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उत्तरप्रदेश की चर्चित कैराना संसदीय सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला जातीय समीकरणों में उलझा, भाजपा ने प्रदीप चौधरी को मैदान में उतारा है attacknews.in

सहारनपुर, 01 अप्रैल । चुनावों में मूलभूत समस्यायों को किनारे कर जातीय समीकरणों में उलझ कर रह जाने वाले पश्चिमी उत्तर के कैराना संसदीय क्षेत्र में इस बार त्रिकोणीय मुकाबले के आसार हैं।

पिछले आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के हुकुम सिंह ने यहां से चुनाव जीता था लेकिन उनके निधन के बाद उनकी बेटी मृगांका सिंह 2018 के उप चुनाव में समाजवादी पार्टी (सपा) की तबस्सुम हसन से हार गयीं थीं। भाजपा ने इस बार उनका टिकट काटकर गंगोह के विधायक प्रदीप चौधरी काे मैदान में उतारा जबकि श्रीमती हसन राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) की प्रत्याशी के रुप में फिर चुनाव में उतरी हैं । कांग्रेस ने जाट नेता हरेंद्र मलिक को अपना प्रत्याशी बनाया है। इससे यहां इन तीनों के बीच मुकाबला होने की उम्मीद है।

सोलह लाख से अधिक मतदाताओं वाले इस क्षेत्र में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है मगर हर चुनाव की तरह इस बार भी यहां विकास का मुद्दा पटरी से उतर चुका है और लड़ाई जातिगत समीकरणों पर सध गयी है। कैराना में मुस्लिम आबादी 38.10 फीसदी है और परिसीमन के बाद सहारनपुर की गंगोह और नकुड़ विधानसभा सीटें कैराना में शामिल होने से गुर्जर और जाट मतदाताओं की भी अच्छी-खासी तादाद है।

इस सीट से श्रीमती हसन अपने पति मुनव्वर हसन के निधन के बाद 2009 में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के टिकट पर सांसद चुनी गयी थीं लेकिन 2014 में उनके बेटे नाहिद हसन ने भाजपा के हुकुम सिंह का चुनावों में मुकाबला किया था। तब भाजपा को 5,65,909 वोट मिले थे। श्री सिंह के निधन के बाद 2018 में हुये उपचुनाव में श्रीमती हसन ने मृगांका को 44,618 वोटों से पराजित किया था। उप चुनाव में तबस्सुम की जीत इसलिये भी मायने रखती है कि यहां उस वक्त मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पूरी ताकत झोंक दी थी लेकिन भाजपा को जीत नहीं दिला सके थे।

क्षेत्र के प्रमुख गुर्जर नेता चौधरी वीरेंद्र सिंह गत शनिवार को भाजपा में शामिल हो गये हैं। उनके बेटे और शामली के जिला पंचायत अध्यक्ष मनीष चौहान भी भाजपा में आ गये हैं। ऐसे में गुर्जर वोटों के एक बड़ा हिस्सा भाजपा के पक्ष में जा सकता हैं।

अगर बात रालोद प्रत्याशी तबस्सुम हसन की करें तो सियासत उनके परिवार का स्थायी हिस्सा रहा है। उनके ससुर अख्तर हसन कैराना लोकसभा सीट से 1984 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते थे। उन्होंने तब बसपा सुप्रीमो मायावती को दो लाख वोटों के अंतर से हराया था।

वर्ष 1996 में तबस्सुम हसन के पति मुनव्वर हसन लोकसभा सदस्य चुने गए थे। बाद में वह सपा से 1998 में राज्यसभा के सदस्य निर्वाचित हुए थे। वहीं , 1980 में इस सीट से तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की पत्नी गायत्री देवी लोकसभा चुनाव जीती थीं। वर्ष 1971 में चौधरी शफक्कत जंग कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा के लिए चुने गए थे। कैराना से 1999 में आमिर आलम रालोद के टिकट पर सांसद बने और 2004 में अनुराधा चौधरी रालोद के टिकट पर ही सांसद चुनी गयी। वर्ष 1989 और 1991 में जनता दल के हरपाल पांवार सांसद चुने गये थे।

भाजपा 1998 में पहली बार यहां चुनाव जीती थी। तब भाजपा के उम्मीदवार वीरेंद्र वर्मा ने सपा के मुनव्वर हसन को पराजित किया था। दूसरी बार भाजपा को इस सीट पर जीत 2014 में हुकुम सिंह ने दिलाई थी।

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