Home / #coronavirus / इंदौर की सुपर फ़ास्ट वेंटीलेटर एक्सप्रेस की देश भर में मांग;एक टीम ने तमाम सरकारी अस्पतालों में वेंटिलेटर को इंस्टाल करने की एक मुहिम शुरू की और अब ये सीमा पार कर देश भर में फैल गई attacknews.in

इंदौर की सुपर फ़ास्ट वेंटीलेटर एक्सप्रेस की देश भर में मांग;एक टीम ने तमाम सरकारी अस्पतालों में वेंटिलेटर को इंस्टाल करने की एक मुहिम शुरू की और अब ये सीमा पार कर देश भर में फैल गई attacknews.in

इंदौर, 22 मई । कोविड महामारी के मौत के तांडव के बीच मध्य प्रदेश के तीन इंजीनियरों की एक टीम ने तमाम सरकारी अस्पतालों में वेंटिलेटर को इंस्टाल करने की एक मुहिम शुरू की और अब ये मुहिम राज्य की सीमा पार कर देश भर में फैल रही है।

इंदौर के ‘थ्री इडियट्स’ दोस्तों ने एक फेसबुक पोस्ट से उपजे आइडिया की सफलता से उत्साहित होकर ‘अपनी गाड़ी, अपना ईंधन, अपनी मेहनत और अपनी काबिलियत से जनसेवा का एक अनूठा अभियान’ ‘वेंटिलेटर एक्सप्रेस’ शुरू किया जिससे जुड़ने के लिए अब देश के दूसरे हिस्सों के लोग भी आतुर हैं।

इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले पंकज क्षीरसागर, चिराग शाह और शैलेन्द्र सिंह की यह टीम ‘वेंटीलेटर एक्सप्रेस’ इंदौर से चलकर मध्यप्रदेश के विभिन्न सरकारी अस्पतालों में पीएम केअर बीईएल वेंटिलेटर्स को निशुल्क इंस्टाल करने के साथ उनके सामान्य कनेक्टिंग पार्ट्स भी निशुल्क उपलब्ध करवाती है। यह टीम अब तक सौ से अधिक मशीनों को इंस्टाल कर चुकी है।

श्री क्षीरसागर ने बताया कि सामान्य समस्याओं वाली मशीनों को ‘जुगाड़’ से ठीक करते आ रहे हैं। एक मशीन में यूपीएस, वेंटिलेटर, मॉनिटर एवं कंप्रेसर ये तीन मुख्य पार्ट्स होते हैं। किसी का कुछ ठीक नहीं है किसी का कुछ खराब। कहीं ऑक्सीजन लाइन में प्रेशर की चुनौती तो कहीं कनेक्टर नहीं है। अप्रैल माह में जब से इन मशीनों की बेहद जरूरत थी तभी से यह टीम रेड जोन में तक जाकर काम करती रही।
उन्होंने बताया कि इंदौर के दो बड़े सरकारी अस्पताल महाराजा तुकोजीराव अस्पताल, सुपर स्पेशिलिटी हॉस्पिटल के साथ साथ महू, धार, शाजापुर, राजगढ़, सागर, दमोह, कटनी मंडला और शहडोल जिलों में वेंटिलेटर एक्सप्रेस अपनी सेवाएं दे चुकी है। अब महाराष्ट्र के नासिक और कर्नाटक में हुबली से बुलावा है। टीम में वाराणसी से एक नये साथी नित्यानंद 12 मशीनें वहां ठीक कर चुके हैं। पटना एवं हुबली शहरों की इंजीनियर टीम जुड़ गई है।

इस विचार का बीज कैसे पड़ा, यह पूछे जाने पर श्री क्षीरसागर ने बताया कि उन्होंने 13 अप्रैल की रात फेसबुक पर एक पोस्ट में एक निजी अस्पताल सांसों के लिए संघर्ष करते अपने दोस्त की असहाय स्थिति को देखकर हताशा जाहिर की। उस रात लंबे समय से भर्ती उस दोस्त की बेटी ने रात 11:00 बजे फोन किया और कहा कि पिताजी सांस नहीं ले रहे हैं। वह बेटी भी पॉजिटिव थी। दोस्त की पत्नी और उनका बेटा भी।

इस पोस्ट को पढ़कर उनके फेसबुक मित्र चिराग शाह ने मैसेंजर पर एक संदेश भेजा। इस पर उन्होंने चिराग शाह को अस्पताल पहुंचने का आग्रह किया।

श्री क्षीरसागर ने जब दोस्त को वहां सांसों के लिए संघर्ष करते देखा तो जीवन की सच्चाई सामने आ गई। ऐसा लग रहा था मानो उस दोस्त से आखरी बार मुलाकात हो रही है। उसने अलविदा की मुद्रा में हाथ हिलाया। इसने सबको बहुत दुखी कर दिया।

श्री क्षीरसागर अगले दिन श्री शाह के साथ दोपहर में महाराजा यशवंत राव चिकित्सालय के अधीक्षक डॉ पी एस ठाकुर के कक्ष में मिले। दोनों ने तय किया कि इंदौर के सरकारी अस्पतालों में जिन वस्तुओं या संसाधनों की कमी हो रही है उन्हें जुटाते हैं। इंदौर के पास औद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर से नाता रखने वाले वरिष्ठ एडवोकेट श्री गिरीश पटवर्धन एवं अन्य लोगों ने इस समन्वय के लिए श्री चिराग शाह को अधिकृत किया था।

डॉ ठाकुर ने कहा कि आप बाइपैप मशीनें दीजिए। कोई इंजीनियर हो बताएं हमें वेंटीलेटर इंस्टॉल भी करवाने हैं। इस पर श्री क्षीरसागर ने कहा हमें मशीन दिखाएं। हम कर लेंगे। तब पंकज और चिराग डॉ पी एस ठाकुर के साथ महाराजा तुकोजीराव अस्पताल पहुंचे। जो एक बड़ा सरकारी कोविड हॉस्पिटल है। जिसके अधीक्षक भी डॉक्टर ठाकुर ही हैं। वहां इन दोनों ने अपने तीसरे दोस्त शैलेंद्र सिंह को बुला लिया। जो एक पर्यावरण इंजीनियर और वेस्ट ट्रीटमेंट के जानकार हैं।

श्री शैलेंद्र सिंह अपने घर से औजार लेकर आए थे। श्री शाह के पास अपनी गाड़ी में औजार थे। तीनों के लिए जीवन में बॉक्स के अंदर रखे हुए वेंटिलेटर पार्ट्स देखने का पहला अनुभव था। एक बॉक्स में वेंटिलेटर असेंबली का ड्राइंग मिला। उसे दीवार पर पैकिंग टेप से लगाया गया। एक एक बॉक्स को खोला गया। कौन सी चीज क्या है यह समझा गया। एक एक पार्ट को जोड़ने की शुरुआत हुई। पहली मशीन तकरीबन चार घंटे में पूरी तैयार होकर प्लग-इन के लिए रेडी थी।

महाराजा तुकोजीराव अस्पताल की पांचवी मंजिल के रेड जोन में लिफ्ट के पास खाली जगह पर नौ मशीनों के बॉक्सेस लाकर रखे गए। देर रात तक नौ नई मशीनों को इंस्टाल किया गया। तीन को ठीक किया गया। जब मशीन इंस्टॉल कर रहे थे तब इस बात का अंदेशा नहीं था कि कोरोना की यह लहर इतना विकराल रूप लेने वाली है। अगली सुबह अस्पताल के तकनीकी स्टाफ भूपेंद्र यादव ने बताया कि सभी मशीनों पर अब जिंदगी सांस ले रही है। उन्होंने तस्वीरें भी भेजीं।

इसके अगले ही दिन इंदौर के सुपर स्पेशिलिटी अस्पताल के प्रमुख डॉक्टर सुमित शुक्ला से बात हुई। फिर वहां की मशीनों को ठीक किया गया। टेक्निकल टीम के साथ मशीनों को इंस्टालेशन पूरा हुआ।

इसके बाद वेंटिलेटर एक्सप्रेस ने धार, शाजापुर, राजगढ़ जिलों की यात्रा की। सागर के बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज में मशीनों के मेंटेनेन्स और ऑक्सीजन सप्लाई को जांचा परखा। महू के साथ दमोह कटनी में मशीनों को इंस्टॉल किया। ठीक भी किया। शहडोल में 15 वेंटीलेटर्स को चालू करवाने में सहायता की। मंडला में वीडियो कॉल से मशीनों को ऑपरेट करना सिखाया।

श्री क्षीरसागर का कहना है कि अब उनकी टीम लगातार काम करने अब एक घंटे में एक वेंटिलेटर इंस्टाल कर देती है। जबकि उन्हें पहली मशीन इंस्टॉल करने में पसीना आ गया था और तकरीबन चार घंटे लगे थे।

श्री क्षीरसागर ने बताया कि यह टीम वेंटीलेटर एक्सप्रेस मरीजों को दवाइयां उपलब्ध कराने, वेंटिलेटर बेड, ऑक्सीजन सिलेंडर के साथ-साथ बुजुर्गों को घर घर जाकर उपचार दिलाने में सहयोग भी कर रही है। उनकी टीम नये लोगों को जोड़ना चाहती है और इस मुहिम को देश भर में फैलाना चाहती है।

उन्होंने कहा कि भारत में छोटे शहरों, कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों में मेडिकल की सुविधाएं नगण्य हैं। पीएम केयर्स के माध्यम से वेंटिलेटर एवं अन्य मशीनों को भेजा जा रहा है। लेकिन वहां इन मशीनों का इस्तेमाल एक चुनौती बनी हुई है। हमारी वेंटिलेटर एक्सप्रेस इस कमी को पूरा करेगी और महामारी के बाद भी देश में मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत बनाने में योगदान देती रहेगी।

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