बैंकाॅक, 04 नवंबर ।भारत ने दक्षिण-पूर्वी एवं पूर्व एशिया के 16 देशों के बीच मुक्त व्यापार व्यवस्था के लिए प्रस्तावित क्षेत्रीय समग्र आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) समझौते को अपने लाखों लोगों के जीवन एवं आजीविका के लिए प्रतिकूल बताते हुए आज उस पर हस्ताक्षर करने से साफ इन्कार कर दिया।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यहां तीसरी आरसीईपी शिखर बैठक में दो टूक शब्दों में भारत का फैसला सुना दिया। विदेश मंत्रालय में सचिव (पूर्व) विजय ठाकुर सिंह ने यहां संवाददाताओं को यह जानकारी दी। श्रीमती सिंह ने कहा कि भारत ने शिखर बैठक में इस समझौते पर हस्ताक्षर नहीं करने के निर्णय की जानकारी दे दी है। यह निर्णय मौजूदा वैश्विक परिस्थिति तथा समझौते की निष्पक्षता एवं संतुलन दोनों के आकलन के बाद लिया गया है।
उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री ने बैठक में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के कथन को उद्धृत करते हुए कहा कि कोई भी कदम उठाते हुए यह सोचना चाहिए कि कतार में सबसे पीछे खड़े व्यक्ति को इससे क्या फायदा होगा। उन्होंने कहा कि इस बैठक में भारत द्वारा उठाये गये मुख्य मुद्दों का कोई समाधान नहीं निकल सका है। हमारा निर्णय देश के करोड़ों लोगों के जीवन एवं आजीविका से जुड़ा है। समझौते के प्रावधान उनके हितों के प्रतिकूल हैं। इसलिए वर्तमान परिस्थितियों में भारत आरसीईपी में शामिल नहीं हो रहा है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि देश के किसानों, पेशेवरों एवं उद्योगपतियों की ऐसे निर्णयों में हिस्सेदारी होती है। कामगार एवं उपभोक्ता भी उतने ही महत्वपूर्ण होते हैं जो भारत को एक बड़ा बाजार और क्रयशक्ति के आधार पर तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाते हैं।
श्रीमती सिंह ने संवाददाताओं के सवालों के जवाब में कहा कि समझौते में शामिल नहीं होने के कारणों से समझौते के सभी पक्षकार अच्छी तरह से अवगत हैं। उनका कोई समाधान नहीं निकला। भारत को अपेक्षा थी कि बातचीत से एक निष्पक्ष एवं संतुलित निष्कर्ष निकलता लेकिन हमने पाया कि ऐसा नहीं हो सका। इसलिए हमने अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रख कर यह निर्णय लिया है।
आरसीईपी वार्ताओं में भारत की चिंताओं को दूर नहीं किया जा सका है। इसके मद्देनजर भारत ने यह फैसला किया है।
सूत्रों ने कहा कि आरसीईपी में भारत का रुख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मजबूत नेतृत्व और दुनिया में भारत के बढ़ते कद को दर्शाता है। भारत के इस फैसले से भारतीय किसानों, सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उपक्रमों (एमएसएमई) और डेयरी क्षेत्र को बड़ी मदद मिलेगी।
सूत्रों ने कहा कि इस मंच पर भारत का रुख काफी व्यावहारिक रहा है। भारत ने जहां गरीबों के हितों के संरक्षण की बात की वहीं देश के सेवा क्षेत्र को लाभ की स्थिति देने का भी प्रयास किया।
सूत्रों ने बताया कि भारत ने विभिन्न क्षेत्रों में वैश्विक प्रतिस्पर्धा को खोलने में कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई। इसके साथ ही मजबूती से यह बात रखी कि इसका जो भी नतीजा आए वह सभी देशों और सभी क्षेत्रों के अनुकूल हो।
आरसीईपी में दस आसियान देश और उनके छह मुक्त व्यापार भागीदार चीन, भारत, जापान, दक्षिण, कोरिया, भारत, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं।
आरसीईपी करार का मकसद दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाना है। 16 देशों के इस समूह की आबादी 3.6 अरब है। यह दुनिया की करीब आधी आबादी है।
शनिवार को हुई बैठक में 16 आरसीईपी देशों के व्यापार मंत्री भारत द्वारा उठाए गए लंबित मुद्दों को हल करने में विफल रहे थे। हालांकि, आसियन शिखर बैठक से अलग कुछ लंबित मुद्दों को सुलझाने के लिए पर्दे के पीछे बातचीत जारी थी।
भारत-प्रशांत क्षेत्र में भारत-जापान ने परस्पर सहयोग बढ़ाने का लिया फैसला
इधर भारत और जापान ने भारत-प्रशांत क्षेत्र में शांति, समृद्धि और प्रगति से लक्ष्यों को हासिल करने के लिए द्विपक्षीय सहयोग को और मजबूत करने का फैसला लिया है।
दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन (आसियान) शिखर सम्मेलन से इतर सोमवार को यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे के बीच हुई द्विपक्षीय बैठक के दौरान इस बात पर सहमति बनी।
विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा, “दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने नियम-आधारित आदेश के आधार पर स्वतंत्र, मुक्त और समावेशी भारत-प्रशांत क्षेत्र को लेकर अपनी प्रतिबद्धता दोहरायी।”
उल्लेखनीय है कि श्री मोदी और श्री आबे के बीच सोमवार को हुई बैठक हुई थी और पिछले चार महीनों में दोनों नेताओं की यह तीसरी बैठक थी। इससे पहले दोनों नेताओं ने सितंबर में रूस के व्लादिवोस्तोक में मुलाकात की थी।
श्री मोदी ने हाल ही जापान के सम्राट के राज्याभिषेक पर उन्हें बधाई दी और इस समारोह में राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद के शामिल होने और उनके भव्य स्वागत का जिक्र किया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि वह अगले महीने भारत में होने वाले भारत-जापान वार्षिक शिखर सम्मेलन के दौरान श्री आबे का स्वागत करने के लिए उत्सुक हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें विश्वास है कि यह सम्मेलन भारत-जापान विशेष रणनीतिक और वैश्विक साझेदारी को और प्रगाढ़ बनाने में सफल साबित होगा।