मुंबई, 09 दिसंबर । बॉलीवुड अभिनेता अशोक कुमार की छवि भले ही एक सदाबहार अभिनेता की रही है लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा कि वह फिल्म इंडस्ट्री के पहले ऐसे अभिनेता हुये जिन्होंने एंटी हीरो की भूमिका भी निभाई थी।
पिछली शताब्दी के चालीस के दशक में अभिनेताओं की छवि परंपरागत अभिनेता की होती थी जो रूमानी और साफ सुथरी भूमिका किया करते थे।
अशोक कुमार फिल्म इंडस्ट्री के पहले ऐसे अभिनेता हुये जिन्होंने अभिनेताओं की परंपरागत शैली को तोड़ते हुये फिल्म ..किस्मत ..में एंटी हीरो की भूमिका निभाई थी।
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में सर्वाधिक कामयाब फिल्मों में बांबे टॉकीज की वर्ष 1943 में निर्मित फिल्म ..किस्मत ..में अशोक कुमार ने एंटी हीरो की भूमिका निभायी थी।
इस फिल्म ने कलकत्ता के चित्रा थियेटर सिनेमा हॉल में लगातार 196 सप्ताह तक चलने का रिकार्ड बनाया था।
हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री मे दादा मुनि के नाम से मशहूर कुमुद कुमार गांगुली उर्फ अशोक कुमार का जन्म बिहार के भागलपुर शहर में 13 अक्तूबर 1911 को एक मध्यम वर्गीय बंगाली परिवार में हुआ था।
अशोक कुमार ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा खंडवा शहर से पूरी की ।
इसके बाद उन्होंने स्नातक की पढ़ाई इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पूरी की जहां उनकी दोस्ती शशाधर मुखर्जी से हो गयी जो उन्हीं के साथ पढ़ा करते थे।
अशोक कुमार ने दोस्ती को रिश्ते मे बदलते हुये अपनी इकलौती बहन की शादी शशाधर से कर दी।
वर्ष 1934 मे न्यू थियेटर में बतौर लैबोरेटरी सहायक काम कर रहे अशोक कुमार को बांबे टॉकीज में काम कर रहे उनके बहनोई शशाधार मुखर्जी ने अपने पास बुला लिया।
वर्ष 1936 में बांबे टॉकीज की फिल्म जीवन नैया के निर्माण के दौरान फिल्म के मुख्य अभिनेता बीमार पड़ गये।
इस विकट परिस्थति मे बांबे टाॅकीज के मालिक हिंमाशु राय का ध्यान ..अशोक कुमार ..पर गया और उन्होंने अशोक कुमार से फिल्म मे बतौर अभिनेता काम करने की गुजारिश की।
इसके साथ ही ..जीवन नैया ..से अशोक कुमार का बतौर अभिनेता फिल्मी सफर शुरू हो गया ।
वर्ष 1939 में प्रदर्शित फिल्म ..कंगन…बंधन और झूला में अशोक कुमार ने लीला चिटनिश के साथ काम किया।
इन फिल्मों मे उनके अभिनय को दर्शकों द्वारा काफी सराहा गया।
इसके साथ ही फिल्मों की कामयाबी के बाद अशोक कुमार बतौर अभिनेता फिल्म इंडस्ट्री मे स्थापित हो गये।
वर्ष 1943 हिमांशु राय की मौत के बाद अशोक कुमार बाम्बे टाकीज को छोड़ फिल्मीस्तान स्टूडियों चले गये ।
वर्ष 1947 में देविका रानी के बाम्बे टॉकीज छोड़ देने के बाद बतौर प्रोडक्शन चीफ बाम्बे टाकीज के बैनर तले उन्होंने मशाल और मजबूर जैसी कई फिल्मों का निर्माण किया।
पचास के दशक में बाम्बे टॉकीज से अलग होने के बाद उन्होंने अपनी खुद की प्रोडक्शन कंपनी शुरू की इसके साथ हीं उन्होंने जूपिटर थियेटर भी खरीदा।
अशोक कुमार प्रोडक्शन के बैनर तले उन्होंने सबसे पहले फिल्म समाज का निर्माण किया लेकिन यह फिल्म बॉक्स आफिस पर बुरी तरह नकार दी गयी ।
इसके बाद उन्होंने अपने बैनर तले फिल्म परिणीता का भी निर्माण किया।
लगभग तीन वर्ष के बाद फिल्म निर्माण क्षेत्र में घाटा होने के कारण उन्होंने अशोक कुमार प्रोडक्शन कंपनी बंद कर दी।
वर्ष 1953 में प्रदर्शित फिल्म परिणीता के निर्माण के दौरान फिल्म के फिल्म के निर्देशक बिमल राय के साथ उनकी अनबन बन हो गयी।
इसके बाद अशोक कुमार ने बिमल राय के साथ काम करना बंद कर दिया ।लेकिन अभिनेत्री नूतन के कहने पर अशोक कुमार ने एक बार फिर से बिमलराय के साथ वर्ष 1963 मे प्रदर्शित फिल्म ..बंदिनी.. में काम किया और यह फिल्म हिन्दी फिल्म इतिहास की क्लासिक फिल्मों मे शुमार की जाती है ।
अभिनय में एकरुपता से बचने और स्वंय को चरित्र अभिनेता के रूप मे भी स्थापित करने के लिये अशोक कुमार ने अपने को विभिन्न भूमिकाओं मे पेश किया।
वर्ष 1958 मे प्रदर्शित फिल्म चलती का नाम गाड़ी में उनके अभिनय के नये आयाम दर्शकों को देखने को मिले ।
हास्य से भरपूर इस फिल्म में अशोक कुमार के अभिनय को देख दर्शक मंत्रमुग्ध हो गये।
वर्ष 1968 मे प्रदर्शित फिल्म ..आशीर्वाद..में अपने बेमिसाल अभिनय के लिये वह सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किये गये।
इस फिल्म में उनका गाया गाना रेल गाड़ी रेल गाड़ी बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ।
इसके बाद वर्ष 1967 मे प्रदर्शित फिल्म .ज्वैलथीफ.. में उनके अभिनय का नया रूप दर्शकों को देखने को मिला।
इस फिल्म में वह अपने सिने कैरियर में पहली खलनायक की भूमिका मे दिखाई दिये।इस फिल्म के जरिये भी उन्होंने दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया ।
वर्ष 1984 में दूरदर्शन के इतिहास के पहले शोप आपेरा.हमलोग.में वह सीरियल के सूत्रधार की भूमिका में दिखाई दिये और छोटे पर्दे पर भी उन्होंने दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया।
दूरदर्शन के लिये ही अशोक कुमार ने भीमभवानी, बहादुर शाह जफर और उजाले की ओर जैसे सीरियल में भी अपने अभिनय का जौहर दिखाया।
अशोक कुमार को मिले सम्मान की चर्चा की जाये तो वह दो बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किये गये है।
वर्ष 1988 में हिन्दी सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के अवार्ड से भी अशोक कुमार सम्मानित किये गये।
लगभग छह दशक तक अपने बेमिसाल अभिनय से दर्शकों के दिल पर राज करने वाले अशोक कुमार 10 दिसंबर 2001 को सदा के लिये अलविदा कह गये।attacknews.in