेदक की 15 अप्रैल 2021 को आगामी सुनवाई मुकर्रर की गई है।

ओडिशा के जाजपुर जिले में सूचना का अधिकार के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता पर बदमाशों द्वारा बम फेंककर हमला,गंभीर रूप से घायल attacknews.in

 

जाजपुर (ओडिशा), 28 मार्च । ओडिशा के जाजपुर जिले में सूचना का अधिकार (आरटीआई) के लिए काम करने वाले एक कार्यकर्ता पर कुछ बदमाशों ने बम फेंके, जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गए। वह स्थानीय भाजपा नेता भी हैं। पुलिस ने रविवार को यह जानकारी दी।

उन्होंने बताया कि शनिवार रात को इमाम नगर क्षेत्र में सर्वेश्वर बेहुरिया पर हमला हुआ, जिसके बाद उन्हें धर्मशाला सीएचसी में उपचार के लिए भर्ती कराया गया। हालत बिगड़ने पर बेहुरिया को कटक के एससीबी कॉलेज और अस्पताल में स्थानांतरित किया गया।

पुलिस ने बताया कि बेहुरिया अपने एक सहयोगी के साथ एक कार में वापस आ रहे थे जब दो व्यक्तियों ने वाहन को रोक कर बम फेंके और भाग निकले।

धर्मशाला पुलिस थाने के प्रभारी सरोज कुमार साहू ने बताया, ‘‘बेहुरिया कार चला रहे थे इसलिए उन्हें ज्यादा चोट आई। उनके सहायक को भी अस्पताल में भर्ती कराया गया है।’’

पुलिस ने घटना की जांच शुरू कर दी है।

इस बीच, बेहुरिया की पत्नी रिलु ने इस घटना मामले में धर्मशाला से बीजद विधायक प्रणब बालाबंतरे का हाथ होने की आशंका जताते हुए शिकायत दर्ज कराई है।

इस बीच विपक्षी दल भाजपा ने बेहुरिया को पार्टी का सदस्य बताते हुए मामले में विधायक प्रणब पर उंगली उठाई है।

प्रदेश भाजपा उपाध्यक्ष भृगु बाक्सीपात्रा ने कहा कि अगर विधायक को गिरफ्तार नहीं किया गया तो पार्टी धरना-प्रदर्शन करेगी।

दमोह में कांग्रेस नेता देवेन्द्र चौरसिया के हत्यारे विधायक राम बाई के पति गोविंद सिंह को पुलिस ने गिरफ्तारी के बाद कोर्ट में किया पेश, भेजा जेल attacknews.in

दमोह/भिण्ड, 28 मार्च । मध्यप्रदेश के दमोह जिले की पथरिया विधानसभा क्षेत्र की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की विधायक श्रीमती राम बाई के पति गोविंद सिंह द्वारा आज सुबह ग्वालियर में पुलिस महानिरीक्षक (आईजी) के समक्ष समर्पण करने के बाद गिरफ्तार कर पुलिस ने आज ही दमोह जिले के हटा न्यायालय में पेश किया, जहां पर न्यायाधीश ने उन्हें जेल भेज दिया।

हटा के कांग्रेस नेता देवेंद्र चौरसिया की हत्या के आरोप में विधायक राम बाई के पति गोविंद सिंह पर 50 हजार रुपए का इनाम घोषित किया गया था। इस मामले में पुलिस और एसटीएफ की टीम उन्हें लगातार तलाश कर रही थी। उन्होंने ग्वालियर में आज सुबह आईजी के समक्ष समर्पण किया। जहां से एसटीएफ की टीम उन्हें लेकर हटा पहुंची। उन्हें न्यायालय में पेश किया गया। न्यायाधीश ने उन्हें जेल दिया है।

हत्या के मामले में फरार विधायक पति गोविंद सिंह भिंड से गिरफ्तार

सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद और अधिक सक्रिय हुयी मध्यप्रदेश पुलिस ने हत्या के मामले में काफी लंबे समय से फरार चल रहे विधायक पति आरोपी गोविंद सिंह को आज भिंड जिला मुख्यालय से गिरफ्तार कर लिया।

पुलिस के विशेष कार्य बल (एसटीएफ) की टीम ने आरोपी को उस समय गिरफ्तार किया, जब वो ग्वालियर चंबल पुलिस के समक्ष समर्पण के लिए जा रहा था। इसके पहले आरोपी की ओर से सोशल मीडिया में एक वीडियो भी जारी किया गया।

बताया गया है कि एसटीएफ और पुलिस ने इसके आधार पर आरोपी को भिंड बस स्टैंड से अपने कब्जे में लिया और उसकी औपचारिक तौर पर गिरफ्तारी दिखायी।

एसटीएफ का दल बसपा विधायक रामबाई परिहार के पति और दमाेह जिले के कांग्रेस नेता देवेंद्र चौरसिया की हत्या के मामले में आरोपी गोविंद सिंह को अपने कब्जे में लेने के बाद आवश्यक औपचारिकताएं पूरी कर दमोह रवाना हुयी।

इस दौरान वह कुछ देर के लिए ग्वालियर में भी रुका।आरोपी को दमोह जिले के न्यायाधीश शैलेंद्र उइके के समक्ष पेश किया गया।अदालत के समक्ष एसटीएफ ने आरोपी को रिमांड पर देने का अनुरोध किया।

हटा क्षेत्र में लगभग दो वर्ष पहले एक कांग्रेस नेता देवेंद्र चौरसिया की हत्या की गयी थी।इस मामले में बसपा की चर्चित विधायक रामबाई परिहार के पति गोविंद सिंह को भी आरोपी बनाया गया था।काफी लंबे समय तक आरोपी की गिरफ्तारी नहीं होने पर मामला उच्चतम न्यायालय भी पहुंचा।अदालत ने आरोपी को शीघ्र गिरफ्तार करने के निर्देश दिए थे।

इस मामले में भिंड जिले के एक विधायक की भूमिका भी चर्चा में रही।वहीं मामला शीर्ष अदालत में पहुंचने पर पुलिस ने आरोपी की गिरफ्तारी पर इनाम की राशि बढ़ाकर 50 हजार रुपए कर दी थी।

पुलिस और एसटीएफ के अनेक दल आरोपी को गिरफ्तार करने के लिए दिनरात एक कर रहे थे।

इस बीच शुरूआत में खबर आयी कि आरोपी ने ग्वालियर पुलिस के समक्ष समर्पण किया है और वहीं से पुलिस ने उसे अपने कब्जे में लेकर गिरफ्तार किया।

लेकिन एसटीएफ के पुलिस अधीक्षक नीरज सोनी ने कहा कि उनकी टीम लगातार आरोपी को तलाश रही थी।उन्हें कुछ सूचनाएं मिलीं और इसके आधार पर गोविंद सिंह को रविवार की सुबह भिंड के बस स्टैंड से गिरफ्तार कर लिया गया।

इसके बाद उसे न्यायालय में पेश किया गया।

महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने खुद ही बताया: उन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश करेंगे attacknews.in

नागपुर, 28 मार्च । महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने रविवार को कहा कि मुम्बई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह ने उनके विरुद्ध लगाये गये भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश करेंगे।

श्री देशमुख ने नागपुर हवाई अड्डे पर संवाददाताओं से कहा कि इस जांच के बाद इस मामले का सच सामने आ जायेगा।

गौरतलब है कि श्री सिंह ने 20 मार्च को मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को एक पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि श्री देशमुख चाहते थे कि पुलिस अधिकारी मुम्बई में बार, होटल और अन्य प्रतिष्ठानों से 100 करोड़ रुपये उगाही करके उन्हें दें।

इस पत्र के बाद महाराष्ट्र सरकार को झटका लगा था और विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने पूरे मामले की गहराई से जांच कराये जाने की मांग के साथ ही श्री देशमुख के इस्तीफे की मांग की थी।

श्री देशमुख ने मीडिया से कहा कि उन्होंने श्री सिंह के उनके विरुद्ध लगाये गये आरोपों की जांच कराने की मुख्यमंत्री से मांग की थी।

उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री ने इस मामले की जांच उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश से कराये जाने का फैसला किया है।

उधर, इस मामले में आरोप लगाने वाले परमबीर सिंह देशमुख भी बॉम्बे हाईकोर्ट पहुंच चुके हैं. हाल ही में मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त ने हाईकोर्ट में एक आपराधिक मामले के संबंध में याचिका दायर की थी।उन्होंने महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख के खिलाफ कथित भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए सीबीआई जांच की मांग की। इससे पहले परम बीर सिंह ने देशमुख के खिलाफ लगाए गंभीर आरोपों के मद्देनजर केंद्रीय जांच एजेंसी (सीबीआई) की जांच की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. हालांकि शीर्ष अदालत ने उन्हें हाईकोर्ट में जाने की सलाह दी थी, जिसके बाद अब सिंह ने बंबई हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

दरअसल, परमबीर सिंह ने हाल ही में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को लिखे एक पत्र में गृहमंत्री देशमुख पर गंभीर आरोप लगाए, जिसके बाद राज्य ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी भूचाल आ गया. उन्होंने आरोप लगाया कि देशमुख ने गिरफ्तार-निलंबित सहायक पुलिस निरीक्षक सचिन वाजे को प्रति माह 100 करोड़ रुपये उगाहने के लिए कहा था. महाराष्ट्र की महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार और देशमुख ने हालांकि पूर्व पुलिस आयुक्त सिंह के आरोपों को खारिज कर दिया है.

परमबीर सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में यह दावा भी किया था कि अन्य बातों के अलावा उन पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कुछ नेताओं की भूमिका की जांच करने और उन्हें दादर और नगर हवेली के सांसद मोहन डेलकर की 22 फरवरी के आत्महत्या के मामले में फंसाने के लिए दबाव डाला गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों द्वारा जारी “इलेक्टोरल बॉण्ड” की बिक्री पर रोक लगाने से किया इंकार attacknews.in

नयी दिल्ली, 25 मार्च । उच्चतम न्यायालय ने पश्चिम बंगाल, असम और तमिलनाडु सहित पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों से ऐन पहले इलेक्ट्रोरल बॉण्ड की बिक्री पर रोक लगाने संबधी याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी।

मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने गैर-सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की याचिका खारिज करते हुए कहा कि इलेक्ट्रोरल बॉण्ड को 2018 एवं 2019 में ही जारी करने की अनुमति दी गयी थी और इसके लिए पर्याप्त सुरक्षा मानक हैं। ऐसी स्थिति में मौजूदा समय में इलेक्ट्रोरल बॉण्ड पर रोक लगाना न्यायोचित नहीं होगा।”

खंडपीठ में न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रमासुब्रमण्यम भी शामिल हैं।

न्यायालय ने गत बुधवार को एडीआर की ओर से जाने माने वकील प्रशांत भूषण की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।

श्री भूषण ने दलील दी थी कि यह बॉण्ड एक तरह का दुरुपयोग है जो शेल कंपनियां कालेधन को सफेद बनाने में इस्तेमाल कर रही हैं। उन्होंने कहा कि बॉण्ड कौन खरीद रहा है, यह सिर्फ सरकार को पता होता है। यहां तक कि चुनाव आयोग भी इस बारे में कोई जानकारी नहीं ले सकता।

श्री भूषण ने कहा था कि यह एक तरह की करेंसी है और सात हजार करोड़ रुपये से ज्यादा खरीदा जा चुका है। यह सत्ता में बैठे राजनीतिक दल को रिश्वत देने का एक तरीका है।

उन्होंने कहा था कि इसमें फर्जीवाड़े की बड़ी आशंका है। नोटबंदी के बाद यह व्यवस्था सरकार लेकर आयी थी, जिसका उपयोग कालेधन को खपाने में किया जा रहा है। सरकार के इस कदम का काफी विरोध हुआ है।

रतन टाटा ही शहंशाह:सुप्रीम कोर्ट ने सायरस मिस्त्री को टाटा समूह का कार्यकारी अध्यक्ष बनाने के राष्ट्रीय कंपनी लॉ अपीलीय न्यायाधिकरण( NCLAT) के आदेश को रद्द किया attacknews.in

 

नयी दिल्ली, 26 मार्च । उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को एनसीएलएटी के 18 दिसम्बर 2019 के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें सायरस मिस्त्री को ‘टाटा समूह’ का दोबारा कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त करने का आदेश दिया गया था।

मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने टाटा समूह की अपील को सही पाया।

पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘राष्ट्रीय कंपनी लॉ अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) के 18 दिसंबर 2019 के आदेश को रद्द किया जाता है।’’

टाटा संस प्राइवेट लिमिटे़ड और साइरस इन्वेस्टमेंट्स प्राइवेट लिमिटेड ने राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) के फैसले के खिलाफ क्रॉस अपील दायर की थी, जिसपर शीर्ष न्यायालय का फैसला आया है।

आदेश में आगे कहा गया, ‘‘टाटा समूह की अपील को स्वीकार किया जाता है, और एसपी समूह की अपील खारिज की जाती है।’’

एनसीएलएटी ने अपने आदेश में 100 अरब डॉलर के टाटा समूह में साइरस मिस्त्री मिस्त्री को कार्यकारी चेयरमैन पद पर बहाल कर दिया था।

शापूरजी पालोनजी (एसपी) समूह ने 17 दिसंबर को न्यायालय से कहा था कि अक्टूबर, 2016 को हुई बोर्ड की बैठक में मिस्त्री को टाटा संस के चेयरमैन पद से हटाना ‘खूनी खेल’ और ‘घात’ लगाकर किया गया हमला था। यह कंपनी संचालन के सिद्धान्तों के खिलाफ था।

वहीं टाटा समूह ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा था कि इसमें कुछ भी गलत नहीं था और बोर्ड ने अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए मिस्त्री को पद से हटाया था।

टाटा समूह के मानद चेयरमैन रतन टाटा ने न्यायालय के फैसले को टाटा समूह की अखंडता और नैतिकता पर मुहर बताया और आभार जताया।

टाटा ने फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए ट्वीट किया, ‘‘मैं उच्चतम न्यायालय के फैसले की सराहना करता हूं और मैं न्यायालय का आभारी हूं।’’

उन्होंने आगे लिखा, ‘‘यह हार और जीत का विषय नहीं है। मेरी ईमानदारी और समूह के नैतिक आचरण पर लगातार हमले किए गए। फैसले ने टाटा समूह के मूल्यों और नैतिकता पर मुहर लगाई है, जो हमेशा से समूह के मार्गदर्शक सिद्धान्त रहे हैं।’’

उन्होंने कहा कि इस फैसले ने न्यायपालिका की निष्पक्षता को और मजबूत किया है।’’

मिस्त्री को 24 अक्टूबर 2016 को टाटा संस के चेयरमैन पद से अचानक बिना कोई कारण बताए हटा दिया गया था। हालांकि, बाद में कुछ प्रेस बयानों में समूह ने दावा किया कि मिस्त्री अपेक्षा के अनुसार प्रदर्शन नहीं कर पा रहे थे और उनकी निगरानी में टाटा संस को नुकसान हुआ।

दूसरी ओर मिस्त्री के अनुसार घाटे के आंकड़ों में समूह की भारी लाभ कमाने वाली कंपनी टीसीएस से मिलने वाले लाभांश को शामिल नहीं किया गया, जो औसतन सालाना 85 प्रतिशत से अधिक था।

प्रधान न्यायाधीश अरविंद बोबड़े की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने 25 जनवरी 2020 को राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) के आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें मिस्त्री को टाटा संस के अध्यक्ष के रूप में बहाल किया गया था। मिस्त्री के परिवार की टाटा संस में 18.37 प्रतिशत हिस्सेदारी है।

सुप्रीम कोर्ट ने मुख्तार अंसारी को पंजाब से उत्तर प्रदेश जेल भेजने का आदेश देकर कहा: विशेष कोर्ट तय करेगा कि,उसे बांदा जेल रखा जाए या इलाहाबाद जेल. यह आदेश इसलिए दिया गया ताकि वह वहां मुकदमे का सामना कर सके attacknews.in

नयी दिल्ली, 26 मार्च । उच्चतम न्यायालय ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी को पंजाब से उत्तर प्रदेश की जेल में स्थानांतरित करने का शुक्रवार को आदेश दिया।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार की रिट याचिका स्वीकार करते हुए मुख्तार अंसारी को दो सप्ताह के भीतर पंजाब की रोपड़ जेल से उत्तर प्रदेश की गाजीपुर जेल स्थानांतरित किये जाने का आदेश दिया।

खंडपीठ ने कहा कि यह निर्देश दिया जाता है कि मुख्तार अंसारी को दो सप्ताह के भीतर उत्तर प्रदेश पुलिस की हिरासत में सौंप दिया जाये। वह बांदा जेल में बंद रहेंगे। वहां के जेल अधीक्षक चिकित्सा सुविधाओं की देखरेख करेंगे।

न्यायालय ने गत चार मार्च को सभी संबद्ध पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। मुख्तार अंसारी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और पंजाब सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे तथा उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पैरवी की।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा की विशेष कोर्ट तय करेगा कि मुख्तार अंसारी को बांदा जेल में रखा जाए या इलाहाबाद जेल में. यह आदेश इसलिए दिया गया है ताकि अंसारी वहां पर मुकदमे का सामना कर सके।

इससे पहले कोर्ट ने दो ट्रांसफर याचिकाओं को सीज कर लिया था, जिनमें से एक यूपी सरकार द्वारा अंसारी को पंजाब से यूपी ट्रांसफर करने को लेकर दायर की गई थी वहीं में दूसरी अंसारी ने अपने खिलाफ दर्ज केस को दिल्ली ट्रांसफर करने की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने अंसारी की याचिका को खारिज कर दिया।

बता दें कि गैंगस्टर को लेकर यूपी और पंजाब सरकारों के बीच जंग छिड़ी हुई थी। अंसारी यूपी की एक जेल में बंद था और उसके केस का ट्रायल चल रहा था। इसी बीच पंजाब पुलिस ने जबरन वसूली और आपराधिक धमकी की शिकायत मिलने पर उसके खिलाफ प्रोडक्शन वारंट हासिल किया और उसे पंजाब ले गई।

पंजाब सरकार की दलीलों से कोर्ट संतुष्ट नही हुआ, जिसके बाद फैसला यूपी सरकार के पक्ष में आया। पंजाब सरकार ने उत्तर प्रदेश में लंबित अपने सभी मामले पंजाब स्थानांतरित करने की मांग सुप्रीम कोर्ट से की थी।सुप्रीम कोर्ट ने 4 मार्च को यूपी सरकार की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रखा था।

यूपी सरकार की याचिका में बसपा विधायक मुख्तार अंसारी को पंजाब की रोपड़ जेल से उत्तर प्रदेश की बांदा जेल में स्थानांतरित करने की मांग की गई थी।मुख्तार अंसारी के खिलाफ यूपी की विभिन्न अदालतों में 50 मुकदमे दर्ज हैं, जिसके लिए यूपी सरकार मुख्तार को यूपी लाने की कोशिश में लगी थी।

उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से कोर्ट में पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने 3 मार्च को सुनवाई के दौरान बताया कि अंसारी ‘पंजाब की रोपड़ जेल से अपना कारोबार संचालित कर रहा है।’ मेहता ने कहा कि जिस एफआईआर के कारण पंजाब पुलिस ने अंसारी की गिरफ्तारी की, उसमें साफतौर से मुख्तार अंसारी का नाम नहीं था और मजिस्ट्रेट के निर्देश के बिना बांदा जेल अधीक्षक द्वारा सौंपे जाने के बाद अंसारी को पंजाब ले जाया गया।

मुंबई के निलंबित पुलिस अधिकारी सचिन वाजे की NIA हिरासत 3 अप्रैल तक बढ़ाई; महाराष्ट्र ATS का दावा:वाजे ने ही करवाई थी मनसुख हिरेन की हत्या और साजिशकर्ता की अहम भूमिका निभाई attacknews.in

मुंबई, 25 मार्च । उद्योगपति मुकेश अंबानी के घर के पास एक गाड़ी में जिलेटिन की छड़ें मिलने के मामले में गिरफ्तार किये गये निलंबित पुलिस अधिकारी सचिन वाजे की एनआईए हिरासत बृहस्पतिवार को यहां की एक विशेष अदालत ने तीन अप्रैल तक बढ़ा दी।उधर कल एटीएस प्रमुख जय जीत सिंह ने दावा किया था कि, निलंबित सचिन वाजे ने ही मनसुख हिरेन हत्याकांड में अहम भूमिका निभाई और हम एनआईए से उसकी हिरासत लेने के लिए अदालत का रुख करेंगे।

वाजे ने विशेष एनआईए अदालत से कहा कि उनका अपराध से कोई लेना-देना नहीं है और उन्हें बलि का बकरा बनाया गया है।

मुंबई में सहायक पुलिस निरीक्षक वाजे (49) को राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने 13 मार्च को गिरफ्तार किया था। वाजे की पिछली रिमांड का समय निकलने के बाद उन्हें अदालत में पेश किया गया था।

एनआईए ने वाजे के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के सख्त प्रावधानों को लागू किया था। एजेंसी ने उनकी 15 और दिन की हिरासत की मांग की।

वाजे ने सुनवाई के दौरान न्यायाधीश पी आर सितरे से कहा, ‘‘मुझे बलि का बकरा बनाया गया है और मेरा इस मामले से कोई लेनादेना नहीं है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मैं डेढ़ दिन तक मामले का जांच अधिकारी रहा और अपनी क्षमता के हिसाब से जो कर सकता था, मैंने किया। लेकिन अचानक से योजना में कहीं कोई बदलाव हो गया। मैं खुद ही एनआईए दफ्तर गया था और मुझे गिरफ्तार कर लिया गया।’’

वाजे ने कहा कि उन्होंने कोई अपराध कबूल नहीं किया है।

एनआईए के वकील अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल अनिल सिंह ने अदालत से कहा कि यह जानकर सभी स्तब्ध हैं कि अपराध में एक पुलिसकर्मी शामिल है।

महाराष्ट्र ATS का दावा: सचिन वाजे ने ही करवाई थी मनसुख हिरेन की हत्या में वाजे ने ही साजिशकर्ता की अहम भूमिका निभाई :

इधर मुंबई में कल महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ते (ATS) ने कहा कि निलंबित मुंबई पुलिस अधिकारी सचिन वाजे ने मनसुख हिरेन हत्याकांड में अहम भूमिका निभाई।

पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए एटीएस प्रमुख जय जीत सिंह ने दावा किया कि गिरफ्तार अधिकारी हत्या के मामले में एक साजिशकर्ता था।

उन्होंने कहा कि सचिन वाजे ठाणे निवासी मनसुख हिरेन की हत्या में शामिल था। हम एनआईए से उसकी हिरासत लेने के लिए अदालत का रुख करेंगे।

इसके अलावा एटीएस ने मनसुख हिरेन हत्या मामले के सिलसिले में दमन से एक महंगी कार जब्त की है। महाराष्ट्र के पंजीकरण नंबर वाली एक वॉल्वो कार जब्त की गई, जिसके मालिक का अभी पता नहीं चला पाया है।

महाराष्ट्र एटीएस चीफ ने कहा कि दमन से आज जब्त की गई कार का मुंबई में एफएसएल द्वारा विश्लेषण किया जा रहा है।

इससे पहले, इस हत्याकांड के संबंध में शनिवार रात दो व्यक्तियों को गिरफ्तार करने के बाद एटीएस ने गुजरात से एक और व्यक्ति को गिरफ्तार किया था। इस व्यक्ति ने कथित तौर पर आरोपियों को सिम कार्ड उपलब्ध कराए थे।

अधिकारियों ने बताया था कि उन्होंने इस व्यक्ति के पास से कई सिम कार्ड बरामद किये हैं। एटीएस ने मामले के संबंध में, निलंबित पुलिसकर्मी विनायक शिंदे और क्रिकेट मैच के सटोरिये नरेश गौड़ को पिछले सप्ताह गिरफ्तार किया था।

गौरतलब है कि मुंबई में उद्योगपति मुकेश अंबानी के आवास के पास 25 फरवरी को एक संदिग्ध वाहन पाया गया था। इस वाहन से जिलेटिन की 20 छड़ें बरामद हुई थी। यह वाहन ठाणे के कारोबारी मनसुख हिरेन का था, जो कथित तौर पर चोरी हो गया था। इसके बाद,पांच मार्च को मनसुख का शव मुंब्रा के पास मिला था।

एनआईए इस पूरे मामले की जांच कर रही है और उसने सचिन वाजे को गिरफ्तार किया था। एनआईए ने अपनी जांच के तहत अभी तक पांच महंगी कारें जब्त की हैं, जिनमें दो मर्सिडीज भी शामिल हैं।

बुलंदशहर में नाबालिग का अपहरण करके सामूहिक बलात्कार के बाद निर्ममता से हत्या के मामले में पोक्सो कोर्ट ने तीन दरिंदों को सुनाई फांसी की सजा attacknews.in

बुलंदशहर,24 मार्च । उत्तर प्रदेश की बुलंदशहर पोक्सो विशेष अदालत ने इंटरमीडिएट की नाबालिग छात्रा का अपहरण कर सामूहिक बलात्कार के बाद दुपट्टे से गला घोट कर हत्या करने के मामले में तीनों अभियुक्तों को फांसी की सजा सुनाई और प्रत्येक पर दो लाख 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाया।

सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता रेखा दीक्षित ध्रुव वर्मा और विशेष लोक अभियोजक भरत शर्मा ने यहां जानकारी देते हुए बताया कि दो जनवरी 2018 को कार सवार तीन युवकों ने चांदपुर रोड बुलंदशहर निवासी नाबालिग छात्रा का उस समय अपहरण कर लिया जब वह साइकिल से ट्यूशन पढ़कर अपने घर लौट रही थी । अभियुक्तों ने छात्रा के साथ चलती कार में ही दुष्कर्म की घटना को अंजाम दिया और बाद में उसके दुपट्टे से गला घोट कर उसकी निर्मम हत्या कर गौतमबुद्धनगर जिले के दादरी क्षेत्र की एक नहर में उसके शव को फेंक दिया था।

इस संबंध में नगर कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस ने जांच पड़ताल शुरू की और घटना के दो दिन बाद दादरी नहर से उसका शव बरामद किया गया।

पुलिस ने सड़क पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज की मदद से अपहरण में प्रयुक्त कार अपहरणकर्ताओं की शिनाख्त की और जांच में प्रकाश में आए जुल्फीकार अब्बासी दिलशाद और इजरायल उर्फ मालानी निवासी सिकंदराबाद को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया।

मामला सुर्खियों में आने पर तीनों अभियुक्तों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था।

जांच के बाद जुल्फीकार अब्बासी समेत तीनों अभियुक्तों के विरुद्ध आईपीसी की धारा 376, 364 302 201 और पोक्सो एक्ट के तहत आरोप पत्र न्यायालय में दाखिल किया था।

मुकदमे की अंतिम सुनवाई अपर जिला सत्र न्यायाधीश पॉक्सो राजेश पाराशर की अदालत में हुई अभियोजन पक्ष की पैरवी एडीजीसी रेखा दिक्षित ध्रुव वर्मा विशेष लोक अभियोजक भरत शर्मा और पीड़ित पक्ष के वकील अनिल गौड़ ने की।

अभियोजन पक्ष ने अपने कथन के समर्थन में कई गवाह न्यायालय में पेश किए कई साक्ष्य भी दाखिल किए गए ।

वहीं बचाव पक्ष ने अब इनकी कहानी को झूठा बताया पोक्सो न्यायाधीश राजेश पाराशर ने गवाहों के बयान पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर तीनों अभियुक्तों को नाबालिग छात्रा का अपहरण कर चलती कार में दुष्कर्म करने दुपट्टे से गला घोट कर हत्या करने और सबूत मिटाने के उद्देश्य से बालिका के शव को नहर में फेंक देने का दोषी करार दिया सजा के बिंदु पर आज बुधवार को दोनों पक्षों को सुना गया ।

अभियोजन पक्ष ने जहां इसे जघन्य अपराध मानते हुए अभियुक्तों को कड़ी सजा देने की मांग की वहीं बचाव पक्ष ने न्यायालय से रहम की अपील की ।

एडीजे ने अपने न्याय निर्णय में इस मामले को जघन्य घटना मानते हुए इसी समाज के लिए घातक बताया है।

एडीजे का कहना है कि बालिकाओं का संरक्षण एवं सुरक्षा देना देश समाज सहित सभी का कर्तव्य और तीनों युवकों ने जो कुछ किया वह सामाजिक दृष्टिकोण से उचित नहीं है।

इस कारण अभियुक्तों को कड़ी सजा दिया जाना जरूरी है ।

पोक्सो न्यायाधीश ने जुल्फीकार दिलशाद इजराइल उर्फ मालानी को फांसी की सजा सुनाने हुए प्रत्येक पर दो लाख 10 हजार रुपये का जुर्माना भी किया है ।

न्यायाधीश ने अपने आदेश में लिखा है कि फांसी की सजा का आदेश उच्च न्यायालय के अप्रूवल के बाद ही अमल में लाया जाएगा ।

उन्होंने तीनों अभियुक्तों को न्यायिक अभिरक्षा में लेकर जिला जेल भेजने के आदेश दिए हैं ।

बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा मुंबई पुलिस को आदेश: अर्नब गोस्वामी के खिलाफ TRP घोटाले में किसी भी तरह की कार्रवाई से पहले तीन दिन पूर्व नोटिस दे पुलिस attacknews.in

मुंबई, 24 मार्च । बॉम्बे उच्च न्यायालय ने बुधवार को मुंबई पुलिस को आदेश दिया कि रिपब्लिक टीवी के मुख्य संपादक अर्नब गोस्वामी के खिलाफ टीआरपी घोटाला मामले में जांच के दौरान किसी भी तरह की कार्रवाई करना हो तोवह तीन दिन की अग्रिम नोटिस जारी करें।

बंबई उच्च न्यायालय ने बुधवार को मुंबई पुलिस को निर्देश दिया कि अगर वह टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट (टीआरपी) घोटाला मामले में रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्णब गोस्वामी को गिरफ्तार करना चाहती है तो उन्हें तीन दिन पहले इस संबंध में नोटिस दें।

जस्टिस एसएस शिंदे और जस्टिस मनीष पिताले की पीठ ने महाराष्ट्र सरकार के इस बयान को भी स्वीकार किया कि रिपब्लिक टीवी, एआरजी आउटलायर मीडिया के अन्य कर्मचारियों और अन्य टेलीविजन चैनलों के खिलाफ जांच 12 हफ्तों में पूरी हो जाएगी। अदालत गोस्वामी और एआरजी मीडिया की कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है जिसमें उन्होंने मामले में कई राहतें मांगी हैं।

याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था मुंबई पुलिस की अपराध शाखा के पास उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं है लेकिन वह आरोपपत्र में संदिग्ध के तौर पर उनका नाम लेकर जांच को खींच रही है। सोमवार को हुई सुनवाई में उच्च न्यायालय ने पुलिस से कहा कि वह कोई भी मामले में किसी का भी नाम लिए बगैर महीनों तक जांच नहीं कर सकती।

अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड में उपलब्ध तथ्यों पर गौर करते हुए पुलिस के पास मामले में गोस्वामी के खिलाफ कुछ भी ठोस नहीं है। पीठ ने कहा, ‘‘अगर जांच के दौरान आपको कुछ मिलता है और आप याचिकाकर्ता के खिलाफ बलपूर्वक कार्रवाई करना चाहते हैं तो आपको गोस्वामी को 72 घंटे पहले नोटिस देना होगा।’’ अदालत 28 जून को फिर से दलीलों पर सुनवाई करेगी।