नैनीताल 22 मार्च । उत्तराखंड की पांच लोकसभा सीटों में से सबसे हाॅट मानी जा रही नैनीताल-उधमसिंह नगर सीट पर लंबे समय तक कांग्रेस का वर्चस्व रहा है लेकिन इस चुनाव में जीत हासिल करने के लिए उसे और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को कड़ी मशक्कत करनी होगी।
पहाड़ और मैदान के बीच बटी इस सीट पर कई मुद्दे ऐसे हैं जो चुनाव में जीत का आधार तय करेंगे। इन मुद्दों में पलायन और ढांचागत सुविधाओं का विकास अहम है। यह सीट 1957 में अस्तित्व में आ गयी थी। तब इसमें बहेड़ी विधानसभा क्षेत्र भी शामिल था। पुनर्गठन के बाद इसमें कई क्षेत्रों का समावेश हुआ। इस लोकसभा सीट के अंतर्गत इस समय 15 विधानसभायें सम्मिलित हैं। प्रदेश की राजनीति की दिशा एवं दशा तय करने में इस लोकसभा सीट की अहम भूमिका रही है। इस सीट में नैनीताल जनपद की छह तथा उधमसिंह नगर जनपद की नौ विधानसभा सीटें शामिल हैं। नैनीताल जनपद की नैनीताल, भीमताल, हल्द्वानी, कालाढूंगी, लालकुआं तथा उधमसिंह नगर की बाजपुर, जसपुर, खटीमा, नानकमत्ता, सितारगंज, गदरपुर, काशीपुर, किच्छा और रूद्रपुर विधानसभा सीटें शामिल हैं। इनमें से अधिकतर पर भाजपा का कब्जा है।
कांग्रेस के दिग्गज नेता नारायण दत्त तिवारी की जन्मभूमि एवं कर्मभूमि मानी जानी वाली इस सीट पर अधिकांश समय कांग्रेस का वर्चस्व रहा है। हालांकि पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा के भगत सिंह कोश्यारी ने सभी पुराने समीकरणों को बदलकर रख दिया है। उन्होंने कांग्रेस के के. सी. सिंह बाबा को 284717 मतों से पराजित किया था। अब तक हुये लोकसभा चुनावों में कांग्रेस इस सीट पर ग्यारह बार अपना परचम लहरा चुकी है जबकि भाजपा तीन बार, जनतादल , कांग्रेस (तिवारी)आैर वीएलडी एक-एक बार जीती है। कांग्रेस के नारायण दत्त तिवारी, के.सी. पंत, सत्येन्द्र चंद गुड़िया जैसे नेता इस सीट पर जीत का परचम लहरा चुके हैं। भाजपा ने 1991, 1998 और 1914 के आम चुनावों में ही इस सीट पर कब्जा किया है। भाजपा के बलराज पासी, इला पंत और भगत सिंह कोश्यारी पार्टी को जीत दिला सके हैं।
उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से कांग्रेस 2004 और 2009 के आम चुनावों में तथा भाजपा 2014 में एक बार इस सीट पर आधिपत्य कायम करने में सफल रही है। इन तीन लोकसभा चुनावों में वोट प्रतिशत के लिहाज से देखें तो दोनों पार्टियों का वोट प्रतिशत घटता बढ़ता रहा है। वर्ष 2004 में कांग्रेस पार्टी को लगभग 44 प्रतिशत वोट तथा भाजपा को 36 प्रतिशत मत मिले। अन्य पार्टियां इन दोनों के मुकाबले कहीं नहीं ठहरीं। इसके बाद 2009 दोनों पार्टियों के मत प्रतिशत में गिरावट हुई। कांग्रेस को 42.68 प्रतिशत तथा भाजपा को 30.94 प्रतिशत मत मिले। वर्ष 2014 की मोदी लहर में भाजपा ने अभूतपूर्व प्रदर्शन किया और उसे 57 प्रतिशत मत मिले जबकि कांग्रेस को मात्र 31 प्रतिशत मतों से संतोष करना पड़ा।
इस लोकसभा सीट पर पहाड़ी मतदाताओं का वर्चस्व माना जाता है। दूसरे नम्बर पर पंजाबी मतदाता जबकि तीसरे नम्बर पर मुस्लिम मतदाता माने जाते हैं। इनके अलावा बंगाली एवं पूर्वांचल के मतदाता भी इस लोकसभा क्षेत्र में अहम भूमिका निभाते रहे हैं।
इस बार 1788737 मतदाता अपने सांसद के भाग्य का फैसला करेंगे। इनमें 937354 पुरुष और 841420 महिला महिला हैं। इस लोकसभा चुनाव में भी ढांचागत सुविधाओं का विकास अहम मुद्दा होगा। इसके अलावा पहाड़ों से पलायन रोकना, पहाड़ी किसानों की खेती को जंगली जानवरों से बचाना, बेरोजगारी एवं बेहतर स्वास्थ्य सुविधायें मुहैया कराना प्रमुख मुद्दों में शामिल हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार इस लोकसभा सीट पर 63.1 प्रतिशत ग्रामीण जनसंख्या है जबकि 36.8 प्रतिशत जनसंख्या शहरी है। इससे साफ है कि ग्रामीण क्षेत्रों में विकास की अलख जगाने का विश्वास दिलाना राजनैतिक दलों के लिये प्रमुख चुनौती होगी।
पिछले कुछ सालों में पहाड़ों से लगातार पलायन हुआ है। सरकार भी मानती है कि पलायन प्रदेश की प्रमुख समस्याओं में से एक है। सरकार ने पलायन आयोग भी बनाया। पहाड़ी क्षेत्रों में जंगली जानवरों के आतंक ने पलायन को बढ़ाने में कोढ़ में खाज जैसा काम किया है।
attacknews.in