नैनीताल, 28 जून । उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने अपने महत्वपूर्ण निर्णय में चारधाम यात्रा पर रोक लगा दी है। साथ ही सरकार श्रद्धालुओं की धार्मिक भावनाओें को ध्यान में रखते हुए चारधाम यात्रा के सीधा प्रसारण (लाइव स्ट्रीमिंग) के निर्देश दिये हैं। उच्च न्यायालय के आदेश से सरकार को बड़ा झटका लगा है।
मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की युगलपीठ ने सचिदानंद डबराल, अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली एवं अनु पंत समेत छह से अधिक जनहित याचिकाओं की सुनवाई के बाद ये निर्देश जारी किये हैं। अदालत में मुख्य सचिव ओमप्रकाश व संयुक्त सचिव पर्यटन डाॅ. आशीष चौहान वर्चुअल पेश हुए।
संयुक्त सचिव पर्यटन की ओर से शपथ पत्र पेश कर अदालत के समक्ष चारधाम यात्रा की विस्तृत रूपरेखा प्रस्तुत की गयी। शपथपत्र में कहा गया कि विगत 25 जून को हुई मंत्रिमंडल की बैठक में चारधाम यात्रा को मंजूरी दे दी गयी है। प्रथम चरण में प्रदेश के तीन जिलों उत्तरकाशी, चमोली एवं रूद्रप्रयाग की जनता को चारधाम यात्रा की अनुमति दी गयी है। निर्धारित यात्रा के दौरान बदरीनाथ में एक दिन में अधिकतम 600, केदारनाथ में 400, गंगोत्री में 300 एवं यमुनोत्री में 200 तीर्थयात्री दर्शन के लिये जा सकेंगे।
शपथपत्र में यह भी कहा गया कि केन्द्र एवं राज्य सरकार की ओर से जारी मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) का सख्ती से पालन कराया जायेगा लेकिन अदालत ने शपथपत्र को सिरे से खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि शपथपत्र में जो जानकारी दी गयी हैं वह अपूर्ण एवं गलत हैं।
अदालत ने कोरोना की तीसरी लहर खासकर डेल्टा प्लस वेरिएंट का हवाला देते हुए कहा कि चारधाम यात्रा में स्वास्थ्य सुविधाओं का नितांत अभाव है।
अदालत ने कहा कि चारधाम यात्रा कोे लेकर अस्पताल, एम्बुलेंस, वेटिंलेटर, आक्सीजन कंसेट्रेटर, आइसोलेशन वार्ड समेत अन्य चीजें पर्याप्त मात्रा में नहीं हैं।
अदालत ने यह भी कहा कि एशिया, यूरोप एवं अमेरिका महाद्वीप कोरोना की तीसरी लहर डेल्टा प्लस वेरिएंट को लेकर चितिंत है। आस्ट्रेलिया एवं बंगलादेश लाकडाउन घोषित कर चुके हैं। भारत में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र एवं केरल तीन राज्यों में डेल्टा प्लस वेरिएंट के मामले सामने आये हैं।
अदालत ने आगे कहा कि प्रदेश सरकार कोरोना महामारी के चलते ही इस वर्ष की महत्वपूर्ण कावंड यात्रा पर रोक लगा चुकी है। उच्चतम न्यायालय की ओर से भी लोगों की सुरक्षा की खातिर ओडिशा की प्रसिद्ध जगन्नाथ (पुरी) यात्रा को लेकर कई तरह के सख्त निर्देश जारी किये गये।
अदालत ने सरकार की सलाह देते हुए कहा कि महाभारत में कहा गया है कि देश को बचाने के लिये राज्य, राज्य को बचाने के लिये जिला व जिला को बचाने के लिये गांव को कुर्बान करना पड़े तो जनहित में उचित है।
महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर ने अदालत को बताया कि चारधाम यात्रा का सजीव प्रसारण शास्त्रानुकूल नहीं है। इस पर अदालत ने कहा कि जब शास्त्रों की रचना की गयी थी तो तब प्रोद्योगिकी एवं तकनीक का ईजाद नहीं हुआ था। इसलिये यह तर्क स्वीकार योग्य नहीं है। यही नहीं अदालत ने तीन जिलों के टीकाकरण पर भी सवाल उठाये और सुरक्षा के लिहाज से अपर्याप्त बताया।
अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली एवं अभिजय नेगी ने बताया कि सभी पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने चारधाम यात्रा को लेकर विगत 25 जून को मंत्रिमंडल में लिये गये निर्णय पर रोक लगा दी है और सरकार को कहा कि सरकार चारधाम यात्रा के लिये लोगों को अनुमति न दे। साथ ही तीर्थयात्रियों की धार्मिक भावनाओं का ख्याल रखते हुए सरकार को कहा कि देश के अन्य पवित्र धामों की तरह से चारधाम का भी सजीव प्रसारण की व्यवस्था सुनिश्चित करे।
अदालत ने मुख्य सचिव को भी निर्देश दिये कि वह सीधा प्रसारण को लेकर सरकार के निर्णय की जानकारी सात जुलाई को अदालत के समक्ष पेश करे। इस मामले में अगली सुनवाई सात जुलाई को होगी।