सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना वायरस संक्रमण में जान गंवाने वाले लोगों के परिवार को ₹ 4 लाख अनुग्रह राशि देने का अनुरोध करने वाली याचिका पर केन्द्र से मांगा जवाब attacknews.in

नयी दिल्ली, 24 मई । उच्चतम न्यायालय ने कोरोना वायरस संक्रमण के कारण जान गंवाने वाले लोगों के परिवार को चार लाख रुपये अनुग्रह राशि दिए जाने का अनुरोध करने वाली याचिका पर केन्द्र से सोमवार को जवाब मांगा ।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एमआर शाह की अवकाशकालीन पीठ ने केन्द्र को कोविड-19 से मरने वाले लोगों के मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने के भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के दिशा-निर्देशों की जानकारी उपलब्ध कराने का निर्देश दिया। पीठ ने कहा कि इसके लिये समान नीति अपनाई जाए।

शीर्ष अदालत दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। इन याचिकाओं में केन्द्र तथा राज्यों को 2005 के आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत संक्रमण के कारण जान गंवाने वाले लोगों के परिवार को चार लाख रुपये अनुग्रह राशि देने और मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने के लिए समान नीति अपनाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।

पीठ ने कहा कि जब तक कोई आधिकारिक दस्तावेज या मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने के लिए एक समान नीति नहीं होगी, जिसमें कहा गया हो कि मृत्यु का कारण कोविड था, तब तक मृतक के परिवार वाले किसी भी योजना के तहत, अगर ऐसी कोई है, मुआवजे का दावा नहीं कर पाएंगे ।

पीठ ने केन्द्र को अपना रुख स्पष्ट करने का निर्देश देते हुए मामले की आगे की सुनवाई के लिये 11 जून की तारीख तय की।

दिल्ली हाईकोर्ट ने दस्तावेजों की अनिवार्य ई-फाइलिंग के खिलाफ राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण( NCLAT) को नोटिस जारी attacknews.in

नयी दिल्ली ,22 मई । दिल्ली उच्च न्यायालय ने कोविड-19 की दूसरी लहर के बीच न्यायाधिकरण मेंं दस्तावेजों की अनिवार्य ई-फाइलिंग के खिलाफ एक याचिका पर राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) के रजिस्ट्रार को नोटिस जारी किया है।

न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की एकल पीठ ने 20 मई के अपने आदेश में कहा, “मुझे हालांकि प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ता की दलीलों में दम लगता है, क्योंकि प्रतिवादी की ओर से कोई पेश नहीं होता है, इस संबंध में इस स्तर पर कोई आदेश पारित नहीं किया जा रहा है।”

इसके बाद पीठ ने एनसीएलएटी को नोटिस जारी कर 27 मई तक जवाब मांगा।

महामारी के बीच केवल ई-फाइलिंग की अनुमति देने की मांग करते हुए एक अधिवक्ता की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि संशोधित मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) इस बात पर जोर दे रहा है कि दलीलों की हार्ड कॉपी दायर की जाए। अधिवक्ताओं/ वादियों को निजी तौर पर ट्रिब्यूनल की रजिस्ट्री के लिए आने और खुद को कोविड-19 संक्रमितों के संपर्क में आने के लिए मजबूर किया जा रहा है।

याचिका में कहा गया कि अधिकांश न्यायिक निकायों ने न केवल ऑनलाइन सुनवाई की, बल्कि वादियों और अधिवक्ताओं को घरों और अपने कार्यालयों से मामले और दस्तावेज दर्ज कराने के लिए ई-फाइलिंग प्रणाली भी शुरू की है।

उन्होंने कहा कि अगर जरुरी हो तो न्यायाधिकरण कामकाज शुरू करने के बाद, वादी/प्रतिवादी अपनी हार्ड कॉपी दाखिल करेंगे।

मुंबई पुलिस के पूर्व आयुक्त परमबीर सिंह के खिलाफ दर्ज कर दिया एससी/एसटी कानून के तहत प्रकरण पर हाईकोर्ट ने 23 मई तक गिरफ्तारी पर लगाई रोक; पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख के खिलाफ भ्रष्टाचार के लगाए थे आरोप attacknews.in

मुंबई, 21 मई । बंबई उच्च न्यायालय ने पुलिस को शुक्रवार को निर्देश दिया कि वह एससी/एसटी (अत्याचार रोकथाम) कानून के तहत दर्ज मामले में मुंबई पुलिस के आयुक्त रह चुके परमबीर सिंह को 23 मई तक गिरफ्तार नहीं करे।

सिंह ने अदालत में याचिका दायर कर उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने और मामले की सीबीआई जांच कराए जाने का अनुरोध किया था। न्यायूमर्ति एस जे कथावाला और न्यायमूर्ति एस पी तावडे की खंडपीठ ने शुक्रवार देर रात इस याचिका पर सुनवाई की।

सिंह के अधिवक्ता ने दलील दी कि पूर्व पुलिस आयुक्त ने महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे, जिसके कारण उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई, लेकिन सरकार ने कहा कि शिकायत में अपराध का खुलासा हुआ था, जिसके कारण प्राथमिकी दर्ज की गई। बहरहाल, पीठ ने प्राथमिकी दर्ज किए जाने के समय पर सवाल उठाया।

पीठ ने मामले की सुनवाई सोमवार तक के लिए स्थगित कर दी और तब तक परमबीर सिंह को इस मामले में गिरफ्तार नहीं किए जाने का पुलिस को निर्देश दिया।

पटना हाईकोर्ट ने सेनारी नरसंहार में 34 लोगों की वीभत्स तरीके से की गई हत्या के 13 हत्यारों को निचली अदालत द्वारा दी गई फांसी और उम्र कैद की सजा से 15 को बरी किया attacknews.in

 

पटना 21 मई । पटना उच्च न्यायालय ने सेनारी नरसंहार के 15 दोषियों को आज बरी कर दिया ।

न्यायाधीश अश्विनी कुमार सिंह और न्यायाधीश अरविंद श्रीवास्तव की खंडपीठ ने बहुचर्चित सेनारी नरसंहार मामले में सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसे शुक्रवार को सुनाया ।

खंडपीठ ने निचली अदालत के फैसले को रद्द करते हुए 15 दोषियों को बरी करने का आदेश दिया । इससे पूर्व जहानाबाद की जिला अदालत ने नरसंहार के इस मामले में 11 दोषियों को फांसी और 4 को उम्रकैद की सजा सुनाई थी ।

बिहार के चर्चित सेनारी नरसंहार कांड में पटना हाईकोर्ट ने शुक्रवार को निचली अदालत से दोषी ठहराए गए 15 आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया है। साथ ही निचली अदालत द्वारा दी गई सजा को रद्द कर दिया। सभी को जेल से रिहा करने का आदेश दिया है।

18 मार्च 1999 को वर्तमान अरवल जिले (तत्कालीन जहानाबाद) के करपी थाना के सेनारी गांव में 34 लोगों की निर्मम हत्या कर दी गई थी। आरोप प्रतिबंधित एमसीसी उग्रवादियों पर लगा था।

इसी मामले में पटना हाईकोर्ट की दो सदस्यीय खंडपीठ के न्यायामूर्ति अश्वनी कुमार सिंह और न्यायमूर्ति अरविंद श्रीवास्ताव ने सेनारी नरसंहार कांड की सुनवाई के बाद फैसला दिया है।

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सरकारी पक्ष यानी अभियोजन पक्ष इस कांड के आरोपियों पर लगे आरोप को साबित करने में असफल है। नरसंहार कांड के इन आरोपियों के खिलाफ पुख्ता और ठोस साक्ष्य पेश करने में सरकार पूरी तरह असफल रही है। निचली अदालत द्वारा 15 नवंबर 2016 को नरसंहार कांड के 11 आरोपियों को फांसी की सजा और अन्य को आजीवन कारावास की सजा दी गई थी। सजा पाए आरोपियों ने निचली अदालत के फैसले को पटना हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए अपील दायर की थी।

निचली अदालत ने जिन आरोपियों को मौत की सजा दी थी, उनकी सजा को सही ठहराने के लिए सजा के फैसले और साक्ष्य समेत सभी रिकॉर्ड को पटना हाईकोर्ट भेजा था। पटना हाईकोर्ट ने मौत की सजा वाले और आजीवन कारावास के फैसले पर एक साथ सुनवाई करने के बाद शुक्रवार को फैसला दिया है। पटना हाईकोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष के साक्ष्य एक दूसरे से मेल नहीं खाते हैं। वहीं, आरोपियों की पहचान की प्रक्रिया सही नहीं है। अनुसंधानकर्ता पुलिस ने पहचान की प्रक्रिया नहीं की है। गवाहों ने आरोपियों की पहचान कोर्ट में की है जो पुख्ता साक्ष्य की गिनती में नहीं है। इसलिए संदेह का लाभ आरोपियों को मिलता है। इसके अलावे इस कांड के विचारण के दौरान भी सरकार यानि अभियोजन और पुलिस प्रशासन भी आरोपियों के खिलाफ ठोस साक्ष्य पेश करने में असफल रहा।

34 लोगों की हुई थी निर्मम हत्या

तत्कालीन जहानाबाद और वर्तमान अरवल जिले के करपी थाने के सेनारी गांव में 18 मार्च 1999 की शाम करीब 7.30 बजे से 11 बजे रात तक प्रतिबंधित संगठन के एमसीसी उग्रवादियों पर गांव के 34 लोगों की तेजधार हथियार से गला व पेट फाड़कर और गोली मार कर निर्मम हत्या कर नरसंहार करने का आरोप है। इस नरसंहार कांड में मारे गए अवध किशोर शर्मा की पत्नी चितांमणी देवी के बयान पर पुलिस ने 19 मार्च 1999 को करपी थाने में कांड दर्ज किया था। जबकि नरसंहार की सूचना घटना के दिन ही 11.40 बजे रात में पुलिस को मिल गयी थी। दर्ज बयान के अनुसार पुलिस वर्दी में प्रतिबंधित संगठन के एमसीसी के उग्रवादियों ने सेनारी को घेर लिया व गांव के लोगों को घर से पकड़ कर ठाकुरबाड़ी के पास ले गए। उग्रवादियों ने एक-एक कर 34 लोगों को मार डाला।

निचली अदालत ने सुनाई थी सजा 

जहानाबाद सिविल कोर्ट के अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश तीन रंजीत कुमार सिंह ने इस नरसंहार के 15 आरोपियों को 15 नवंबर 2016 को सजा सुनाई थी। जिसमें 11 को मौत व अन्य को सश्रम आजीवन कारावास की सजा दी थी। सेशन कोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में 23 अन्य  को बरी कर दिया था। पुलिस ने कई बार में 74 के खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट दायर की थी। कुछ की सुनवाई के दौरान मौत हो गई थी।

इन्होंने दायर की थी याचिका

निचली अदालत ने बचेश कुमार सिंह, बुधन यादव, गोपाल साव, सत्येन्द्र दास, ललन पासी, द्वारिका पासवान, करीमन पासवान, गोरई पासवान, उमा पासवान व दुखन कहार उर्फ दुखन राम को मौत की जा सुनाई थी। मुगेश्वर यादव, विनय पासवान और अरिवंद पासवान को सश्रम आजीवन कारावास की सजा दी थी। इन्हीं लोगों ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

वहीं सेनारी गांव के लोगों का कहना है कि यह फैसला निराशाजनक है। ग्रामीण नीतीश कुमार, अजय शर्मा आदि ने कहा कि न्यायालय की भाषा में साक्ष्य के अभाव भले ही हैं। पर हमारे परिजनों की गला रेतकर जघन्य हत्या कर दी गई। इससे बड़ा साक्ष्य क्या होगा। सभी लोग जानते हैं कि 18 मार्च 1999 की रात एमसीसी के हथियारबंद लोगों ने 34 लोगों की हत्या ठाकुरबाड़ी के पास ले जाकर कर दी थी। आखिर कौन सा साक्ष्य चाहिए था। समझ से परे हैं। आरोपियों ने गर्दन काटने के बाद उनके पेट को चीर दिया था।

चाचा को खोया था नीतीश ने

नीतीश ने बताया कि नरसंहार में वह अपने चाचा को खोया था। वहीं अजय शर्मा ने बताया कि नक्सलियों ने उसके भाई की हत्या कर दी थी। महेश शर्मा, अरविंद शर्मा, सुरेश शर्मा ने बताया कि हमलोगों ने अपना परिवार खोया है। अब खोने के लिए बाकी क्या रह गया है। यह भी कहा कि निचली अदालत के फैसले से न्याय मिलने की आस जगी थी। लेकिन, आज वह भी समाप्त हो गई।

सरकार मामले को सुप्रीम कोर्ट में करे दाखिल

मृतक के परिजनों ने कहा कि सरकार जिस प्रकार से अन्य नरसंहार के लिए सुप्रीम कोर्ट गई है। हम लोगों को भी न्याय दिलाने के लिए सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करे।

सेनारी गांव के अलावा आसपास गांवों में पसरा है मातम

हाईकोर्ट के फैसले के बाद सेनारी गांव के अलावा खटांगी, मंझियावां, ओढ़बिगहा समेत दर्जनों गांवों में मातम छाया हुआ है। विभिन्न संगठनों से जुड़े ग्रामीण इस फैसले से काफी नाराज दिख रहे हैं। लोगों का कहना है कि सरकार इस मामले को सुप्रीम कोर्ट ले जाए। जब तक अभियुक्तों को सजा नहीं मिलेगी। मृतक के परिजन रात की सांस नहीं ले पाएंगे। इतनी बड़ी घटना में सभी लोगों को बरी किया जाना पूरी तरह हास्यप्रद है। इससे अभियुक्तों का मनोबल बढ़ेगा और अपराध की घटनाएं बढ़ेगी।

आपस में मिलजुलकर रहते हैं लोग

मृतक के परिजनों ने बताया कि गांव में अब कोई तनाव नहीं है। हम लोग मिलजुल कर रह रहे हैं। सेनारी के अलावा आसपास के गांवों में भी अमन चैन कायम है। पहले इलाका काफी अशांत था। लेकिन, पिछले 15 वर्षों से इस इलाके में आपसी समन्वय मजबूत हुआ है। जिसके कारण अब देर रात भी निर्भीक होकर लोग अपने घर आते-जाते हैं। ग्रामीणों ने यह भी कहा कि जो फैसला आया है। उससे निराशा हाथ लगी है। अब तो सूबे की सरकार इस मामले में क्या करती है। इसी पर निगाहें टिकी है।

19 मार्च 1999 को चिंतामणि के बयान पर दर्ज हुई थी प्राथमिकी

अरवल जिले के करपी थाना क्षेत्र के सेनारी गांव में 18 मार्च 1999 की रात प्रतिबंधित नक्सली संगठन माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर के हथियारबंद लोगों ने हमला कर एक ही जाति के 34 लोगों की हत्या कर दी थी। शुरू में इसे पीपुल्स वार ग्रुप की हिंसक कार्रवाई मानी जा रही थी। लेकिन, एमसीसी ने पर्चा छोड़कर नरसंहार की जिम्मेवारी ली थी। उग्रवादियों द्वारा छोड़े गए पर्चे में शंकर बिगहा तथा नारायणपुर की घटनाओं के प्रतिशोद्ध की बात कही गई थी। इस घटना में सात लोग घायल हुए थे। तत्कालीन डीआईजी एसके भारद्वाज, डीएम अवनीश चावला, अरवल के एसपी संजय लाटेकर, डीजीपी टीपी सिन्हा, आईजी नीलमणि, गृहसचिव राजकुमार सिंह समेत कई वरीय अधिकारी घटना स्थल पर पहुंचे थे।

ट्रायल शुरू होने के बाद 31 लोगों ने दी थी गवाही
18 मार्च 1999 को सेनारी नरसंहार के दूसरे दिन 19 मार्च को करपी थाने में चिंतामणि देवी के बयान पर कांड संख्या 22-1999 के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। 16 जून 1999 को पुलिस के द्वारा चार्जशीट दाखिल किया गया था। इसके बाद 38 लोगों के खिलाफ ट्रायल चला।

सेनारी हत्याकांड में इन लोगों की गई थी जान

मधुकर कुमार, ओमप्रकाश उर्फ रोहित शर्मा, भूखन शर्मा, नीरज कुमार, ओमप्रकाश, राजेश कुमार, संजीव कुमार, राजू शर्मा, जितेंद्र शर्मा, विरेंद्र शर्मा, सच्चितानंद शर्मा, ललन शर्मा, अवधेश शर्मा, कुंदन शर्मा, धीरेंद्र शर्मा, अमरेश कुमार, रामदयाल शर्मा, सत्येंद्र कुमार, उपेंद्र कुमार, विमलेश शर्मा, परीक्षित नारायण शर्मा, रामनरेश शर्मा, चंद्रभूषण शर्मा, अवधकिशोर शर्मा, संजीव कुमार, श्यामनारायण सिंह, नंदलाल शर्मा, रामस्लोग शर्मा, ज्वाला शर्मा, पिंटू शर्मा, रामप्रवेश शर्मा, रंजन शर्मा, जितेन्द्र शर्मा, विरेन्द्र शर्मा।

गोवा की अदालत ने तहलका मैगजीन के पत्रकार तरूण तेजपाल काे महिला पत्रकार के साथ बलात्कार के आरोपों से बरी किया attacknews.in

 

पणजी,21 मई। गोवा की एक स्थानीय अदालत ने तहलका मैगजीन के पूर्व एडीटर इन चीफ तरूण तेजपाल को दुष्कर्म के आरोपाें से शुक्रवार को बरी कर दिया।

तेजपाल पर उसी के संस्थान की एक जूनियर पत्रकार ने 2013 में एक पांच सितारा होटल में दुष्कर्म करने का आरोप लगाया था।

तेजपाल के खिलाफ भारतीय दंड़ संहिता की विभिन्न धाराओं 376(बलात्कार), 341 (गलत तरीके से किसी को रोकना),342 (गलत तरीके से किसी को घेरकर रखना),354ए(शारीरिक उत्पीडन) और 354बी( आपराधिक हमला) के तहत मामला दर्ज किया गया था।

इस फैसले के बाद तेजपाल के वकील ने कहा कि अदालत ने उसके मुवक्किल को सभी आरोपों से बरी कर दिया है लेकिन अभी तक आदेश की कापी नहीं दी गई है। वकील का कहना है कि आदेश की कापी बाद में अपलोड की जाएगी।

शिकायतकर्ता महिला पत्रकार के अनुसार यह घटना सात नवंबर 2013 की है जब तेजपाल ने एक लिफ्ट में इस पत्रकार के साथ छेड़खानी की थी और उस समय यह मामला काफी चर्चा में आया था।

गोवा पुलिस ने इस मामले में तेजपाल के खिलाफ 20 नवंबर को प्राथमिकी दर्ज की थी जिसमेंं उस पर दुष्कर्म का आरोप था।

एक स्थानीय अदालत में उसकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज होने के बाद पुलिस ने तेजपाल को 30 नवंबर को गिरफ्तार किया था। इसके बाद तेजपाल को आठ महीने तक पुलिस और न्यायिक हिरासत में रहना पड़ा था।

इस मामले में गोवा पुलिस क्राइम ब्रांच ने 2,846 पेज की चार्जशीट दाखिल की थी लेकिन बाद में उच्चतम न्यायालय ने तेजपाल को जमानत पर रिहा कर दिया था।

इस मामले में प्रतिक्रिया करते हुए गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने कहा कि जिला अदालत के फैसले के खिलाफ राज्य सरकार उच्च न्यायालय में अपील कर करेगी।

उन्होंने कहा कि गोवा में महिलाओं के साथ अन्याय को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और तेजपाल को बरी किए जाने पर इस मामले को उच्च न्यायालय में चुनौती देने के लिए वह व्यक्तिगत रूप से सरकारी वकील तथा जांच अधिकारी के साथ विचार विमर्श करेंगे।

कलकत्ता हाईकोर्ट ने गिरफ्तार 2 मंत्री और तृणमूल नेताओं की नजरबंंद का आदेश दिया , मामला वृहत पीठ को भेजा attacknews.in

कोलकाता, 21 मई । कलकत्ता उच्च न्यायालय की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने गौतम नवलखा मामले में उच्चतम न्यायालय के हालिया फैसले के अनुरूप शुक्रवार को आदेश दिया कि सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के तीन प्रमुख नेताओं और कोलकाता के एक पूर्व मेयर को जेल में रखने के बजाए घर में नजरबंद रखा जाए।

आज सुबह मामले की सुनवाई शुरू होते ही कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति अरिजीत बनर्जी की पीठ इस विषय पर मत नहीं थी। दोनों न्यायाधीश अंतरिम जमानत देने की प्रार्थना पर सहमत नहीं हुए और इसलिए उन्होंने मामले को वृहत पीठ के समक्ष भेजने का फैसला किया।

इसलिए, तृणमूल नेताओं और पूर्व मेयर की नजरबंद का आदेश तदर्थ व्यवस्था के रूप में उस समय तक पारित किया गया है जब तक वृहत पीठ में इस मामले की सुनवाई नहीं होती। पीठ ने कोविड-19 की दूसरी लहर के मद्देनजर चारों नेताओं को न्यायिक हिरासत के बजाय उन्हें घर में नजरबंद करने का आदेश जारी किया।

मंत्री सुब्रत मुखर्जी और फिरहाद हकीम, तृणमूल कांग्रेस विधायक मदन मित्रा और कोलकाता के पूर्व मेयर सोवन चटर्जी को गिरफ्तारी के बाद सोमवार को सीबीआई की विशेष अदालत ने अंतरिम जमानत दे दी थी लेकिन उसी रात सीबीआई की अपील पर उच्च न्यायालय ने इस आदेश पर रोक लगा दी थी।

सीबीआई द्वारा विशेष सीबीआई अदालत से मामले को स्थानांतरित करने की मांग के बाद उच्च न्यायालय ने अंतरिम जमानत पर रोक लगा दी।

सीबीआई ने इसका कारण एक धमकी को बताया था कि तृणमूल प्रमुख और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सीबीआई कार्यालय में छह घंटे तक धराना दिया और एक भय का माहौल उत्पन्न किया था।

चारों नेताओं ने उच्च न्यायालय के समक्ष एक आवेदन दायर कर स्थगन आदेश को वापस लेने और अंतरिम जमानत दिए जाने का आग्रह किया था।

सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों को दिवाला और दिवालियापन संहिता के तहत ऋण वसूली के लिए गारंटरों के खिलाफ कार्रवाई करने की केंद्र की अधिसूचना की वैधता को बरकरार रखा attacknews.in

नयी दिल्ली, 21 मई । उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को केंद्र की उस अधिसूचना की वैधता को बरकरार रखा, जिसमें बैंकों को दिवाला और दिवालियापन संहिता (आईबीसी) के तहत ऋण वसूली के लिए व्यक्तिगत गारंटरों के खिलाफ कार्रवाई करने की अनुमति दी गई थी।

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की पीठ ने कहा कि आईबीसी के तहत समाधान योजना की मंजूरी से बैंकों के प्रति व्यक्तिगत गारंटरों की देनदारी खत्म नहीं हो जाती।

न्यायमूर्ति भट ने फैसले के निष्कर्ष को पढ़ते हुए कहा, ‘‘फैसले में हमने अधिसूचना को बरकरार रखा है।’’

याचिकाकर्ताओं ने आईबीसी और अन्य प्रावधानों के तहत जारी 15 नवंबर 2019 की अधिसूचना को चुनौती दी थी, जो कॉरपोरेट देनदारों को व्यक्तिगत गारंटी देने वालों से संबंधित हैं।

अधिसूचना की वैधता को बरकरार रखते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि किसी कंपनी के लिए दिवालिया समाधान योजना शुरू होने से व्यक्तियों द्वारा वित्तीय संस्थानों के बकाया भुगतान के प्रति दी गई कॉरपोरेट गारंटी खत्म नहीं होती।

नारद स्टिंग मामल मे गिरफ्तार ममता बनर्जी के मंत्रियों और तृणमूल कांग्रेस नेताओं को राहत नहीं, कोलकाता हाईकोर्ट ने जमानत पर सुनवाई टाली attacknews.in

कोलकाता, 20 मई । कलकत्ता उच्च न्यायालय ने सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के तीन प्रमुख नेताओं और नारदा स्टिंग टेप मामले में गिरफ्तार शहर के एक पूर्व मेयर की जमानत मंजूर किये जाने के खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की याचिका पर गुरुवार को सुनवाई अपरिहार्य परिस्थिति का हवाला देते हुए टाल दिया।

कलकत्ता उच्च न्यायालय की वेबसाइट पर एक नोटिस जारी किया गया कि अपरिहार्य परिस्थितियों के कारण आज प्रथम श्रेणी पीठ बैठ नहीं सकेगी।

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति अरिजीत बनर्जी की खंडपीठ निचली अदालत द्वारा तृणमूल कांग्रेस नेताओं और शहर के पूर्व महापौर को सोमवार को दी गई जमानत पर पुनर्विचार करने के लिए सीबीआई द्वारा एक आवेदन पर सुनवाई कर रही है।

उच्च न्यायालय ने सोमवार रात मंत्री सुब्रत मुखर्जी और फिरहाद हकीम, तृणमूल कांग्रेस विधायक मदन मित्रा और कोलकाता के पूर्व मेयर सोवन चटर्जी को निचली अदालत से मिली जमानत पर रोक लगा दी थी।

सीबीआई ने जिन्हें नारदा स्टिंग मामले में गिरफ्तार किया और उन विरुद्ध आरोपपत्र दाखिल किया था।

खंडपीठ ने कहा था कि उसने विशेष अदालत के आदेश पर रोक लगाना उचित समझा और निर्देश दिया “आरोपियों को अगले आदेश तक न्यायिक हिरासत में रखा जाएगा।” बुधवार को इस मामले की सुनवाई को एक दिन के लिए स्थगित कर दी गयी थी।

गौरतलब है कि उच्च न्यायालय के आदेश पर सीबीआई द्वारा जांच की जा रही।

नारदा स्टिंग मामले के सिलसिले में चारों नेताओं को सोमवार सुबह शहर में उनके आवास से गिरफ्तार किया गया था।

सीबीआइ अदालत ने उसी दिन शाम में इन सभी को जमानत दे दी थी, लेकिन देर रात में कोलकाता हाई कोर्ट ने जमानत पर रोक लगाते हुए 19 मई तक जेल हिरासत में भेजने का निर्देश दिया था।

खादी: सामान्य नाम नहीं, खादी तथा ग्रामोद्योग आयोग के पास ट्रेडमार्क ‘खादी’ और ‘खादी इंडिया’ का वैध स्वामित्व ,न्यायाधिकरण ने व्यक्तियों, फर्मों को अनधिकृत रूप से खादी ब्रांड का इस्तेमाल करने से रोका attacknews.in

नयी दिल्ली, 20 मई । इंटरनेट डोमेन विवाद से संबंधित एक न्यायाधिकरण ने फैसला सुनाया है कि खादी एक सामान्य नाम नहीं है और खादी तथा ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) के पास ट्रेडमार्क ‘खादी’ और ‘खादी इंडिया’ का वैध स्वामित्व है।

भारत में इंटरनेट डोमेन विवाद नीति आईएनडीआरपी से संबंधित मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने एक निजी संस्था के इस तर्क को खारिज कर दिया कि ‘‘खादी’’ एक आम शब्द है और कहा कि किसी अन्य द्वारा इस लोकप्रिय ब्रांड का इस्तेमाल केवीआईसी के सामान/ सेवाओं के मुकाबले भ्रम और धोखा पैदा कर सकता है।

यह आदेश केवीआईसी की याचिका पर आया, जिसमें दिल्ली के कारोबारी जितेंद्र जैन और उनके सहयोगियों द्वारा संचालित डोमेन नाम ‘खादी डॉट इन’ को चुनौती दी गई थी।

न्यायाधिकरण ने कहा कि यह डोमेन नाम गलत इरादे के साथ हासिल किया गया।

न्यायाधिकरण ने अपने फैसले में इस डोमेन नाम को केवीआईसी को हस्तांतरित करने का आदेश भी दिया।

“कोवैक्सीन” का बच्चों पर परीक्षण रोकने अनुरोध वाली याचिका पर केन्द्र से मांगा जवाब;ट्रायल में हिस्सा लेने वाले बच्चों के स्वास्थ्य या मानसिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव का संदेह attacknews.in

नयी दिल्ली, 19 मई । दिल्ली उच्च न्यायालय ने भारत के औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) द्वारा ‘भारत बायोटेक’ को कोविड-19 रोधी टीके ‘कोवैक्सीन’ के दो से 18 वर्ष के बच्चों पर परीक्षण के लिए दी गई अनुमति रद्द करने के लिये दायर याचिका पर बुधवार को केन्द्र को नोटिस जारी किया।

मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह ने स्वास्थ्य मंत्रालय , महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) और ‘भारत बायोटेक’ को नोटिस जारी किये। इन सभी को 15 जुलाई तक नोटिस के जवाब देने हैं। यह याचिका संजीव कुमार ने दायर की गई है।

अदालत ने हालांकि कोविड-19 रोधी टीके ‘कोवैक्सीन’ के दो से 18 वर्ष के बच्चों पर ‘क्लीनिकल ट्रायल’ के लिए 12 मई को दी गई अनुमति पर कोई भी अंतरिम आदेश पारित करने से इनकार कर दिया।

‘क्लीनिकल ट्रायल’ 525 स्वस्थ स्वयंसेवकों पर किया जाएगा। इन्हें भी टीके 28 दिन के अंतर में दो खुराक में लगाए जाएंगे।

‘कोवैक्सीन’ का विकास हैदराबाद आधारित भारत बायोटेक और भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने किया है। यह उन दो टीकों में शामिल है, जिन्हें भारत में अभी व्यस्कों को लगाया जा रहा है।

कुमार ने अपनी याचिका में संदेह व्यक्त किया है कि ट्रायल में हिस्सा लेने वाले बच्चों को टीका लगने से उनके स्वास्थ्य या मानसिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

उन्होंने यह भी दावा किया था कि ट्रायल में हिस्सा लेने वाले बच्चों को स्वयंसेवक नहीं कहा जा सकता, क्योंकि वे ट्रायल से उन पर पड़ने वाले परिणाम को समझने के सक्षम नहीं है।

याचिका में कहा गया कि स्वस्थ बच्चों पर यह परीक्षण करना ‘‘हत्या’’ के बराबर है। इसमें इस तरह के परीक्षणों में शामिल लोगों या इसे संचालित करने के लिए अधिकृत लोगों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने की मांग की गई है।

कलकत्ता हाईकोर्ट ने तृणमूल कांग्रेस के तीन नेताओं एवं ममता बनर्जी के एक पूर्व करीबी सहयोगी को CBI द्वारा दी गयी जमानत पर देर रात रोक लगाई attacknews.in

कोलकाता 17 मई। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने तृणमूल कांग्रेस के तीन नेताओं एवं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के एक पूर्व करीबी सहयोगी को दी गयी जमानत पर सोमवार की देर रात रोक लगा दी।

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने इससे पहले दिन में चारों नेताओं को नारदा स्टिंग मामले में गिरफ्तार किया था। बाद में सीबाआई की विशेष अदालत ने चारों नेताओं को जमानत पर रिहा भी कर दिया था।

नारदा स्टिंग मामले में कलकत्ता हाई कोर्ट ने चारों टीएमसी नेताओं के जमानत आदेश पर रोक लगा दी है. गिरफ्तार सभी आरोपियों को सीबीआई की न्यायिक हिरासत में रहना होगा।जमानत याचिका को विशेष अदालत ने मंजूरी दे दी थी, लेकिन सीबीआई ने इसे कलकत्ता हाई कोर्ट में चुनौती दी।

सीबीआई ने सोमवार को मंत्री फिरहाद हकीम, मंत्री सुब्रत बनर्जी, विधायक मदन मित्रा को गिरफ्तार किया था. 7 घंटे की गिरफ्तारी के बाद सीबीआई की विशेष अदालत ने चारों टीएमसी नेताओं को जमानत दे दी थी।न्यायमूर्ति अनुपम मुखर्जी के नेतृत्व वाली विशेष सीबीआई अदालत ने चारों गिरफ्तार आरोपियों को जमानत दी थी. इसके बाद सीबीआई ने कलकत्ता हाई कोर्ट में चुनौती दी।

सीबीआई कोर्ट से जमानत मिलने के बाद फिरहाद हकीम की बेटी शबा हकीम ने सोशल मीडिया के जरिए आरोप लगाया कि जमानत मिलने के बाद भी फिरहाद हकीम को सीबीआई ने छोड़ा नहीं है।उन्होंने ट्वीट कर कहा कि जमानत के आदेश आने के बाद भी मंत्री फिरहाद हकीम, मंत्री सुब्रत बनर्जी, विधायक मदन मित्रा और सोवन चटर्जी को गिरफ्तार कर रखा है।सीबीआई कोर्ट के आदेश की अवमानना कर रही है।

गौरतलब है कि नारदा स्टिंग मामले में सोमवार को लिए गए सीबीआई के एक्शन के बाद बंगाल की राजनीति फिर गरमा गई. मंत्रियों की गिरफ्तारी के विरोध में तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने सीबीआई दफ्तर के बाहर प्रदर्शन किया. इस दौरान हालात इस कदर बेकाबू हुए कि यहां पर पत्थरबाजी शुरू हो गई, जिसके बाद सुरक्षाबलों ने लाठीचार्ज किया।

सबसे पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सीबीआई के दफ्तर पहुंचीं और गिरफ्तारी का विरोध किया. साथ ही चेतावनी दी कि सीबीआई को उन्हें भी गिरफ्तार करना होगा. देखते ही देखते सीबीआई दफ्तर के बाहर टीएमसी कार्यकर्ताओं का हुजूम लगना शुरू हो गया. इस दौरान जमकर हंगामा हुआ. ममता सीबीआई दफ्तर में करीब 6 घंटे तक रही थीं।

इधर, तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं द्वारा की गई पत्थरबाजी के बाद बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने चिंता व्यक्त की. उन्होंने ट्वीट कर लिखा था कि सीबीआई दफ्तर के बाहर पत्थरबाजी की जा रही है, लेकिन कोलकाता पुलिस, बंगाल पुलिस मूकदर्शक बनी हुई हैं. इस मामले को जल्द निपटाने की अपील है।

वहीं, तृणमूल कांग्रेस का आरोप है कि विधानसभा चुनाव में हार के बाद भाजपा की ओर से ये बदले की कार्रवाई की जा रही है. केंद्र के इशारे पर एजेंसी टीएमसी के नेताओं के खिलाफ एक्शन ले रही है. वहीं, बीजेपी का तर्क है कि जो भी एक्शन हो रहा है वो अदालत के आदेश पर ही लिया जा रहा है, ऐसे में इसमें बदले की कार्रवाई नहीं है।

बता दें कि 2016 में सामने आए नारदा स्टिंग के मामले में बीते दिनों ही राज्यपाल से जांच करने की इजाजत मिली थी. इसी केस में सीबीआई ने सोमवार को टीएमसी के नेताओं के घर पर छापेमारी की थी और उन्हें अपने साथ दफ्तर ले आई थी।

बलात्कार पीड़िता नाबालिग के लापता होने की दशा में दिल्ली की अदालत ने बलात्कारी को अंतरिम जमानत देते हुए कहा” इस बात की कोई आशंका नहीं है कि आरोपी पीड़िता को धमकाता और प्रभावित करता था” attacknews.in

नयी दिल्ली, 17 मई । दिल्ली की एक अदालत ने 15 वर्षीय एक किशोरी के साथ बलात्कार करने के मामले में आरोपी एक व्यक्ति को अंतरिम जमानत देते हुए कहा कि इस बात की कोई आशंका नहीं है कि आरोपी पीड़िता को धमकाता और प्रभावित करता था क्योंकि अभी तक पीड़िता का कोई पता नहीं चल पाया है।

अतिरिक्त सत्र के न्यायाधीश राजेश कुमार सिंह ने गोविंद सिंह को 10 लाख रुपये का निजी बॉन्ड तथा उतना ही मुचलका जमा कराने की शर्त पर 90 दिन की जमानत दे दी। सिंह को जबरन यौन संबंध बनाने के मामले में गिरफ्तार किया गया था।

न्यायाधीश ने जांच अधिकारी की उस रिपोर्ट के आधार पर आरोपी को जमानत दे दी, जिसमें कहा गया था कि पीड़िता का पता नहीं चल पा रहा है। न्यायाधीश ने इस तथ्य का भी संज्ञान लिया कि पीड़ित ने अपनी आंतरिक चिकित्सकीय जांच कराने से भी मना कर दिया था।

अतिरिक्त सत्र के न्यायाधीश ने कहा, ‘‘ इस तथ्य पर गौर करते हुए कि इस बात की कोई आशंका नहीं है कि आरोपी ने पीड़िता को धमकाया या बहकाया था। वहीं, कोविड-19 की वजह से भी स्थिति असाधारण है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ सभी तथ्यों पर गौर करते हुए और मामले की स्थिति को देखते हुए , गोविंद सिंह को आज की तारीख से लेकर 90 दिन की जमानत दी जाती है।’’

पुलिस के अनुसार, घटना के समय पीड़िता 15 वर्ष से कम आयु की थी, जब आरोपी ने उसे अपने कमरे में बुलाकर दो से तीन बार यौन संबंध बनाए। मामले में सह-आरोपी शिवम को अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया है।

सिंह को यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी अधिनियम (पोक्सो) की धारा छह और भादंवि की धारा 366 और 376 के तहत गिरफ्तार किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट के 2, हाईकोर्ट के 106 जज,देशभर के 2768 न्यायिक अधिकारी कोविड पॉजिटिव attacknews.in

नयी दिल्ली, 13 मई । उच्चतम न्यायालय के दो न्यायाधीश फिलहाल कोरोना संक्रमण से उबरने का प्रयास कर रहे हैं, जबकि अभी तक विभिन्न उच्च न्यायालयों के 106 न्यायाधीश और 2768 न्यायिक अधिकारी कोविड पॉजिटिव पाये गये हैं।

शीर्ष अदालत के न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर कोरोना संक्रमण से उबरने का प्रयास कर रहे हैं। मीडियाकर्मियों के लिए मोबाइल ऐप जारी किये जाने के अवसर पर गुरुवार को वीडियो कांफ्रेंसिंग स्क्रीन पर मौजूद न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति खानविलकर के चेहरे पर कोरोना संक्रमण का असर स्पष्ट झलक रहा था। दोनों न्यायाधीश ज्यादा बोल पाने में असहज महसूस कर रहे थे और बीच-बीच में उन्हें तेज खांसी आ रही थी। इस अवसर पर जब दोनों से बोलने को कहा गया तो दोनों ने ज्यादा बातें नहीं की।

बाद में, न्यायमूर्ति रमन ने अपने सम्बोधन में बताया कि सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री का पहला कर्मचारी पिछले वर्ष 27 अप्रैल को कोविड पॉजिटिव पाया गया था, उसके बाद अभी तक 800 कर्मचारी कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं। इनमें छह रजिस्ट्रार और 10 अतिरिक्त रजिस्ट्रार भी शामिल हैं। दुर्भाग्यवश कोविड के कारण तीन अधिकारियों की जानें भी गयी हैं।

न्यायमूर्ति रमन ने कहा, “जहां तक भारतीय न्यायपालिका का संबंध है, तो विभिन्न उच्च न्यायालयों के 106 जज और 2768 न्यायिक अधिकारी कोरोना पाजिटिव पाये गये हैं। इस आंकड़े में दो प्रमुख उच्च न्यायालयों के आंकड़े शामिल नहीं हैं, क्योंकि ये अभी उपलब्ध नहीं हो सके हैं। उच्च न्यायालय के तीन न्यायाधीश और 34 न्यायिक अधिकारी भी कोरोना संक्रमण के कारण काल-कवलित हुए हैं।”

मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “ कोरोना के कारण अपनी जान गंवा चुके इन लोगों के लिए मेरा दिल रो रहा है और उनके परिजनों और चाहने वालों के लिए मेरी संवेदनाएं।”

सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनवाई का सीधा प्रसारण (लाइव स्ट्रीमिंग) करने पर किया जा रहा है गंभीरता से विचार attacknews.in

नयी दिल्ली, 13 मई । उच्चतम न्यायालय में होने वाली सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग पर शिद्दत से विचार किया जा रहा है।

मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन ने गुरुवार को कहा कि वह शीर्ष अदालत में होने वाली सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग के प्रस्ताव पर गम्भीरता से विचार कर रहे हैं।

हालांकि उन्होंने यह स्पष्ट किया कि इस दिशा में ठोस पहल करने से पहले वह न्यायालय के सभी न्यायाधीशों की आम सहमति चाहेंगे।

न्यायमूर्ति रमन कोविड महामारी के मद्देनजर मीडियाकर्मियों की सुविधा के लिए मोबाइल ऐप लांच करने के अवसर पर वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये मीडियाकर्मियों को सम्बोधित कर रहे थे।

सीजेआई ने कहा कि नयी टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल में शुरुआती दिनों में कुछ खामियां आ सकती हैं, लेकिन इसे अनावश्यक रूप से तूल नहीं दिया जाना चाहिए।

आसाराम के स्वास्थ्य में सुधार, अंतरीम जमानत की सुनवाई 21 मई तक स्थगित attacknews.in

जोधपुर 13 मई । राजस्थान में जोधपुर के एम्स हाॅस्पिटल में भर्ती यौन उत्पीड़न मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे आसाराम की तबीयत में सुधार हो रहा है। उसका बीपी और ऑक्सीजन लेवल सामान्य है।

राजस्थान उच्च न्यायालय में आज एम्स की तरफ से पेश इस रिपोर्ट के बाद उसकी जमानत याचिका पर सुनवाई 21 मई तक स्थगित कर दी गई। न्यायालय ने 21 मई से पहले एम्स से उसके स्वास्थ्य को लेकर नई रिपोर्ट मांगी है। तब तक आसाराम को एम्स में ही रखा जाएगा। ऐसे में उसे जेल से बाहर आने के लिए 21 मई तक इंतजार करना होगा।