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उप्र की 17 अति पिछड़ी जाति को अनुसूचित जाति में शामिल करने का विरोध उसी पार्टी ने कर दिया जिसने सत्ता में रहते इसे लागू करने की कोशिश की थी attacknews.in

लखनऊ, दो जुलाई ।उतर प्रदेश की 17 अति पिछड़ी जातियों निषाद, बिंद, मल्लाह, केवट, कश्यप, भर, धीवर, बाथम, मछुआ, प्रजापति, राजभर, कहार, कुम्हार, धीमर, मांझी, तुरहा और गौड़िया को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने की कोशिश प्रदेश की पूर्ववर्ती मायावती सरकार और अखिलेश यादव सरकार ने भी की थी, मगर वह कोशिश नाकाम हो गयी थी लेकिन इस बार योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा इसे लाया गया तो बसपा ही राज्यसभा में इसके खिलाफ हो गई ।


अखिलेश सरकार ने दिसम्बर 2016 में इन जातियों को अनुसूचित जातियों में शामिल करने सम्बन्धी प्रस्ताव को कैबिनेट में पारित कराने के बाद केन्द्र सरकार के पास विचार के लिये भेजा था। इस कदम को गोरखपुर के डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर ग्रन्थालय एवं जन कल्याण नामक संगठन ने न्यायालय में चुनौती दी थी। इस पर अदालत ने स्पष्ट किया था कि इन जातियों को जारी होने वाले अनुसूचित जाति के प्रमाणपत्र की वैधता इस चुनौती याचिका पर न्यायालय के निर्णय पर निर्भर करेगी


 उत्तर प्रदेश की 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जातियों में शामिल करने के मुद्दे पर राज्य की योगी आदित्यनाथ सरकार को केन्द्र से झटका लगने के बाद विपक्षी दलों ने भी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।

केंद्र ने मंगलवार को कहा कि उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार को निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना अन्य पिछड़ा वर्ग के 17 समुदायों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल नहीं करना चाहिए था।

बसपा के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि योगी सरकार का यह निर्णय असंवैधानिक होने के साथ उन 17 अति पिछड़ी जातियों के साथ धोखा भी है।

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान कहा ‘‘यह उचित नहीं है और राज्य सरकार को ऐसा नहीं करना चाहिए।’’ शून्यकाल में यह मुद्दा बसपा के सतीश चंद्र मिश्र ने उठाया। उन्होंने कहा कि अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल 17 समुदायों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने का उत्तर प्रदेश सरकार का फैसला असंवैधानिक है क्योंकि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग की सूचियों में बदलाव करने का अधिकार केवल संसद को है।

गहलोत ने कहा कि किसी भी समुदाय को एक वर्ग से हटा कर दूसरे वर्ग में शामिल करने का अधिकार केवल संसद को है। उन्होंने कहा ‘‘पहले भी इसी तरह के प्रस्ताव संसद को भेजे गए लेकिन सहमति नहीं बन पाई।’’ उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को समुचित प्रक्रिया का पालन करना चाहिए अन्यथा ऐसे कदमों से मामला अदालत में पहुंच सकता है।

इस बीच, सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी ने इस घटनाक्रम पर कुछ भी साफतौर पर कहने से इंकार किया, मगर कहा कि पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव का मानना है कि सामाजिक न्याय की व्यवस्था होनी चाहिये।

उन्होंने कहा कि जहां तक योगी सरकार का सवाल है तो वह इस मुद्दे का राजनीतिक इस्तेमाल करना चाहती थी।

कांग्रेस प्रवक्ता द्विजेन्द्र त्रिपाठी ने कहा कि अगर योगी सरकार इन 17 पिछड़ी जातियों को वाकई फायदा पहुंचाना चाहती थी तो उसे सही प्रक्रिया का पालन करना चाहिये था।

उन्होंने कहा, ‘यह कदम इन जातियों के साथ धोखा तो है ही, उनके अधिकारों को छीनने की कोशिश भी है। सरकार जानती है कि उसके पास इन पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जातियों में शामिल करने का अधिकार नहीं है।’ सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष और प्रदेश के पूर्व कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने कहा कि योगी सरकार ने प्रदेश की 12 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में फायदा लेने के लिये यह मुद्दा उछाला था।

उन्होंने ‘ट्वीट’ कर कहा कि प्रदेश सरकार की मंशा पूरी तरह बेनकाब हो गयी है।

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार ने गत 24 जून को जारी एक शासनादेश में सभी मण्डलायुक्तों और जिलाधिकारियों को यह निर्देश दिया था कि 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने के मसले पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा 29 मार्च 2017 को जारी आदेश का अनुपालन सुनिश्चित करते हुए परीक्षण के बाद जरूरी दस्तावेजों के आधार पर नियमानुसार जाति प्रमाणपत्र जारी किये जाएं।

न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि इन 17 जातियों को वांछित जाति प्रमाणपत्र जारी किया जा सकता है लेकिन उनकी वैधता इस मामले में दाखिल याचिका पर अदालत द्वारा भविष्य में दिये जाने वाले फैसले पर निर्भर करेगी।


राज्यसभा में यह कहा मंत्री ने:मामला बसपा के सांसद ने उठाया-



सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने अाज राज्यसभा में कहा कि उत्तरप्रदेश में कुछ जातियों को अन्य पिछड़ा वर्ग सूची से हटाकर अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करना अवैध है जिससे बचा जाना चाहिए।


श्री गहलाेत ने कहा कि राज्य सरकार को अपना आदेश वापस लेना चाहिए आैर संबंधित जातियों के लोगों के एस सी प्रमाण पत्र नहीं बनायें जाने चाहिए। 


उन्होंने कहा कि राज्य सरकार का यह कदम पूरी तरह से अवैध है अौर इसे अदालतों के जरिए खारिज कर दिया जाएगा। बाद में लोगों को भारी परेशानी उठानी होगी। 


इससे पहले सदन में शून्यकाल के दौरान बहुजन समाज पार्टी के सतीश चंद्र मिश्रा ने उत्तरप्रदेश में 17 जातियों को ओबीसी सूची से हटाकर एससी सूची के डालने के राज्य सरकार के आदेश का मामला उठाया और कहा कि यह पूरी तरह से संविधान के खिलाफ है। 


उन्होेंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 341 के अनुसार आरक्षण के लिए वर्गीकरण की सूची में परिवर्तन केवल संसद कर सकती है। किसी भी सरकार को इसमें परिवर्तन करने का अधिकार नहीं है। 


उन्होंने कहा कि उत्तरप्रदेश की सरकार इन 17 जातियों के साथ धोखा कर रही है। इन जातियों को ओबीसी सूची से हटा दिया गया है। इससे इन्हें ओबीसी आरक्षण का लाभ नहीं मिल पायेगा। उन्हाेंने कहा कि इससे पहले भी राज्य सरकारों ने ऐसे प्रयास किये थे जिनपर उच्चतम न्यायालय ने रोक लगा दी थी। 


गाैरतलब है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने 17 जातियों को अनुसूचित जातियों की सूची में डाल दिया। इन जातियों में कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिन्द, भर, राजभर जैसी जातियां शामिल हैं। राज्य सरकार ने जिला प्रशासनों को इन जातियों के लोगों को एससी प्रमाण पत्र जारी करने का आदेश भी दिया है। attacknews.in

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