इस्लामाबाद, चार सितंबर । अफगान तालिबान ने हक्कानी नेटवर्क के संस्थापक जलालुद्दीन हक्कानी की मृत्यु की घोषणा मंगलवार को की।
ऐसा माना जाता है कि हक्कानी 2008 में अफगानिस्तान में भारतीय दूतावास पर हुए जानलेवा हमले सहित देश में तमाम अशांति और हिंसक घटनाओं के लिए जिम्मेदार था। काबुल स्थित दूतावास पर हुए हमले में 58 लोग मारे गये थे।
अफगान तालिबान ने आतंकवादी समूह के प्रमुख हक्कानी की मृत्यु और दफन की तारीख नहीं बतायी। हक्कानी ने 9/11 के बाद ही संगठन का कामकाज अपने बेटे सिराजुद्दीन हक्कानी को सौंप दिया था।
अफगान तालिबान ने एक बयान में कहा, ‘‘….जानेमाने मुजाहिद, प्रसिद्ध इस्लामिक विद्वान, लड़ाके, मुजाहिदीन के नेता, फ्रंटियर्स के मंत्री (तालिबान में) इस्लामिक एमिरेट्स एंड मेंबर ऑफ लीडरशिप (तालिबान) काउंसिल, अल-हज मुल्ला जलालुद्दीन हक्कानी की लंबी बीमारी के बाद मृत्यु हो गयी।’’
माना जा रहा है कि हक्कानी की उम्र 80 वर्ष से ज्यादा थी और पहले भी कई बार उसके मारे जाने की सूचना आयी थी। लेकिन पहली बार आतंकवादी समूह ने इसकी पुष्टि की है।
पाकिस्तान के खैबर-पख्तूनख्वा प्रांत के दारूल उलूम हक्कानिया नौशेरा से हक्कानी ने पढ़ाई की थी। इसे ‘जिहाद विश्वविद्यालय’ कहा जाता है। तालिबान के दिवंगत नेता मुल्ला उमर और मुल्ला अख्तर मंसूर, और अल-कायदा इन इंडियन सबकांटिनेंट नेता असिम उमर भी इसी के छात्र रहे हैं।
हक्कानी मूल रूप से पाकिस्तान की सीमा से सटे अफगानिस्तान के पाकतिका प्रांत का रहने वाला था। पहली बार वह 1980 के दशक में सोवियत बलों के खिलाफ अफगान युद्ध में लोगों की नजर में आया। उसे 1990 के दशक में अफगानिस्तान पर शासन कर रही तालिबान सरकार में मंत्री नियुक्त किया गया था।
हक्कानी के संबंध पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के साथ भी रहे हैं। उसने अफगानिस्तान में प्रशिक्षण शिविर लगाने में ओसामा बिन-लादने की मदद भी की थी।attacknews.in