झाबुआ ! भगोरिया पर्व अंचल में बांसुरी की धुन पर गूंजेगी उल्लास की कुर्राटियां, आज चांदपुर, खट्टाली, बोरी व बरझर में भगोरिया, आदिवासी संस्कृति के होंगे दर्शन, देशी-विदेशी सैलानियों का लगेगा जमावड़ा आलीराजपुर. आदिवासी बहुल जिले में बुधवार से उल्लास के पर्व भगोरिया पर्व शुरू होगा। अंचल के इस सबसे बड़े कार्निवाल को निहारने के लिए एक सप्ताह तक देशी-विदेशी सैलानियों का जमावड़ा लगा रहेगा। सप्ताहभर तक चलने वाले इस त्योहार के लिए शासन-प्रशासन ने भी कमर कस ली है। इन सबके बीच अंचलवासियों का उत्साह भी चरम पर पहुंचता नजर आ रहा है।
भगोरिया की शुरुआत बुधवार को चांदपुर, खट्टाली, बोरी, बरझर से होगी तथा समापन 22 मार्च को आम्बुआ व बखतगढ़ में होगा।भगोरिये में अपनी ओर आकर्षित कर लेने वाली मनमोहक पारंपारिक विशेषभूषा में सजी-धजी आदिवासी बालाएं, मांदल की थाप और बांसुरी की धुन पर थिरकती युवाओं की टोली, चारों और उल्लास और उमंग का माहौल बिखरेगी, जो आदिवासी लोक संस्कृति को विश्व मानचित्र पर जीवंत कर देगी।
अंचल में भगोरिया वैसे तो अपनी रोमांचित कर देने वाली विशेषताओं से भरा है, किंतु भगोरिया हाट की संगीत के बिना कल्पना करना बेमानी होगी, हालांकि आदिवासी समाज में संगीत का पहले ही महत्वपूर्ण स्थान है किंतु भगोरिया के दौरान बांसुरी से निकलने वाली सुमधुर धुन और मांदल से मस्ती बांध देने वाली निकलने वाली थाप की बात ही कुछ और है। भगोरिया हाट में आदिवासी नृत्यदलों के सदस्यों द्वारा बजाए जाने वाला संगीत सहज ही हर किसी को थिरकने पर मजबूर कर देते हैं। बांसुरी की धुन पर लोक नृत्य करते हुए पहुंचेंगे भगोरिया हाट बाजारों में हजारों आदिवासी नगरीय सीमा में प्रवेश करने के बाद से हाट स्थल तक ढोल मांदल की थाप व बांसुरी की धुन पर लोक नृत्य करते हुए पहुंचेंगे। ताड़ी व शराब की मस्ती में मदहोश होकर कुर्र…कुर्र कर कुर्राटियां भी जमकर लगाएंगे। आदिवासियों की लोक संस्कृति से रूबरू होने के लिए बाहर से आने वाले अतिथियों के लिए कुर्राटियां आकर्षण का केंद्र रहती हैं।
अक्सर लोग कुर्राटिर्याे की तीव्रता से टोली के उत्साह को भी भांप लेते है। कुर्राटियां संगीत के साथ ही सुनाई दे तो, ही सुखद लगती है, अन्यथा अंचल के आदिवासी आवेश में आने के बाद भी जोरदार तरीके से कुर्राटी लगाते है, इस प्रकार की कुर्राटी प्राय: विवाद होने की स्थिति में सामने वाले को ललकारने के उद्वेश्य से लगाई जाती है। आज भी बरकरार है पारंपरिक वाघयंत्र बुधवार को अंचल में सूर्योदय के साथ दिनभर लोक संगीत की सुमधुर धुनें गूंजती रहेंगी।
यह गूंज सप्ताह भर तक अंचल के वातावरण में संगीत घोलती रहेगी। आदिवासियों द्वारा बजाय जाने वाले सभी वाद्ययंत्रों का निर्माण स्वयं उनके द्वारा किया जाता है। वाद्ययंत्रों के निर्माण की परंपरा अंचल में सदियों से चली आ रही है।
हालांकि आधुनिक युग में धीरे-धीरे अन्य म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट का उपयोग भी प्रचलन में आने लगा है। एक सप्ताह तक चलेगा पर्व 16 मार्च चांदपुर, खट्टाली, बोरी, बरझर। 17 मार्च सौंडवा,जोबट, फुलमाल। 18 मार्च वालपुर, कठ्ठीवाड़ा, उदयगढ़। 19 मार्च उमराली, नानपुर। 20 मार्च छकतला, सोरवा, आमखुंट। 21 मार्च आलीराजपुर, चंद्रशेखर आजाद नगर। 22 मार्च आम्बुआ, बखतगढ़।