उज्जैन 29 अप्रैल। विराट गुरुकुल सम्मेलन के दूसरे दिन ज्ञानयज्ञ सत्र में बोलते हुए भैयाजी जोशी ने कहा कि शिक्षा से केवल ज्ञान प्राप्त नहीं होता संस्कारों में शुद्धता आती है। उन्होंने कहा कि भारत की परंपराओं को देखते हैं तो पाते हैं कि विकेंद्रित व्यवस्थाओं के तहत प्राचीन काल में गुरुकुल में शिक्षा प्रदान की जाती थी। गुरुकुल को केवल आवासीय एवं भोजन व्यवस्था के विद्यालय नहीं कह सकते हैं, बल्कि यह परंपरा का निर्वाह करते हुए समग्र रूप में व्यक्ति के जीवन में संस्कार आधारित शिक्षा प्रदान करते है। इंटरनेट पर प्राप्त होने वाली शिक्षा, शिक्षा नहीं सूचना मात्र है। श्री जोशी ने कहा कि अच्छा गुरु मिलना भाग्य की बात होती है, किंतु अच्छा शिष्य मिलना भी संयोग होता है। आदि काल में गुरु वशिष्ठ के गुरुकुल आत्मीयता के साथ-साथ समानता का भाव लेकर शिक्षा का प्रसार करते रहे हैं।
उन्होंने कहा कि क्या शिक्षा खरीदने की वस्तु है ? बिल्कुल नहीं । भारत मे प्राचीन काल से श्रेष्ठ लोग अपने ज्ञान का प्रसार करने का काम करते रहे है। भारत की गुरुकुल परंपरा को समझ कर दुनिया के अन्य देश इसको अपना रहे हैं। वर्तमान समय में आधुनिक बातों की मर्यादाओं को समझ कर आगे बढ़ने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि गुरु को दक्षिणा दी जाती है। दक्षिणा दी जाती है और फीस मांगी जाती है, यही वर्तमान शिक्षा पद्धति और गुरुकुल शिक्षा पद्धति में यही अंतर है। गुरुकुल शिक्षा पद्धति को बनाए रखना एक चुनौती है। शिक्षा में मूल्यों की भावना को संरक्षित कर आगे बढ़ना आवश्यक है ।
सत्र में मध्य प्रदेश के संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव श्री मनोज श्रीवास्तव ने संबोधित करते हुए कहा कि शिक्षा दान कृतज्ञता की संस्कृति थी।
उन्होंने कहा कि उज्जयिनी का पुराना नाम महाकाल वन था, इसी तरह वाराणसी को आनंदवन और मथुरा को वृंदावन कहा गया है। वन के स्वच्छंद वातावरण में शिक्षा प्रदान करना प्राचीन परंपराओं में शामिल था।
उन्होंने कहा कि गुरुकुल शिक्षा की रणनीतिक गतिविधियों को धरातल पर उतारना होगा। श्री श्रीवास्तव ने कहा कि यह गंभीरता से स्वीकार करना होगा कि शिक्षा अपघटित हो गई है। इसे दूर करने के लिए खुले वातावरण में के शिक्षा की आवश्यकता पड़ेगी। विश्व के स्विटजरलैंड, फिनलैंड एवं इंग्लेंड जैसे अनेक देशों ने वन शालाओं की अवधारणा पर काम किया है। भारत की आरंभिक शिक्षा पर निर्णायक प्रहार औपनिवेशिक काल में हुआ। वर्तमान स्कूलों के पास न तो कृषि भूमि है ना ही क्रीडा भूमि। प्रकृति के साथ क्रीड़ा बच्चे में रचनात्मकता को जन्म देती है। शताब्दियों की श्रुति परंपरा को आत्महीनता में तब्दील कर दिया गया है, उसका पुनरुत्थान आवश्यक है। गुरुकुल आश्रम में कराए जाने वाले श्रम में वर्ग भेद नहीं था।
श्री श्रीवास्तव ने कहा की 64 कलाओं में कई कलाएं स्किल डेवलपमेंट का हिस्सा बन सकती हैं। हम से ही सीख कर दुनिया आगे बढ़ गई है और हमने गुरुकुल शिक्षा को हाशिए पर रख दिया है। इस पर चिंतन किया जाना चाहिए।
सत्र में डॉक्टर शैलेंद्र मेहता ने कहा कि महाभारत काल में तक्षशिला का वर्णन आता है, उस जमाने में सभी वैज्ञानिक विषय नालंदा, तक्षशिला और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों में पढ़ाए जाते थे। इन विश्वविद्यालयों में एक से बढ़कर एक अन्वेषण हुए।
आचार्य सनत्कुमार ने गुरुकुल शिक्षा पद्धति पर प्रकाश डाला एवं वेद एवं वेदांग का महत्व प्रतिपादित किया। स्वामी संवित सोमगिरी महाराज ने कहा की श्रुति, युक्ति व अनुभूति को लेकर हमारी संस्कृति प्रवाहित होती रही है और होती रहेगी। वेदों के अनुसार जीवन क्या है, प्रज्ञा क्या है, इस को दृष्टिगत रखकर मन को जागृत करना पड़ेगा। वर्तमान में विकास के नाम पर अंधी दौड़ मच रही है, भारतीय दर्शन एवं विज्ञान की शिक्षा को लेकर किसी के मन में संशय नहीं रहना चाहिए।attacknews.in