Ph.D.: अब छात्रों को पीएचडी करने के लिए मास्टर्स करने की जरूरत नहीं होगी. छात्र चार साल का अंडर ग्रेजुएशन कोर्स करने के बाद पीएचडी कर पाएंगे attacknews.in

नई दिल्ली 15 दिसम्बर। ब्रिटिश काल के मैकाले की शिक्षा नीति को बदलते हुए नए भारत की शिक्षा नीति ने छात्र-छात्राओं के लिए नए और सरल रास्ते खोल दिये हैं. नई शिक्षा नीति 2020 लागू होने के साथ पीएचडी का सपना देखने वाले ग्रेजुएट्स को मास्टर्स कोर्स करने की चिंता नहीं करनी होगी. जो छात्र 4 वर्ष का ग्रेजुएशन कोर्स करेगा, वह डायरेक्ट पीएचडी कर सकेगा.


विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के अध्यक्ष जगदीश कुमार ने बुधवार को कहा कि चार वर्षीय स्नातक डिग्री वाले छात्र अब सीधे पीएचडी कर सकेंगे.

यूजीसी अध्यक्ष ने कहा है कि तीन साल के ग्रेजुएशन कोर्स को ‘4-वर्षीय कार्यक्रम’ के पूरी तरह से लागू होने तक बंद नहीं किया जाएगा. यूजीसी काफी समय से अंडर ग्रेजुएट प्रोग्राम के लिए नया करिकुलम और क्रेडिट फ्रेमवर्क तैयार करने में लगा हुआ था.

यूजीसी की ओर से जारी किया गया नया करिकुलम एनईपी 2020 पर आधारित है. इसके तहत नियमों में लचीलापन आएगा और छात्रों को भी पहले के मुकाबले अधिक सुविधाएं मिल पाएंगी. जिसके तहत अब चार साल का अंडर ग्रेजुएट करने के बाद छात्र पीएचडी कर सकेंगे. उन्हें मास्टर डिग्री प्रोग्राम में एडमिशन लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

क्या है नया करिकुलम:

यूजीसी की ओर से जारी किए गए नए करिकुलम और क्रेडिट फ्रेमवर्क में च्वाइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम (CBCS) को बदल दिया गया है. एक वर्ष या फिर दो सेमेस्टर की पढ़ाई पूरा करने वाले छात्रों को चुने गए फील्ड में सर्टिफिकेट मिलेगा. जबकि दो वर्ष या चार सेमेस्टर करने पर छात्रों को डिप्लोमा मिलेगा. वहीं, तीन वर्ष या 6 सेमेस्टर के बाद बैचलर डिग्री दी जाएगी.

इसके अलावा चार वर्ष या आठ सेमेस्टर पूरा करने पर छात्र को ऑनर्स की डिग्री दी जाएगी. चौथे साल के बाद जिन छात्रों ने पहले 6 सेमेस्टर में 75 प्रतिशत या इससे अधिक अंक पाए हैं, वे रिसर्च स्ट्रीम का चुनाव कर सकते हैं. ये शोध मेजर डिसिप्लिन में किया जा सकेगा.

राज्यपाल को कुलाधिपति के पद से हटाने का कानून केरल विधानसभा में पारित,राज्य सरकार विश्वविद्यालयों को कम्युनिस्ट या मार्क्सवादी केंद्रों में बदलने पर अड़ी attacknews.in

तिरुवनंतपुरम 13 दिसम्बर । केरल विधानसभा में मंगलवार (13 दिसंबर, 2022) को विश्वविद्यालय कानून संशोधन विधेयक (University Law Amendment Bill) पारित कर दिया गया।


इस विधेयक के कानून बनते ही केरल के विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति पद पर राज्यपाल की जगह किसी अन्य की नियुक्ति की जा सकेगी।

यदि ऐसा हुआ तो केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान अब राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलपति नहीं रह जाएँगे।

इस मुद्दे को लेकर विपक्षी यूडीएफ ने सदन की कार्यवाही का बहिष्कार किया। विपक्ष ने विधेयक के संबंध में उनके सुझावों की अनदेखी का आरोप लगाया है। विधानसभा में घंटों की चर्चा के बाद इस विधेयक को पारित कर दिया गया। 

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, केरल के कानून मंत्री पी राजीव ने वीसी की नियुक्ति के लिए समिति गठित करने की बात कही है। समिति में मुख्यमंत्री, विपक्ष के नेता और विधानसभा अध्यक्ष शामिल हो सकते हैं। विधेयक में पाँच साल के कार्यकाल का प्रावधान किया गया है।

चर्चा के दौरान कॉन्ग्रेस की अगुवाई वाली यूडीएफ ने कहा कि वह चांसलर के पद से राज्यपाल को हटाए जाने के खिलाफ नहीं है, लेकिन इस पद के लिए सुप्रीम कोर्ट के र‍िटायर जजों और केरल हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्‍ट‍िस में से चयन किया जाना चाहिए।

विपक्ष ने यह भी कहा कि हर विश्वविद्यालय के लिए अलग-अलग चांसलर की जरूरत नहीं है और चयन समिति में मुख्यमंत्री, विपक्ष के नेता के साथ-साथ केरल हाईकोर्ट के चीफ जस्‍ट‍िस को होना चाहिए।

इस पर प्रदेश के कानून मंत्री पी राजीव ने असहमति जताते हुए कहा कि किसी जज को चयन समिति का हिस्सा नहीं होना चाहिए, बल्कि उनके स्थान पर विधानसभा अध्यक्ष बेहतर विकल्प होंगे।

सरकार के रुख पर विपक्ष ने सदन की कार्यवाही का बहिष्कार किया। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष वीडी सतीशन ने कहा कि विधेयक में कुलपति के उम्र सीमा और शैक्षणिक योग्यता का जिक्र नहीं है। इससे यह साबित होता है कि राज्य सरकार केरल के विश्वविद्यालयों को कम्युनिस्ट या मार्क्सवादी केंद्रों में बदलने की कोशिश कर रही है। इसके लिए वीसी जैसे महत्वपूर्ण पद पर अपने पसंद के लोगों को बैठाने का प्रयास कर रही है।

उधर केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान पूरे मामले पर पिछले महीने ही अपना रुख साफ कर चुके हैं। उन्होंने पत्रकारों को दिए एक जवाब में कहा था कि यदि राज्य सरकार मु झे निशाना बनाने की कोशिश करती है तो अध्यादेश राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा।

आपको बता दें कि राज्य के गवर्नर होने के नाते विधानसभा से पास विधेयक मंजूरी के लिए आरिफ मोहम्मद खान के पास ही आएगा। जिसे वो राष्ट्रपति के पास भेजने की बात कर रहे थे।

JNU के कुलपति प्रो एम जगदीश कुमार बने  विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के चेयरमैन: पढ़िये जीवन परिचय attacknews.in

नईदिल्ली 4 फरवरी ।जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के कुलपति प्रोफेसर एम जगदीश कुमार को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) का नया अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। 


शुक्रवार को केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के उच्छ शिक्षा विभाग द्वारा जारी नोटिफिकेशन में कहा गया, ‘केंद्र सरकार जेएनयू के कुलपति जगदीश कुमार को यूजीसी के चेयरमैन के पद पर नियुक्त करती है।

उन्हें पे मैट्रिक्स लेवल-17 के तहत पांच वर्ष की अवधि तक या उनके 65 वर्ष की आयु पूरी कर लेने तक, जो भी पहले हो, तक नियुक्त किया जाता है।’

जगदीश कुमार को जनवरी 2016 में जेएनयू के कुलपति पद पर नियुक्त किया गया था।  जगदीश कुमार को ऐसे समय में यूजीसी अध्यक्ष बनाया गया है जब देश भर के उच्च शैक्षणिक संस्थानों में नई शिक्षा नीति को लागू किया जाना है। ऐसे में यह नियुक्ति बेहद अहम मानी जा रही है।

जीवन परिचय:

ममीडाला जगदीश कुमार एक शिक्षाविद, प्रशासक और लेखक हैं, जो जनवरी 2021 से जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के कार्यवाहक कुलपति हैं । वे IIT दिल्ली में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग में प्रोफेसर हैं । 

एम जगदीश कुमार ने जनवरी 2016 में सुधीर कुमार सोपोरी से जेएनयू के वीसी के रूप में पदभार संभाला । वे 4 फरवरी 2022 को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष बने।

कुमार का जन्म तेलंगाना के नलगोंडा जिले के ममीडाला में हुआ था । उन्होंने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मद्रास से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में परास्नातक और पीएचडी की। इसके बाद कनाडा के वाटरलू विश्वविद्यालय में डॉक्टरेट के बाद शोध किया । 

वह नैनोसाइंस और नैनोटेक्नोलॉजी (नैनो-इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस, नैनोस्केल डिवाइस, डिवाइस डिजाइन और पावर सेमीकंडक्टर डिवाइस) के क्षेत्र में काम करता है।  वह वर्तमान में इंस्टीट्यूशन ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स एंड टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियर्स , नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज, भारत में फेलो हैं और इंडियन नेशनल एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग सहित अन्य। 

वह राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय परिषद के शासी निकाय के अध्यक्ष हैं । उन्हें “आईएसए-वीएसआई टेक्नोमेंटर अवार्ड” प्राप्त हुआ है, पुरस्कार डॉ आर चिदंबरम ( भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार ) द्वारा प्रस्तुत किया जा रहा है। 

उन्हें रामेश्वर नाथ कौल बमेज़ई , वीरेंद्र सिंह चौहान और रामकृष्ण रामास्वामी सहित चार अन्य लोगों में से जेएनयू के वीसी के रूप में चुना गया था । 

वीसी के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, वह अक्सर अपनी घड़ी पर हो रहे कई विवादों जैसे कि 2016 के जेएनयू देशद्रोह विवाद , एक छात्र नजीब अहमद के लापता होने और 2020 के जेएनयू हमलों के लिए चर्चा में रहे हैं । 

आलोचकों का कहना है कि वह ” आरएसएस के एजेंडे को लागू कर रहे हैं “, यही वजह है कि उन्हें पहले स्थान पर वीसी बनाया गया है। जेएनयू छात्र संघों ने जनवरी 2020 में जेएनयू पर हुए हमलों के बाद उनके इस्तीफे की मांग की थी ।

UGC ने पुराने निर्देश को बदलते हुए विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में अंतिम वर्ष की कक्षाओं की परीक्षा सितंबर में करवाने का लिया निर्णय attacknews.in

नई दिल्ली 06 जुलाई ।विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने कोरोना महामारी को देखते हुए कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में अंतिम वर्ष की परीक्षा सितंबर के अंत में आयोजित करने का फैसला किया है।

मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक ने सोमवार को ट्वीट कर यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि यूजीसी ने इस संबंध में अप्रैल को जारी पुराने निर्देश को बदलते हुए यह निर्णय लिया।

मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने कहा कि विश्वविद्यालय कोविड के प्रकोप के चलते स्थगित की गईं अंतिम वर्ष की परीक्षाएं ऑनलाइन, ऑफलाइन या दोनों माध्यमों से आयोजित कर सकते हैं।

अंतिम वर्ष की परीक्षाएं नहीं दे पाए छात्रों को एक और मौका मिलेगा, विश्वविद्यालय जब उचित होगा तब विशेष परीक्षाएं आयोजित करेंगे।

गृह मंत्रालय ने विश्वविद्यालयों को परीक्षा आयोजित करने की दी अनुमति

गृह मंत्रालय ने केन्द्रीय उच्च शिक्षा सचिव को सोमवार को एक पत्र लिखकर विश्वविद्यालयों और संस्थानों द्वारा परीक्षाएँ आयोजित करने की अनुमति दे दी।

परीक्षाओं के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के दिशानिर्देशों के अनुसार और विश्वविद्यालयों के लिए शैक्षणिक कैलेंडर तथा केन्द्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा अनुमोदित मानक संचालन प्रक्रिया के अनुसार अंतिम सत्र की परीक्षाएँ आयोजित करना अनिवार्य है।