न्यूयॉर्क, 11 दिसंबर । अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन और उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस को प्रतिष्ठित टाइम पत्रिका ने अमेरिकी परिदृश्य को बदलने के लिए ‘2020 पर्सन ऑफ द ईयर’ चुना है।
पत्रिका ने अपने वार्षिक प्रतिष्ठित सम्मान के लिए इन दोनों डेमोक्रेटिक नेताओं को चुना है। उसने अन्य अंतिम चरण के अन्य दावेदारों- अग्रिम मोर्चे पर काम करने वाले स्वास्थ्यकर्मियों और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्शियस डिजीज के निदेशक डॉ. एंथनी फौसी, मूवमेंट फॉर रेसियल जस्टिस और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के ऊपर इन दोनों को तरजीह दी।
पत्रिका ने बृहस्पतिवार को कहा, ‘‘अमेरिकी कहानी को बदलने के लिए, यह दिखाने के लिए कि सहानुभूति की ताकत विभाजन की उग्रता से अधिक है, एक पीड़ित दुनिया को ठीक करने की दृष्टि साझा करने के लिए जो बाइडन और कमला हैरिस को टाइम का 2020 पर्सन ऑफ द ईयर चुना गया है।’’
‘टाइम’ ने फौसी, स्वास्थ्य कर्मियों और मूवमेंट फॉर रेसियल जस्टिस के आयोजकों को ‘2020 गार्जियंस ऑफ द ईयर’ नामित किया हैं, जो लोकतंत्र के पवित्र आदर्शों की रक्षा के लिए खुद आगे डटे रहे।
कॉन्फ्रेंसिंग प्लेटफॉर्म जूम के सीईओ एरिक युआन को टाइम के ‘बिजनेसपर्सन ऑफ द ईयर’ के रूप में नामित किया गया है।
दक्षिण कोरियाई बॉय बैंड बीटीएस को ‘एंटरटेनर ऑफ द ईयर’ और अमेरिकी बास्केटबॉल खिलाड़ी लेब्रोन जेम्स को ‘एथलीट ऑफ द ईयर’ नामित किया गया।
टाइम ने कहा कि यह “उल्लेखनीय” है कि पिछले साल स्वीडिश जलवायु संरक्षण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग को पर्सन ऑफ द ईयर के रूप में नामित किया गया था जो यह सम्मान पाने वाली सबसे कम उम्र की शख्स थीं। इसके एक साल बाद, इस सम्मान के लिए 78 वर्षीय बाइडन को चुना गया, इस सम्मान के लिए चुने गए सबसे बुजुर्ग व्यक्तियों में से एक हैं।
टाइम ने कहा, “बाइडन खुद को नई पीढ़ी के नेताओं के लिए एक पुल बताते हैं। उन्होंने 56 वर्षीय कमला हैरिस को उप राष्ट्रपति की उम्मीदवार के रूप में चुनने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। हैरिस उप राष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचित होने वाली पहली महिला हैं, जो जमैका के रहने वाले पिता और एक भारतीय माँ की बेटी हैं।’’
टाइम ने कहा कि फ्रेंकलिन डेलानो रूजवेल्ट के बाद से हर निर्वाचित राष्ट्रपति को उनके कार्यकाल के किसी वर्ष में ‘पर्सन ऑफ द ईयर’ चुना जाता रहा है, उनमें से लगभग एक दर्जन को यह सम्मान राष्ट्रपति चुनाव वाले वर्ष में दिया गया है।
टाइम ने कहा, “यह पहली बार है जब हमने एक उपराष्ट्रपति को शामिल किया है। नस्लीय न्याय के लिए चले एक बहुत बड़े संघर्ष के बाद और इतिहास के सबसे महत्त्वपूर्ण चुनावों में से एक में जीत हासिल कर बाइडन-हैरिस की जोड़ी ने एक मजबूत संदेश दिया है।’’
भारतीय-अमेरिकी राहुल दुबे ‘हीरोज ऑफ 2020’ की सूची में शामिल
इसी तरह से अमेरिका में काले व्यक्ति जॉर्ज फ्लॉइड की हत्या के बाद नस्ली न्याय को लेकर प्रदर्शन कर रहे 70 से अधिक लोगों के लिए वाशिंगटन स्थित अपने घर के दरवाजे खोलने के लिए भारतीय अमेरिकी राहुल दुबे को टाइम पत्रिका की ‘ हीरोज ऑफ 2020’ में शामिल किया गया है और उनके कार्य की प्रशंसा की गई है।
पत्रिका के ‘हीरोज ऑफ 2020’ यानी 2020 के नायक की सूची में ऑस्ट्रेलिया में आग से जूझने वाले उस स्वयंसेवी व्यक्ति का नाम है जिसने अपने देश को सुरक्षित रखने के लिए अपना सर्वस्व दांव पर लगा दिया। इसके अलावा सिंगापुर में खाद्य पदार्थ बेचने वाले जैसन चुआ और हुंग झेन लोंग का भी नाम है, जिन्होंने कोविड-19 महामारी के दौरान किसी को भी भूखा रहने नहीं देना सुनिश्चित किया।
वहीं शिकागो के पास्टर रेशोर्ना फिट्जपैट्रिक और उनके पति बिशप डेरिक फिट्जपैट्रिक का भी नाम है जिन्होंने इस महामारी के काल में लोगों की मदद करने के लिए अपने चर्च का स्वरूप बदल दिया।
टाइम ने दुबे की प्रशंसा करते हुए उन्हें ‘ जरूरतमंद को आश्रय देने वाला बताया’ है। एक जून को वाशिंगटन डीसी की सड़कों पर लोग अफ्रीकी-अमेरिकी व्यक्ति फ्लॉइड की हत्या के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे और दुबे उस समय अपने घर पर थे, जो कि व्हाइट हाउस से ज्यादा दूर नहीं है। शाम सात बजे कर्फ्यू लगने के बाद उन्होंने पाया कि सड़क पर भीड़ है और ऐसा प्रतीत हो रहा था कि पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को पकड़ने के लिए अवरोधक लगा रखे हैं और सड़क पर जो बचे हैं उन पर पैपर स्प्रे कर रहे हैं। दुबे ने सोचा कि उन्हें कुछ करना चाहिए।
स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करने वाले दुबे ने कहा, ‘‘ मैंने अपने घर का दरवाजा खोला और यह चिल्लाना शुरू कर दिया कि आप लोग यहां आ जाएं।’’ दुबे ने बताया कि उन्होंने करीब 70 प्रदर्शनकारियों को अपने घर में जगह दी ताकि वह रात में कर्फ्यू का उल्लंघन करने से बच सकें।
दुबे ने बजफीड न्यूज से कहा था कि ज्यादातर युवा प्रदर्शनकारियों के लिए अपने घर का दरवाजा खोलना उनके लिए कोई विकल्प वाली बात नहीं थी बल्कि उनकी आंखों के आगे जो हो रहा था, उसे देखते हुए उनके पास कोई विकल्प ही नहीं था। लोगों पर पैपर स्प्रे का छिड़काव किया गया था। उन्हें जमीन पर पटककर पीटा गया था ।