लखनऊ 3 अप्रैल ।समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष अखिलेश यादव के खिलाफ आजमगढ़ (यूपी) से चुनाव लड़ने वाले भोजपुरी फिल्मों के सुपर स्टार और बीजेपी नेता दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ ने कहा है कि अखिलेश मेरे बड़े भाई हैं. यहां ‘यादव’ का कोई सवाल नहीं है. लोग आपको केवल एक यादव के रूप में नहीं चुनते हैं. यदि आप यादव के मुद्दे पर चुनाव लड़ते हैं, तो आप बुरी तरह हार जाएंगे,आज देश अन्य मुद्दों के बारे में सोच रहा है।
‘निरहुआ’ ने कहा कि हर ‘यादव’ ‘अखिलेश भक्त’ नहीं हैं. हमारे अपने विचार हैं. हम जानते हैं कि राष्ट्र के हित में क्या है. हमें जातिगत राजनीति से ऊपर उठना होगा।
राजनीति में कब किसके सितारे बुलंद हो जाए। इसका अनुमान लगाना बेहद मुश्किल होता है।कुछ यूं ही दिनेश लाल यादव उर्फ़ निरहुआ के साथ हुआ जब भोजपुरी कलाकार दिनेश लाल यादव को बीजेपी ने पूर्वी यूपी की आज़मगढ़ लोकसभा सीट से प्रत्याशी घोषित किया क्योंकि इसी सीट से अखिलेश यादव भी लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं।
बताते चलें कि बीजेपी ने बुधवार को यूपी की पांच सीटों से प्रत्याशियों के नामों का ऐलान किया ।इसी के साथ अब तक भाजपा 66 प्रत्याशियों के नामों का ऐलान कर दिया । बुधवार को जिन सीटों से प्रत्याशियों का ऐलान हुआ है उसमें मैनपुरी से प्रेम सिंह शाक्य, आजमगढ़ से दिनेश लाल यादव उर्फ़ निरहुआ, मछलीशहर से वीपी सरोज, फिरोजाबाद से चंद्रसेन जादौन और रायबरेली से दिनेश प्रताप सिंह को टिकट दिया गया ।
इस लिस्ट में सबसे दिलचस्प नाम आजमगढ़ सीट से भोजपुरी स्टार दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ का है. अभी मंगलवार को ही सरकार ने निरहुआ को वाई श्रेणी की सुरक्षा मुहैया करवाई है. निरहुआ के चुनाव लड़ने की चर्चा उसी वक्त शुरू हो गई थी जब वे एक्टर रवि किशन के साथ सीएम योगी आदित्यनाथ से मिलने पहुंचे थे।मुलाकात के बाद उन्होंने कहा था कि वे बीजेपी ज्वाइन कर रहे हैं और पार्टी जहां से कहेगी वहां से चुनाव लड़ेंगे।
भोजपुरी स्टार दिनेश लाल यादव एक ज़माने में समाजवादी पार्टी के नेताओं के बेहद करीबी माने जाते थे। निरहुआ सपा के लिए चुनाव प्रचार भी कर चुके हैं।निरहुआ सपा नेता सुभाष पाषी के बेहद अजीज़ दोस्त माने जाते हैं।
यूपी की सियासत से जुड़े कई महत्वपूर्ण लोगों ने बताया कि यही निरहुआ सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से मिलने का जुगाड़ लगाया करते थे। बीजेपी में शामिल होने से कुछ महीनों पहले भी निरहुआ सपा नेता सुभाष पासी के माध्यम से अखिलेश से मिलने का समय मांग रहे थे. यही नहीं एक वक्त ऐसा भी था जब निरहुआ सपा का स्टाक प्रचारक भी बनना चाह रहे थे।
अब वक्त का पहिया कुछ यूं घूमा कि दिनेश लाल यादव उसी नेता के ख़िलाफ़ चुनावी मैदान में उतर रहे हैं, जिनसे मिलने का समय मांगा करते थे, हालांकि निरहुआ के लिए आज़मगढ़ सीट से चुनाव लड़ना बेहद चुनौती भरा होगा. क्योंकि ये सीट सपा की परंपरागत सीट मानी जाती है. फिलहाल आज़मगढ़ लोकसभा सीट से मुलायम सिंह यादव सांसद हैं. पूर्वांचल में आज़मगढ़ को समाजवादियों का गढ़ भी कहा जाता है।
निरहुआ के सामने दूसरी सबसे बड़ी चुनौती बीजेपी के स्थानीय नेता होंगे. पिछली बार रमाकांत यादव आज़मगढ़ से लोकसभा का चुनाव लड़े थे और हार गए थे. रमाकांत का आज़मगढ़ में अच्छा दबदबा है. इस बार भी रमाकांत आज़मगढ़ से चुनाव लड़ना चाह रहे थे लेकिन बीजेपी ने रमाकांत को टिकट नहीं दिया, रमाकांत की नाराज़गी निरहुआ पर भारी पड़ सकती है. कांग्रेस अखिलेश यादव के ख़िलाफ़ अपना प्रत्याशी नहीं उतारेगी, इससे मुस्लिम वोटों में बंटवारा नहीं होगा।2017 के विधानसभा चुनाव में आज़मगढ़ की 10 विधानसभा सीट में से सपा- 5, बीएसपी- 4 और बीजेपी सिर्फ 1 सीट जीती थी. आज़मगढ़ लोकसभा सीट का जातीय समीकरण देखें तो यह सीट यादव-मुस्लिम बाहुल्य मानी जाती है.
आज़मगढ़ का जातीय समीकरण:
यादव- 3.5 लाख
मुस्लिम- 3 लाख
दलित- 2.5 लाख
ठाकुर- 1.5 लाख
ब्राह्मण- 1 लाख
राजभर- 1 लाख
विश्वकर्मा- 70 हज़ार
भूमिहार- 50 हज़ार
निषाद- 50 हज़ार
चौहान- 75 हज़ार
वैश्य- 1 लाख
प्रजापति- 60 हज़ार
पटेल- 60 हज़ार
अगर आज़मगढ़ के इस जातीय समीकरण का विश्लेषण करें तो यादव, मुस्लिम, दलित, विश्वकर्मा, चौहान और प्रजापति सपा का वोट माना जाता है और ठाकुर, ब्राह्मण, भूमिहार, निषाद, वैश्य, पटेल बीजेपी के परंपरागत वोटर माने जाते हैं।
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