इश्क से फांसी के फंदे तक की कहानी : शबनम अली ने सलीम के इश्क में अपने मां-बाप, दो भाई, एक भाभी, मौसी की बेटी और एक भतीजे को कुल्हाडी से काट डाला था attacknews.in

अमरोहा, 17 फरवरी । उत्तर प्रदेश के अमरोहा में बेमेल इश्क से परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले फांसी की सजायाफ्ता शबनम की दया याचिका राष्ट्रपति द्वारा खारिज कर देने से बावनखेड़ी का मनहूस फार्म हाउस फिर एक बार चर्चाओं में है जहां परिवार के मुखिया समेत एक लाईन में सात लोगों के नरसंहार की याद दिलाती सात कब्रें बनी हुई हैं।

अप्रैल, 2008 में प्रेमी सलीम के साथ मिलकर अपने ही सात परिजनों की कुल्हाड़ी से काटकर हत्या मामले में फांसी की तारीख मुकर्रर नहीं की गई है। शबनम को फांसी होती है तो यह आजाद भारत का पहला मामला होगा।

शबनम अली, वो महिला कैदी है जिसे आजाद भारत के इतिहास में पहली बार फांसी पर लटकाया जाएगा। इसके लिए मथुरा जेल प्रशासन ने तैयारी शुरू कर दी है। दरअसल, शबनम अली ने अपने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर साल 2008 में अपने परिवार के सात लोगों को कुल्हाड़ी से काटकर हत्या कर दी थी। इस हत्याकांड के बाद शबनम को फांसी की सजा सुनाई गई थी। तो वहीं, सुप्रीम कोर्ट से पुनर्विचार याचिका खारिज होने के बाद अब शबनम की फांसी की सजा को राष्ट्रपति ने भी बरकरार रखा है। ऐसे में अब उसका फांसी पर लटकना तय हो गया है।

पहचानिये शबनम की क्रूरता आ:

शबनम अली, उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले के हसनपुर थाना क्षेत्र के बावनखेड़ी गांव की रहने वाली है। शबनम के पिता शौकत अली शिक्षक थे। वो उनकी एकलौती बेटी थी और स्कूल में छोटे बच्चों को पढ़ाती थी।

शबनम को पांचवी पास सलीम से प्यार हो गया था, लेकिन उसके परिवार को ये रिश्ता कतई मंजूर नहीं था। घरवालों की नामंजूरी की वजह से शबनम का अक्सर उनसे झगड़ा होता था। इस दौरान शबनम सलीम के बच्चे की मां बनने वाली थी। वह दो माह की गर्भवती थी और उसे लगा कि अगर परिवार को इस बारे में पता चलेगा तो वह बर्दाश्त नहीं कर सकेंगे।

ऐसे रची कत्ल की खौफनाक साजिश :

ऐसे में उसने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर परिवार को रास्ते से हटाने का फैसला ले लिया और खौफनाक साजिश रच डाली। 14/15 अप्रैल 2008 की रात को शबनम ने खाने में कुछ मिलाया और जब सब बेहोशी की नींद सो गए तो प्रेम में अंधी बेटी ने माता-पिता और 10 माह के मासूम भतीजे समेत परिवार के सात लोगों का कुल्हाड़ी से गला काट कर मौत की नींद सुला दिया।इस घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। शबनम और सलीम की बेमेल इश्क की खुनी दास्तां करीब 13 साल बाद फांसी के नजदीक पहुंचती दिख रही है।

राष्ट्रपति के यहां से भी खारिज हुई दया याचिका

पिछले साल शबनम ने फांसी पर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी। इस पुनर्विचार याचिका को सलीम और शबनम के वकील आंनद ग्रौवर ने दायर किया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की निचली अदालत ने फैसले को बरकरार रखा है। इसके बाद शबनम-सलीम ने राष्ट्रपति को दया याचिका भेजी थी, लेकिन राष्ट्रपति भवन से उनकी याचिका को खारिज कर दिया है। आजादी के बाद शबनम पहली महिला कैदी होगी जिसे फांसी दी जाएगी। बता दें कि देश में सिर्फ मथुरा जेल का फांसी घर एकलौता जहां महिला को फांसी दी जा सकती है। फिलहाल शबनम बरेली तो सलीम आगरा जेल में बंद है।

बता दें कि महिला को फांसी देने के लिए मथुरा जेल में 150 साल पहले महिला फांसीघर बनाया गया था। लेकिन आजादी के बाद से अब तक यहां किसी महिला को फांसी पर नहीं लटकाया गया है। वरिष्ठ जेल अधीक्षक के मुताबिक, अभी फांसी की तारीख तय नहीं है, लेकिन हमने तयारी शुरू कर दी है। रस्सी के लिए ऑर्डर दे दिया गया है। डेथ वारंट जारी होते ही शबनम-सलीम को फांसी दे दी जाएगी। हालांकि सलीम को फांसी कहां दी जाएगी यह भी अभी तय नहीं है।

खून से लथपथ घर, सात लाशें और रोती हुई एक लड़की

करीब 13 साल पहले 14/15 अप्रैल 2008 की रात गांव के एक घर से अचानक लड़की के दहाड़े मार-मारकर रोने की आवाजें आती हैं। लड़की के रोने की आवाजें, चीखें सुनकर गांव के लोग घर पहुंचते हैं। घर के अंदर का नजारा देखकर ग्रामीणों के होश उड़ जाते हैं। घर में चारों तरफ खून, सात लोगों की खून से लथपथ लाशें और रोती-बिलखती 25 साल की शबनम। शबनम चीख-चीख कर बताती है घर में लुटेरे आए और उसके परिवार को बेरहमी से मार डाला।

पुलिस जांच में हुए खुलासे से सब हैरान

गांव में दहशत फैल जाती है। इसी बीच सूचना पाकर पुलिस मौके पहुंचती है और जांच शुरू होती है। जांच में पुलिस को पता चलता है कि लुटेरे नहीं, बल्कि शबनम ने ही अपने मां-बाप, दो भाई, एक भाभी, मौसी की बेटी और एक भतीजे को कुल्हाड़ी से काटकर मौत के घाट उतार दिया। इस वारदात में उसके पांचवी पास प्रेमी सलीम ने साथ दिया था। पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने लव जेहाद के खिलाफ धर्मांतरण रोकने के लिए बने कानूनों के खिलाफ याचिका में हिमाचल प्रदेश और मध्यप्रदेश को पक्षकार बनाया attacknews.in

नयी दिल्ली, 17 फरवरी । न्यायालय ने अंतर-धर्म विवाह के कारण होने वाले धर्मांतरण रोकने के लिए बनाए गए कानूनों को चुनौती देने वाली याचिका में हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश को पक्षकार बनाने की बुधवार को एक गैर सरकारी संगठन को अनुमति दी।

प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने देश में इन कानूनों के इस्तेमाल से अधिकतर मुसलमानों को उत्पीड़ित किए जाने के आधार पर मुस्लिम संगठन जमीअत उलेमा-ए-हिन्द को भी पक्षकार बनने की अनुमति दी।

उच्चतम न्यायालय छह जनवरी को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में विवाह के लिये धर्मांतरण रोकने के लिये बनाये गये कानूनों पर गौर करने के लिए राजी हो गया था।

न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन भी पीठ का हिस्सा थे।

पीठ ने विवादित कानूनों पर रोक लगाने से इनकार करते हुए दो अलग-अलग याचिकाओं पर दोनों राज्यों को नोटिस जारी किया था।

अधिवक्ता विशाल ठाकरे और अन्य तथा गैर सरकारी संगठन ‘सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस’ ने उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश 2020 और उत्तराखंड धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2018 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है।

मध्यप्रदेश में लव जेहाद के खिलाफ लागू किए गए मप्र धार्मिक स्वतंत्रता अध्यादेश-2020 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती attacknews.in

नयी दिल्ली, 16 फरवरी । ‘लव जिहाद’ से संबंधित मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अध्यादेश 2020 को चुनौती देने वाली याचिका उच्चतम न्यायालय में दायर की गयी है।

याचिका में राज्य सरकार के अध्यादेश को चुनौती देते हुए इसे संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21 और 25 का उल्लंघन करार दिया गया है।

यह याचिका अधिवक्ता राजेश इनामदार, शाश्वत आनंद, देवेश सक्सेना, आशुतोष मणि त्रिपाठी और अंकुर आजाद की ओर से तैयार की गयी है और एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड (एओआर) अल्दानीश रेन द्वारा दायर की गयी है।

याचिका में कहा गया है, “विवादित अध्यादेश विवाह की आजादी, अपनी इच्छा के धर्म को अपनाने, उस पर अमल करने और उसके प्रचार-प्रसार की आजादी का हनन करता है और इसने आम आदमी की निजी स्वायत्तता, कानून की नजर में समानता, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और चयन एवं अभिव्यक्ति की आजादी पर कुठाराघात किया है, साथ ही यह भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 14, 19, 21 और 25 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का खुल्लम खुल्ला एवं स्पष्ट उल्लंघन है।”

याचिकाकर्ता का कहना है, “ विधानसभा की विधायी प्रक्रिया से इतर अध्यादेश लागू करने का प्रतिवादियों का कदम न केवल निरंकुश और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है, बल्कि संविधान के साथ धोखा भी है।” याचिका में अध्यादेश में जबरन धर्म परिवर्तन की घटनाओं के बारे में सरकारी एजेंसियों अथवा विभागों के पास उपलब्ध उचित डाटा की गैर मौजूदगी को भी उल्लेखित किया गया है।

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश- 2020 और उत्तराखंड धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2018 को चुनौती देने वाली याचिकाएं पहले से ही शीर्ष अदालत में लंबित हैं।

दिशा रवि की गिरफ्तारी कानून के अनुरूप की गई: दिल्ली पुलिस प्रमुख का दावा”दिशा ने ‘टेलीग्राम ऐप’ के जरिए ग्रेटा थनबर्ग को यह ‘टूलकिट’ भेजी, इस पर कार्रवाई के लिए ‘‘उन्हे मनाया था’’ attacknews.in

नयी दिल्ली, 16 फरवरी । दिल्ली के पुलिस आयुक्त एस. एन. श्रीवास्तव ने मंगलवार को कहा कि जलवायु कार्यकर्ता दिशा रवि की गिरफ्तारी कानून के अनुरूप की गई है, जो ‘‘ 22 से 50 वर्ष की आयु के लोगों के बीच कोई भेदभाव नहीं करता।’’

श्रीवास्तव ने पत्रकारों से कहा कि यह गलत है जब लोग कहते हैं कि 22 वर्षीय कार्यकर्ता की गिरफ्तारी में चूक हुई।

दिशा रवि को तीन कृषि कानूनों से संबंधित, किसानों के विरोध प्रदर्शन से जुड़ी ‘टूलकिट’ सोशल मीडिया पर साझा करने के आरोप में गत शनिवार को बेंगलुरु से गिरफ्तार किया गया था।

पुलिस ने दावा किया है कि उन्होंने ‘टेलीग्राम ऐप’ के जरिए जलवायु परिवर्तन कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग को यह ‘टूलकिट’ भेजी थी और इस पर कार्रवाई के लिए ‘‘उन्हे मनाया था।’’

दिल्ली पुलिस के प्रमुख ने कहा, ‘‘ दिशा रवि की गिरफ्तारी कानून के अनुरूप की गई है, जो 22 से 50 वर्षीय की आयु के लोगों के बीच कोई भेदभाव नहीं करता।’’

उन्होंने कहा कि दिशा रवि को पांच दिन की पुलिस हिरासत में भेजा गया है और मामले की जांच जारी है।

दिल्ली पुलिस ने सोमवार को आरोप लगाया था कि रवि और मुम्बई की वकील निकिता जैकब और पुणे के इंजीनियर शांतनु ने ‘टूलकिट’ तैयार की और दूसरों के साथ इसे साझा करके भारत की छवि धूमिल करने की कोशिश की।

पुलिस ने दावा किया है कि रवि के ‘टेलीग्राम’ अकाउंट से डेटा भी हटाया गया है।

जैकब और शांतनु के खिलाफ भी गैर-जमानती वारंट जारी किया गया है।

देशद्रोह और IT Act की गंभीर धाराओं में गिरफ्तार पाॅपुलर फ्रंट आफ इंडिया के नेता रऊफ शरीफ को दो मार्च तक न्यायिक हिरासत में जेल भेजा,कप्पन को मां से मिलने के लिए अंतरिम जमानत मिली attacknews.in

नयी दिल्ली,/मथुरा,15 फरवरी।बचाव पक्ष के अधिवक्ता की दलीलों को अस्वीकार करते हुए मथुरा के अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश (प्रथम) अनिल कुमार पाण्डे ने पापुलर फ्रन्ट आफ इण्डिया (पीएफआई) की विद्यार्थी शाखा के नेता रऊफ शरीफ को दो मार्च तक के लिए न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया है।

जिला शासकीय अधिवक्ता शिवराम सिंह के अनुसार दो मार्चा को रऊफ शरीफ को अतीकुर्ररहमान, मसूद, आलम एवं पत्रकार सिद्दीक कप्पन के साथ ही अदालत में पेश किया जाएगा। रऊफ शरीफ पर देशद्रोह और आई टी ऐक्ट की गंभीर धाराओं में पांच अक्टूबर 2020 को मथुरा जिले की मांट इलाके से पुलिस ने गिरफ्तार किए थे।

गिरफ्तार आरोपियों में अतीकुर्रहमान, आलम, मसूद और पत्रकार सिद्दीक कप्पन को माहैाल बिगाड़ने,अशांति पैदा करने के लिए धनराशि बांटने का आरोप है।

रऊफ शरीफ को केरल में एनफोर्समेन्ट डायरेक्टरेट द्वारा पैसा बांटने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था तथा उस पर हाथरस में माहौल बिगाड़ने के लिए पैसा बांटने का आरोप है।

कप्पन को मां से मिलने के लिए अंतरिम जमानत मिली

इधर उच्चतम न्यायालय ने हाथरस कांड की पीड़िता के गांव जाने के क्रम में गिरफ्तार किये गये केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन को बीमार मां से मिलने के लिए पांच दिन की अंतरिम जमानत पर रिहा करने का सोमवार को आदेश दिया।

मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रमासुब्रमण्यम की खंडपीठ ने कुछ शर्तों के आधार पर कप्पन को अंतरिम जमानत की अनुमति दी।

न्यायालय ने उत्तर प्रदेश पुलिस को निर्देश दिया कि वह कप्पन को अपने साथ केरल ले जाये।

किसान आंदोलन की आड़ मे आतंक और हिंसा की ” टूल किट” की कर्ता धर्ता दिशा रवि 5 दिनी पुलिस रिमांड पर;भारत के खिलाफ वैमनस्य फैलाने के लिए दिशा रवि और अन्य ने खालिस्तान-समर्थक समूह ‘पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन’ के साथ की थी साठगांठ attacknews.in

नयी दिल्ली 14 फरवरी । दिल्ली पुलिस ने तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के प्रदर्शन से जुड़ी ‘टूलकिट’ सोशल मीडिया पर शेयर करने के आरोप में जलवायु कार्यकर्ता दिशा रवि (22) को बेंगलुरू से गिरफ्तार किया है।

दिलकी पुलिस के एक अधिकारी ने रविवार को बताया कि दिशा रवि को दिल्ली पुलिस की साइबर सेल की टीम ने शनिवार को गिरफ्तार किया। उन्होंने कहा कि टूलकिट दस्तावेज से संबंधित आपराधिक साजिश से जुड़ी जांच के मामले में दिशा रवि को बेंगलुरु से गिरफ्तार किया गया। वह टूलकिट का संपादन करने वालों में से एक हैं और दस्तावेज को बनाने एवं फैलाने के मामले में मुख्य साजिशकर्ता हैं।

दिल्ली पुलिस की साइबर सेल ने शनिवार को 21 वर्षीय क्लाइमेट एक्टिविस्ट दिशा रवि को किसानों के विरोध प्रदर्शन से संबंधित ‘टूलकिट’ फैलाने में उसकी कथित भूमिका के लिए बेंगलुरु से गिरफ्तार किया है।

कुछ दिन पहले ही दिल्ली पुलिस ने किसानों के प्रदर्शन के मामले में ‘‘खालिस्तानी समर्थक’’ समूह द्वारा तैयार और पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग तथा अन्य द्वारा ट्विटर पर साझा किए गए ‘टूलकिट’ के संबंध में एफआईआर दर्ज की थी।हालांकि एफआईआर में किसी का नाम नहीं लिया गया था।

किसानों के प्रदर्शन के समर्थन में देश को बदनाम करने की ‘अंतरराष्ट्रीय साजिश’ की जांच दिल्ली पुलिस की साइबर सेल कर रही है।

विशेष पुलिस आयुक्त प्रवीर रंजन ने दावा किया है कि 26 जनवरी को हुई हिंसा सोशल मीडिया पर साझा किए गए टूलकिट में बताई गई है. विभिन्न धाराओं के तहत ‘आपराधिक साजिश’ और ‘समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने’ के प्रयास के लिए एफआईआर दर्ज की गई है।

पुलिस अधिकारी ने बताया कि एफआईआर केवल टूलकिट के रचनाकारों के खिलाफ है, जिसकी जांच जारी है।

दिल्ली पुलिस ने एक बयान में कहा था “टूल किट के रचनाकारों की मंशा विभिन्न सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक समूहों के बीच असहमति पैदा करना और भारत सरकार के खिलाफ असहमति और अंसतोष को प्रोत्साहित करना था. इसका उद्देश्य भारत के खिलाफ सामाजिक सांस्कृतिक और आर्थिक लड़ाई को भी गति देना है.”

कुछ दिन पहले ही केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों को अपना समर्थन देते हुए स्वीडिश जलवायु कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने भी एक ‘टूलकिट’ साझा किया था, जिसमें लोगों को यह बताया गया था कि कैसे किसानों के प्रदर्शन का लोगों को समर्थन करना चाहिए. लेकिन यह बाद में डिलीट कर दिया गया. हालांकि उन्होंने फिर अपडेटेड टूलकिट डॉक्यूमेंट पोस्ट किया. एक अधिकारी के मुताबिक, इस दस्तावेज में किसानों के समर्थन में ट्विटर पर ट्वीट की झड़ी लगाने और भारतीय दूतावासों के बाहर प्रदर्शन करने की भी योजना तैयार की गयी थी।

दिल्ली पुलिस ने ‘टूलकिट’ बनाने वालों के संबंध में गूगल और अन्य सोशल मीडिया कंपनियों से ईमेल आईडी, डोमेन यूआरएल और कुछ सोशल मीडिया अकाउंट की जानकारी मांगी थी. बीते हफ्ते दिल्ली पुलिस ने बताया कि 300 से अधिक सोशल मीडिया अकाउंट की पहचान की गई है, जो किसान प्रदर्शन पर दुर्भावनापूर्ण सामग्री सर्कुलेट करते देखे गए।

पुलिस का कहना है कि 26 जनवरी को जो हिंसा हुई, वह पहले से स्क्रिप्टेड थी. दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, शुरुआती जांच से पता चला है कि दस्तावेज के तार खालिस्तान-समर्थक समूह ‘पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन’ से जुड़े हैं।

मिली 5 दिन की रिमांड:

पुलिस ने आरोप लगाया कि भारत के खिलाफ वैमनस्य फैलाने के लिए रवि और अन्य ने खालिस्तान-समर्थक समूह ‘पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन’ के साथ साठगांठ की।पुलिस ने ट्वीट कर दावा किया, ‘ ग्रेटा थनबर्ग के साथ टूलकिट साझा करने वालों में से रवि भी एक थीं.’

दिल्ली की एक अदालत ने 21 वर्षीय जलवायु कार्यकर्ता दिशा रवि को पांच दिनों की पुलिस हिरासत में भेज दिया है।

पुलिस के मुताबिक रवि को उनके घर से हिरासत में लिया गया और बाद में ‘टूलकिट’ बनाने के साथ  उसके प्रचार-प्रसार में संलिप्तता के आरोप में गिरफ्तार किया गया।

अधिकारी ने कहा कि रवि का लैपटॉप और मोबाइल फोन आगे की जांच के लिए जब्त किया गया है. साथ ही पुलिस इस बात की जांच कर रही है कि क्या वह और भी लोगों के संपर्क में थी, जो इस मामले में संलिप्त हैं।

दिशा रवि को दिल्ली पुलिस के साइबर प्रकोष्ठ की टीम ने शनिवार को बेंगलुरु से गिरफ्तार किया था. पुलिस ने रवि को रविवार को अदालत में पेश किया और उन्हें सात दिनों के लिए पुलिस हिरासत में भेजने का अनुरोध किया।

पुलिस ने अदालत में ये भी कहा कि भारत सरकार के खिलाफ कथित तौर पर बड़े स्तर पर साजिश रचने और खालिस्तानी आंदोलन में भूमिका को लेकर जांच करने के लिए हिरासत की आवश्यकता है।

उधर, संयुक्त किसान मोर्चा ने रवि की गिरफ्तारी की निंदा करते हुए उन्हें तत्काल रिहा करने की मांग की है। ‘टूल किट’ में ट्विटर के जरिये किसी अभियान को ट्रेंड कराने से संबंधित दिशानिर्देश और सामग्री होती है।

आपको बता दें कि इस सिलसिले में खालिस्तान समर्थक निर्माताओं के खिलाफ चार फरवरी को FIR दर्ज हुई थी। पुलिस के अनुसार, ‘टूलकिट’ में एक खंड है, जिसमें कहा गया है. 26 जनवरी से पहले हैशटैग के जरिए डिजिटल हमला, 23 जनवरी और उसके बाद ट्वीट के जरिए तूफान खड़ा करना, 26 जनवरी को आमने-सामने की कार्रवाई और फिर दिल्ली में और उसकी सीमाओं पर किसानों के मार्च में शामिल हों।

सुप्रीम कोर्ट ने झूठी खबरों के जरिए नफरत फैलाने वाले विज्ञापनों, सामग्रियो और भड़काऊ संदेशों के नियमन के लिए तंत्र स्थापित करने की याचिका पर केंद्र, ट्विटर को भेजा नोटिस attacknews.in

नयी दिल्ली, 12 फरवरी । उच्चतम न्यायालय ने झूठी खबरों के जरिए नफरत फैलाने वाले विज्ञापनों एवं सामग्रियों और फर्जी खातों के जरिए भेजे जाने वाले भड़काऊ संदेशों के नियमन के लिए तंत्र बनाए जाने का अनुरोध करने वाली याचिका पर केंद्र और ट्विटर इंडिया से शुक्रवार को जवाब मांगा।

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना एवं न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यन ने विनीत गोयनका की याचिका पर केंद्र एवं ‘ट्विटर कम्युनिकेशन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड’ को नोटिस जारी किए। याचिका में कहा गया है कि जानी मानी हस्तियों के नाम पर सैकड़ों फर्जी ट्विटर खाते और फेसबुक खाते हैं।

गोयनका की ओर से पेश हुए वकील अश्विनी दुबे ने कहा कि सोशल नेटवर्किंग साइट पर नफरत फैलाने वाली सामग्री के नियमन के लिए तंत्र स्थापित किए जाने की खातिर निर्देश दिए जाने की आवश्यकता है।

पीठ ने कहा कि वह मामले में नोटिस जारी कर रही है और अन्य लंबित मामलों के साथ इस याचिका को संलग्न कर रही है।

दुबे के जरिए दायर याचिका में कहा गया है, ‘‘इन फर्जी ट्विटर एवं फेसबुक खातों में संवैधानिक प्राधिकारियों एवं जानी मानी हस्तियों की असल तस्वीरों का इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए आम लोग इन ट्विटर एवं फेसबुक खातों से जारी संदेशों पर भरोसा कर लेते हैं।’’

इसमें कहा गया है कि जातिवाद एवं साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देने के लिए इन फर्जी खातों का इस्तेमाल किया जाता है, जो देश की एकता एवं अखंडता को खतरा पहुंचाते हैं।

याचिका में कहा गया है कि राजनीतिक दल विशेषकर चुनाव के दौरान अपने प्रचार एवं अपनी छवि बनाने के लिए तथा अपने प्रतिद्वंद्वियों की छवि बिगाड़ने के लिए फर्जी सोशल मीडिया खातों का इस्तेमाल करते हैं।

ICICI बैंक घोटाला,मनी लांड्रिंग मामले में गिरफ्तार पूर्व CEO चंदा कोचर को मिली जमानत attacknews.in

मुंबई, 12 फरवरी । आईसीआईसीआई बैंक की पूर्व सीईओ और एमडी चंदा कोचर को शुक्रवार को यहां एक विशेष पीएमएलए अदालत ने आईसीआईसीआई बैंक-वीडियोकॉन धन शोधन मामले में जमानत दी।

धन शोधन रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) की विशेष अदालत ने 30 जनवरी को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के आरोप पत्र पर संज्ञान लेने के बाद चंदा कोचर, उनके पति दीपक कोचर, वीडियोकॉन समूह के प्रवर्तक वेणुगोपाल धूत और मामले के अन्य आरोपियों को तलब किया था।

चंदा कोचर ने विशेष न्यायाधीश ए ए नांदगांवकर के समक्ष अपने वकील विजय अग्रवाल के माध्यम से जमानत याचिका दायर की। अदालत ने पांच लाख रुपये के बॉन्ड पर जमानत की इजाजत दी।

कोचर, धूत और अन्य के खिलाफ सीबीआई द्वारा दर्ज एक प्राथमिकी के आधार पर धन शोधन का आपराधिक मामला दर्ज करने के बाद ईडी ने सितंबर 2020 में दीपक कोचर को गिरफ्तार किया था।

ईडी का आरोप है कि चंदा कोचर की अध्यक्षता वाली आईसीआईसीआई बैंक की एक समिति ने वीडियोकॉन इंटरनेशनल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड को 300 करोड़ रुपये के कर्ज की मंजूरी दी, और कर्ज जारी करने के अगले दिन वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज ने आठ सितंबर 2009 को 64 करोड़ रुपये न्यूपॉवर रिन्यूएबल प्राइवेट लिमिटेड (एनआरपीएल) को हस्तांतरित किए। एनआरपीएल के मालिक दीपक कोचर हैं।

भीख मांगना अपराध की श्रेणी के प्रावधानों को निरस्त करने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों को नोटिस जारी कर 6 सप्ताह में मांगा जवाब attacknews.in

नयी दिल्ली, 10 फरवरी । उच्चतम न्यायालय ने उस याचिका पर केन्द्र और कुछ राज्यों से जवाब मांगा है जिसमें भीख मांगने को अपराध की श्रेणी में रखने वाले प्रावधानों को निरस्त किये जाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।

याचिका में कहा गया है कि इन प्रावधानों के चलते लोगों के पास भीख मांगकर अपराध करने या भूखा मरने का ‘‘अनुचित विकल्प’’ ही बचेगा।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति आर एस रेड्डी की एक पीठ ने नोटिस जारी करते हुए केन्द्र के साथ-साथ महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, हरियाणा और बिहार से याचिका पर जवाब मांगे है। याचिका में दावा किया गया है कि भीख मांगने को अपराध बनाने संबंधी धाराएं संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।

पीठ ने मेरठ निवासी विशाल पाठक द्वारा दाखिल याचिका की सुनवाई करते हुए कहा, ‘‘जारी किये गये नोटिसों पर छह सप्ताह में जवाब देने को कहा गया है।’’

अधिवक्ता एच के चतुर्वेदी द्वारा दाखिल याचिका में दिल्ली उच्च न्यायालय के अगस्त 2018 के उस फैसले का जिक्र किया गया है जिसमें कहा गया था राष्ट्रीय राजधानी में भीख मांगना अब अपराध नहीं होगा।

इसमें कहा गया है कि बम्बई भिक्षावृत्ति रोकथाम अधिनियम, 1959 के प्रावधान, जिनमें भीख मांगने को एक अपराध के रूप में माना गया है, संवैधानिक रूप से नहीं टिक सकते है।

उच्चतम न्यायालय में दाखिल याचिका में 2011 की जनगणना का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि भारत में भिखारियों की कुल संख्या 4,13,670 है और पिछली जनगणना से यह संख्या बढ़ी है।

इसमें कहा गया है कि सरकार को सभी के लिए सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने और सभी को संविधान में राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों के अनुसार बुनियादी सुविधाएं सुनिश्चित करने का अधिकार है।

भारत में नये श्रम कानून अप्रैल से हो जाएंगे लागू: श्रम संहिताओं पर अमल के नियमों को इसी सप्ताह दिया जा सकता है अंतिम रूप attacknews.in

नयी दिल्ली आठ फरवरी । श्रम मंत्रालय चार नयी श्रम संहिताओं को लागू करने के लिए उनसे संबंधित नियमों को इस सप्ताह अंतिम रूप दे सकता है। इन संहिताओं को लागू करने से देश के श्रम बाजार में सुधरे नियमों-अधिनियमों का नया दौर शुरू होगा।

इसके अलावा मंत्रालय असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के पंजीकरण एवं कल्याण के लिए एक इंटरनेट-पोर्टल तैयार कर रहा है। अधिकारियों के अनुसार यह पोर्टल जून तक तैयार हो सकता है। इस पोर्टल पर असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के पंजीकरण और उनके लिए अन्य सुविधाएं प्रदान की जा सकती हैं। इनमें ठेके या मुक्तरूप से काम करने वाले श्रमिकों और ‘प्लेटफार्म’ श्रमिकों जैसे कर्मियों का पंजीकरण किया जाएगा।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने भाषण में इस प्रकार के वेब-पोर्टल की स्थापना का उल्लेख किया था।

श्रम सचिव अपूर्व चंद्र ने सोमवार को संवाददाताओं से कहा, ‘‘ नियम बनाए जा रहे हैं और उम्मीद है कि इस काम को आने वाले सप्ताह में पूरा कर लिया जाएगा। इस संबंध में सभी संबद्ध पक्षों से विचार विमर्श किया गया है।’’

उन्होंने कहा यह मंत्रालय जल्दी ही इस स्थिति में होगा कि चारो नयी संहिताओं को लागू किया जा सके। इनमें वेतन/मजदूरी संहिता, औद्योगिक संबंधों पर संहिता, काम विशेष से जुड़ी सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्यस्थल की दशाओं (ओएसएच) पर संहिता, तथा सामाजिक सुरक्षा संहिता शामिल हैं।

श्रम मंत्रालय ने चारों संख्याओं को अप्रैल से लागू करने की योजना बनाई है।

मंत्रालय ने श्रम कानूनों में सुधार के लिए कुल 44 तरह के पुराने श्रम कानूनों को चार वृहद संहिताओं में समाहित किया है और उन्हें लागू करने की प्रक्रिया के आखिरी चरण में है। अधिकारियों के अनुसार मंत्रालय इन कानूनों को एक ही साथ लागू करना चाहता है।

पोर्टल के बारे में चंद्रा ने बताया कि पोर्टल तैयार करने का काम चालू है और यह जून तक शुरू किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इस पोर्टल पर अल्पकालिक ठेकों या काम के आधार पर सेवाएं देने वाले कर्मियों, निर्माण क्षेत्र में कार्यरत मजदूरों और दूसरे राज्यों से मजदूरी के लिए आने वाले श्रमिकों से संबंधित सूचनाएं जुटायी जाएगी।

इस पर ऐसे मजदूरों के पंजीकरण की सुविधा होगी। उन्हें एक साल के लिए प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना के तहत मुफ्त बीमा संरक्षण दिया जाएगा।

चंद्रा ने यह भी बताया कि श्रम ब्यूरो ने चार नए सर्वे कराएगा जो दूसरे राज्यों से आने वोले मजदूरों , घरेलू श्रमिकों , पेशेवरों तथा परिवहन क्ष्रेत्र द्वारा सृजित रोजगार से संबंधित होंगे। ब्यूरो प्रतिष्ठानों पर आधारित एक अखिल भारतीय रोजगार सर्वेक्षण (एआईईईएस) शुरू कराएगा।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ CBI जांच के आदेश के विरुद्ध दायर याचिका पर फरवरी के अंतिम हफ्ते में सुनवाई करेगा उच्चतम न्यायालय attacknews.in

नयी दिल्ली, आठ फरवरी । उच्चतम न्याायलय ने सोमवार को कहा कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा दायर याचिका पर वह फरवरी के अंतिम हफ्ते में सुनवाई करेगा। रावत ने उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की सीबीआई जांच के राज्य के उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी है।

उच्चतम न्यायालय ने पिछले वर्ष 29 अक्टूबर को उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाते हुए कहा था कि रावत का पक्ष सुने बगैर इसे पारित किया गया।

दो पत्रकारों ने भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं, जो रावत के कथित रिश्तेदारों के खाते में 2016 में धन स्थानांतरित करने से जुड़ा हुआ है। रावत उस वक्त भाजपा की झारखंड इकाई के प्रभारी थे और वहां ‘गौ सेवा आयोग’ के प्रमुख के तौर पर एक व्यक्ति की नियुक्ति के लिए कथित तौर पर इन पैसों का लेन-देन हुआ था।

रावत ने इन आरोपों से इंकार किया है।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति आर. एस. रेड्डी की पीठ इन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। इसमें पिछले वर्ष 27 अक्टूबर को उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ रावत की याचिका भी शामिल है।

पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘मामले को फरवरी के अंतिम हफ्ते के लिए सूचीबद्ध किया जाए। इस बीच अतिरिक्त दस्तावेज पेश करने की भी छूट दी जाती है

सुप्रीम कोर्ट ने सिविल सेवा परीक्षा में कोविड-19 के कारण अवसर गंवा चुके परीक्षार्थियों को केंद्र सरकार से आयु सीमा पर एक बार की राहत देने विचार करने को कहा attacknews.in

नयी दिल्ली, आठ फरवरी । उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को केंद्र से कहा कि वह ऐसे यूपीएससी सिविल सेवा अभ्यर्थियों को आयु सीमा को लेकर एक बार की राहत के तौर पर अतिरिक्त मौका देने पर विचार करे, जो कोविड-19 महामारी के बीच 2020 की परीक्षा में अपने अंतिम प्रयास में शामिल हुए थे और उनकी परीक्षा में बैठने की आयु सीमा समाप्त हो चुकी है।

इससे पहले केंद्र ने पांच फरवरी को उच्चतम न्यायालय से कहा था कि वह ऐसे यूपीएससी सिविल सेवा अभ्यर्थियों को एक बार की राहत के तौर पर अतिरिक्त मौका देने पर सहमत है, जो कोविड-19 महामारी के बीच 2020 की परीक्षा में अपने अंतिम प्रयास में शामिल हुए थे और उनकी आयु सीमा समाप्त नहीं हुई है।

उन्होंने कहा था, “ राहत खासतौर पर केवल सिविल सेवा परीक्षा-2021 (सीएसई) के लिए ऐसे अभ्यर्थियों तक ही सीमित रहेगी जोकि सीएसई-2020 में अपने अंतिम प्रयास में शामिल हुए थे और सीएसई-2021 में बैठने के लिए जिनकी आयु समाप्त नहीं हुई है। ऐसे अभ्यर्थियों को एक और बार परीक्षा में शामिल होने का अवसर दिया जाएगा।”

सोमवार को सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति ए एम खानविल्कर और न्यायमूर्ति दिनेश महेश्वरी की पीठ के समक्ष याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि आयु सीमा संबंधी शर्त को लेकर दिक्कत है क्योंकि इसके चलते खासतौर पर सबसे अधिक प्रभावित ऐसे अभ्यर्थी होंगे जोकि दिव्यांग, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति से संबंध रखते हैं।

पीठ ने पाया कि महामारी के चलते असाधारण परिस्थिति थी और अधिकारियों को कठोर रुख नहीं अपनाना चाहिए।

केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू ने पीठ से कहा, “ हम कठोर नहीं हैं। जब इस अदालत ने हमें सुझाव दिया, तब हमने राहत प्रदान की।”

पीठ द्वारा आयु सीमा में एक बार की राहत प्रदान करने के बारे में कहा गया।

इस पर राजू ने पीठ से कहा कि यह संभव नहीं हो सकता है लेकिन वह अधिकारियों से चर्चा करने के बाद अदालत को सूचित करेंगे।

केंद्र द्वारा पांच फरवरी को दाखिल दस्तावेज में कहा गया था कि सीएसई-2021 के दौरान ऐसे अभ्यर्थियों को राहत प्रदान नहीं की जाएगी, जिनका अंतिम प्रयास समाप्त नहीं हुआ है अथवा ऐसे उम्मीदवार जोकि विभिन्न श्रेणियों में निर्धारित आयु सीमा को पार कर चुके हैं। इसके अलावा, अन्य कारणों से परीक्षा में शामिल होने के लिये अयोग्य अभ्यर्थियों को भी सीएसई-2021 में राहत नहीं मिलेगी।

केंद्र ने पीठ से यह भी कहा कि यह राहत केवल एक बार के अवसर के तौर पर सीएसई-2021 के लिए ही लागू रहेगी और इसे मिसाल के तौर पर नहीं देखा जाएगा।

उन्होंने कहा कि भविष्य में इस राहत को आधार बनाकर किसी तरह के निहित अधिकार का दावा पेश नहीं किया जाएगा।

पीठ ने राजू से इस दस्तावेज को वितरित करने को कहा और साथ ही याचिकाकर्ताओं को इस बारे में अपना जवाब दाखिल करने को कहा था।

पीठ उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें ऐसे यूपीएससी सिविल सेवा अभ्यर्थियों को एक और अवसर प्रदान करने का अनुरोध किया गया था जोकि महामारी के कारण इस परीक्षा के अपने अंतिम अवसर को गंवा बैठे।

उल्लेखनीय है कि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने एक फरवरी को उच्चतम न्यायालय से कहा था कि वह यूपीएससी परीक्षा 2020 में कोविड-19 के कारण शामिल नहीं हो सके या ठीक से तैयारी नहीं कर पाने वाले ऐसे अभ्यर्थियों को अतिरिक्त मौका नहीं देगी। सरकार ने कहा था कि 2020 में अंतिम मौका गंवा चुके अभ्यर्थियों को अतिरिक्त अवसर देना अन्य के साथ भेदभाव होगा।

नरेन्द्र मोदी ने भारत की न्याय व्यवस्था को विश्व में सर्वश्रेष्ठ उच्च कोटि की मानी जाने की हरेक विशेषताओं को प्रस्तुत किया:गुजरात हाईकोर्ट के 60 वर्ष पूरे होने पर जारी किया डाक टिकट attacknews.in

अहमदाबाद, छह फरवरी । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को देश की न्यायपालिका की सराहना करते हुए कहा कि उसने लोगों के अधिकार की रक्षा करने और निजी स्वतंत्रता को बरकरार रखने के अपने कर्तव्य का पूर्ण निष्ठा से निवर्हन किया है।

उन्होंने कहा कि न्यायपालिका ने उन स्थितियों में भी अपने कर्तव्य का निष्ठा से पालन किया, जब राष्ट्र हितों को प्राथमिकता दिए जाने की आवश्यकता थी।

उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के दौरान वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से दुनिया में सर्वाधिक संख्या में सुनवाई की।

मोदी ने गुजरात उच्च न्यायालय के 60 वर्ष पूरे होने के अवसर पर ऑनलाइन माध्यम से डाक टिकट जारी करने के बाद कहा, ‘‘हर देशवासी यह कह सकता है कि हमारी न्यायपालिका ने हमारे संविधान की रक्षा के लिए दृढ़ता से काम किया। हमारी न्यायपालिका ने अपनी सकारात्मक व्याख्या से संविधान को मजबूत किया है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘यह सुनकर सभी को गौरव होता है कि हमारा न्यायालय महामारी के दौरान वीडियो कांफ्रेंस के जरिए दुनिया का सर्वाधिक सुनवाई करने वाला न्यायालय बन गया है।’’

मोदी ने कहा कि न्यायपालिका ने लोगों के अधिकार की रक्षा करने, निजी स्वतंत्रता को बरकरार रखने के अपने कर्तव्य का निष्ठा से निर्वहन किया और उसने उन स्थितियों में भी अपने कर्तव्य का पालन किया, जब राष्ट्र हितों को प्राथमिकता दिए जाने की आवश्यकता थी।

उन्होंने कहा कि ‘डिजिटल इंडिया मिशन’ की बदौलत देश की न्याय प्रणाली का तेजी से आधुनिकीकरण हो रहा है और 18,000 से अधिक अदालतें कम्प्यूटरीकृत हो चुकी हैं।

मोदी ने गुजरात उच्च न्यायालय की सराहना करते हुए कहा कि उसने सत्य और न्याय के लिए जिस कर्तव्यनिष्ठा से काम किया और अपने संवैधानिक कर्तव्यों के लिए जो तत्परता दिखाई, उससे भारतीय न्याय व्यवस्था और भारत के लोकतंत्र दोनों मजबूत हुए हैं।

मोदी ने गुजरात उच्च न्यायालय की हीरक जयंती पर उसे बधाई देते हुए कहा कि अदालत और बार ने अपनी समझ एवं विद्वता के कारण विशिष्ट पहचान बनाई है।

उन्होंने कहा, ‘‘न्यायपालिका के प्रति भरोसे ने सामान्य नागरिक के मन में एक आत्मविश्वास पैदा किया है। उसे सच्चाई के लिए खड़े होने की ताकत दी है। जब हम आजादी से अब तक देश की यात्रा में न्यायपालिका के योगदान की चर्चा करते हैं, तो हम ‘बार’ के योगदान की भी चर्चा करते हैं।’’

उन्होंने कहा कि भारतीय समाज में कानून का शासन, सदियों से सभ्यता और सामाजिक ताने-बाने का आधार रहा है।

उन्होंने प्राचीन ग्रंथों का हवाला देते हुए कहा कि न्याय ही सुराज की बुनियाद है।

मोदी ने कहा कि न्यायपालिका ने संविधान की रक्षा करने का दायित्व पूरी दृढ़ता से निभाया है।

उन्होंने कहा, ‘‘ हमारे संविधान में कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका को दी गई जिम्मेदारियां हमारे संविधान के लिए प्राणवायु की तरह है। हमारी न्यायपालिका ने संविधान की प्राणवायु की सुरक्षा का दायित्व पूरी दृढ़ता से निभाया।’’

प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार और न्यायपालिका दोनों का यह दायित्व बनता है कि वे मिलकर लोकतंत्र के लिए विश्वस्तरीय न्याय प्रणाली तैयार करें।

उन्होंने कहा कि न्याय प्रणाली ऐसी होनी चाहिए, जो समाज के सबसे वंचित तबके के लिए भी सुलभ हो।

मोदी ने कहा, ‘‘हमारी न्याय प्रणाली ऐसी होनी चाहिए, जो समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के लिए भी सुलभ हो, जहां हर व्यक्ति के लिए समय पर न्याय की गारंटी हो। सरकार इस दिशा में काम करने के लिए निरंतर प्रयास कर रही है।’’

महाराष्ट्र में शिक्षा एवं नौकरियों में मराठा समुदाय को आरक्षण देने से संबंधित कानून पर दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट 8 मार्च से डिजिटल और प्रत्यक्ष दोनों तरीके से सुनवाई शुरू करेगा attacknews.in

नयी दिल्ली, पांच फरवरी । उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि शिक्षा एवं नौकरियों में मराठा समुदाय को आरक्षण देने से संबंधित महाराष्ट्र के 2018 के कानून को लेकर दायर याचिकाओं पर वह आठ मार्च से अदालत कक्ष के साथ ही ऑनलाइन, दोनों तरीके से सुनवाई करेगा।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि यदि शीर्ष न्यायालय में अदालत कक्ष में सुनवाई शुरू होती है तो पक्षकार प्रत्यक्ष रूप से दलीलें दे सकते हैं और यदि कोई डिजिटल माध्यम से दलील देना चाहता है तो इसकी भी इजाजत है।

वर्तमान में शीर्ष न्यायालय में सुनवाई वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से की जा रही है। कोविड-19 महामारी के कारण यह व्यवस्था पिछले वर्ष मार्च से चल रही है तथा न्यायालय डिजिटल तथा प्रत्यक्ष दोनों ही तरीके से सुनवाई जल्द ही बहाल कर सकता है।

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट भी पीठ का हिस्सा हैं। पीठ ने कहा कि वह इस मुद्दे पर भी दलीलें सुनेगी कि इंदिरा साहनी मामले में ऐतिहासिक फैसला जिसे ‘मंडल फैसला’ के नाम से जाना जाता है उस पर पुन: विचार करने की आवश्यकता है या नहीं।

इससे पहले, 20 जनवरी को महाराष्ट्र सरकार ने पीठ से कहा था कि इस किस्म के मामले (आरक्षण) पर सुनवाई अदालत कक्ष में की जानी चाहिए।

इलाहाबाद हाईकोर्ट, कलकत्ता हाईकोर्ट, कर्नाटक हाईकोर्ट और छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट को मिले 24 नये जस्टिस,कॉलेजियम ने इन हाईकोर्टों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के प्रस्तावों को मंजूरी दी attacknews.in

नयी दिल्ली, पांच फरवरी । उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय और कलकत्ता उच्च न्यायालय के लिए क्रमश: ग्यारह और आठ न्यायिक अधिकारियों की पदोन्नति न्यायाधीश के रूप में करने के प्रस्तावों को मंजूरी दे दी है।

कॉलेजियम ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के लिए दो न्यायिक अधिकारियों और एक अधिवक्ता तथा छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के लिए एक न्यायिक अधिकारी और एक अधिवक्ता की पदोन्नति न्यायाधीश के रूप में करने के प्रस्तावों को भी स्वीकृति प्रदान कर दी है।

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे के नेतृत्व वाली कॉलेजियम ने चार फरवरी 2021 को हुई बैठक में प्रस्तावों को स्वीकृति प्रदान कर दी, जो शुक्रवार को शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड की गई।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के लिए पदोन्नत किए गए न्यायिक अधिकारियों में मोहम्मद असलम, अनिल कुमार गुप्ता, अनिल कुमार ओझा, साधना रानी (ठाकुर), ओमप्रकाश त्रिपाठी, नवीन श्रीवास्तव, उमेश चंद्र शर्मा, सैयद आफताब हुसैन रिजवी, अजय त्यागी, सैयद वायज मियां और अजय कुमार श्रीवास्तव-प्रथम शामिल हैं।

कलकत्ता उच्च न्यायालय में पदोन्नत किए गए न्यायिक अधिकारियों में केसांग डोमा भूटिया, रबींद्रनाथ सामंत, सुगतो मजूमदार, अनन्या बंद्योपाध्याय, राय चट्टोपाध्याय, बिवास पटनायक, शुभेंदु सामंत और आनंद कुमार मुखर्जी शामिल हैं।

वहीं, न्यायिक अधिकारियों-राजेंद्र बादामीकर, खाजी जेबुन्निसा मोहिउद्दीन और अधिवक्ता आदित्य सौंधी को कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया है।

न्यायिक अधिकारी नरेश कुमार चंद्रवंशी और अधिवक्ता नरेंद्र कुमार व्यास को छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया है।

बोबडे के अतिरिक्त न्यायमूर्ति एन वी रमण और न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन भी उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के संबंध में निर्णय करने वाली तीन सदस्यीय कॉलेजियम का हिस्सा हैं।