उज्जैन 12 मार्च। महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ स्वराज संस्थान संचालनालय मप्र शासन संस्कृति विभाग द्वारा आयोजित विक्रमोत्सव अमृत महोत्सव का महामहिम राज्यपाल श्रीमती आनन्दीबेन पटेल द्वारा किया गया।
इस अवसर पर राज्यपाल ने विक्रमादित्य को भारतीय संस्कृति का संरक्षक बताया। उन्होंने कहा कि विक्रमादित्य के संरक्षण में भारतीय संस्कृति एवं संस्कृत साहित्य का विकास हुआ। कालिदास जैसे लेखक व महाकवि विक्रमादित्य के दरबार का अभिन्न अंग थे। विक्रमादित्य के नौ रत्नों में ज्योतिष के क्षेत्र में वराहमिहिर, चिकित्सा के क्षेत्र में धन्वंतरि आदि द्वारा किये गये कार्य आज भी प्रासंगिक हैं।
राज्यपाल ने कहा कि विक्रमादित्य ने बुद्धि व पराक्रम से अपनी पहचान बनाई। चक्रवर्ती सम्राट होने के बाद भी वे सदा साधारण जीवन जीते थे। उनके समय की संस्कृत की दो प्रमुख रचनाएं बेताल पच्चीसी तथा सिंहासन बत्तीसी सम्राट की न्यायप्रियता का बोध कराती हैं। इस प्रकार की प्रेरणास्पद कहानियों को राष्ट्रीय चैनल के माध्यम से प्रसारित किया जाना चाहिये।
राज्यपाल ने कहा कि विक्रमादित्य युग-युग से भारतीय अस्मिता के प्रतीक और प्रेरक रहे हैं। भारतीय और विदेशी समाज में उनकी आदर्श छवि जनता के हृदय में अमिट छाप छोड़ गई है। विक्रमादित्य के आदर्श भगवान राम थे और उन्होंने रामराज्य को अपने राज्य का आदर्श बनाया। संस्कृत की सर्वाधिक लोकप्रिय दो कथा श्रृंखलाएं बेताल पच्चीसी और सिंहासन बत्तीसी विख्यात हैं। ये कथाएं राजा विक्रम की न्यायशक्ति का बोध कराती हैं।
उन्होंने कहा कि पिछले दो हजार वर्षों में भारत राष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान केवल विक्रम संवत के साथ ही जुड़ी हुई है। अंग्रेजी शिक्षा-दीक्षा और पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव के कारण आज भले ही सर्वत्र ईस्वी संवत का बोलबाला हो रहा हो, परन्तु वास्तविकता यह है कि देश के सांस्कृतिक पर्व, उत्सव तथा रामकृष्ण, बुद्ध, महावीर आदि महापुरूषों की जयन्तियां आज भी भारत कालगणना के हिसाब से ही मनाई जाती हैं। विवाह हो अथवा मुंडन, श्राद्ध हो अथवा और कोई धार्मिक अनुष्ठान ये सब भारतीय पंचांग के अनुसार ही किये जाते हैं।
राज्यपाल ने कहा कि एक चक्रवर्ती सम्राट होने के बाद भी सम्राट विक्रमादित्य राजसी ऐश्वर्य भोग को त्यागकर भूमि पर शयन करते थे। वे अपने सुख के लिये राजकोष से धन नहीं लेते थे। प्रजा वल्सल नीतियों के फलस्वरूप ही विक्रमादित्य ने अपने राजकोष से धन देकर दीन-दु:खियों को साहूकारों के कर्ज से मुक्त किया था। किसी भी देश के इतिहास में ऐसे उदाहरण कम ही देने को मिलते हैं।
विक्रमादित्य नायकों में महानायक थे –विधायक डॉ.यादव
विधायक डॉ.यादव ने कहा कि विक्रमादित्य ने अपने नौ रत्नों कालिदास (कवि), धन्वंतरि (आयुर्वेद), क्षपणक (शब्द कोषकार), अमरसिंह (साहित्यकार), शंकु (वास्तुविद), बेताल भट्ट (तांत्रिक), घटकर्पर (नीतिकार), वराहमिहिर (ज्योतिविद) तथा वररूचि (वैयाकरण) के माध्यम से साहित्य, संस्कृति, भाषा, ज्ञान-विज्ञान के लिये जो कार्य करवाये, आज भी उन क्षेत्रों के लिये प्रमाण बन गये हैं। विक्रमादित्य नायकों में महानायक थे। विक्रमादित्य प्रथम ईसापूर्व में उज्जयिनी के शासक थे।
उज्जैन को दूसरी संस्कृति राजधानी
बनाने के प्रयास जारी –प्रमुख सचिव श्री श्रीवास्तव
प्रमुख सचिव संस्कृति श्री मनोज श्रीवास्तव ने कहा कि शासन का यह प्रयास है कि महाकौशल के बाद उज्जैन को संस्कृति की दूसरी राजधानी बनाने के प्रयास किये जायेंगे। राजा विक्रमादित्य के बारे में उन्होंने कहा कि प्राचीन भारत में जिस नरेश को अपना संवत चलाना होता था, उसे पूरे राज्य में सारी प्रजा के ऋण का भुगतान अपने राजकोष से करना होता था।
इस अवसर पर राज्यपाल द्वारा तिथि के आधार पर निर्मित कैलेण्डर का विमोचन भी किया गया।
7 विधाओं के विक्रम अलंकरण पुरस्कार प्रदान किये
विक्रमोत्सव के उद्घाटन समारोह में सात विधाओं में विक्रम अलंकरण पुरस्कारों का प्रदाय राज्यपाल श्रीमती आनन्दीबेन पटेल द्वारा किया गया। सात विधाओं के अन्तर्गत श्री भरत निजवानी को शौर्य अलंकरण, डॉ.मनोहरसिंह राणावत को पुरातत्व का अलंकरण, श्री विशाल सिंधे को शास्त्रीय वादन के क्षेत्र में, धन्वंतरि आयुर्वेद महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो.जोगेश्वर प्रसाद चौरसिया को आयुर्वेद अलंकरण, शास्त्रीय गायन में डॉ.योगेश देवले को, शास्त्री नृत्य विधा में डॉ.प्रियंका वैद्य अष्टपुत्रे को तथा विधिक क्षेत्र में अभिभाषक पं.राजेश जोशी को विक्रम अलंकरण प्रदान किया गया। पुरस्कारस्वरूप 11 हजार रूपये तथा प्रशस्त्रि-पत्र भेंट किये गये।attacknews.in