उज्जैन में वरिष्ठजन मनाते हैं आनंद उत्सव के साथ अपना जन्मदिन Attack News

उज्जैन 2 फरवरी। उज्जैन पवित्र एवं आध्यात्मिक नगरी है। यहां आनंद प्राप्त करने का सबसे आसान तरीका है बाबा महाकाल को माता-पिता मानें और निश्चिंत हो जाएं। आनंद के लिए मन की प्रसन्नता आवश्यक है। मन जब शांत होता है, तब प्रसंन्न होता है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में मन को शांत एवं प्रसन्न करने के दो तरीके बताए हैं अभ्‍यास और वैराग्य। अहंकार से मन अशांत होता है और विनम्रता से शांत। डॉ. विमल गर्ग कर्तव्यनिष्ट एवं योग्‍य चिकित्सक होने के साथ-साथ विनम्र और सहज है। यही कारण है कि वे सदा प्रसन्न रहते हैं तथा दूसरों को प्रसन्न रखते हैं। अपने जन्म दिवस पर उन्होंने वरिष्ठजनों को प्रसन्न करने के लिए ये जो अनूठा आयोजन किया है, उसके लिए वे बधाई के पात्र हैं।

विद्वान एवं पूर्व संभागायुक्त डॉ. मोहन गुप्त ने शुक्रवार को वरिष्ठ नागरिकों की संस्था आनंद भवन में डॉ. विमल गर्ग के 70वें जन्मदिवस पर आयोजित कार्यक्रम में ये विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता पं. राधेश्याम दुबे ने की, प्रमुख वक्ता प्रो. शैलेन्द्र पाराशर तथा संचालन पं. हरिहर शर्मा ने किया।

कार्यक्रम में डॉ. शिव चौरसिया, शिवप्रकाश चित्तौड़ा, आदि ने भी अपने विचार प्रकट किए। इस अवसर पर श्रीमती विमल गर्ग भी उपस्थित थी। कार्यक्रम में वरिष्ठजनों द्वारा सुमधुर अभिनंदन गीत की भी प्रस्तुति दी गई।

फूल-माला के स्थान पर सहयोग राशि प्रदान की गई
कार्यक्रम की एक विशेषता यह थी कि डॉ. विमल गर्ग ने सभी से आग्रह किया कि वे उनका अभिनन्दन फूल-मालाओं से न करते हुए वरिष्ठजन संस्था के लिए सहायोग राशि प्रदान कर करें।

उन्होंने कहा कि जितनी राशि इकट्ठी होगी उतनी ही राशि वे अपनी ओर से मिलाकर वरिष्ठजनों के कल्याण के लिए प्रदान करेंगे।

कार्यक्रम में वैदिक मंत्रों के साथ बाबा महाकाल का पूजन किया गया तथा 70 दीप प्रज्जवलित कर डॉ. विमल गर्ग को आशीर्वाद दिया गया।attacknews.in

90 प्रतिशत बीमारियों में डॉक्टर की आवश्यकता नहीं

इस अवसर पर डॉ. विमल गर्ग ने बताया कि 90 प्रतिशत बीमारियों में इलाज के लिए डॉ. की आवश्यकता नहीं होती। लोग छोटी-छोटी बातों से परेशान होते हैं तथा उलझते रहते हैं। यदि उन्हें सही सलाह दी जाए, तो वे बिना दवाओं के ही सही हो जाएंगे। ये बीमारियों वस्तुत: मन के स्तर पर होती हैं। उन्होंने कहा कि वरिष्ठजनों के साथ जन्मदिन मनाने का उद्देश्य है, प्रसन्नता, उल्लास, उमंग एवं खुशी का वातावरण निर्मीत करना तथा सभी के साथ स्वयं भी प्रसन्न होना।

शास्वत आनंद भारतीय संस्कृति का लक्ष्य

कार्यक्रम में प्रमुख वक्ता के रूप में अपने प्रेरणादायी उद्बोधन में प्रो. शैलेन्द्र पाराशर ने कहा कि शाश्वत आनन्द भारतीय संस्कृति का लक्ष्य है और इसका साधन है, उत्सव धर्मिता। हम उत्सव आयोजित कर स्वयं भी आनंदित होते हैं तथा परिवार एवं समाज को भी आनंदित करते हैं। श्री पाराशर ने कहा कि सुख हमारे अंदर होता है, यदि हम दुखी नहीं होना चाहें तो हमें कोई दुखी नहीं कर सकता। अहंकार आनंद की हत्या करता है। मन की इच्छाओं को पूरा करने से सुख प्राप्त नहीं होता, मन कभी संतुष्ट नहीं हो सकता। मन सत्य को धारण करने वाला तथा शुभ संकल्पों को लेने वाला बनेगा तब प्रसन्न होगा। मन में लोक कल्याण की भावना होनी चाहिए। हम अपनी इच्छाशक्ति, संयम एवं शुभ विचार के माध्यम से प्रसन्नता को प्राप्त कर सकतें है।attacknews.in