लखनऊ 22 सितम्बर । उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने फिल्म जगत को आश्वस्त करते हुये कहा कि 50 साल की जरूरतों का ध्यान में रखकर राज्य में फिल्म सिटी का निर्माण किया जायेगा जो न सिर्फ सिनेमा जगत की कसौटी पर खरी उतरेगी बल्कि पूरी दुनिया के सामने एक नजीर पेश करेगी।
यमुना एक्सप्रेस-वे सेक्टर-21 में लगभग 1,000 एकड़ में प्रस्तावित फिल्म सिटी को लेकर श्री योगी ने मंगलवार को सिनेमा जगत की महत्वपूर्ण हस्तियों के साथ बैठक में कहा उत्तर प्रदेश में अपूर्णता का कोई स्थान नहीं। यहां अधूरा कुछ नहीं होता। यह राम की अयोध्या, कृष्ण की मथुरा, शिव की काशी के साथ ही बुद्ध, कबीर और महावीर की भी धरती है। गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है। पूर्णता का प्रतीक यह राज्य दुनिया को आधुनिक साज सज्जा के साथ फिल्म सिटी का तोहफा देगा।
श्री योगी ने कहा कि उत्तर प्रदेश भारतीय संस्कृति, सभ्यता और समृद्ध परंपरा का सबसे महत्वपूर्ण केंद्र है। यमुना एक्सप्रेस-वे क्षेत्र में जहां यह फ़िल्म सिटी विकसित करने का विचार है, वह भारत के ऐतिहासिक, पौराणिक इतिहास से सम्बद्ध है। यह हस्तिनापुर का क्षेत्र है। हमारे दिव्य-भव्य कुंभ से पूरी दुनिया आह्लादित है। फ़िल्म सिटी भी सभी की उम्मीदों को पूरा करने वाली होगी।
इस मौके पर यमुना एक्सप्रेस-वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण के सीईओ अरुनवीर ने प्रस्तावित फ़िल्म सिटी के संबंध में एक प्रस्तुतिकरण दिया और बताया कि यमुना एक्सप्रेस-वे सेक्टर-21 में लगभग 1,000 एकड़ भूमि पर इसका विकास होगा। इसमें 220 एकड़ कॉमर्शियल एक्टिविटी के लिए आरक्षित होगा। यह मथुरा-वृंदावन से 60 और आगरा से 100 किमी की दूरी पर है। हम यहां फ़िल्म सिटी के लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ-साथ 35 एकड़ में फ़िल्म सिटी पार्क भी विकसित करेंगें।
ताजमहल की तरह दुनिया को आकर्षित करेगी यूपी में फिल्म सिटी
उत्तर प्रदेश में फिल्म सिटी के सिलसिले में विचार विमर्श के लिये लखनऊ आये फिल्मी दुनिया की हस्तियों ने एक सुर में कहा कि उन्हे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की क्षमता पर पूरा भरोसा है और हिन्दी भाषी राज्य में प्रस्तावित फिल्म सिटी सफलता के नये आयाम स्थापित करेगी।
रंगमंच और हिन्दी फिल्मों के मशहूर अभिनेता अनुपम खेर ने कहा “ आज का मौका उत्सव का है। श्री योगी की क्षमता पर सभी को भरोसा है। यूपी की फ़िल्म सिटी यूपी में तो होगी लेकिन पूरी दुनिया इसे अपना मानेगी। यह ताजमहल की तरह ही दुनिया भर को आकर्षित करने वाली होगी। इसकी स्थापना की पहली बैठक में आमंत्रित कर योगी ने हमें इतिहास में दर्ज कर दिया। उनके इस सपने को साकार करने में अगर मैं भी भागीदार हो सका तो यह मेरा सौभाग्य होगा।”
नेशनल स्कूल आफ ड्रामा के चेयरमैन परेश रावल ने कहा फ़िल्म पटकथा लेखन को लेकर योगी कोई प्रयास करें तो बहुत सहायता मिलेगी। यह रीजनल सिनेमा को भी पुनर्जीवन देने वाला आयाम सिद्ध होगा।”
उत्तर प्रदेश फ़िल्म बन्धु के अध्यक्ष राजू श्रीवास्तव ने कहा “ श्री योगी ने फ़िल्म जगत को नया विकल्प देने की दिशा में कोशिश की है। यह छोटे-छोटे शहरों की अद्भुत प्रतिभाओं के हौसलों, सपनों को पंख देने वाला होगा। मैं हर समय, पूरी क्षमता के साथ सेवा के लिए प्रस्तुत रहूंगा। ”
दक्षिण भारतीय फिल्मों के सुपर स्टार रजनीकांत की पुत्री एवं अभिनेत्री सौंदर्या ने कहा “ भारत में अब भी एनिमेशन इंडस्ट्री नहीं है। आज की फिल्मों में इसका बड़ा असर है। योगी अगर इस दिशा में कोशिश हो, तो बड़ी सुविधा होगी। फ़िल्म सिटी की स्थापना की घोषणा के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को बहुत धन्यवाद।”
फिल्म अभिनेता मनोज जोशी ने कहा “ अद्भुत और अनुपम प्रयास है। पंजाबी, बंगाली, हिंदी, सहित 12 भारतीय भाषाओं के फिल्मोद्योग का महाद्वार होगी यह फ़िल्म सिटी। इसे इको-फ्रेंडली बनाने की कोशिश हो। आज ओटीटी प्लेटफार्म पर हिंदी पट्टी की कहानियां छायी हुई हैं। आज 70 फीसदी टेक्नीशियन उत्तर प्रदेश के हैं। रंग कर्म में यूपी अत्यंत समृद्ध है। इन सभी को ‘आत्मनिर्भर’ बनाने में यह नवीन फ़िल्म सिटी अत्यंत उपयोगी हो सकती है। यह प्रदेश के औद्योगिक, पर्यटन विकास को नई दिशा प्रदान करने वाली होगी।”
भजन गायक अनूप जलोटा ने कहा “ बहुत अभिनन्दनीय प्रयास है। इसके लिए पूरी दुनिया के फ़िल्म सिटीज का अध्ययन किया जाना चाहिए। उनकी खूबियों, कमियों को समझना चाहिए। आवश्यकताओं के लिहाज से सुविधाएं दी जाएं। यह दुनिया के लिए महत्वपूर्ण प्रयास है। ”
गायक कैलाश खेर ने कहा “ आज जब योगी स्वयं नेतृत्व कर रहे हैं, तो कोई भी कार्य असाध्य नहीं है।दुनिया में फ़िल्म सिटी के नाम पर लाखों किले खड़े हैं, लोगों ने 70 साल में क्या हाल कर दिया कि घिन आती है, शर्म आती है। उत्तर प्रदेश देवताओं की पुण्य भूमि है। दुनिया को राह दिखाने वाली है।योगी जी की यह दुनिया भारतीय संस्कृति को पोषित करने वाली हो। कला साधकों को सम्मान मिले। ऐसा जरूर होगा, यह मेरा विश्वास है। बाकी योगी आदेश करें, हम धावक हैं दौड़ पड़ेंगे।”
निर्माता निर्देशक सतीश कौशिक ने कहा “ यूपी शूटिंग फ्रेंडली जगह रही है। मैंने बहुत काम किया है यहां। आज का दिन पूरी दुनिया के कला क्षेत्र के लिए ऐतिहासिक है। योगी फ़िल्म जगत को एक नवीन विकल्प दे रहे हैं। आज जो प्रेजेंटेशन दिखाया गया, वह हमें एक बेहतर भविष्य की छवि दिखा गया। आपने हम कलाकारों को एक नया आधार दिया है। यूपी की संस्कृति ने भारतीय फिल्मों को शुरू से ही प्रभावित किया है, अब यहां की फ़िल्म सिटी पूरी दुनिया को प्रभावित करेगी।”
पार्श्व गायक उदित नारायण ने कहा “ योगी ने बहुत कम समय में बहुत खूबसूरत काम किया है। ऐसे में फ़िल्म सिटी की घोषणा से हम सभी का उत्साहित होना लाजिमी है। मैं 40 साल फ़िल्म जगत का हिस्सा रहा हूँ। योगी के इस बड़े सपने को साकार करने में अगर मैं भी कुछ योगदान कर सका तो जीवन को धन्य समझूंगा। ”
गीतकार मनोज मुन्तशिर ने कहा “ योगी ने करोड़ों प्रतिभाओं को पंख दे दिए। 75 साल से हिंदी पट्टी इसका इंतजार कर रही थी। यूपी की भाषा तो दुनिया में फैल गई, लेकिन यूपी की कहानियां नहीं सुनाई गईं। योगी से अनुरोध है कि एक फ़िल्म इंस्टिट्यूट और म्यूजिक इंस्टिट्यूट की स्थापना की दिशा में भी विचार करें। आल्हा ऊदल, महामना मालवीय जैसे महामानवों से नई पीढ़ी को परिचित कराने की कोशिश हो।मुझे आज यूपी वाला होने पर बहुत गर्व है।”
फिल्म निर्माता विवेक अग्निहोत्री ने कहा कि योगी की अभिनव सोच और तत्परतापूर्ण क्रियान्वयन को प्रणाम। बहुत ज़रूरी और बहुप्रतीक्षित प्रयास है। हिंदी फिल्मोद्योग को एक नवीन आधार मिलेगा। ”
कला निर्देशक नितिन देसाई ने कहा “फ़िल्म केवल नृत्य-संगीत ही नहीं है। लाखों को रोजगार, अरबों का व्यापार, हुनर और हौसलों को सलाम भी है। जो प्रस्ताव यूपी का है वह इंटरनेशनल फ़िल्म जगत को आकर्षित करने वाला है। देवताओं की जन्मस्थली है उत्तर प्रदेश। धर्म, संस्कृति, कला का अद्भुत संगम है यहां। यह फ़िल्म सिटी यूपी को और समृद्ध करेगी।हम सभी इस विजन को सफल करने में हम संभव मदद करने के लिए तैयार हैं।”
फिल्मलैंड के लिए मुफीद है चंबल की वादियां:
उत्तर प्रदेश में फिल्मसिटी के निर्माण के लिये जारी कवायद के बीच इटावा के बाशिंदो काे भरोसा है कि नैसर्गिक सुंदरता की पर्याय चंबल घाटी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के फिल्मलैंड के सपने में चार चांद लगाने में मददगार साबित हो सकती हैं।
वैसे चंबल के बीहड़ मायानगरी के निर्माता निर्देशकों के लिये दशकों से आकर्षण का केन्द्र बने रहे है। कई नामी गिरामी फिल्मों की शूटिंग चंबल के दुर्दांत दस्यु सरगनाओ के जीवन पर फिल्माई जा चुकी है जबकि यहां की नैसर्गिक सुंदरता कश्मीर की वादियों को कई मायनों पर टक्कर देती है। इस लिहाज से चंबल फिल्मलैंड के लिए सबसे मुुफीद मानी जा रही है ।
फिल्म निर्माण से जुड़ी कई हस्तियाें का मानना है कि प्राकृतिक तौर पर बेहद आंनदमयी चंबल घाटी को फिल्मलैंड के रूप मे स्थापित कर फिल्मकारो के लिए एक नया रास्ता खोला जा सकता है ।
तेलंगाना के जानेमाने फिल्मकार,गजलकार डा.गजल श्रीनिवास का कहना है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से आग्रह है कि अगर फिल्मसिटी चंबल घाटी मे बनाया जाता है तो फिल्मकारो को शूटिंग के लिहाज से बहुत ही अधिक फायदा होगा क्योंकि यहाॅ पर बहुत ही सुकुन है। लोकेशन बहुत ही शानदार है जो किसी भी फिल्म के लिए सबसे महत्वपूर्ण है ।
श्री निवास कहते हैं कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पांच नदियों के संगम स्थल पशनदा को पर्यटक स्थल बनाने का फैसला भी कर चुके है ऐसे में चम्बल को अगर फ़िल्मलैंड की ओर ले जाया जाता है तो निश्चित है यह कोशिश चंबल के लिहाज से बहुत ही सार्थक होगी।
चंबल मे मैला प्रथा पर फिल्म निर्माण कर चुके मास्साब, बंदूक,जैसी सम्मानित और पुरस्कृत फिल्मों के लेखक निर्देशक,तेलुगु फिल्मों के सुप्रसिद्ध अभिनेता आदित्य ओम चंबल घाटी को फिल्म निर्माण के लिए सबसे बेहतर मानते है । ओम कहते है कि चंबल घाटी मे शूटिंग हर लिहाज से बेहतर है । चाहे वो लोकशन हो या फिर कोई और भी जरूरत हर जरूरत आपकी पूरी हो सकती है । चंबल घाटी की नैसर्गिक सुंदरता विदेश के खूबसूरत पर्यटन स्थलो को भी मात देती है। इसी धरोहर को आज ना केवल सुरक्षित रखने की जरूरत है बल्कि उसको लोकप्रिय भी बनाना है ।
के.आफिस चंबल इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिबल के चैयरमैन मोहनदास का मानना है कि अगर चंबल घाटी को फिल्मलैंड का दर्जा मिलता है तो चंबल मे विकास के नये आयमो का सृजन तो होगा ही साथ ही रोजगार की भी नई संभावनाए जरूर बनेगी ।
अखिलेश सरकार मे फिल्म विकास परिषद के सदस्य रहे विशाल कपूर ने कहा “ उत्तर प्रदेश मे फिल्म सिटी की बात चली है, तो यह जान लीजिए अगर दूसरा कार्यकाल अखिलेश यादव को मिला होता,तो अब तक फिल्म रिलीज का वक्त आ जाता। अखिलेश यादव ने जिस भी काम मे हाथ डाला,अपने सधे हुए हुनरमंद हाथों से उस काम को तय वक्त में पूरा किया। ”
चंबल फाउंडेशन के संस्थापक शाह आलम ने कहा कि एक दौर ऐसा आया जब देश में बनने वाली हर चैथी फिल्म की कहानी या लोकेशन चंबल घाटी होती रही है । इसी वजह से चंबल घाटी को फिल्मलैंड कहा जाता है। जमींदारों के अत्याचार, आपसी लड़ाई और जर, जोरू और जमीन के झगड़ों को लेकर 1963 में आई फिल्म मुझे जीने दो के बाद इस विषय पर सत्तर के दशक में बहुत सारी फिल्में, चंबल के बीहड़ और बागियों को लेकर बनीं जिनमें डाकू मंगल सिंह -1966, मेरा गांव मेरा देश-1971, चम्बल की कसम-1972, पुतलीबाई-1972, सुल्ताना डाकू-1972, कच्चे धागे-1973 , प्राण जाएँ पर बचन न जाए-1974, शोले-1975, डकैत-1987,बैंडिट क्वीन-1994, वुंडेड -2007, पान सिंह तोमर- 2010, दद्दा मलखान सिंह और सोन चिरैया-2019 और निर्भय सिंह आदि प्रमुख हैं। इन फिल्मों में से कुछ फिल्मों में चंबल की वास्तविक तस्वीर बड़ी विश्वसनीयता के साथ अंकित हुई है। शाह बताते है कि घाटी में फिल्मांकन की दृष्टि से पीला सोना यानी सरसों से लदे खेत, इसके खाई-भरखे, पढ़ावली-मितावली, बटेश्वर, सिंहोनिया के हजारों साल पुराने मठ-मन्दिर, सबलगढ़, धौलपुर, अटेर, भिंड के किले, चंबल सफारी में मगर, घड़ियाल और डाल्फिनों के जीवन्त दृश्य और चाॅदी की तरह चमकती चंबल के रेतीले तट और स्वच्छ जलधारा । इसके अलावा और भी बहुत कुछ है चम्बल में, जिस पर फिल्मकारों और पर्यटकों की अभी दृष्टि पड़ी नहीं है। चंबल बहुत ही उर्वर है इस मामले में नए फिल्मकारों को इसका लाभ उठाना चाहिये।
खूंखार डाकुओं की शरणस्थली के तौर पर दशकों तक कुख्यात रही प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर चंबल घाटी फिल्म फिल्मकारो के आकर्षण बडा केंद्र बनाई जा सकती है ।
भारतीय सिनेमा इतिहास मे अभी तक डाकुओ के जीवन या फिर डाकुओ से जुडी हुई फिल्मो को बनाने के दौरान इस बात का ध्यान जरूर रखा गया है कि निर्माता निर्देशको ने चंबल के बीहडो का ही रूख किया है । हिंदी फिल्मकारों के लिए डकैत और बीहड़ शुरू से ही पसंदीदा विषय रहे हैं । ‘जिस देश में गंगा बहती है’, ‘मेरा गांव मेरा देश’, ‘मुझे जीने दो’, ‘बिंदिया और बंदूक’, ‘डकैत’ ‘शोले’ जैसी कई फिल्मों में खूबसूरत बीहड़ और डकैतों के जुल्म की दास्तां को पर्दे पर उतारा गया है । इससे पहले डाकू हसीना,डाकू सुल्ताना,मदर इंडिया,डाकू मंगल सिंह,डाकू सुल्ताना,जीने नही दूंगा,मेरा गांव मेरा देश, के अलावा सिनेमा निर्माताओ को कोई नाम नही सूझा तो चंबल की कसम और चंबल के डाकू नाम से ही फिल्मे बना दी गई ।
यह तो सिर्फ बानगी भर थी यही कारण है कि प्रकृति की इस अद्भुत घाटी को दुनिया भर के लोग सिर्फ और सिर्फ डकैतों की वजह से ही जानते हैं । इसी के कारण बालीबुड भी मुंबई की रंगीनियों से हटकर चंबल की इन वादियों की ओर आकर्षित हुआ और फिल्मों ने दुनिया भर के दर्शकों का मनोरंजन किया ।
चंबल के डकैतों पर आधारित सौ से अधिक फिल्में बन चुकी हैं । बीहड़ न सिर्फ विकास में बल्कि इतिहास में भी उपेक्षा झेलता आया है। आज बीहड़ की पहचान उसकी बदनामी से ही होती है । पीले फूलों के लिए ख्याति प्राप्त रही यह वादी उत्तराखंड की पर्वतीय वादियों से कहीं कमतर नहीं है । अंतर सिर्फ इतना है कि वहां पत्थरों के पहाड़ हैं तो यहां मिट्टी के पहाड़ है । बीहड़ की ऐसी बलखाती वादियां समूची पृथ्वी पर अन्यत्र कहीं नहीं देखी जा सकतीं हैं।
तिग्मांशु धूलिया बालीवुड के ऐसे फिल्मकार है जो किसी भी परिचय के मोहताज नही है । जहाॅ बालीवुड के ज्यादातर डायरेक्टर विदेशी लोकेशन को पंसद करते है वही धूलिया का लगाव अपने देश की कुख्यात चंबल घाटी से है । चंबल घाटी के प्रति उनकी दीवानगी का आलम यह देखा जा रहा है कि चंबल घाटी की तुलना वे अमरीका के ग्रांड कैनीयन से करने से भी पीछे नही है लेकिन चंबल के बदलते मिजाज से परेशान घूलिया यह कहने से भी नही चूकते कि अगर समय रहते चंबल के लिये कुछ किया नही गया तो देश के बेहतरीन पर्यटन केंद्र को हम लोग खो देगे ।