लखनऊ, 23 अप्रैल । उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने आज उत्तर प्रदेश राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम, 1973 के अधीन की जाने वाली अपीलों के सम्बन्ध में गठित समिति की रिपोर्ट आज प्रस्तुत की।
राज्यपाल ने यहां प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि पिछले लगभग साढ़े तीन वर्षों के अपने कार्यकाल में उन्होंने अनुभव किया है कि उत्तर प्रदेश राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम, 1973 की धारा-68 तथा अन्य विश्वविद्यालयों के अधिनियमों की सुसंगत धाराओं के तहत पेश अपीलों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है।
इनके स्वरूप, संख्या और उनके निस्तारण में होने वाले विलम्ब के कारणों समेत विभिन्न पहलुओं की पड़ताल के लिये राज्यपाल की प्रमुख सचिव जूथिका पाटणकर के नेतृत्व में तीन सदस्यीय अध्ययन दल गठित किया गया था।
उन्होंने बताया कि इस अध्ययन दल ने महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और गुजरात के राज्यपाल, कुलाधिपति, उच्च शिक्षा विभाग के अधिकारियों, सम्बन्धित विश्वविद्यालयों के कुलपतियों एवं कुलसचिवों से विचार-विमर्श किया गया और प्राप्त सुझावों को संज्ञान में लेते हुए उत्तर प्रदेश के परिप्रेक्ष्य में एक तुलनात्मक रिपोर्ट तैयार की है। राजभवन के इतिहास में इस तरह का यह पहला अध्ययन है।
नाईक ने रिपोर्ट में दिये गये मुख्य सुझाव और सिफारिशों का जिक्र करते हुए कहा कि रिपोर्ट में विश्वविद्यालय के विवादों के निस्तारण के लिये न्यायाधिकरण की स्थापना करने या कुलाधिपति कार्यालय को अधिक सशक्त बनाये जाने, कुलपति पद की शैक्षिक अर्हताओं, शोध, शैक्षिक एवं प्रशासनिक अनुभव का प्रावधान अधिनियम में किये जाने, उत्तर प्रदेश राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम 1973 के तहत कुलपति की खोज के लिये गठित की जाने वाली समिति के सदस्यों की अर्हताओं का उल्लेख जरूरी करने की सिफारिश की गयी है।
राज्यपाल ने बताया कि अध्ययन दल ने मूल्यांकन को आवश्यक बनाने तथा शासन से वित्तीय सहायता की निरन्तरता के लिए इसे अनिवार्य करने और शिक्षा की गुणवत्ता के लिये शोध कार्यक्रमों को प्राथमिकता देने तथा राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के संस्थानों के साथ अनुबन्ध करने के सुझाव भी दिये हैं।
नाईक ने कहा कि इन सिफारिशों को उत्तर प्रदेश राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम 1973 की कुछ धाराओं में एकरूपता ना होने के कारण वर्तमान स्थिति के अनुरूप बनाने के मकसद से अधिनियम में संशोधन के लिये राज्यपाल के विधिक सलाहकार एसएस उपाध्याय की अध्यक्षता में पूर्व में गठित समिति के पास शामिल करने के लिये भेजा गया है।
कुछ सुझावों का कार्यान्वयन अधिनियम में संशोधन के बाद ही हो सकेगा। मगर कुछ संस्तुतियाँ प्रशासनिक स्वरूप की हैं जिनको अमल में लाने के लिए मात्र शासनादेश की ही आवश्यकता होगी।attacknews.in