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उतराखण्ड में हिमखंड हादसे के छह दिन में मिले कुल 38 शव और 184 विभिन्न छोटे एवं बड़े पशुओं के शव, लापता 166 की तलाश जारी attacknews.in

चमोली/देहरादून/ तपोवन ( उतराखण्ड) 12 फरवरी। उत्तराखंड के चमोली जिले में पिछले सात फरवरी को हुई प्राकृतिक त्रासदी में लापता 166 (सम्भावित), व्यक्तियों की तलाश में सेना,अर्द्व सेना और राज्य के सुरक्षा बल के सभी अंग शुक्रवार को भी लगे रहे। इन छह दिनों में अभी तक कुल 38 शव बरामद हुए हैं। जबकि 184 विभिन्न छोटे एवं बड़े पशुओं के शव भी मिले हैं।

पुलिस प्रवक्ता डीआईजी नीलेश आनन्द भरणे के अनुसार, स्थानीय पुलिस, एसडीआरएफ, फायर सर्विस, एफएसएल रेस्क्यू, खोज, बचाव राहत एवं डीएनए सैम्पलिंग के कार्यों में लगी हुई है। उन्होंने बताया कि इस प्राकृतिक आपदा में लापता कुल 204 लोगों में से 38 (चमोली-30, रूद्रप्रयाग 06, पौड़ी गढ़वाल 01, टिहरी गढ़वाल 01) के शव अलग-अलग स्थानों से बरामद किये जा चुके हैं। उन्होंने बताया कि जिनमें से 11 लोगों की शिनाख्त हो गई है और 27 लोगों की शिनाख्त नहीं हो पायी है।

छठे दिन भी बचाव अभियान जारी, 38 शव बरामद

उत्तराखंड के चमोली जिले में आपदाग्रस्त क्षेत्र से शुक्रवार को दो और शव बरामद होने के साथ मरने वालों की संख्या 38 तक पहुंच गयी जबकि गाद और मलबे से भरी तपोवन सुरंग में फंसे 25—35 लोगों के जीवित होने की क्षीण होती जा रही संभावनाओं के बीच उन्हें ढूंढने के लिए छठे दिन भी बचाव अभियान जारी रहा।

चमोली जिला प्रशासन के अधिकारियों ने यहां बताया कि एक शव रैंणी में आपदा में पूरी तरह से तबाह हो गए ऋषिगंगा पनबिजली परियोजना के मलबे से बरामद हुआ जबकि दूसरा शव मैठांणा से मिला। इसके अलावा, 166 अन्य लोग अभी लापता हैं।

उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार ने देहरादून में कहा कि सुरंग में गाद और मलबे को साफ करने तथा छोटी सुरंग तक पहुंचने के लिए ड्रिलिंग कार्य साथ—साथ चल रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि छोटी सुरंग में लोग फंसे हो सकते हैं।

कुमार ने बताया, ‘‘आपदा आए छह दिन हो चुका है लेकिन हमने अभी उम्मीद नहीं छोड़ी है और हम ज्यादा से ज्यादा जिंदगियां बचाने के लिए सभी मुमकिन प्रयास करेंगे।’’

इस बीच, तपोवन में अधिकारियों ने कहा कि 114 मीटर तक गाद और मलबा साफ किया जा चुका है और सिल्ट फलशिंग टनल (एसएफटी) तक पहुंचने के लिए ड्रिलिंग कार्य किया जा रहा है जहां लोगों के फंसे होने की संभावना जताई जा रही है।

इस बीच, सुरंग में फंसे लोगों के परिजनों ने तपोवन में परियोजना स्थल के पास सही तरीके से राहत एवं बचाव किए जाने की मांग को लेकर जबरदस्त हंगामा किया और सरकार और एनटीपीसी के खिलाफ नारेबाजी की।

तपोवन की देवेश्वरी देवी ने कहा कि एनटीपीसी की यह परियोजना हमारे लिए अभिशाप साबित हुर्ह है। उन्होंने कहा, ‘‘पहले हमारे खेत गए और अब गांव के लोगों की जान चली गई। आज छठवें दिन भी 200 मीटर सुरंग से मलबा नहीं हट पाया है।’’

मौके पर सेना, राष्ट्रीय आपदा मोचन बल, राज्य आपदा प्रतिवादन बल, भारत तिब्बत सीमा पुलिस के संयुक्त दल द्वारा बचाव कार्य किया जा रहा है।

इस बीच, रैंणी क्षेत्र में लापता लोगों की तलाश के लिए जिला प्रशासन ने ग्रामीण निर्माण विभाग के अधिशासी अभियंता और तहसीलदार के नेतृत्व मे अलग से एक टीम बनाई गई है जो फोटो के आधार पर स्थानीय लोगों की मदद से उन्हें ढूंढेगी।

सात फरवरी को ऋषिगंगा घाटी में पहाड़ से गिरी लाखों मीट्रिक टन बर्फ के कारण ऋषिगंगा और धौलीगंगा नदियों में अचानक आई बाढ से 13.2 मेगावाट ऋषिगंगा जल विद्युत परियोजना पूरी तरह तबाह हो गयी थी जबकि बुरी तरह क्षतिग्रस्त 520 मेगावाट तपोवन—विष्णुगाड परियोजना को काफी क्षति पहुंची और उसकी सुरंग में काम कर रहे लोग वहां फंस गए।

तपोवन सुरंग में छठे दिन भी बचाव अभियान जारी

तपोवन, से खबर है कि, उत्तराखंड के चमोली जिले में गाद और मलबे से भरी तपोवन सुरंग में फंसे लोगों की तलाश में बचाव दलों ने विपरीत परिस्थितियों में शुक्रवार को छठे दिन भी अपना अभियान जारी रखा ।

उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार ने देहरादून में कहा कि सुरंग में गाद और मलबे को साफ करने तथा छोटी सुरंग तक पहुंचने के लिए ड्रिलिंग का कार्य साथ-साथ चल रहा है । ऐसा माना जा रहा है कि छोटी सुरंग में लोग फंसे हो सकते हैं ।

कुमार ने कहा, ‘‘ आपदा आए छह दिन हो चुके हैं लेकिन हमने अभी उम्मीद नहीं छोड़ी है और हम ज्यादा से ज्यादा जिंदगियां बचाने के लिए सभी मुमकिन प्रयास करेंगे ।’’ लापता लोगों के परिजनों द्वारा तपोवन में विरोध किए जाने की खबरों के बारे में पूछे जाने पर पुलिस महानिदेशक ने कहा कि सुरंग में फंसे लोगों तक संपर्क स्थापित करने के लिए हर संभव प्रयास किया जा रहा है और लोगों को धीरज नहीं खोना चाहिए ।

इस बीच, तपोवन में अधिकारियों ने कहा कि 114 मीटर तक गाद और मलबा साफ किया जा चुका है और सिल्ट फलशिंग टनल (एसएफटी) तक पहुंचने के लिए ड्रिलिंग कार्य किया जा रहा है जहां लोगों के फंसे होने की आशंका है ।

राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र ने बताया कि आपदा ग्रस्त क्षेत्र में अलग-अलग स्थानों से अब तक 36 शव बरामद हो चुके हैं जबकि 168 अन्य लापता हैं ।

इस बीच, सुरंग में फंसे लोगों के परिजनों ने तपोवन में परियोजना स्थल के पास सही तरीके से राहत एवं बचाव किए जाने की मांग को लेकर जबरदस्त हंगामा किया और सरकार और एनटीपीसी के खिलाफ नारेबाजी की।

तपोवन के पूर्व प्रधान धर्मपाल बजवाल के नेतृत्व में गए 50 से अधिक ग्रामीणों ने कहा कि सरकार आपदा प्रभावितों की कोई सुध नहीं ले रही है । बजवाल ने कहा,‘‘ हमारे गांव से चार लोग लापता हैं लेकिन मौके पर जिस तरह काम चल रहा है उससे नहीं लगता कि उनका पता लगेगा ।’’ प्रदर्शनकारियों में अधिकतर महिलाएं थीं । तपोवन की देवेश्वरी देवी ने कहा कि एनटीपीसी की यह परियोजना हमारे लिए अभिशाप साबित हुर्ह है । उन्होंने कहा, ‘पहले हमारे खेत गए और अब गांव के लोगों की जान चली गई। आज छठवें दिन भी 200 मीटर सुरंग से मलबा नहीं हट पाया है ।’’

आंदोलनकारियों को समझाने के लिए जोशीमठ की उपजिलाधिकारी भी मौके पर थीं । बाद में परियोजना स्थल पर मौजूद सीआइएसएफ के कर्मियों ने प्रदर्शनकारियों को सुरंग के मुंह से 100 मीटर दूर रोक दिया जहां सेना, राष्ट्रीय आपदा मोचन बल, राज्य आपदा प्रतिवादन बल, भारत तिब्बत सीमा पुलिस के संयुक्त दल द्वारा बचाव कार्य किया जा रहा है ।

सात फरवरी को ऋषिगंगा घाटी में पहाड़ से गिरी लाखों मीट्रिक टन बर्फ के कारण ऋषिगंगा और धौलीगंगा नदियों में अचानक आई बाढ से 13.2 मेगावाट ऋषिगंगा जल विद्युत परियोजना पूरी तरह तबाह हो गयी थी जबकि बुरी तरह क्षतिग्रस्त 520 मेगावाट तपोवन-विष्णुगाड परियोजना की सुरंग में काम कर रहे लोग उसमें फंस गए ।

चमोली आपदा को लेकर वैज्ञानिकों ने किया विश्लेषण

हरिद्वार से खबर है कि, उत्तराखंड में चमोली में ऋषि गंगा एवं धौलीगंगा पर जल विद्युत परियोजनाओं में आए एवलांच के कारण आई बाढ़ तथा व्यापक जान माल की हानि पर वैज्ञानिकों ने कारण और बचाव को लेकर शोध शुरू कर दी है।

राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान रुड़की के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ मनोहर अरोड़ा ने बताया कि चमोली में ऋषि बांध परियोजना में हुई आपदा ग्लेशियर के फटने के कारण नहीं हुई बल्कि कई विषम परिस्थितियों के समावेश के कारण यह दैवीय आपदा आई।

उन्होंने कहा कि खराब मौसम, लगातार बर्फबारी तथा बारिश के कारण ऊंचाई वाले इलाके पर झील के निर्माण या पानी के जमाव के बाद भारी दबाव के कारण मलवा पहाड़ों से बर्फ की चट्टानों सहित खिसकने के कारण यह हादसा हुआ है जिसके कारण वहां पर कुछ देर के लिए पानी का बहाव रुक गया होगा और ऊपर से एवलांच और गाद युक्त बोल्डर पत्थर गिरने के बाद यह पानी वेग से नीचे आया और रास्ते में बांध अदि जो भी आया उसे भी वह बहा कर ले गया।

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