1962 के तीसरे आम चुनाव से क्षेत्रीय पार्टियों के असर के बाद भारत की राजनीति का चेहरा ही बदल गया जिससे दिग्गज नेता धराशायी हो गए थे attacknews.in

नयी दिल्ली, 18 मार्च । लोकसभा के वर्ष 1962 में हुये तीसरे आम चुनाव में न केवल नवगठित क्षेत्रीय पार्टियों ने अपना असर दिखाना शुरू किया बल्कि इस दौरान राजनीतिक बदलाव का जो दौर शुरू हुआ उसमें कई दिग्गज नेता धराशायी हो गये।

इस चुनाव में समाजवादी विचारधारा वाली सोशलिस्ट पार्टी, पंजाब में अकाली दल और मद्रास में द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके), मुस्लिम लीग, गणतंत्र परिषद आदि को चुनावी दावपेंच आजमाने का अवसर प्रदान किया और डीएमके जैसे कुछ दलों का उभार दिखायी दिया। बदलाव की बयार में कांग्रेस के बड़ेे नेताओं में शामिल ललित नारायण मिश्र, प्रख्यात मजदूर और कम्युनिस्ट नेता श्रीपाद अमृत डांगे और समाजवादी विचारक राम मनोहर लोहिया को भी चुनाव हरा दिया था।

कांग्रेस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, जनसंघ, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, सोशलिस्ट पार्टी और स्वतंत्र पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त था जबकि अकाली दल, डीएमके, गणतंत्र परिषद, फारवर्ड ब्लाक, हिन्दू महासभा, मुस्लिम लीग, पीजेंट एंड वर्कर पार्टी, रिपब्लिकन पार्टी और राम राज्य पार्टी को मान्यता प्राप्त दल का दर्जा हासिल था। गैर मान्यता प्राप्त दलों में ईस्टर्न इंडिया ट्राइबल यूनियन, गोरख लीग, हरियाणा लोक समिति, नूतन महागुजरात परिषद, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, सोशलिस्ट लेबर पार्टी तथा तमिल नेशनल पार्टी।

लोकसभा के इस चुनाव में 494 सीट के लिये कुल 1985 उम्मीदवारों ने अपना भाग्य आजमाया था। कुल 21 करोड़ 63 लाख 61 हजार 569 मतदाताओं में से 55.42 प्रतिशत ने मतदान में हिस्सा लिया था। एक लोकसभा सीट पर औसतन चार से अधिक उम्मीदवार थे और राजस्थान की एक सीट पर सबसे अधिक 11 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था।

कांग्रेस ने सर्वाधिक 488, भाकपा ने 137, जनसंघ ने 196, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने 168, सोसलिस्ट पार्टी ने 107 और स्वतंत्र पार्टी ने 173 उम्मीदवार उतारे थे। कांग्रेस के 361 उम्मीदवार निर्वाचित हुये थे और उसे 44.72 प्रतिशत वोट हासिल हुआ था। भाकपा को 29 सीटें मिली थी और वह तीसरी बार लोकसभा में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी रही। इस चुनाव में उसे 9.94 प्रतिशत वोट मिला था।

जनसंघ को पहली बार 14 सीटें, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी को 12 तथा स्वतंत्र पार्टी को 18 सीटें जीतने में कामयाबी हासिल हुयी थी। अकाली दल के तीन आैर डीएमके के सात प्रत्याशी चुनाव जीतने में सफल रहे थे। कुल 479 निर्दलीय उम्मीदवारों ने अपने बलबूते पर चुनाव लड़ा था और इनमें से 20 निर्वाचित होने में कामयाब रहे थे। निर्दलीय उम्मीदवारों ने 11.05 प्रतिशत मत प्राप्त किया था । हिन्दू महासभा , फारवर्ड ब्लाक , गणतंत्र परिषद आदि को छिटपुट रूप से सफलता मिली थी।

इस चुनाव में कांग्रेस नेता जवाहर लाल नेहरु, लाल बहादुर शास्त्री, मोरारजी देसाई, जगजीवन राम, गुलजारी लाल नंदा, रेणुका राय, कम्युनिस्ट नेता इन्द्रजीत गुप्त, हिरेन्द्र नाथ मुखर्जी, ए. के. गोपालन, समाजवादी नेता किसन पटनायक, अकाली नेता बूटा सिंह और धन्ना सिंह निर्वाचित हुये थे। इस चुनाव का एक मजेदार तथ्य यह था कि उत्तर प्रदेश के फूलपुर क्षेत्र में नेहरु के खिलाफ समाजवादी चिन्तक राम मनोहर लोहिया ने चुनाव लड़ा था। नेहरु को 118931 तथा सोसलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े लोहिया को 54360 वोट मिला था। नेहरु उत्तर प्रदेश से लगातार तीसरी बार सांसद चुने गये थे।

बिहार में बड़ी बात यह हुयी कि कांग्रेस के बड़े नेताओं में शामिल ललित नारायण मिश्र सहरसा सीट पर सोसलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी भूपेन्द्र नाथ मंडल से चुनाव हार गये। श्री मिश्र को 81905 तथा श्री मंडल को 97038 वोट मिले थे। बाम्बे सिटी सेंट्रल साउथ सीट पर भाकपा के टिकट पर दूसरी बार चुनाव लड़े श्रीपाद अमृत डांगे को कांग्रेस प्रत्याशी विट्ठल बालकृष्ण गांधी ने पराजित कर दिया था। श्री गांधी एक लाख 36 हजार से अधिक मत लाने में सफल रहे जबकि श्री डांगे 97891 मत ही ला सके।

भाकपा के इन्द्रजीत गुप्त ने पश्चिम बंगाल में कलकत्ता दक्षिण पश्चिम सीट पर एक लाख 43 हजार से अधिक मत लाकर कांग्रेस के इस्माइल इब्राहिम को पराजित कर दिया। श्री इब्राहिम को एक लाख 32 हजार से अधिक मत मिले थे। इसी राज्य में भाकपा के हिरेन्द्रनाथ मुखर्जी कांग्रेस के बलाई चंद्र पाल को हरा दिया था। भाकपा उम्मीदवार ए के गोपालन केरल के कासेरगोड सीट पर 62.17 प्रतिशत वोट लाकर प्रजा सोसलिस्ट पार्टी के के आर करंत को हराया था।

सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर उड़ीसा के संबलपुर सीट से चुनाव लड़े किसन पटनायक ने कांग्रेस के विनोद बिहारी दास को तीन हजार से कुछ अधिक मतों के अंतर से पराजित कर दिया था। श्री पटनायक को 37009 और श्री दास को 34641 वोट मिले थे। कांग्रेस के गुलजारी लाल नंदा साबरकंठा सीट पर स्वतंत्र पार्टी के पी पटेल को लगभग 25 हजार मतों के अंतर से पराजित कर दिया था।

इस चुनाव में कांग्रेस को आन्ध्र प्रदेश में 34, असम में 09, बिहार में 39, गुजरात में 16, केरल में 06, मध्य प्रदेश में 24, मद्रास में 31, महाराष्ट्र में 41, मैसूर में 25, उड़िसा में 14, पंजाब में 14, राजस्थान में 14, उत्तर प्रदेश में 62, पश्चिम बंगाल में 22, दिल्ली में 05, हिमाचल प्रदेश में 04 और मणिपुर में एक सीट मिली थी।

भाकपा को आन्ध्र प्रदेश में 07, बिहार में एक, केरल में 06, मद्रास में 02, उत्तर प्रदेश में 02, पश्चिम बंगाल में 09 तथा त्रिपुरा में एक सीट मिली थी। जनसंघ को मध्य प्रदेश में 03, पंजाब में 03, राजस्थान में एक, और उत्तर प्रदेश में सात सीटें मिली थी। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी को असम में दो, बिहार में दो, गुजरात में एक, मध्य प्रदेश में तीन, महाराष्ट्र में एक, उड़ीसा में एक और उत्तर प्रदेश में दो सीटें मिली थी। सोशलिस्ट पार्टी को बिहार, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और मणिपुर में एक-एक सीट मिली थी। उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक पांच निर्दलीय उम्मीदवार जीते थे।

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भारत के लोकसभा चुनाव 2019 में 2293 पार्टियां अपना भाग्य आजमायेगी attacknews.in

नयी दिल्ली, 17 मार्च । ‘सबसे बड़ी पार्टी’…जी कयास नहीं लगाएं कि कौन सबसे बड़ी है क्योंकि यह खुद ही पार्टी का नाम है और इस तरह की छोटी-बड़ी तकरीबन 2300 राजनीतिक पार्टियां चुनाव आयोग में पंजीकृत हैं।

भारत चुनाव आयोग में राजनीतिक दलों के नवीनतम डेटा के अनुसार देश में कुल 2293 राजनीतिक दल हैं।

चुनाव आयोग में पंजीकृत इन पार्टियों में से सात ‘‘मान्यताप्राप्त राष्ट्रीय’’ और 59 ‘‘मान्यताप्राप्त राज्य’’ पार्टियां हैं।

आम तौर पर चुनाव आने से पहले दलों के पंजीकरण का सिलसिला शुरू हो जाता है। इस बार भी लोकसभा चुनाव से पहले ढेर सारे राजनीतिक दलों ने पंजीकरण के लिए चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटाया।

अकेले फरवरी और मार्च के बीच 149 राजनीतिक दलों ने आयोग में अपना पंजीकरण करवाया। राजनीतिक दलों के पंजीकरण का यह सिलसिला लोकसभा चुनावों की घोषणा के एक दिन पहले, नौ मार्च तक चला।

पिछले साल नवंबर-दिसंबर के दौरान मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, मिजोरम और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनावों से पहले 58 राजनीतिक पार्टियों ने अपना पंजीकरण कराया था।

हाल-फिलहाल आयोग में पंजीकरण करने वाली राजनीतिक पार्टियों में ‘भरोसा पार्टी’, ‘राष्ट्रीय साफ नीति पार्टी’ और ‘सबसे बड़ी पार्टी’’ सरीखे राजनीतिक दल शामिल हैं। बिहार के सीतामढ़ी से ‘बहुजन आजाद पार्टी’, उत्तर प्रदेश के कानपुर से ‘सामूहिक एकता पार्टी’ और तमिलनाडु के कायंबतूतर से ‘न्यू जेनरेशन पीपुल्स पार्टी’ ने अपना पंजीकरण कराया है।

बहरहाल, ये पंजीकृत, लेकिन गैर-मान्यताप्राप्त राजनीतिक पार्टियां हैं। उनका अपना कोई नियत विशिष्ट चुनाव चिह्न नहीं होता है जिसपर ये चुनाव लड़ सकें। उन्हें चुनाव आयोग से जारी ‘मुक्त चुनाव चिह्नों’ में से चुनना होगा। आयोग के नवीनतम सर्कुलर के अनुसार ऐसे 84 चुनाव चिह्न हैं। एक बात और, इन पार्टियों के उम्मीदवारों को हर चुनाव क्षेत्र में अलग-अलग चुनाव चिह्नों पर भी लड़ना पड़ सकता है

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कांग्रेस पार्टी का गढ़ रही मध्यप्रदेश की मंडला संसदीय सीट 5 चुनावों से भाजपा के फग्गन सिंह कुलस्ते के नाम है लेकिन इस बार आसान नहीं है attacknews.in

मंडला, 17 मार्च । लंबे समय तक कांग्रेस का गढ़ रही और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित मध्यप्रदेश की मंडला संसदीय सीट को आजादी के करीब सात दशक बाद भी महिला प्रतिनिधित्व की दरकार है।

वर्तमान में यहां से भारतीय जनता पार्टी के फग्गन सिंह कुलस्ते सांसद हैं। मंडला संसदीय सीट पर पांच बार भाजपा ने जीत हासिल की है और हर बार पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री कुलस्ते ने ही उसे यहां से जीत दिलायी। वह 1996 से 2004 तक लगातार वह यहां से सांसद चुने गए। वर्ष 2009 में कांग्रेस के बसोरी सिंह ने उनसे ये सीट छीन ली, लेकिन अगले ही चुनाव में साल 2014 में श्री कुलस्ते फिर से यहां काबिज हो गए। मंडला जिला आदिवासी बहुल इलाका है और इस क्षेत्र के लोग कृषि पर सबसे ज्यादा निर्भर हैं। जिले में अनुसूचित जनजाति के लोगों की आबादी अच्छी खासी है।

इस सीट के चुनाव इतिहास पर नजर डाली जाये तो 1957 यहां पहली बार लोकसभा का चुनाव हुआ जिसमें कांग्रेस के मंगरू गनू उइके सांसद चुने गए। वह 1971 तक यहां से लगातार चुनाव जीतते रहे ।

कांग्रेस काे 1977 के चुनाव में यहां पहली बार हार का सामना करना पड़ा । भारतीय लोकदल पहली बार इस सीट को जीतने में कामयाब रही। कांग्रेस ने 1980 के चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर इस सीट पर वापसी की और 1991 तक अपना कब्जा बरकरार रखा। कांग्रेस कुल मिलाकर नौ बार इस सीट पर जीती है।

वर्ष 1996 से यहां श्री कुलस्ते का जादू चलना शुरु हुआ और वह लगातार चार चुनाव जीते। उन्हें 2009 में हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव में कांग्रेस के बासोरी सिंह ने कुलस्ते को शिकस्त दी थी। बासोरी सिंह को 3,91,113 वोट तथा श्री कुलस्ते को 3,26,080 वोट मिले। श्री कुलस्ते ने मोदी लहर में उन्होंने 2014 में यहां फिर वापसी की। पिछले चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के ओमकार सिंह को हराया था। श्री कुलस्ते को 5,85,720 तथा ओमकार सिंह को 4,75,521 वोट मिले थे.

मंडला संसदीय क्षेत्र में शहपुरा, डिंडोरी, बिछिया, निवास, मंडला, केवलारी, लखनादौन और गोटेगांव विधानसभा सीट शामिल हैं। वर्तमान में इनमें से छह पर कांग्रेस और दो पर भाजपा का कब्जा है। यहां चौथे चरण में 29 अप्रैल को मतदान होगा।

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1967 में इंदिरा गांधी के राजनीति में आने के साथ ही हुए चौथे लोकसभा चुनाव में 25 करोड़ मतदाताओं ने 283 सीटों पर कांग्रेस को जिताया था attacknews.in

नयी दिल्ली 17 मार्च । वर्ष 1967 में हुये चौथे लोकसभा चुनाव के पहले देश का पूरा राजनीतिक स्वरुप बदल चुका था, एक ओर जहां देश को चीन और पाकिस्तान के साथ युद्ध का सामना करना पड़ा वहीं देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु आैर उनका स्थान लेने वाले लाल बहादुर शास्त्री का निधन हो गया और कांग्रेस में इंदिरा गांधी नेतृत्वकारी भूमिका में उभर रही थीं।

इन ऐतिहासिक धटनाओं के बाद हुये लोकसभा के 520 सीटों के लिए हुये चुनाव में कांग्रेस में 283 सीट जीत कर सबसे बड़ी पार्टी के दर्जे को बरकरार रखने में कामयाब रही थी हालांकि उसकी सीटों में कमी आयी । स्वतंत्र पार्टी 44 सीटें जीत कर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रुप में उभरी थी ।

लोकतंत्र के इस महापर्व में अटल बिहारी वाजपेयी , राम मनोहर लोहिया , जार्ज फर्नाडीस , जगजीवन राम और श्रीपाद अमृत डांगे जैसे चोटी के नेता विजयी हुये थे ।

लोकसभा के 520 सीटों में से 406 सामान्य वर्ग के लिए थी जबकि 77 अनुसूचित जाति तथा 37 अनुसूचित जनजाति के लिये सुरक्षित थी।

इस चुनाव तक मतदाताओं की संख्या बढकर 25 करोड़ दो लाख से अधिक हो गयी थी जिनमें से 61.04 प्रतिशत लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग कर 2369 उम्मीदवारों के चुनावी किस्मत का फैसला किया था । इस चुनाव में प्रति सीट औसतन 4.56 उम्मीदवार थे । उत्तर प्रदेश में एक निर्वाचन क्षेत्र में अधिकतम 14 प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा था ।

कांग्रेस , भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी , मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी , जनसंघ , प्रजा सोसलिस्ट पार्टी , संयुक्त सोसलिस्ट पार्टी और स्वतंत्र पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त था जबकि अकाली दल (मास्टर तारा सिंह) अकाली दल (संत फतेह सिंह ) आल पार्टी हिल लीडर्स कांफ्रेंस , बंगला कांग्रेस , डेमोक्रेटिक नेशनल कांफ्रेंस , फारवर्ड ब्लाक ,केरल कांग्रेस , मुस्लिम लीग , नागालैंड नेशनलिस्ट आर्गनाइजेशन , पीजेंट एंड वर्कर पार्टी , तथा यूनाइटेड गोवंस को राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा प्राप्त था । पंजीकृत पार्टियों में जन कांग्रेस , जन क्रांति दल , जम्मू कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस और पीपुल्स फ्रंट शामिल थी ।

कांग्रेस ने इस चुनाव में 516 , जनसंघ ने 249 , भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने 109 , मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने 69 , प्रजा सोसलिस्ट पार्टी ने 109 , संयुक्त सोसलिस्ट पार्टी ने 122 और स्वतंत्र पार्टी ने 178 उम्मीदवार खड़े किये थे ।

राष्ट्रीय पार्टियों की ओर से कुल 1342 प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे गये थे जिनमें से 440 जीतने में सफल रहें । इन पार्टियों को 76.13 प्रतिशत वोट मिले थे । राज्य स्तरीय पार्टियों ने 148 तथा पंजीकृत पार्टियों ने 13 उम्मीदवार लड़ये थे । इसके अलावा 866 निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी चुनाव लड़ा था ।

कांग्रेस को कुल 40.78 प्रतिशत वोट मिला था और उसके 283 उम्मीदवार निर्वाचित हुयें थे जबकि स्वतंत्र पार्टी को 8.67 प्रतिशत वोट मिले थे और उसके 44 उम्मीदवार चुनाव जीते थे । जनसंघ के 35 , भाकपा के 23 , माकपा के 19 , प्रजा सोसलिस्ट पार्टी के 13 और संयुक्त सोसलिस्ट पार्टी के 23 प्रत्याशी विजयी हुये थे । निर्दनीय उम्मीदवारों ने 13.78 प्रतिशत वोट हासिल किया था और 35 प्रत्याशी चुनाव जीतने में कामयाब हुये थे ।

कांग्रेस को आन्ध्र प्रदेश में 35 , असम में 10 , बिहार में 34 , गुजरात में 11 , हरियाणा में सात , जम्मू कश्मीर में पांच , मध्य प्रदेश में 24 , मद्रास में तीन , महाराष्ट्र में 37 , मैसूर में 18 , उड़िसा में छह , पंजाब में नौ , राजस्थान में 10 , उत्तर प्रदेश में 47 , पश्चिम बंगाल में 14 , हिमाचल प्रदेश में छह , त्रिपुरा में दो तथा केरल , अंडमान निकोबार , दादर नागर हवेली , दिल्ली और पांडिचेरी में एक – एक सीट पर जीत मिली थी ।

स्वतंत्र पार्टी को गुजरात में सबसे अधिक 12 तथा राजस्थान और उड़िसा में आठ – आठ सीटें मिली थी । उसे आन्ध्र प्रदेश में तीन , मध्य प्रदेश में एक , मद्रास में छह , मैसूर में पांच और उत्तर प्रदेश में चार सीटें मिली थी । जनसंघ को बिहार में एक , हरियाणा में एक , मध्य प्रदेश में दस , पंजाब में एक , राजस्थान में तीन , उत्तर प्रदेश में 12 , चंडीगढ में एक तथा दिल्ली में छह सीटें मिली थी ।

भाकपा को आन्ध्र प्रदेश में एक , असम में एक , बिहार में पांच , महाराष्ट्र में दो , उत्तर प्रदेश में पांच , पश्चिम बंगाल में चार , केरल में तीन , और मणिपुर में एक सीट मिली थी । माकपा को मद्रास में चार , उत्तर प्रदेश में एक , पश्चिम बंगाल में पांच और केरल में नौ सीटें मिली थी । अकाली दल संत फतेह सिंह गुट को पंजाब में तीन स्थानों पर कामयाबी मिली थी । द्रविड़ मुनेत्र कषगम को मद्रास में भारी सफलता हाथ लगी थी और उसने 25 सीटों पर कब्जा कर लिया था।

संयुक्त सोसलिस्ट पार्टी को बिहार में सात , महाराष्ट्र में दो , मैसूर में एक , उड़िसा में एक , उत्तर प्रदेश में आठ , पश्चिम बंगाल में एक तथा केरल में तीन लोकसभा क्षेत्रों में जीत हासिल हुयी थी । प्रजा सोसलिस्ट पार्टी को असम में दो , बिहार में एक , महाराष्ट्र में एक , मैसूर में दो , उड़िसा में चार तथा उत्तर प्रदेश में दो स्थानों पर सफलता मिली थी ।

निर्दलीय उम्मीदवारों को सबसे अधिक आठ सीटों पर उत्तर प्रदेश में कामयाबी मिली थी जबकि पश्चिम बंगाल में सात , बिहार में चार , राजस्थान और मध्य प्रदेश में दो- दो तथा कुछ अन्य स्थानों पर सफला मिली थी ।

कांग्रेस की श्रीमती इंदिरा गांधी ने उत्तर प्रदेश के रायबरेली से पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा और निर्दलीय बी सी सेठ को भारी मतों के अंतर से पराजित किया था । श्रीमती गांधी को 143602 और श्री सेठ को 51899 वोट मिले थे । जनसंघ के अटल बिहारी वाजपेयी ने बलरामपुर में कांग्रेस के एस जोशी को करीब 32 हजार मतों के अंतर से पराजित किया था । श्री वाजपेयी को 142446 वोट मिले थे ।

समाजजवादी विचारक राम मनोहर लोहिया कन्नौज से संयुक्त सोसलिस्ट पार्टी के टिकट पर निर्वाचित हुये थे । उन्होंने कांग्रेस के एस एन मिश्र को मामूली मतों के अंतर से पराजित किया था । भाकपा के दिग्गज नेता इन्द्रजीत गुप्त पश्चिम बंगाल में अलीपुर सीट पर कांग्रेस के पी सरकार से काफी कम मतों अंतर से जीत गये थे । इसी पार्टी के श्रीपाद अमृत डांगे बाम्बे सेट्रल साउथ सीट पर जीत गये थे ।

मजदूर नेता जार्ज फर्नाडीस संयुक्त सोसलिस्ट पार्टी के टिकट पर बाम्बे साउथ सीट से जीत गये थे । श्री फर्नाडीस ने कांग्रेस के एस के पाटिल को हराया था । श्री फर्नाडीस को 147841 और श्री पाटिल को 118407 वोट मिले थे । कांग्रेस के वरिष्ठ नेत जगजीवन राम बिहार में सासाराम (सु) सीट पर संयुक्त सोसलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार एस राम से जीत गये थे । श्री जगजीवन राम को 149355 तथा श्री एस राम को 38689 वोट मिले थे ।

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लोकसभा चुनाव के लिए पहले चरण की 91 सीटों पर सोमवार को अधिसूचना जारी होने के साथ ही देश में चुनाव प्रक्रिया की शुरुआत attacknews.in

नयी दिल्ली, 17 मार्च । लोकसभा चुनाव के पहले चरण के तहत 91 सीटों के लिए सोमवार को अधिसूचना जारी होने के साथ ही आम चुनाव की औपचारिक प्रक्रिया शुरू हो जायेगी।

इसके अलावा आँध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम विधानसभाओं की सभी सीटों तथा ओडिशा की 147 में से 28 सीटों के लिए भी अधिसूचना 18 मार्च की ही जारी होनी है। अधिसूचना जारी होने के बाद उम्मीदवार उसी दिन से नामांकन पत्र भर सकेंगे।

इस बार लोकसभा की 543 सीटों के लिए मतदान सात चरणों में होना है जिसमें पहले चरण के लिए 11 अप्रैल को वोट डाले जायेंगे। इसके लिए 18 मार्च को अधिसूचना जारी की जायेगी। इस चरण में 20 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों की 91 सीटों के लिए नामांकन पत्र भरने की आखिरी तारीख 25 मार्च है। नामांकन पत्रों की जाँच 26 मार्च को होगी और 28 मार्च तक नाम वापस लिये जा सकेंगे। सभी सातों चरणों के लिए मतगणना 23 मई को होगी।

पहले चरण के तहत आँध्र प्रदेश की सभी 25, उत्तर प्रदेश की आठ, महाराष्ट्र की सात, असम और उत्तराखंड की पाँच-पाँच, बिहार और ओडिशा की चार-चार, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, पश्चिम बंगाल और जम्मू-कश्मीर की दो-दो तथा छत्तीसगढ़, मिजोरम, सिक्कम, त्रिपुरा, मणिपुर, अंडमान निकोबार द्वीप समूह और लद्दाख की एक-एक लोकसभा सीटों के लिए मतदान होने हैं।

आँध्र प्रदेश विधानसभा की सभी 175, अरुणाचल प्रदेश की सभी 60, सिक्किम की सभी 32 और ओडिशा की 147 में से 28 विधानसभा सीटों के लिए पहले चरण में 11 अप्रैल को मतदान होना है। इनके लिए भी 18 मार्च को ही अधिसूचना जारी होगी तथा अन्य चुनाव कार्यक्रम भी पहले चरण की लोकसभा सीटों के अनुरूप ही होंगे।

चुनावों की घोषणा 10 मार्च को की गयी थी और तत्काल प्रभाव से देश भर में आदर्श आचार संहिता लागू हो गयी है। दूसरे चरण में मतदान 18 अप्रैल को, तीसरे चरण में 23 अप्रैल को, चौथे चरण में 29 अप्रैल को, पाँचवें चरण में 06 मई को, छठे चरण में 12 मई को और सातवें चरण में 19 मई को होना है।

पारदर्शी चुनाव करवाना चुनौती बना:

चुनाव आयोग ने कहा है कि देश में पूरी तरह पारदर्शी एवं स्वच्छ चुनाव कराना अभी भी एक चुनौती बनी हुई है क्योंकि इसमें धन-बल का इस्तेमाल किया जा रहा है।

मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने  यहां केंद्रीय कर बोर्डों, अर्द्ध सैनिक बलों और अन्य आर्थिक एजेंसियों के पदाधिकारियों के साथ बैठक में यह बात कही।

उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में आर्थिक पर्यवेक्षकों की तत्परता और कार्रवाइयों से अधिक धन जब्त किया गया है जिससे चुनाव में गड़बड़ियों पर काफी अंकुश लगा है लेकिन अभी पूरी तरह से यह समस्या सुलझी नहीं है।

उन्होंने इन अधिकारियों से अनुरोध किया कि वे चुनाव को स्वच्छ बनाने के लिए विभिन्न एजेंसियों के बीच बेहतर तालमेल पर जोर दें और संयुक्त तथा संगठित रूप से कार्य करते हुए इसे अंजाम दें।

बैठक को चुनाव आयुक्त अशोक लवासा और सुशील चन्द्र ने भी संबोधित किया।

आयोग ने चुनाव शांतिपूर्ण और निष्पक्ष ढंग से सम्पन्न करने के लिए गुरुवार को पर्यवेक्षकों की बैठक की थी जिसमें भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा और भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारियों ने भाग लिया था।

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कई मंत्रियों ने अपने नाम के आगे चौकीदार लगाया और नरेन्द्र मोदी ने नाम बदलकर चौकीदार नरेन्द्र मोदी कर लिया attacknews.in

नयी दिल्ली, 17 मार्च । लोकसभा चुनाव में “चौकीदार” पर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और विपक्षी दलों की बयानबाजी के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके मंत्रिमंडल के कई सदस्यों ने ट्विटर पर अपने नामों के आगे “चौकीदार” लगा लिया है।

श्री मोदी ने ट्विटर अपने निजी अकाउंट “एटनरेंद्रमोदी” में अपना नाम “नरेंद्र मोदी” से बदलकर “चौकीदार नरेंद्र मोदी” कर लिया है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी अपना नाम “चौकीदार अमित शाह” कर लिया है।

केंद्रीय मंत्रियों में रेल मंत्री पीयूष गोयल, स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. हर्षवर्द्धन और नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री जयंत सिन्हा ने ट्विटर पर उनके नामों के आगे चौकीदार शब्द जोड़ लिया है। छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमण सिंह और भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव तथा राज्यसभा सांसद अनिल जैन भी इस मुहिम में शामिल हो गये हैं।

उल्लेखनीय है कि पिछले काफी दिनों से प्रधानमंत्री पर भ्रष्टाचारियों का साथ देने का आरोप लगाते हुये विपक्षी कांग्रेस “चौकीदार चोर है” की बात दुहरा रही है। इसके जवाब में शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर कहा था “आपका चौकीदार दृढता से खड़ा है और देश की सेवा कर रहा है। लेकिन मैं अकेला नहीं हूँ। हर व्यक्ति जो भ्रष्टाचार, गंदगी और सामाजिक बुराइयों से लड़ रहा है, चौकीदार है। भारत की प्रगति के लिए परिश्रम करने वाला हर व्यक्ति चौकीदार है। आज हर भारतीय कह रहा है – मैं भी चौकीदार।”

उनके इस ट्वीट के बाद मोदी मंत्रिमंडल में चौकीदार अभियान शुरू हुआ है। हालाँकि, खबर लिखे जाने तक गृह मंत्री राजनाथ सिंह, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी, वाणिज्य एवं व्यापार मंत्री सुरेश प्रभु, वित्त मंत्री अरुण जेटली, रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण, विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद, कृषि मंत्री राधामोहन सिंह, उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान, शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी, संचार मंत्री मनोज सिन्हा, गृह राज्य मंत्री किरेन रिजिजू और खाद्य प्रसंस्करण मंत्री हरसिमरत कौर ट्विटर पर “चौकीदार” अभियान में शामिल नहीं हुई थीं।

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भाजपा से रुख़सत हुए बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा का फिल्मी दुनिया से लेकर राजनीति में ऐसा रहा है सफर attacknews.in

नयी दिल्ली, 17 मार्च । अपनी दमदार आवाज और अनूठी अदा से अपने विरोधियों एवं प्रतिद्वंद्वियों को अक्सर ‘‘खामोश’’ कराते रहे शत्रुघ्न सिन्हा पिछले करीब पांच साल से भाजपा में अपनी अनदेखी के खिलाफ पार्टी के भीतर और बाहर अपने बागी तेवर और तीखे तंजों से आक्रामक रहे हैं। पार्टी के खिलाफ उनकी इस मुखरता से 2019 लोकसभा चुनाव में ‘‘बिहारी बाबू’’ को टिकट नहीं मिलना लगभग तय है और पार्टी से उनके अलविदा कहने की भी प्रबल संभावना प्रतीत हो रही है।

स्वयं सिन्हा ने भाजपा छोड़ने का हाल में संकेत देते हुए ट्वीट किया, ‘‘ जनता से किए गए वादे अभी पूरे होने बाकी हैं…मोहब्बत करने वाले कम न होंगे, तेरी महफिल में लेकिन हम न होंगे।’’ ट्वीट में उनका संकेत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तरफ है।

पटना साहिब से भाजपा सांसद सिन्हा ने साल 1969 में फिल्म ‘साजन’ से अपने बॉलीवुड करियर की शुरुआत की थी। सिन्हा ऐसे मंझे हुए अभिनेता हैं कि उन्होंने खलनायक और नायक, दोनों के किरदारों में कई ब्लॉकबास्टर फिल्में दीं और उनके ‘अबे खामोश….’ जैसे अनेक संवादों ने बॉलीवुड में धूम मचाई।

सिन्हा की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार वह 1974 में पहली बार लोकनायक जयप्रकाश नारायण के सम्पर्क में आये। जयप्रकाश के व्यक्तित्व ने उन्हें राजनीति के माध्यम से सार्वजनिक जीवन उतरकर जन कल्याण के कार्यों में संलग्न होने के लिए प्रेरित किया।

फिल्मी जीवन की तमाम व्यस्तताओं के बावजूद वह 1980 दशक के मध्य से ही स्टार प्रचारक के रूप में भाजपा की चुनावी रैलियों में उतरने लगे थे। उन्होंने 1992 में नयी दिल्ली लोकसभा की प्रतिष्ठित सीट से पहली बार अपनी चुनावी किस्मत आजमायी थी। यह चुनाव कई मामलों में ऐतिहासिक और पूरे देश की रुचि का केन्द्र बन गया था। इससे पहले भाजपा के कद्दावर नेता लालकृष्ण आडवाणी ने इसी सीट पर अपने समय के सुपरस्टार एवं कांग्रेस प्रत्याशी राजेश खन्ना को परास्त किया था। किंतु चुनाव जीतने के बाद आडवाणी ने नयी दिल्ली सीट छोड़ दी थी क्योंकि वह गांधीनगर लोकसभा सीट से भी निर्वाचित हुए थे।

इसके बाद नयी दिल्ली लोकसभा के लिए हुए उप चुनाव में राजेश खन्ना कांग्रेस के प्रत्याशी और शत्रुघ्न सिन्हा को भाजपा का प्रत्याशी बनाया गया। किंतु सिन्हा की किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया और वह खन्ना के हाथों हार गये। बाद में वह 1996 एवं 2002 में राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए। इसके बाद वह 2009 और 2014 का लोकसभा चुनाव पटना साहिब संसदीय क्षेत्र से जीते।

सिन्हा अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राजग सरकार में स्वास्थ्य एवं जहाजरानी मंत्री रहे और वह मोदी के नेतृत्व वाली सरकार में भी मंत्री बनने की उम्मीद लगाए बैठे थे। लालकृष्ण आडवाणी के करीबी माने जाने वाले सिन्हा ने प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना प्रत्यक्ष और परोक्ष ढंग से करने में कोई परहेज नहीं किया।

‘बिहारी बाबू’ कहे जाने वाले सिन्हा कभी बिहार के मुख्यमंत्री बनने का सपना भी देखते थे लेकिन बिहार में उनकी जगह सुशील कुमार मोदी जैसे नेताओं को ज्यादा महत्व दिया गया। भाजपा नेतृत्व ने 2015 में बिहार में चुनाव के दौरान शत्रुघ्न सिन्हा को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया। यहां तक कि उन्हें भाजपा की ओर से स्टार प्रचारक तक नहीं बनाया गया।

सिन्हा, पूर्व केन्द्रीय मंत्रियों यशवंत सिन्हा और अरूण शौरी के साथ मोदी सरकार के मुखर विरोधी रहे। किंतु भाजपा उनके खिलाफ कोई कार्रवाई करने में ‘‘खामोश’’ ही रही है। जाहिर है कि पार्टी उन्हें निष्कासित करने जैसा कोई कदम उठाकर उन्हें ‘‘राजनीतिक शहीद’’ नहीं बनाना चाहती।

ऐसी अटकलें हैं कि राजद और कांग्रेस नीत विपक्षी महागठबंधन सिन्हा को पटना साहिब लोकसभा सीट से मैदान में उतार सकता है।

वर्ष 1993 के मुंबई बम धमाकों के दोषी याकूब मेमन की फांसी की सजा के मुद्दे पर भी शॉटगन ने पार्टी लाइन से इतर जाकर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भेजी गई एक दया याचिका पर हस्ताक्षर किए थे। उन्होंने बालाकोट आतंकी शिविर पर भारत के हवाई हमले को लेकर सरकार से ब्योरा जारी करने की मांग की थी और बड़ी संख्या में आतंकियों के मारे जाने के दावे को ‘‘तमाशा’’ करार दिया था।

शॉटगन हाल ही में तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी की विपक्षी दलों की महा-रैली में शामिल हुए थे। वहां उन्होंने राम मंदिर के मुद्दे पर पत्रकारों के सवाल के जवाब में कहा था , ‘‘खामोश।’’

सिन्हा ने 2016 में अपनी आत्मकथा ‘एनीथिंग बट खामोश’ में अपनी निजी, फिल्मी और राजनीतिक जिन्दगी से जुड़े कई राज खोले थे। उन्होंने इस किताब में कहा कि अमिताभ बच्चन उनकी शोहरत से परेशान थे। उनकी वजह से उन्हें कई फिल्में छोड़नी पड़ीं। सिन्हा ने कहा कि अभिनेत्री जीनत अमान और रेखा की वजह से उनके तथा बच्चन के बीच दरार बढ़ी।

किताब में उन्होंने 1992 में नयी दिल्ली लोकसभा सीट पर राजेश खन्ना से उपचुनाव हार जाने को बेहद निराशाजनक क्षणों में से एक बताया था।

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