भारत रत्न लता मंगेशकर: जिनकी आवाज ही उनकी पहचान बन गई attacknews.in

मुंबई, छह फरवरी । देश के संगीत जगत की सबसे बड़ी हस्तियों में शुमार रहीं और स्वर कोकिला के नाम से जानी जाने वाली तथा ‘भारत रत्न’ से सम्मानित लता मंगेशकर का रविवार को निधन हो गया, लेकिन वह अपने सुरीले गीतों के जरिए संगीत प्रेमियों के दिलों में सदा अमर रहेंगी।


उनके गीतों ने कभी प्रेम, कभी खुशी, कभी दुख की भावनाओं को व्यक्त किया तो कभी संगीत की धुनों पर नाचने पर मजबूर कर दिया।

उन्होंने मनुष्य की हर भावना को अपनी आवाज के जरिए संगीत प्रेमियों के दिलों तक पहुंचाया। उनकी आवाज ने ग्रामोफोन की दुनिया से लेकर डिजिटल युग तक का सफर तय किया और कई गीतों को अविस्मरणीय बना दिया।

मंगेशकर का रविवार को यहां ब्रीच कैंडी अस्पताल में निधन हो गया। वह 92 वर्ष की थीं। उन्होंने केवल हिंदी ही नहीं, बल्कि भारत की लगभग हर भाषा में गीत गाए।

मंगेशकर ने मधुबाला से लेकर प्रीति जिंटा तक कई पीढ़ियों के फिल्मी कलाकारों के लिए पार्श्व गायन किया। दक्षिण एशिया में लाखों लोग मंगेशकर की ‘स्वर्णिम आवाज’ से अपने दिन की शुरुआत करते हैं और सुकून देने वाली उनकी आवाज सुनकर ही अपना दिन समाप्त करते हैं।

उन्हें ‘सुर सम्राज्ञी’, ‘स्वर कोकिला’ और ‘सहस्राब्दी की आवाज’ समेत कई उपनाम दिए गए। उन्हें उनके प्रशंसक लता दीदी के नाम से संबोधित करते थे।

इंदौर में जन्मीं मंगेशकर ने मराठी फिल्म ‘किती हसाल’ के लिए मात्र 13 वर्ष की आयु में 1942 में अपना पहला गीत रिकॉर्ड किया था। इसके 79 वर्ष बाद पिछले साल अक्टूबर में विशाल भारद्वाज ने मंगेशकर का गाया ‘ठीक नहीं लगता’ गीत जारी किया था। इस गीत के बोल गुलजार ने लिखे हैं और ऐसा माना जा रहा था कि यह गीत खो गया था।

मंगेशकर ने यह गीत जारी होने के कुछ दिन बाद ‘पीटीआई-भाषा’ से एक साक्षात्कार में कहा था, ‘‘यह लंबी यात्रा मेरे साथ है और वह छोटी बच्ची अब भी मेरे अंदर है। वह कहीं गई नहीं है। कुछ लोग मुझे ‘सरस्वती’ कहते हैं या वे कहते हैं कि मुझ पर उनकी कृपा है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘यह उनका आशीर्वाद है कि मेरे गाए गीत लोगों को पसंद आते हैं, अन्यथा मैं कौन हूं? मैं कुछ नहीं हूं।’’

लता मंगेशकर की इस बात से उनके लाखों प्रशंसक सहमत नहीं होंगे। न केवल उनके प्रशंसकों के लिए, बल्कि उनके संगीत से अपरिचित दुनियाभर के कई लोगों के लिए भी मंगेशकर उन कुछेक भारतीयों में से एक हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी खास पहचान बनाई है। संगीत जगत को दिया उनका योगदान अतुलनीय है।

ऐसा कहा जाता है कि मंगेशकर ने 1963 में पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत जवाहरलाल नेहरू की मौजूदगी में जब देश के जवानों के लिए ‘ऐ मेरे वतन के लोगो गीत’ गाया था, तो नेहरू अपने आंसू नहीं रोक पाए थे।

मंगेशकर ने ‘मोहे पनघट पे’ (मुगल-ए-आजम) जैसे शास्त्रीय गीतों, ‘अजीब दास्तां हैं ये’ (दिल अपना और प्रीत पराई) और ‘बांहों में चले आओ’ (अनामिका) जैसे रोमांटिक गीतों से सुरों का जादू बिखेरा।

उन्हें भारत के सबसे बड़े नागरिक सम्मान भारत रत्न, दादा साहेब फाल्के पुरस्कार और कई अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। मृदुभाषी मंगेशकर अपने निजी जीवन पर सार्वजनिक रूप से बात करना पसंद नहीं करती थीं। वह आजीवन अविवाहित रहीं।

ऐसा कहा जाता था कि क्रिकेटर राज सिंह डूंगरपुर और मंगेशकर एक-दूसरे से प्रेम करते थे। राज सिंह ने इसे लेकर बात की, लेकिन मंगेशकर ने इस विषय पर कभी कुछ नहीं कहा।

अपनी बहन आशा भोसले के साथ कथित प्रतिद्वंद्वता को लेकर भी मंगेशकर कई बार सुखिर्यों में रहीं, लेकिन उन्होंने इस बात की कभी परवाह नहीं की और कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया। दोनों बहनों ने इस बारे में कोई बात नहीं की और संगीत जगत पर राज किया।

इसके अलावा रॉयल्टी को लेकर गायक मोहम्मद रफी के साथ उनका झगड़ा और अभिनेता राज कपूर के साथ उनका विवाद भी चर्चा में रहा।

मंगेशकर का जन्म 28 सितंबर, 1929 को इंदौर में एक मराठी संगीतकार पंडित दीनानाथ मंगेशकर और गुजराती गृहिणी शेवंती के घर हुआ था। वह दीनानाथ और शेवंती के पांच बच्चों में सबसे बड़ी थीं। लता के अलावा मीना, आशा, उषा और हृदयनाथ उनके बच्चे थे।

मंगेशकर जब मात्र पांच साल की थीं, तभी उनके पिता ने उनके भीतर की महान गायिका को पहचान लिया था।

दीनानाथ मंगेशकर के अचानक निधन के कारण परिवार का आर्थिक बोझ 13 वर्षीय लता मंगेशकर के कंधों पर आ गया। ऐसे में उनके पारिवारिक मित्र मास्टर विनायक ने उनकी मदद की और लता मंगेशकर ने उनकी रंगमंच कंपनी में गाना और अभिनय करना शुरू कर दिया।

जब वह मुंबई गईं तो निर्माता एस मुखर्जी ने यह कहकर मंगेशकर को खारिज कर दिया था कि उनकी आवाज बहुत पतली है, लेकिन वह यह नहीं जानते थे कि यही आवाज कई भावी पीढ़ियों तक संगीत जगत पर राज करेगी।

लता मंगेशकर ने जब 1949 में फिल्म ‘महल’ के लिए ‘आएगा आने वाला’ गीत गाया, तो उस समय पार्श्व गायकों को अधिक तवज्जो नहीं दी जाती थी और यह सार्वजनिक नहीं किया गया था कि यह गीत किसने गाया है, लेकिन यह गीत इतना हिट हुआ कि लोग इसकी गायिका के बारे में जानने को उत्सुक थे, जिसके कारण रेडियो स्टेशन को यह जानने के लिए एचएमवी से संपर्क करना पड़ा कि इस गीत को आवाज किसने दी है।

मंगेशकर ने नसरीन मुन्नी कबीर के वृत्तचित्र ‘लता मंगेशकर: इन हर ओन वर्ड्स’ में इस बात का जिक्र किया था। रेडियो स्टेशन ने श्रोताओं को बताया कि यह गीत मंगेशकर ने गाया है और इसी के साथ देश को एक सितारा मिल गया।

मंगेशकर ने 1950 के दशक में शंकर जयकिशन, नौशाद अली, एस डी बर्मन, हेमंत कुमार और मदन मोहन जैसे महान संगीतकारों के साथ काम किया। उस समय गायकों को अधिक धन नहीं मिलता था, इसलिए मंगेशकर एक दिन में छह से आठ गीत गाती थीं और फिर घर जाकर कुछ घंटे सोने के बाद अगले दिन फिर ट्रेन से रिकॉर्डिंग स्टूडियो पहुंच जाया करती थीं।

उनकी आवाज सफलता का पर्याय बन गई थी और इसीलिए मुख्य अभिनेता इस बात पर जोर देते थे कि उनकी फिल्मों के गीत लता मंगेशकर ही गाएं और अपने अनुबंधों में यह शर्त भी रखते थे।

साठ के दशक में एक बार फिर मधुबाला मंगेशकर की आवाज का चेहरा बनीं। मंगेशकर ने ‘मुगल-ए-आजम’ के लिए ‘जब प्यार किया तो डरना क्या’ गीत गाकर संगीत जगत में तहलका मचा दिया।

इसी दशक में उन्होंने लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के साथ मिलकर काम करना शुरू किया। मंगेशकर ने लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के लिए 35 साल में 700 से अधिक गीत गाए, जिनमें से अधिकतर बहुत लोकप्रिय हुए।

मंगेशकर ने मुकेश, मन्ना डे, महेंद्र कपूर, मोहम्मद रफी और किशोर कुमार जैसे दिग्गज गायकों के साथ युगल गीत गाए। सत्तर के दशक में मंगेशकर ने अभिनेत्री मीना कुमारी की आखिरी फिल्म ‘पाकीजा’ और ‘अभिमान’ के लिए बेहतरीन गीत गाए। उन्होंने 80 के दशक में ‘‘सिलसिला’’, ‘‘चांदनी’’, ‘‘मैंने प्यार किया’’, ‘‘एक दूजे के लिए’’, ‘‘प्रेम रोग’’, ‘‘राम तेरी गंगा मैली’’ और ‘‘मासूम’’ फिल्मों के लिए गीत गाए।

वर्ष 1990 और 2000 के दशक में उन्होंने गुलजार निर्देशित फिल्म ‘लेकिन’ और यश चोपड़ा की फिल्मों ‘लम्हे’, ‘डर’, ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ और ‘दिल तो पागल’ के गीतों को अपनी सुरीली आवाज दी।

उन्होंने आखिरी बार 2004 में ‘वीर-जारा’ फिल्म की पूरी अलबम के गीत गाए।

लता मंगेशकर आज भले ही दुनिया में नहीं हैं, लेकिन अपनी आवाज के जरिए वह संगीत प्रेमियों के बीच सदा अमर रहेंगी।

मंगेशकर ने 1977 में ‘किनारा’ फिल्म के लिए ‘मेरी आवाज ही मेरी पहचान है’ गीत गाया था और वाकई आज उनकी आवाज किसी पहचान की मोहताज नहीं।

भारत रत्न लता मंगेशकर, “मेरी आवाज ही पहचान हैं ….”

लता मंगेशकर (28 सितंबर 1929 – 6 फ़रवरी 2022) भारत की सबसे लोकप्रिय और आदरणीय गायिका थीं, जिनका छ: दशकों का कार्यकाल उपलब्धियों से भरा पड़ा है। हालाँकि लता जी ने लगभग तीस से ज्यादा भाषाओं में फ़िल्मी और गैर-फ़िल्मी गाने गाये हैं लेकिन उनकी पहचान भारतीय सिनेमा में एक पार्श्वगायक के रूप में रही है। अपनी बहन आशा भोंसले के साथ लता जी का फ़िल्मी गायन में सबसे बड़ा योगदान रहा है।

लता की जादुई आवाज़ के भारतीय उपमहाद्वीप के साथ-साथ पूरी दुनिया में दीवाने हैं। टाईम पत्रिका ने उन्हें भारतीय पार्श्वगायन की अपरिहार्य और एकछत्र साम्राज्ञी स्वीकार किया है। लता दीदी को भारत सरकार ने ‘भारतरत्न’ से सम्मानित किया । इनकी मृत्यु कोविड से जुड़े कॉम्प्लिकेशन से 6 फरवरी 2022 में ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल मुंबई में हुई। वे एक अरसे से बीमार थीं। उनकी महान गायकी और सुरम्य आवाज के दीवाने पूरी दुनिया मे है।

लता का जन्म गोमंतक मराठा समाज परिवार में, मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में सबसे बड़ी बेटी के रूप में पंडित दीनानाथ मंगेशकर के मध्यवर्गीय परिवार में हुआ। उनके पिता रंगमंच एलजीके कलाकार और गायक थे। इनके परिवार से भाई हृदयनाथ मंगेशकर और बहनों उषा मंगेशकर, मीना मंगेशकर और आशा भोंसले सभी ने संगीत को ही अपनी आजीविका के लिये चुना। हालाँकि लता का जन्म इंदौर में हुआ था लेकिन उनकी परवरिश महाराष्ट्र मे हुई. वह बचपन से ही गायक बनना चाहती थीं।

बचपन में कुन्दन लाल सहगल की एक फ़िल्म चंडीदास देखकर उन्होने कहा था कि वो बड़ी होकर सहगल से शादी करेगी। पहली बार लता ने वसंग जोगलेकर द्वारा निर्देशित एक फ़िल्म कीर्ती हसाल के लिये गाया। उनके पिता नहीं चाहते थे कि लता फ़िल्मों के लिये गाये इसलिये इस गाने को फ़िल्म से निकाल दिया गया। लेकिन उसकी प्रतिभा से वसंत जोगलेकर काफी प्रभावित हुये।

पिता की मृत्यु के बाद (जब लता सिर्फ़ तेरह साल की थीं), लता को पैसों की बहुत किल्लत झेलनी पड़ी और काफी संघर्ष करना पड़ा। उन्हें अभिनय बहुत पसंद नहीं था लेकिन पिता की असामयिक मृत्यु की वज़ह से पैसों के लिये उन्हें कुछ हिन्दी और मराठी फ़िल्मों में काम करना पड़ा।

अभिनेत्री के रूप में उनकी पहली फ़िल्म पाहिली मंगलागौर (1942) रही, जिसमें उन्होंने स्नेहप्रभा प्रधान की छोटी बहन की भूमिका निभाई। बाद में उन्होंने कई फ़िल्मों में अभिनय किया जिनमें, माझे बाल, चिमुकला संसार (1943), गजभाऊ (1944), बड़ी माँ (1945), जीवन यात्रा (1946), माँद (1948), छत्रपति शिवाजी (1952) शामिल थी। बड़ी माँ, में लता ने नूरजहाँ के साथ अभिनय किया और उसके छोटी बहन की भूमिका निभाई आशा भोंसलेने। उन्होंने खुद की भूमिका के लिये गाने भी गाये और आशा के लिये पार्श्वगायन किया।

वर्ष 1942 ई में लताजी के पिताजी का देहांत हो गया इस समय इनकी आयु मात्र तेरह वर्ष थी. भाई बहिनों में बड़ी होने के कारण परिवार की जिम्मेदारी का बोझ भी उनके कंधों पर आ गया था. दूसरी ओर उन्हें अपने करियर की तलाश भी थी. जिस समय लताजी ने (1948) में पार्श्वगायिकी में कदम रखा तब इस क्षेत्र में नूरजहां, अमीरबाई कर्नाटकी, शमशाद बेगम और राजकुमारी आदि की तूती बोलती थी. ऐसे में उनके लिए अपनी पहचान बनाना इतना आसान नही था.

लता का पहला गाना एक मराठी फिल्म कीति हसाल के लिए था, मगर वो रिलीज नहीं हो पाया. 1945 में उस्ताद ग़ुलाम हैदर (जिन्होंने पहले नूरजहाँ की खोज की थी) अपनी आनेवाली फ़िल्म के लिये लता को एक निर्माता के स्टूडियो ले गये जिसमे कामिनी कौशल मुख्य भूमिका निभा रही थी। वे चाहते थे कि लता उस फ़िल्म के लिये पार्श्वगायन करे। लेकिन गुलाम हैदर को निराशा हाथ लगी। 1947 में वसंत जोगलेकर ने अपनी फ़िल्म आपकी सेवा में में लता को गाने का मौका दिया। इस फ़िल्म के गानों से लता की खूब चर्चा हुई। इसके बाद लता ने मज़बूर फ़िल्म के गानों “अंग्रेजी छोरा चला गया” और “दिल मेरा तोड़ा हाय मुझे कहीं का न छोड़ा तेरे प्यार ने” जैसे गानों से अपनी स्थिती सुदृढ की। हालाँकि इसके बावज़ूद लता को उस खास हिट की अभी भी तलाश थी। 1949 में लता को ऐसा मौका फ़िल्म “महल” के “आयेगा आनेवाला” गीत से मिला। इस गीत को उस समय की सबसे खूबसूरत और चर्चित अभिनेत्री मधुबाला पर फ़िल्माया गया था। यह फ़िल्म अत्यंत सफल रही थी और लता तथा मधुबाला दोनों के लिये बहुत शुभ साबित हुई। इसके बाद लता ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

विविध

पिता दिनानाथ मंगेशकर शास्त्रीय गायक थे।

उन्होने अपना पहला गाना मराठी फिल्म ‘किती हसाल’ (कितना हसोगे?) (1942) में गाया था।

लता मंगेशकर को सबसे बड़ा ब्रेक फिल्म महल से मिला। उनका गाया “आयेगा आने वाला” सुपर डुपर हिट था।

लता मंगेशकर अब तक 20 से अधिक भाषाओं में 30000 से अधिक गाने गा चुकी हैं।

लता मंगेशकर ने 1980 के बाद से फ़िल्मो में गाना कम कर दिया और स्टेज शो पर अधिक ध्यान देने लगी।

लता ही एकमात्र ऐसी जीवित व्यक्ति रही हैं जिनके नाम से पुरस्कार दिए जाते रहे हैं।

लता मंगेशकर ने आनंद घन बैनर तले फ़िल्मो का निर्माण भी किया है और संगीत भी दिया है।

वे हमेशा नंगे पाँव गाना गाती थी ।