छठें लोकसभा चुनाव 1977 में आपातकाल की विध्वंसकता ने कांग्रेस के 3 दशक के शासन का सूपड़ा साफ किया और कई नये चेहरों को स्थापित किया attacknews.in

नयी दिल्ली, 26 मार्च । वर्ष 1977 में हुये छठे लोकसभा चुनाव के पहले लगाये गये आपातकाल की ‘नाराजगी’ से उपजी ‘जनता लहर’ ने न केवल कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया बल्कि तीन दशक से देश पर शासन कर रही पार्टी को सत्ता से बेदखल कर दिया।

पच्चीस जून 1975 से 21 मार्च 1977 के बीच आपातकाल के दौरान नागरिक अधिकारों को समाप्त किये जाने के खिलाफ लोकनायक जय प्रकाश नारायण की अगुआई में उठे तूफान में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी जड़ से उखाड़ दिया और कांग्रेस को आम चुनाव में पहली बार शिकस्त का सामना करना पड़ा।

इस चुनाव में कुछ ऐसे नेताओं का उदय हुआ जिन्होंनें न केवल राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित किया बल्कि सत्ता के शिखर पर भी पहुंचे । इस चुनाव के बाद जनता पार्टी बनी लेकिन उसके नेता तकनीकी रुप से भारतीय लोकदल के टिकट पर चुनाव जीते थे।

गांधी नेहरु परिवार की सीट मानी जाने वाली उत्तर प्रदेश की रायबरेली में कांग्रेस की दिग्गज नेता श्रीमती गांधी को समाजवादी नेता राजनारायण ने पहली बार धूल चटा दी ।

लोकदल के टिकट पर चुनाव लड़े राजनारायण एक लाख 77 हजार 719 वोट लाने में कामयाब रहे जबकि श्रीमती गांधी 122512 वोट लाकर चुनाव हार गयी। इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी को अमेठी में हार का सामना करना पड़ा ।

इस चुनाव में सर्वश्री चौधरी चरण सिंह, लालू प्रसाद, चन्द्रशेखर, राम विलास पासवान, मधुलिमिये, जार्ज फर्नाडीस, कर्पूरी ठाकुर, मुरली मनोहर जोशी, राममूर्ति, जनेश्वर मिश्र जैसे नेता चुनाव जीत गये । चौकाने वाली बात यह रही कि भविष्य की राजनीति को पहचानने में दक्ष माने जाने वाले जगजीवन राम और हेमवती नंदन बहुगुणा ने लोकदल के टिकट पर चुनाव लड़ा और विजयी हुये लेकिन कांग्रेस उम्मीदवार के रुप में इलाहाबाद से चुनाव लड़े विश्वनाथ प्रताप सिंह हार गये ।

लोकसभा की 542 सीटों के लिए हुये इस चुनाव में 426 सीट सामान्य श्रेणी की थीं जबकि 78 अनुसूचित जाति और 38 अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित थीं। कुल 32 करोड़ 11 लाख से अधिक मतदाता थे जिनमें से 60.49 प्रतिशत ने अपने मताधिकार का उपयोग कर 2439 उम्मीदवारों के चुनावी किस्मत का फैसला किया था । राष्ट्रीय पार्टियों में कांग्रेस, कांग्रेस (ओ), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और भारतीय लोकदल शामिल थी। राज्य स्तरीय पार्टियों में अन्नाद्रमुक, द्रमुक, फारवर्ड ब्लाक, केरल कांग्रेस, महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी, मुस्लिम लीग, पीजेंट एंड वर्क्स पार्टी, अकाली दल समेत कुल 12 पार्टियां थी, इसके अलावा 14 निबंधित पार्टियां भी थी ।

कांग्रेस 492 सीट पर चुनाव लड़ी थी जबकि कांग्रेस (ओ) 19, भाकपा 91, माकपा 53 और लोकदल ने 405 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किये थे। इस चुनाव में राष्ट्रीय पार्टियों के 1060 और राज्य स्तरीय पार्टियों के 85 प्रत्याशियों ने चुनाव लड़े थे। अपने बलबूते पर 1234 निर्दलीय उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था।

लोकदल को कुल 41.32 प्रतिशत वोट मिले थे और उसके सार्वाधिक 295 उम्मीदवार विजयी हुये थे। कांग्रेस को 34.52 प्रतिशत वोट मिले और उसके 154 उम्मीदवार चुनाव जीते थे । भाकपा का पहले की तुलना में वोट प्रतिशत कम हुआ था और उसके सात प्रत्याशी चुनाव जीतने में सफल हुये थे। माकपा की स्थिति वोट प्रतिशत के हिसाब से पहले से सुदृढ हुयी थी और उसे 4.29 प्रतिशत वोट मिले तथा उसके 22 उम्मीदवार लोकसभा पहुंचने में कामयाब रहे थे। कांग्रेस (ओ) को 1.72 प्रतिशत मत मिला और उसे तीन सीटों पर कामयाबी मिली। राज्य स्तरीय पार्टियों को 8.80 प्रतिशत वोट मिले और वे 49 स्थानों पर निर्वाचित हुये जबकि निर्दलीय ने 5.50 प्रतिशत वोट लाकर नौ सीटों पर कब्जा कर लिया था।

सत्ता की चाबी संभालने वाली लोकदल को उतर प्रदेश में 85, बिहार में 52, गुजरात में 16, हरियाणा में दस, आन्ध्र प्रदेश में एक, असम में तीन, हिमाचल प्रदेश में चार, कर्नाटक में दो, मध्य प्रदेश में 37, महाराष्ट्र में 19 ओडिशा में 15, पंजाब में तीन, राजस्थान में 24, पश्चिम बंगाल में 15, दिल्ली में सात, चंडीगढ और त्रिपुरा में एक – एक सीट मिली थी ।

पहली बार विपक्ष में आयी कांग्रेस को आन्ध्र प्रदेश में 41, असम में दस, गुजरात में दस, कर्नाटक में 26, केरल में 11, महाराष्ट्र में 20, तमिलनाडु में 14, ओडिशा में चार, पश्चिम बंगाल में तीन राजस्थान में एक तथा कुछ अन्य राज्यों को मिलाकर कुल 154 सीटें मिली थी। भाकपा केवल दो राज्यों केरल और तमिलनाडु में सिमट गयी थी उसे केरल में चार और तमिलनाडु में तीन सीटें मिली थी। माकपा को पश्चिम बंगाल में 17, महाराष्ट्र में तीन, तथा ओडिशा और पंजाब में एक – एक सीट मिली थी ।

द्रमुक को तमिलनाडु में दो, फारवर्ड ब्लाक को पश्चिम बंगाल में तीन, अकाली दल को पंजाब में नौ, पीजेंट एंड वर्क्स पार्टी को महाराष्ट्र में पांच तथा आरएसपी को केरल में एक तथा पश्चिम बंगाल में तीन सीटें मिली थी। निर्दलीय उम्मीदवारों को असम, बिहार, अरुणाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, मिजोरम और मेघालय में सफलता मिली थी ।

लोकदल के टिकट पर जगजीवन राम ने सासाराम (सु) सीट पर कांग्रेस के मुंगेरी लाल को भारी मतों के अंतर से पराजित किया था । श्री राम को 327995 और श्री लाल को 84185 वोट मिले थे। लोकदल के टिकट पर ही उत्तर प्रदेश के बागपत से लड़े चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस के राम चन्द्र विकल को हराया था। श्री सिंह को दो लाख 86 हजार से अधिक तथा श्री विकल को एक लाख 64 हजार से अधिक वोट मिले थे ।

लोकदल के ही टिकट पर उत्तर प्रदेश के बलिया लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े चन्द्रशेखर ने कांग्रेस के चन्द्रिका प्रसाद को डेढ लाख लाख से अधिक मतों के अंतर से पराजित किया था। श्री चन्द्रशेखर को 262641 और श्री प्रसाद को 95423 वोट मिले थे। बिहार की छपरा लोकसभा सीट से लोकदल के टिकट पर लालू प्रसाद यादव ने एकतरफा जीत हासिल किया था। श्री यादव को कुल 415409 मत मिले थे जबकि उनके खिलाफ चुनाव लड़े कांग्रेस के राम शेखर प्रसाद सिंह को 41609 वोट ही मिल पाए थे।

लोकदल के ही टिकट पर राम विलास पासवान ने बिहार की हाजीपुर सीट पर कांग्रेस के वालेश्वर राम को भारी मतो से हराया था। श्री पासवान को 469007 तथा श्री राम को 44462 वोट मिले थे। लोकदल के प्रत्याशी के रुप में मधु लिमिये ने बिहार की बांका सीट पर कांग्रेस के चन्द्रशेखर सिंह को पराजित किया था। श्री मधु लिमिये को दो लाख 39 हजार से अधिक तथा श्री सिंह को 78 हजार से अधिक वोट मिले थे। लोकदल के टिकट पर जार्ज फर्नाडीस ने बिहार के मुजफ्फरपुर क्षेत्र में कांग्रेस के नीतिश्वर प्रसाद सिंह तीन लाख से अधिक मतों के अंतर से हराया था ।

लोकदल के ही टिकट पर हेमवती नंदन बहुगुणा ने लखनऊ, मुरली मनोहर जोशी ने अल्मोड़ा, राममूर्ति ने बरेली, नानाजी देशमुख ने बलरामपुर, कमला बहुगुणा ने फूलपुर और जनेश्वर मिश्रा ने इलाहाबाद में अपने अपने प्रतिद्वंद्वियों को पराजित किया था। कांग्रेस के टिकट पर सौगत राय पश्चिम बंगाल के बैरकपुर से चुनाव जीत गये थे लेकिन इसी पार्टी के जानकी वल्लभ पटनायक उड़ीसा में कटक सीट पर हार गये थे ।

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” पीएम नरेन्द्र मोदी ” फिल्म पर रोक लगाने के लिए विपक्ष पहुंचा चुनाव आयोग attacknews.in

नयी दिल्ली, 25 मार्च । कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर बनी फिल्म ‘पीएम नरेन्द्र मोदी’ को सिनेमा घरों में दिखाये जाने की तिथि पर सोमवार को आपत्ति जतायी और इसे चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करार देते हुए चुनाव आयोग से तारीख बदलने की मांग की।

कांग्रेस ने आरोप लगाया कि राजनीतिक फायदा उठाने के लिए इस फिल्म को लोकसभा चुनाव से पहले पांच अप्रैल काे सिनेमा घरों में दिखाये जाने की घोषणा की गयी है। यह सरासर चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन है।

कांग्रेस के विरिष्ठ नेता कपिल सिब्ब्ल, अभिषेक मनु सिंघवी और रणदीप सिंह सूरजेवाला ने चुनाव अायोग के अधिकारियों से मुलाकात करके इस फिल्म के प्रदर्शित किये जाने की तारीख को बदलने की मांग की।

इससे पहले द्रविड मुनेत्र कषगम और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी भी आचार संहिता का उल्लंघन करार देते हुए चुनाव आयोग से फिल्म की रिलीज की तिथि को बदलने की मांग कर चुकी है।

कांग्रेस नेताआें ने कहा कि चुनाव की तारीखों की घोषणा के बाद इस फिल्म का प्रदर्शन आचार संहिता का सीधा उल्लघंन है।

श्री सिब्बल ने चुनाव आयोग के अधिकारियों से मुलाकात के बाद कहा,“हमने चुनाव आयोग को बताया कि नरेंद्र मोदी पर बनी फिल्म चुनाव से ठीक पहले रिलीज हो रही है, जिसका उद्देश्य राजनीतिक है। इस फिल्म के तीन निर्माता और अभिनेता भाजपा के हैं। फिल्म के डायरेक्टर वायब्रेंट गुजरात में शामिल हैं। यह पूरी तरह मानदंडों का उल्लंघन है।”

इस फिल्म में श्री मोदी का किरदार अभिनेता विवेक ओबरॉय निभा रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि सात चरणों में होने वाला लोकसभा चुनाव 13 अप्रैल से शुरु हो रहा है।

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अब राहुल गांधी तय करेंगें अरविंद केजरीवाल से हाथ मिलाने का, दिल्ली की सीटों पर आप से गठबंधन पर राज्य के नेताओं ने पल्ला झाड़ा attacknews.in

नयी दिल्ली, 25 मार्च । दिल्ली में आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन को लेकर लंबे समय से चली आ रही ऊहापोह की स्थिति के बीच पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित तथा दिल्ली कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने सोमवार को पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात की और तालमेल का फैसला उन पर छोड़ दिया।

गांधी से मुलाकात के दौरान आप के साथ तालमेल को लेकर एक बार फिर दो राय सामने आई।

सूत्रों के मुताबिक, प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष शीला दीक्षित तथा तीनों कार्यकारी अध्यक्षों हारुन यूसुफ, राजेश लिलोठिया और देवेंद्र यादव तथा कुछ अन्य नेताओं ने अरविंद केजरीवाल की पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करने के रुख को दोहराया तो पूर्व अध्यक्ष अजय माकन, सुभाष चोपड़ा, ताजदार बाबर और अरविंद सिंह लवली ने गठबंधन की पैरवी की।

बैठक में शामिल एक नेता ने बताया कि मुलाकात के दौरान कांग्रेस के दिल्ली प्रभारी पीसी चाको ने प्रदेश में पार्टी के 12 जिला अध्यक्षों, वरिष्ठ नेताओं और तीन नगर निगमों में पार्टी के पार्षदों द्वारा हस्ताक्षरित पत्र भी गांधी को सौंपे जिनमें गठबंधन की पैरवी की गई है।

सूत्रों का कहना है कि गठबंधन के बारे में फैसला राहुल गांधी पर छोड़ दिया गया है।

आप दिल्ली में कांग्रेस के गठबंधन की पैरवी करती आ रही है, लेकिन कांग्रेस ने अब तक अपना रुख साफ नहीं किया है।

बहरहाल, कांग्रेस का स्पष्ट रुख नहीं होने पर आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की सभी सात सीटों पर उम्मीदवार घोषित कर दिया है।

गौरतलब है कि दिल्ली की सभी सातों सीटों पर एक चरण में मतदान होगा। दिल्ली में छठे चरण में 12 मई को मतदान होगा। वोटों की गिनती 23 मई को होगी।

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हेमामालिनी का ऐलान: यह मेरा आखिरी चुनाव हैं, मैं इसके बाद कोई चुनाव नहीं लडूंगी attacknews.in

मथुरा, 25 मार्च । मथुरा से भाजपा उम्मीदवार हेमा मालिनी ने सोमवार को जिला निर्वाचन अधिकारी एवं जिलाधिकारी के समक्ष नामांकन दाखिल किया।

उन्होंने ऐलान कर दिया है कि वे अगली बार स्वयं चुनाव न लड़कर युवाओं को आगे आने का मौका देंगी तथा खुद संगठन के कार्य करना पसंद करेंगी।

चुनाव के संयोजन एवं पूर्व जिलाध्यक्ष डॉ. डीपी गोयल एवं चार अन्य प्रस्तावक व समर्थकों के साथ नामांकन दाखिल करने के बाद उन्होंने कहा, ‘‘यह मेरा आखिरी चुनाव है। मैं इसके बाद कोई चुनाव नहीं लड़ूंगी और इसकी जगह संगठन में रहकर जनता की भलाई के कार्य करना चाहूंगी।’’

उन्होंने कहा, ‘‘बरसों से मेरा सपना था कि मैं मथुरा के लिए कुछ कर सकूं। इसलिए, पिछले पांच वर्षों में काफी-कुछ करने की कोशिश की। लेकिन, अभी बहुत कुछ करना रह गया है। उम्मीद करती हूं कि यहां की जनता मुझे वह सब भी करने का मौका देगी। मैं इस नगरी को कृष्ण काल के समान ही भव्य एवं दिव्य नगरी बनाना चाहती हूं।’

पर्चा भरने से पहले उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ वृन्दावन स्थित बांकेबिहारी मंदिर में पूजा-अर्चना की। ठाकुरजी का आशीर्वाद लेकर हेमा मालिनी ने कलेक्ट्रेट पहुंच कर अपना नामांकन दाखिल किया।

उल्लेखनीय है कि हेमा मालिनी ने 16वीं लोकसभा के लिए 2014 में हुए चुनाव में तत्कालीन सांसद जयंत चैधरी को तीन लाख 30 हजार से भी अधिक मतों से शिकस्त देकर यह सीट राष्ट्रीय लोकदल से हासिल की थी।

उनके खिलाफ यहां से कांग्रेस ने महेश पाठक को उम्मीदवार बनाया है। सपा-बसपा के गठबंधन समर्थित राष्ट्रीय लोकदल ने पूर्व ब्लॉक प्रमुख नरेंद्र सिंह को प्रत्याशी बनाया है।

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राजस्थान में कांग्रेस पार्टी अब तक तय नहीं कर पाई प्रत्याशी और भाजपा 9 सीटों पर गहन चिंतन में, अब तक के इतिहास में 25 सीटों पर 1989 के बाद भाजपा का हैं दबदबा attacknews.in

जयपुर, 25 मार्च । राजस्थान में लोकसभा चुनाव उम्मीदवारों को लेकर कांग्रेस में अभी असमंजस बना हुआ है तथा भारतीय जनता पार्टी में भी नौ सीटों को लेकर आमराय नहीं बन पाई है। वैसे देखा जाए तो राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पिछले आठ लोकसभा चुनावों में अपना राजनीतिक दबदबा कायम किया हुआ है।

भाजपा ने 25 में से 16 सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित कर दिये हैं, जबकि कांग्रेस का एक भी उम्मीदवार सामने नहीं आया है। भाजपा में नौ सीटों में नागौर, भरतपुर, दौसा, बाड़मेर, अलवर, टोंक, सवाई माधोपुर, बांसवाड़ा और राजसमंद में उम्मीदवारों को लेकर दो राय बनी हुई है।

नागौर में केंद्रीय मंत्री सीआर चौधरी तथा बाड़मेर से सांसद कर्नल सोनाराम, भरतपुर से बहादुर सिंह कोली, टोंक सवाई माधोपुर से सुखबीर सिंह जौनपुरिया, बांसवाड़ा से मानशंकर निनामा को लेकर कार्यकर्ताओं में विरोध है। बाड़मेर में सांसद कर्नल सोनाराम ने विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इससे पहले कर्नल सोनाराम कांग्रेस से पाला बदलकर भाजपा में आये थे और पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह का टिकट काटकर उन्हें उम्मीदवार बनाया गया था। इसके बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री के पुत्र मानवेंद्र सिंह भी भाजपा के विधायक होते हुए पार्टी में लड़ाई लड़ते रहे और बाद में कांग्रेस में शामिल हो गये। कांग्रेस अब उन्हें बाड़मेर से चुनाव लड़ाना चाहती है।

भरतपुर में भाजपा कोली समाज के लोगों को ही लोकसभा चुनाव में उतारती रही है, लेकिन इस बार सांसद बहादुर सिंह कोली के प्रति बढ़ती नाराजगी के कारण उन्हें शायद ही टिकट मिल पाये। भाजपा को नया उम्मीदवार तलाश करने में परेशानी आ रही है। कांग्रेस यहां से जाटव समाज के लोगों को टिकट देती है, लेकिन इस बार पार्टी में भी सही उम्मीदवार तलाशना मुश्किल हो रहा है। किसी प्रशासनिक अधिकारी को मौका देने की भी कांग्रेस में चर्चा है।

राजसमंद में सांसद हरिओम राठौड़ के दुबारा चुनाव मैदान में नहीं उतरने की घोषणा के बाद भाजपा की पूर्व विधायक दिया कुमारी तथा विधायक किरण माहेश्वरी की दावेदारी पर फैसला अभी नहीं हो पाया है।

अलवर में सांसद चांदनाथ की मृत्यु के बाद हुए उपचुनाव में भाजपा की हार से यह सीट भी मुश्किल में पड़ गई है। उपचुनाव जीतने वाले करण सिंह के स्थान पर कांग्रेस पूर्व मंत्री जितेंद्र सिंह को चुनाव लड़ायेगी जिनके सामने बाबा चांदनाथ के उत्तराधिकारी बाबा बालकनाथ का नाम भी प्रमुखता से लिया जा रहा है।

दौसा में सांसद हरीश मीणा के पाला बदलकर कांग्रेस में शामिल होने तथा विधायक निवाचित होने के बाद भाजपा में इस सीट पर उम्मीदवार की तलाश मुश्किल हो रही है। भाजपा के लिये विद्रोही बने डा0 किरोड़ी लाल मीणा की घर वापसी भी विधानसभा चुनाव में फायदा नहीं पहुंचा पाई तथा पार्टी डा0 मीणा के विरोधी पूर्व विधायक ओम प्रकाश हुडला की पत्नी पर दांव खेलने का विचार कर रही है। भाजपा नेता इन नौ सीटों का पैनल बनाकर राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से मिलने दिल्ली गये हुए हैं तथा एक दो दिन में इस पर फैसला हो सकता है।

कांग्रेस में विधायक एवं मंत्रियों को लोकसभा चुनाव में उतारने को लेकर दो राय बनी हुई है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांग्रेस समर्थित निर्दलीय विधायकों पर दांव खेलना चाहती हैं ताकि विधायक मंत्रियों के चुनाव जीतने के बाद सरकार पर बहुमत का खतरा नहीं आये। जयपुर शहर से पार्टी के मुख्य सचेतक महेश जोशी तथा ग्रामीण से मंत्री लालचंद कटारिया को मजबूत उम्मीदवार माना जा रहा है। कांग्रेस पार्टी जोधपुर से मुख्यमंत्री के पुत्र वैभव गहलोत को उम्मीदवार बना सकती है। अन्य सीटों पर भी उम्मीदवारों को लेकर दो तीन नाम चल रहे हैं लेकिन इन पर फैसला कल राहुल गांधी के जयपुर, बूंदी तथा सूरतगढ़ रैली के बाद किया जा सकता है।

ऐसा हैं लोकसभा चुनाव में राजस्थान में राज करने वाली पार्टियों का इतिहास;

राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पिछले आठ लोकसभा चुनावों में अपना राजनीतिक दबदबा कायम किया हुआ है।

राज्य में अब तक हुए सोलह आम चुनावों में से दस में कांग्रेस का दबदबा रहा है लेकिन 1989 के नौवीं लोकसभा चुनाव में भाजपा ने संयुक्त विपक्ष के साथ तेरह सीटें जीतकर पहली बार अपना दबदबा दिखाया था। इस चुनाव में जनता दल ने ग्यारह तथा एक सीट मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के खाते में गई जबकि इससे पहले आजादी के बाद 1951 से 1984 तक हुए आठ लोकसभा चुनावों में सात में दबदबा रखने वाली कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला।

भाजपा ने 1999 में तेरहवीं लोकसभा के चुनाव में राज्य की पच्चीस सीटों में से सोलह सीटें जीतकर अपना राजनीतिक प्रभुत्व कायम किया जबकि कांग्रेस नौ सीटें ही जीत पाई। वर्ष 2004 के चौदहवीं लोकसभा चुनाव में भी उसने अच्छा प्रदर्शन किया और उसके 21 उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की। इस चुनाव में कांग्रेस चार सीटों पर ही सिमट कर रह गई।

गत 2014 के सोलहवीं लोकसभा के चुनाव में तो भाजपा ने मोदी लहर के कारण सभी पच्चीस सीटें जीतकर कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया। कांग्रेस ने 1984 के लोकसभा चुनाव में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति के चलते सभी पच्चीस सीटों पर जीत दर्ज की थी।

भाजपा ने 1991 के लोकसभा चुनाव में भी बारह सीटें जीती। इस चुनाव में कांग्रेस ने उससे एक सीट ज्यादा जीती थी। इसके बाद 1996 के ग्यारहवीं लोकसभा के चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों प्रमुख दलों ने बराबर 12-12 सीटें जीती जबकि एक सीट अखिल भारतीय इंदिरा कांग्रेस (तिवाड़ी) ने जीती। इस दौरान सिर्फ 2009 के चुनाव में कांग्रेस का पलड़ा भारी रहा । उसने बीस सीटें जीती,भाजपा केवल चार सीट ही जीत पाई।

पिछले आठ लोकसभा चुनाव में भाजपा ने चार में अपना दबादबा बनाया जबकि एक में वह अपनी प्रतिद्वंद्वी पार्टी कांग्रेस के बराबर रही जबकि कांग्रेस केवल तीन चुनावों में ही अपना दबादबा रख सकी। इन आठ चुनावों में भाजपा का सबसे ज्यादा दबदबा पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के निर्वाचन जिले झालावाड़ में रहा जहां 1989 से अब तक हुए सभी चुनावों में भाजपा ने जीत दर्ज की। श्रीमती राजे ने 1989 से 1999 तक लगातार पांच बार चुनाव जीतकर अपना राजनीतिक प्रभुत्व जमाया। इसके बाद वह राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी। वर्ष 2004 के चुनाव में भाजपा ने श्रीमती राजे के पुत्र दुष्यंत सिंह को चुनाव मैदान में उतारा और वह चुनाव जीते। इसके बाद वर्ष 2009 में बनी झालावाड़ बारां सीट पर भी श्री दुष्यंत सिंह लगातार दोनों चुनाव जीतकर भाजपा का दबदबा बनाया रखा।
इसी तरह भाजपा कोटा में छह बार चुनाव जीती। वैद्ध दाउ दयाल जोशी ने 1989 से लगातार तीन बार चुनाव जीता। इसके बाद 1999 में रघुवीर सिंह कौशल ने लगातार दो बार तथा पिछले लोकसभा चुनाव में ओम बिड़ला चुनाव जीते। पाली संसदीय क्षेत्र में 1989 से गुमान मल लोढा ने लगातार तीन बार विजय हासिल की। वर्ष 1999 में पुष्प जैन ने लगातार दो बार तथा पिछले चुनाव में पी पी चौधरी ने चुनाव जीता। इस दौरान अजमेर से रासा सिंह रावत ने पांच बार चुनाव जीतकर भाजपा का दबदबा कायम किया। उन्होंने 1989 से लगातार तीन बार तथा फिर 1999 एवं 2004 में जीत हासिल की। पिछला चुनाव सांवरमल जाट ने जीता था हालांकि उनके निधन के बाद हुआ उपचुनाव कांग्रेस ने जीता। या।

इसके अलावा इस दौरान भाजपा ने उदयपुर, भीलवाड़ा, जालोर चार, टोंक एवं सवाईमाधोपुर में चार बार चुनाव जीतकर अपना राजनीतिक प्रभुत्व जमाया। इस दौरान भाजपा झुंझुनूं में केवल एक बार पिछला लोकसभा चुनाव ही जीत पाई जहां पार्टी की उम्मदीवार संतोष अहलावत ने चुनाव जीता। हालांकि इस बार उन्हें भाजपा ने टिकट नहीं दिया है। है। इसी तरह नागौर संसदीय क्षेत्र में भाजपा वर्ष 2004 एवं 2014 का चुनाव ही जीत सकी।

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छत्तीसगढ़ राज्य बनने के लिए रायगढ़ संसदीय सीट पर कांग्रेस पार्टी का खाता तक नहीं खुला और भाजपा के लिए इस बार अनुकूल परिस्थितियां नहीं है attacknews.in

रायगढ़ 24  मार्च । छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों में एक महत्वपूर्ण सीट रायगढ़ से स्थानीय जिले के नेताओं की बजाय पड़ोसी जिलों के नेता संसद में प्रतिनिधत्व करते रहे हैं और देखना है कि यह सिलसिला इस बार टूटता है या नहीं।

पिछले 20 साल से रायगढ़ सीट पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का कमल खिला रहा है । पड़ोसी जिले जशपुर के श्री विष्णुदेव साय (वर्तमान में केंद्रीय राज्य मंत्री) ने लगातार चार बार यहां से चुनाव जीत चुके हैं । आम जनमानस के मन-मस्तिष्क में यह प्रश्न कौंध रहा कि पांच महीने पहले संपन्न राज्य विधानसभा चुनाव में रायगढ़ लोकसभा की सातों विधानसभा सीटें कांग्रेस ने अपने खाते में डाली है और कांग्रेस के पक्ष में बने माहौल में श्री साय क्या अपना जलवा बरकरार रख पायेंगे ।

राजा-महाराजाओं की रियासत रहे रायगढ़ के राजपरिवार के सदस्यों की महत्वपूर्ण राजनीतिक भागीदारी भी रही है। सारंगढ़ के राजा नरेश चंद्र कुछ दिनों तक अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे और उनकी पुत्री पुष्पा देवी सिंह ने कांग्रेस की ओर से तीन बार रायगढ़ का लोकसभा में प्रतिनिधित्व किया था। राजपरिवार की राजनीतिक भागीदारी में जशपुर के राजा दिलीप सिंह जूदेव के परिवार का भी नाम उल्लेखनीय है । दिवंगत नेता श्री जूदेव के भतीजे रणविजय सिंह जूदेव वर्तमान में भाजपा के राज्यसभा सदस्य हैं ।

छत्तीसगढ़ की संस्कृतिधानी माने जाने वाला रायगढ़ 1952 से 1961 तक लोकसभा क्षेत्र के रूप में अस्तित्व में नहीं था । वर्ष 1962 में यहां पहला आम चुनाव हुआ , जिसमें अखिल भारतीय रामराज्य परिषद के उम्मीदवार विजयभूषण सिंहदेव निर्वाचित हुए। इसके बाद 1967 के आम चुनाव में कांग्रेस ने अपनी जड़ें जमाई और सुश्री रजनी देवी ने चुनाव जीता। श्री उम्मेद सिंह राठिया ने 1971 का चुनाव जीतकर कांग्रेस का कब्जा बरकरार रखा । आपातकाल विरोधी लहर के दौरान जनता पार्टी का अभ्युदय हुआ और 1977 के आम चुनाव में इसके उम्मीदवार नरहरि प्रसाद ने चुनाव जीत लिया।

अस्सी और नब्बे के दशक में हुए चुनाव में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दल एक के बाद एक जीत-हार का स्वाद चखते रहे । वर्ष 1980 में कांग्रेस की पुष्पा देवी सिंह और 1989 में भाजपा के नंदकुमार साय ने चुनाव जीता। सुश्री पुष्पा और श्री साय ने क्रमशः 1991 और 1996 के आम चुनाव में जीत हासिल की।

वर्ष 1998 में हुए आम चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार अजीत जोगी ने रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र में सेंध लगाई और चुनाव जीता। इसके एक साल बाद ही फिर चुनाव हुए और तब भाजपा ने विष्णुदेव साय को चुनाव मैदान में उतारा । श्री साय ने इस चुनाव में यह सीट एक बार फिर भाजपा की झोली में डाल दी। पृथक छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद 2004 , 2009 और 2014 में तीन आम चुनाव हुए और इसके परिणाम भी भाजपा के ही पक्ष में गये ।

ऐतिहासिक और पर्यटन के दृष्टिकोण से रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र में जशपुर और पत्थलगांव का एक अहम स्थान है। जशपुर जिले के कुनकुरी में ईसाई धर्मावलंबियों का एशिया का दूसरा सबसे बड़ा चर्च हैं । इसके साथ ही यहां सुरम्य पहाड़ियों और घाटियों के बीच स्थित पंंडारापाठा को छत्तीसगढ़ का मसूरी भी कहा जाता है। पत्थलगांव एक बहुत बड़ा टमाटर उत्पादक क्षेत्र है , जहां से देश के विभिन्न हिस्सों में टमाटर की आपूर्ति की जाती है। इसके बावजूद यहां के टमाटर उत्पादक किसानों को फसल का समुचित मूल्य न मिल पाने के कारण उनकी माली हालत दयनीय है।

जिंदल स्ट्रीप आयरन प्लांट तथा उद्योगों की वजह से रायगढ़ को औद्योगिक नगरी का भी दर्जा है । छत्तीसगढ़ के कोरबा से रायगढ़ होते हुए झारखंड के रांची तक रेलमार्ग क्षेत्र के वाशिंदों की प्रमुख मांग है । प्रस्तावित रेलमार्ग के लिए कई बार सर्वे के बाद भी इस दिशा में अब तक कोई पहल नहीं हुयी है।

रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र में सात विधानसभा सीटें है जिनमें पांच सुरक्षित और दो सामान्य सीट है। विधानसभा सीटों में जशपुर, पत्थलगांव, लैलूंगा, सारंगढ़ और धर्मजयगढ़ (सभी सुरक्षित) तथा रायगढ़ और खरसिया(दोनों सामान्य) शामिल है। इन सभी सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है ।

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पंजाब के गुरदासपुर संसदीय सीट से कांग्रेस पार्टी का गढ़ ढहाने वाले फिल्म अभिनेता विनोद खन्ना के बिना भाजपा के लिए आसान जीत नहीं है यहाँ attacknews.in

गुरदासपुर, 24 मार्च । कभी कांग्रेस के लिए सुरक्षित सीट समझी जाने वाली पंजाब की गुरदासपुर में फिल्म अभिनेता विनोद खन्ना का ऐसा जादू चला था कि उन्होंने न केवल कांग्रेस का गढ़ ढहा दिया बल्कि चार बार यहां से भारतीय जनता पार्टी को जीत दिलायी।

पाकिस्तान सीमा से लगी इस सीट पर 1957 से 1996 तक कांग्रेस का दबदबा रहा । केवल 1977 में आपातकाल के कारण कांग्रेस विरोधी लहर में जनता पार्टी के यज्ञदत्त शर्मा यहां से लोकसभा चुनाव जीते थे । वर्ष 1998 के चुनाव में भाजपा की टिकट पर मैदान में उतरे अभिनेता विनोद खन्ना ने कांग्रेस की दिग्गज नेता और पांच बार सांसद रहीं सुखबंस कौर भिंडर को पराजित कर कांग्रेस से यह सीट छीनी ।

यह वो समय था जब आमतौर पर फिल्मी हस्तियों को राजनीति में गंभीरता से नहीं लिया जाता था । ऐसे समय में श्री खन्ना राजनीति में अपने को स्थापित करने में कामयाब रहे।श्री खन्ना ने 1999 और 2004 में भी यहां से जीत दर्ज की। उन्हें 2009 के लोकसभा चुनाव में स्थानीय नेता एवं पूर्व मंत्री कांग्रेस के प्रताप सिंह बाजवा के हाथों हार का सामना करना पड़ा लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में विनोद खन्ना ने श्री बाजवा को पटखनी देकर यह सीट फिर भाजपा की झोली में डाल दी । वर्ष 2017 में श्री खन्ना का कैंसर से निधन हो गया ,जिससे इस सीट पर हुये उपचुनाव में राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस ने अपनी परंपरागत सीट भाजपा से छीनी ।

दिलचस्प बात है कि इस सीट पर केवल दो बार स्थानीय उम्मीदवार ने जीत हासिल की ,बाकी सभी चुनावों में कांग्रेस या भाजपा को बाहरी उम्मीदवार पर दांव खेलना पड़ा । कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष सुनील जाखड़ भी बाहरी उम्मीदवार हैं तथा उन्हाेंने भाजपा के बाहरी उम्मीदवार कारोबारी स्वर्ण सलारिया को उपचुनाव में हराया ।

इस बार भी कांग्रेस अपनी सीट को बरकरार रखने के लिये पूरा जोर लगायेगी । वह श्री जाखड़ पर इस बार भी दांव लगाने की तैयारी में है । पंजाब में चुनाव अंतिम चरण में होने के कारण कांग्रेेस को प्रचार के लिये खूब समय मिल रहा है । भाजपा को इस सीट पर उम्मीदवार की तलाश है । श्री खन्ना की पत्नी कविता खन्ना ,उनके पुत्र अभिनेता अक्षय खन्ना सहित कई सेलेब्रिटी के नाम की चर्चा है ।

इस क्षेत्र में नौ विधानसभा क्षेत्र पठानकोट ,बटाला और गुरदासपुर सुजानपुर ,डेरा बाबा नानक , भोआ , फतेहगढ़ चूडियां ,दीनानगर ,कादियां पड़तें हैं । इनमें से सुजानपुर सीट भाजपा तथा बटाला भाजपा की सहयोगी अकाली दल के पास है और शेष सात विधानसभा सीटें कांग्रेस के पास हैं ।

सीमा से लगी इस सीट पर समस्याओं का अंबार हैं। सड़कें ,बेरोजगारी , शिक्षा ,स्वास्थ्य से लेकर बुनियादी सुविधायें नदारद हैं । रावी नदी के पार के कुछ गांव ऐसे हैं जिनका बरसात के दिनों में शेष राज्य से संपर्क टूट जाता है । लोगों को हर काम के लिये नाव से नदी पार करके जाना पड़ता है । बरसात के दिनों में अस्थायी पंटून पुल से काम चलाना होता है तथा कई बार बाढ़ के समय यह पुल बह जाता है तो लोगों को मुसीबत का सामना करना पड़ता हैं। इस क्षेत्र में इंडस्ट्री लगभग बंद हो चुकी है।

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1971 में पांचवें लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के टुकड़े होने के बाद भी इंदिरा गांधी नेता बनकर उभरी और क्षेत्रीय पार्टियों का उदय हुआ attacknews.in

नयी दिल्ली 24 मार्च । वर्ष 1971 में हुये पांचवें लोकसभा चुनाव के पहले हुये कांग्रेस में विभाजन और कांग्रेस (ओ) के गठन के साथ ही बड़ी संख्या में राज्य स्तरीय पार्टियों का उदय होने के बावजूद इस चुनाव में भी कांग्रेस का दबदबा बरकरार रहा था और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पार्टी की एकछत्र नेता बनकर उभरी।

इस चुनाव में इंदिरा गांधी , जगजीवन राम , गुलजारी लाल नंदा , हेमवती नंदन बहुगुणा , सिद्धार्थ शंकर राय और जानकी वल्लभ पटनायक जैसी कांग्रेस के बड़े नेताओं के साथ ही मोरारजी देसाई और सुचेता कृपलानी जैसे दिग्गज कांग्रेस (ओ) के टिकट पर ,अटल बिहारी वाजपेयी और विजयराजे सिंधिया जनसंघ तथा पीलू मोदी स्वतंत्र पार्टी और मधु दंडवते प्रजा सोसलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव जीते थे । भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के दिग्गज नेता इन्द्रजीत गुप्त भी चुनाव जीत गये थे । वहीं समाजवादी नेता मधु लिमिये , राजनारायण , कांग्रेस नेता सीताराम केसरी जैसे नेताओं को पराजय का सामना करना पडा था ।

इस चुनाव की एक खास बात यह रही कि यह निर्धारित समय से एक वर्ष पहले कराये गये और पहली बार लोकसभा समय से पहले भंग कर दी गयी।

इस चुनाव में आठ राष्ट्रीय पार्टियों, 25 राज्य स्तरीय पार्टिर्यों तथा 28 निबंधित पार्टियों ने अपने अपने उम्मीदवार उतारे थे । राष्ट्रीय पार्टियों में कांग्रेस , कांग्रेस (ओ) , जनसंघ , भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी , मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी , प्रजा सोसलिस्ट पार्टी , संयुक्त सोसलिस्ट पार्टी और स्वतंत्र पार्टी शामिल थी ।

राज्य स्तरीय पार्टियों में बंगला कांग्रेस , भारतीय क्रांति दल , द्रविड़ मुनेत्र कषगम , फारवर्ड ब्लाक , जन कांग्रेस , जनता पार्टी , केरल कांग्रेस , महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी , मुस्लिम लीग , शिरोमणि अकाली दल ,विशाल हरियाणा और पीजेंट एंड वर्क्स पार्टी प्रमुख थी । इस चुनाव में कुल 27 करोड़ 41 लाख 89 हजार 132 मतदाता थे जिनमें जिनमें से 55.27 प्रतिशत ने वोट डाले थे ।

लोकसभा की 518 सीटों के लिए हुये इस चुनाव में 2784 उम्मीदवारों ने अपनी चुनावी किस्मत को आजमाया था । इनमें राष्ट्रीय पार्टियों के 1223 , राज्य स्तरीय पार्टियों के 224 और 1134 निर्दलीय उम्मीदवार शामिल थे । राष्ट्रीय पार्टियों को 77.84 प्रतिशत वोट मिले थे और उनके 451 प्रत्याशी निर्वाचित हुये थे । राज्य स्तरीय पार्टियों के 40 उम्मीदवार जीते थे और उन्हें 10.17 प्रतिशत वोट मिले थे । कुल 14 निर्दलीय उम्मीदवार विजेता बनने में सफल रहे और इन्हें 08.38 प्रतिशत वोट मिले थे ।

कांग्रेस को आन्ध्र प्रदेश में 28, असम में 13 , बिहार में 39 , गुजरात में 11 , हरियाणा में सात , जम्मू कश्मीर में पांच , केरल में छह , मध्य प्रदेश में 21 , महाराष्ट्र में 42 , मैसूर में 27 , उड़िसा में 15 , पंजाब में दस , राजस्थान में 14 , तमिलनाडु में नौ , उत्तर प्रदेश में 73 , पश्चिम बंगाल में 13 , हिमाचल में चार , दिल्ली में सात , मणिपुर में दो तथा अंडमान निकोबार , चंडीगढ , दादर नागर हवेली , पुड्डीचेरी और गोवा दामन दीव में एक – एक सीट मिली थी ।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को कुल 23 सीटें मिली थी । उसे बिहार में पांच , उत्तर प्रदेश में चार , पश्चिम बंगाल में तीन , उड़िसा में एक , केरल में तीन , आन्ध्र प्रदेश में एक , तमिलनाडु में चार और पंजाब में दो सीटें मिली थी ।

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी पश्चिम बंगाल में ही 20 सीट पर जीतने में कामयाब रही थी जबकि उसे केरल में दो त्रिपुरा में दो और आन्ध्र प्रदेश में एक सीट पर सफलता मिली थी । कांग्रेस (ओ) को गुजरात में सबसे अधिक 11 तथा बिहार में तीन , उत्तर प्रदेश में एक और तमिलनाडु में एक सीट जीत पायी थी ।

जनसंघ कों मध्य प्रदेश में 11 , राजस्थान और उत्तर प्रदेश में चार – चार और बिहार में दो सीटें मिली थी । स्वतंत्र पार्टी को उड़िसा और राजस्थान में तीन – तीन तथा गुजरात में दो सीटें मिली थी । संयुक्त सोसलिस्ट पार्टी को बिहार में दो तथा मध्य प्रदेश में एक , प्रजा सोसलिस्ट पार्टी को महाराष्ट्र और पश्वचिम बंगाल में एक – एक तथा फारवर्ड ब्लाक को दो सीटें मिली थी । अकाली दल को पंजाब में एक सीट मिली थी । निर्दलीय प्रत्याशियों को 14 लोकसभा क्षेत्रों में कामयाबी मिली थी । सबसे अधिक चार निर्दलीय मध्य प्रदेश में जीते थे ।

कांग्रेस प्रत्याशी इंदिरा गांधी उत्तर प्रदेश के रायबरेली सीट पर संयुक्त सोसलिस्ट पार्टी के नेता राजनारायण को भारी मतों के अंतर से पराजित किया था । श्रीमती गांधी को 183309 तथा श्री राजनारायण को 71499 वोट मिले थे ।बिहार के सासाराम (सु) क्षेत्र से कांग्रेस पार्टी के जगजीवन राम ने कांग्रेस (ओ) प्रत्याशी महावीर पासवान सवा लाख से अधिक मतों के अंतर से पराजित कर दिया था । इस चुनाव में श्री राम को दो लाख दस हजार से अधिक मत आये थे ।
कांग्रेस उम्मीदवार गुलजारी लाल नंदा हरियाणा के कैथल लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस (ओ) प्रत्याशी इंदर सिंह को पराजित किया था । श्री नंदा को 155000 मत तथा श्री सिंह कोे 129462 वोट मिले थे । कांग्रेस प्रत्याशी हेमवती नंदन बहुगुणा उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद सीट पर कांग्रेस (ओ) के मंगला प्रसाद को पराजित किया था । श्री बहुगुणा एक लाख 42 हजार से अधरिक मत लाने में कामयाब रहे थे जबकि श्री प्रसाद 46998 वोट ही ला साके थे ।

पश्चिम बंगाल के रायगढ क्षेत्र में कांग्रेस उम्मीदवार सिद्धार्थ शंकर राय ने माकपा के सुबोध सेन को धूल चटायी। । श्री राय को एक लाख 47 हजार से अधिक और श्री सेन को 83353 वोट ही मिले थे । इसी राज्य में अलीपुर सीट पर भाकपा के इन्द्रजीत गुप्त ने माकपा के कमल सरकार को हराया था । श्री गुप्त एक लाख 73 हजार से अधिक तथा श्री सरकार एक लाख 46 हजार से अधिक वोट लाने में सफल रहे थे ।

जनसंघ के उम्मीदवार अटल बिहारी वाजपेयी मध्य प्रदेश मेंं ग्वालियर सीट पर कांग्रेस के गौतम शर्मा को हराया था । श्री वाजपेयी को एक लाख 88 हजार से अधिक तथा श्री शर्मा को 118685 वोट मिले थे । स्वतंत्र पार्टी के टिकट पर पीलू मोदी गुजरात के गोधरा सीट पर कांग्रेस के प्रताप सिंह पटेल से चुनाव जीत गये थे । श्री मोदी को एक लाख से अधिक और श्री पटेल को 90 हजार से अधिक मत मिले थे ।

समाजवादी विचारक मधुदंडवते महाराष्ट्र के राजापुर सीट पर प्रजा सोसलिस्ट पार्टी के टिकट पर कांग्रेस के शिवाराम भोंसले से मामूली मतों के अंतर से विजयी हुये थे । श्री दंडवते को 98747 और श्री भोंसले को 95553 वोट मिले थे । कांग्रेस केे जानकी वल्लभ पटनायक उड़िसा में कटक से जीत गये थे लेकिन इसी पार्टी के सीताराम केसरी बिहार में कटिहार सीट से हार गये थे श्री केसरी को जनसंघ के उम्मीदवार ने हराया था ।

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मध्यप्रदेश की गुना संसदीय सीट पर किसी भी पार्टी की जीत सिंधिया परिवार से ही होकर गुजरती हैं और आज तक यहाँ इसी राजवंश का दबदबा है attacknews.in

गुना, 24 मार्च । आजादी के पहले सिंधिया रियासत का हिस्सा रहा गुना देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम होने के बाद सिंधिया परिवार से जुड़ा रहा है और चुनाव दर चुनाव इस परिवार के सदस्य काे अपना प्रतिनिधि चुनता रहा है।

अशोकनगर, गुना, शिवपुरी तीन जिलों की आठ विधानसभाओं से मिलकर बने इस संसदीय क्षेत्र में किसी राजनीतिक दल की नहीं बल्कि सिंधिया परिवार की चलती है तथा कांग्रेस और भाजपा जैसे राष्ट्रीय दलों काे यहां जीत हासिल करने के लिये सिंधिया परिवार का ही सहारा लेना पड़ता है।

इस परिवार की तीन पीढ़ियां यहां से 14 बार चुनाव जीत चुकी हैं। जनता में ‘महाराज’ और ‘श्रीमंत’ जैसी उपाधियों से प्रसिद्ध ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया 2014 में कांग्रेस प्रत्‍याशी के तौर पर यहां से चौथी बार सांसद चुने गए। इसके पहले उनकी दादी विजयराजे सिंधिया छह बार और उनके पिता माधवराव सिंधिया चार बार यहां से सांसद रह चुके हैं।

इस सीट पर सिंधिया परिवार के वर्चस्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि माधवराव सिंधिया ने यहां एक बार निर्दलीय उम्मीदवार के रुप में भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों को हराकर जीत हासिल की। वर्ष 1998 में विजयाराजे सिंधिया अपना नामांकन दर्ज करने के बाद बेहद बीमार हो गई, जिससे वह प्रचार करने क्षेत्र में पहुंची ही नहीं और बिस्‍तर से ही चुनाव जीत गईं ।

यहां 1951 में हुआ पहला चुनाव ही ऐसा था जिसमें सिंधिया परिवार की सीधी दखलांदाजी नहीं रही। उस चुनाव में हिंदू महासभा के विष्‍णुगोपाल पांडे ने कांग्रेस के गोपीकृष्‍ण विजयवर्गीय को हराया। उसके बाद 1956 में मध्‍यप्रदेश का गठन हुआ। इसी दौरान राजमाता के नाम से मशहूर विजयराजे सिंधिया कांग्रेस में शामिल हो गईं । उन्होंने 1957 के चुनाव में हिंदू महासभा के विष्‍णु गोपाल पांडे को करीब 50 हजार वोटों के अंतर से हराया। वर्ष 1962 में सीट बदलते हुए विजयराजे सिंधिया ने ग्‍वालियर से चुनाव लड़कर जीत हासिल की। वहीं गुना से कांग्रेस प्रत्‍याशी बनाए गए रामसहाय शिवप्रसाद पांडे ने हिंदू महासभा के विष्‍णुगोपाल देशपांडे को एक बार फिर शिकस्‍त दी।

वर्ष 1967 का चुनाव आते-आते राजनैतिक परिस्थितियां बदलीं और विजयराजे सिंधिया कांग्रेस छोड़कर स्‍वतंत्र पार्टी में शामिल हो गईं और इस चुनाव में उन्होंने स्‍वतंत्र पार्टी के प्रत्‍याशी के रुप में कांग्रेस के डीके जाधव को हराया। बाद में उन्होंने इस्‍तीफा दे दिया जिसके बाद हुए उपचुनाव में स्‍वतंत्र पार्टी के जेबी कृपलानी ने कांग्रेस प्रत्‍याशी को हराया। इसके बाद 1971 में हुए चुनाव में विजय राजे सिंधिया के बेटे माधवराव सिंधिया ने भारतीय जनसंघ के टिकट पर यहां से चुनाव लड़ा और बड़े अंतर से कांग्रेस प्रत्‍याशी को हराया। अगले चुनाव (1977) में वह निर्दलीय प्रत्‍याशी के रूप में गुना से सांसद चुने गए। वर्ष 1980 में हुए लोकसभा चुनाव में माधवराव सिंधिया ने यहां से कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की। इसी वर्ष से सिंधिया परिवार कांग्रेस और भाजपा जैसे दो राजनैतिक ध्रुवों में बंट गया।

श्री सिंधिया ने 1984 के चुनाव ग्वालियर से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। वहीं गुना से उनके सबसे करीबी और विश्‍वस्‍त सहयोगी महेन्‍द्र सिंह ‘कालूखेड़ा’ ने भाजपा के महेन्‍द्र सिंह को हराते हुए जीत हासिल की। वर्ष 1989 में कांग्रेस ने एक बार फिर महेन्‍द्र सिंह को अपना प्रत्‍याशी बनाया, दूसरी ओर गुना में जीत हासिल करने के लिए भाजपा ने विशेष रणनीति के तहत अपनी कद्दावर नेता विजयराजे सिंधिया को चुनाव लड़ाया। उस चुनाव में विजयाराजे सिंधिया ने महेंद्र सिंह को हराया। उसके बाद विजयाराजे सिंधिया ने लगातार 1991, 1996, 1998 में लगातार चुनाव जीतीं।

उनके निधन के बाद कांग्रेस ने 1999 में यहां से माधराव सिंधिया को लोकसभा चुनाव लड़ाया, जिसमें उन्होंने जीत दर्ज की। सितंबर 2001 में एक विमान हादसे में माधवराव सिंधिया की मृत्‍यु के बाद कांग्रेस ने 2002 में हुए उपचुनाव में उन के बेटे ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया को प्रत्‍याशी बनाया और वह बहुत ज्‍यादा वोटों के अंतर से चुनाव जीते। उसके बाद से वह लगातार इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

इस संसदीय क्षेत्र में अशोकनगर की अशोकनगर, चंदेरी, मुंगावली, गुना जिले की गुना, बामोरी एवं शिवपुरी जिले की शिवपुरी, पिछोर, कोलारस विधानसभा सीट शामिल है। इनमें से पांच पर कांग्रेस और तीन पर भाजपा काबिज है। भौगोलिक दृष्टि से गुना लोकसभा क्षेत्र चंबल, मालवा और बुंदेलखंड की मुहाने पर है। गुना लोकसभा के शिवपुरी जिले के हिस्‍से पर चंबल की संस्‍कृति का प्रभाव है, वहीं गुना को मालवा का प्रवेश द्वार कहा जाता है। अशोकनगर जिले मुंगावली और चंदेरी बुंदेलखंड की संस्‍कृति की झलक देखने को मिलती है।

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भाजपा प्रत्याशी हेमामालिनी के सामने चुनाव लड़ने के लिए डांसर सपना चौधरी कांग्रेस पार्टी में शामिल हुई attacknews.in

नयी दिल्ली, 23 मार्च । जानीमानी हरियाणवी डांसर और गायिका सपना चौधरी शनिवार को कांग्रेस में शामिल हो गईं ।

सूत्रों के मुताबिक सपना ने उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष राज बब्बर के नयी दिल्ली स्थित आवास पर पहुंचकर पार्टी की सदस्यता ग्रहण की।

ऐसी खबरें हैं कि वह मथुरा से हेमा मालिनी के खिलाफ चुनाव लड़ सकती हैं, हालांकि कांग्रेस के सूत्रों ने फिलहाल इस बारे में कुछ भी कहने से इनकार कर दिया।

मूल रूप से हरियाणा निवासी सपना के कांग्रेस में शामिल होने को लेकर लंबे समय से अटकलें लगाई जा रही थीं।

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दिग्विजय सिंह ने भोपाल से लोकसभा चुनाव लड़ने के हायकमान के निर्णय को खुशी खुशी स्वीकार किया attacknews.in

इंदौर, 23 मार्च । कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने भोपाल से लोकसभा चुनाव लड़ने के संदर्भ में प्रतिक्रिया देते हुये आज कहा कि कांग्रेस आलाकमान के फैसले का खुशी खुशी पालन करूँगा।

श्री सिंह ने यहां देवी अहिल्याबाई बाई होलकर विमानतल पर पत्रकारों को अपनी संक्षिप्त प्रतिक्रिया देते हुये कहा कांग्रेस आलाकमान का फैसला मुझे मान्य है।

कांग्रेस नेता श्री सिंह आज इंदौर में एक निजी कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे हैं। उन्होंने उनके चुनाव लड़ने के संदर्भ में पूछे गये प्रश्न के उक्त एक वाक्य में यह जवाब दिया। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने आज श्री सिंह के भोपाल से चुनाव लड़ने की घोषणा की है। उसके बाद श्री सिंह ने यहां प्रतिक्रिया दी।

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ऐसे ले डूबी बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा को उनकी बदजुबानी और दबाव की राजनीति; रविशंकर प्रसाद लडेंगे अब पटना साहिब से लोकसभा चुनाव attacknews.in

पटना 23 मार्च । बिहार के पटना साहिब लोकसभा सीट से इस बार भारतीय जनता पार्टी के मौजूदा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा का टिकट कट गया है और उनके स्थान पर इस क्षेत्र से केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद चुनाव लड़ेंगे।

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने आज बिहार की 40 लोकसभा सीट में से 39 के लिए उम्मीदवारों सूची जारी की है । इस सूची में दो बार वर्ष 2009 और 2014 में पटना साहिब से सांसद रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री शत्रुघ्न प्रसाद सिंहा और भागलपुर लोकसभा क्षेत्र से वर्ष 2014 में चुनाव लड़ चुके पूर्व केंद्रीय मंत्री शाहनवाज हुसैन का टिकट काट दिया गया है।

बदजुबानी शत्रुघ्न सिन्हा को ले डुबी:

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के मजबूत गढ़ पटना साहिब संसदीय क्षेत्र में उसके सांसद शत्रुघ्न सिन्हा के बगावती तेवर और विपक्ष की सेंध लगाने की कोशिशों के बीच उसने 17वें लोकसभा चुनाव में इस सीट पर लगातार तीसरी बार कब्जा बरकरार रखने के लिए रविशंकर प्रसाद को मैदान में उतारा है ।

बिहार के पटना जिले में वर्ष 2008 में हुए परिसीमन से पहले पटना लोकसभा सीट पर भाजपा को पहली सफलता प्रो. शैलेंद्रनाथ श्रीवास्तव ने 1989 में दिलायी। वर्ष 1998 और 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में इस सीट से डॉ. चन्द्रेश्वर प्रसाद (सी. पी.) ठाकुर लगातार दो बार विजयी रहे।

वहीं, परिसीमन के बाद 2009 और 2014 के चुनाव में पटना साहिब सीट पर अभिनेता से राजनेता बने शत्रुघ्न सिन्हा ने भाजपा का परचम लहराया लेकिन श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में बनी भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार में मंत्री पद नहीं मिलने से बागी हुए श्री सिन्हा लगातार अपने विवादित बयानों और गतिविधियों के कारण पूरे पांच साल चर्चा में रहे। इस दौरान उन्होंने अपनी पार्टी के खिलाफ न केवल विवादित बयान ही दिए बल्कि दबाव बनाने के लिए वह विरोधी दलों के नेताओं नजदीकियां भी बढ़ाते दिखे। जब तक बिहार के मुख्यमंत्री एवं जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार महागठबंधन के साथ रहे तब तक ‘बिहारी बाबू’ (श्री सिन्हा) श्री कुमार से मुलाकात करते रहे। जदयू का राजग से गठबंधन होते ही उन्होंने श्री कुमार से दूरी बना ली और उनका झुकाव राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की तरफ हो गया। इसी तरह जब श्री अटल बिहारी वाजपेयी मन्त्रिमण्डल में मंत्री पद नही मिला तो दबाव बनाने के लिए उन्होंने ‘पति पत्नी और वो’ नाटक का मंचन कर अपनी पार्टी और सहयोगियों पर कटाक्ष करना शुरू कर दिया था। उस समय उनका यह नुस्खा काम आया और उन्हें मंत्री पद मिल गया। लेकिन, मोदी सरकार में उनकी सुनी नहीं गयी और उन्होंने बगावती रुख अपना लिया।

राजनीतिक गलियारे में यह चर्चा लगातार गर्म रही कि श्री सिन्हा भाजपा छोड़कर राष्ट्रीय जनता दल का दामन थाम सकते हैं। दबाव की इस राजनीति का भाजपा पर असर नहीं हुआ और नाराज होकर पटना साहिब सीट से श्री सिन्हा को टिकट नहीं दिया । अब यदि वह महागठबंधन की टिकट पर  शत्रुघ्न सिन्हा चुनावी अखाड़े में उतरे तो इस संसदीय क्षेत्र में मुकाबला काफी दिलचस्प होगा क्योंकि यहां पर भाजपा को हमेशा राजद या कांग्रेस उम्मीदवार से कड़ी टक्कर मिलती रही है।

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, बिहार की पटना लोकसभा सीट पर वर्ष 1989 के बाद वर्ष 1998 (12वीं लोकसभा) के चुनाव में भाजपा की वापसी हुई। चुनावी अखाड़े में भाजपा के डॉ. सी. पी. ठाकुर ने 52606 मतों के भारी अंतर से राजद के रामकृपाल यादव को पटखनी दी। डॉ. ठाकुर को जहां 331860 वोट मिले वहीं श्री यादव को 279254 मतों से संतोष करना पड़ा। तेरहवें लोकसभा चुनाव (1999) में डॉ. ठाकुर ने फिर बाजी मारी और उन्हें 379370 मत मिले। उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी श्री यादव को 352478 मत प्राप्त कर 46892 वोट के अंतर से हार गए।

डॉ. ठाकुर 14वें लोकसभा चुनाव में पटना सीट पर हैट्रिक बनाने से चूक गए। पिछले दो चुनाव में उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी रहे राजद के रामकृपाल यादव ने 433853 मत हासिल कर उनके विजय रथ को रोक दिया। डॉ. ठाकुर को 395291 मतदाताओं ने पसंद किया और वह 38562 मतों के अंतर से पराजित हुए। परिसीमन के बाद वर्ष 2004 में हुए 15वें लोकसभा चुनाव में पटना सीट पटना साहिब हो गयी और इस बार भाजपा ने यहां से बिहारी बाबू को अपना उम्मीदवार बनाया। उन्होंने फिर से इस सीट पर भाजपा का परचम लहराया और अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी राजद के विजय कुमार को 166770 मतों से हराया। कांग्रेस की टिकट से एक और फ़िल्म अभिनेता शेखर सुमन ने भी दांव लगाया लेकिन महज 61308 वोट लाकर वह तीसरे स्थान पर रहे। इसके बाद 15वें लोकसभा चुनाव (2014) में भाजपा ने एक बार फिर श्री सिन्हा को अपना उम्मीदवार बनाया और उन्हें रिकॉर्ड 485905 वोट मिले। उन्होंने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भोजपुरी सिनेमा के सुपर स्टार और कांग्रेस प्रत्याशी कुणाल सिंह को हराया जिन्हें 220100 और तीसरे स्थान पर रहे जदयू उम्मीदवार गोपाल प्रसाद सिन्हा को 91024 वोट मिले।

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भाजपा ने मध्यप्रदेश के लिए घोषित 14 लोकसभा प्रत्याशियों में 5 सांसदों का टिकट इन कारणों से काटा attacknews.in

भोपाल, 23 मार्च । मध्यप्रदेश की 14 लोकसभा सीटों पर भारतीय जनता पार्टी की ओर से आज घोषित किए गए प्रत्याशियों की श्रृंखला में जहां पांच मौजूदा सांसदों के टिकट काट दिए गए हैं, वहीं केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की सीट बदल दी गई है, मध्यप्रदेश में पार्टी ने तीन महिलाओं को मौका दिया है।

केंद्रीय मंत्री श्री तोमर को इस बार ग्वालियर के स्थान पर मुरैना से चुनाव मैदान में उतारा गया है। यहां से पार्टी ने मौजूदा सांसद अनूप मिश्रा का टिकट काट दिया है।

पार्टी की प्रदेश इकाई के अध्यक्ष राकेश सिंह एक बार फिर जबलपुर सीट से ही चुनाव मैदान में उतरेंगे। वहीं होशंगाबाद से राव उदय प्रताप सिंह, टीकमगढ़ से केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र कुमार खटीक, सतना से गणेश सिंह, मंडला से पूर्व केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते, खंडवा से नंदकुमार सिंह चौहान, मंदसौर से सुधीर गुप्ता, दमोह से प्रहलाद पटेल, रीवा से जनार्दन मिश्रा और सीधी से रीति पाठक का नाम यथावत रखा गया है।

पार्टी ने चार संसदीय क्षेत्रों भिंड, बैतूल, शहडोल और उज्जैन पर नए चेहरों को मौका दिया है। भिंड सीट से भागीरथ प्रसाद का टिकट काट दिया गया है। यहां से संध्या राय पार्टी की प्रत्याशी होंगी। उज्जैन से चिंतामण मालवीय की जगह इस बार तराना विधायक अनिल फिरोजिया को मैदान में उतारा गया है।

अपने जाति प्रमाणपत्र को लेकर विवादों में रहीं बैतूल सांसद ज्योति धुर्वे को भी इस बार मौका नहीं दिया गया है। उनके स्थान पर पार्टी ने दुर्गादास उइके पर दांव खेला है। शहडोल से पार्टी ने मात्र दो दिन पहले कांग्रेस का हाथ छोड़कर भाजपा में शामिल हुईं हिमाद्री सिंह को अपना अधिकृत प्रत्याशी बनाया है। पार्टी ने यहां से मौजूदा सांसद ज्ञान सिंह का टिकट काट दिया है।

प्रदेश में कुल 29 लोकसभा सीटें हैं। अभी 15 और सीटों पर पार्टी को प्रत्याशी घोषित करने हैं।

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देंखे सूची: भाजपा द्वारा 84 लोकसभा प्रत्याशियों की घोषणा, मध्यप्रदेश के 14 प्रत्याशी घोषित, राकेश सिंह जबलपुर और नरेन्द्र सिंह तोमर मुरैना से लडेंगे attacknews.in

नयी दिल्ली 23 मार्च । भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र तोमर को मध्य प्रदेश की मुरैना लोक सभा सीट से,जयंत सिंहा को झारखंड की हजारीबाग सीट से तथा श्रीपद यशो नाइक को गोवा उत्तर सीट से लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाया है।

केन्द्रीय मंत्री उमा भारती को चुनाव मैदान में नहीं उतारा गया है और उन्हें पार्टी संगठन में जिम्मेदारी सौंपते हुए उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है।

भाजपा द्वारा आज 84 लोकसभा सीटों पर अपने प्रत्याशियों की घोषणा की है:

  1. Goa 1 North Goa Shri Shripad Yesso Naik 3
  2. Goa 2 South Goa Adv. Narendra Keshav Sawaikar 3
  3. Madhya Pradesh 1 Morena Shri Narendra Singh Tomar 6
  4. Madhya Pradesh 2 Bhind (SC) Smt. Sandhya Rai 6
  5. Madhya Pradesh 6 Tikamgarh (SC) Shri Virendra Kumar Khateek 5
  6. Madhya Pradesh 7 Damoh Shri Prahlad Patel 5
  7. Madhya Pradesh 9 Satna Shri Ganesh Singh 5
  8. Madhya Pradesh 10 Rewa Shri Janardan Mishra 5
  9. Madhya Pradesh 11 Sidhi Smt. Riti Pathak 4
  10. Madhya Pradesh 12 Shahdol (ST) Smt. Himadri Singh 4
  11. Madhya Pradesh 13 Jabalpur Shri Rakesh Singh 4
  12. Madhya Pradesh 14 Mandla (ST) Shri Faggan Singh Kulaste 4
  13. Madhya Pradesh 17 Hoshangabad Shri Rao Udai Pratap Singh 5
  14. Madhya Pradesh 22 Ujjain (SC) Shri Anil Firojiya 7
  15. Madhya Pradesh 23 Mandsour Shri Sudhir Gupta 7
  16. Madhya Pradesh 28 Khandwa Shri Nand Kumar Singh
    Chouhan 7
  17. Madhya Pradesh 29 Betul (ST) Shri Durgadas Uike 5
  18. Jharkhand 1 Rajmahal (ST) Shri Hemlal Murmu 7
  19. Jharkhand 2 Dumka (ST) Shri Sunil Soren 7
  20. Jharkhand 3 Godda Shri Nishikant Dubey 7
  21. Jharkhand 7 Dhanbad Shri Pashupati Nath Singh 6
  22. Jharkhand 9 Jamshedpur Shri Vidhyut Varan Mahato 6
  23. Jharkhand 10 Singhbhum (ST) Shri Laxman Giluva 6
  24. Jharkhand 11 Khunti (ST) Shri Arjun Munda 5
  25. Jharkhand 12 Lohardaga (ST) Shri Sudarshan Bhagat 4
  26. Jharkhand 13 Palamau (SC) Shri Vishnu Dayal Ram 4
  27. Jharkhand 14 Hazaribagh Shri Jayant Sinha 5
  28. Gujarat 1 Kachchh (SC) Shri Vinod Bhai Chavda 3
  29. Gujarat 5 Sabarkantha Shri Dipsinh Radhod 3
  30. Gujarat 8 Ahmedabad West (SC) Dr. Kirit Bhai Solanki 3
  31. Gujarat 9 Surendranagar Dr. Mahendra Bhai Munjpara 3
  32. Gujarat 10 Rajkot Shri Mohan Bhai Kundariya 3
  33. Gujarat 12 Jamnagar Mrs. Punamben Madam 3
  34. Gujarat 14 Amreli Shri Naran Bhai Kchhadia 3
  35. Gujarat 15 Bhavnagar Dr. Mrs. Bharati Ben Shiyal 3
  36. Gujarat 17 Kheda Shri Devusinh Chauhan 3
  37. Gujarat 19 Dahod (ST) Shri Jashvant Sinh Bhabhor 3
  38. Gujarat 20 Vadodara Mrs. Ranjan Ben Bhatt 3
  39. Gujarat 22 Bharuch Shri Mansukh Bhai Vasava 3
  40. Gujarat 23 Bardoli (ST) Shri Parbhu Bhai Vasava 3
  41. Gujarat 25 Navsari Shri C.R. Patil 3
  42. Gujarat 26 Valsad (ST) Dr. K.C. Patel 3
  43. Himachal Pradesh 1 Kangra Shri Kishan Kapoor 7
  44. Himachal Pradesh 2 Mandi Shri Ramswroop Sharma 7
  45. Himachal Pradesh 3 Hamirpur Shri Anurag Thakur
  46. Himachal Pradesh 4 Shimla (SC) Shri Suresh Kashyap
  47. Karnataka 20 Mandya Smt. Sumal
  48. Karnataka 28 Kolar (SC) Shri S Muni
  49. Andhra Pradesh 1 Aruku (ST) K V VSatyanarayan Reddy 1
  50. Andhra Pradesh 2 Srikakulam Perla Sambamurti 1
  51. Andhra Pradesh 3 Vizianagaram P Sanyasi Raju 1
  52. Andhra Pradesh 5 Anakapalli Dr. Gandi Venkata Satyanarayana 1
  53. Andhra Pradesh 6 Kakinada YallaVenkata Ramamohana  Rao (Dorababu)
    54.. Andhra Pradesh 7 Amalapuram (SC) AyyajiVema Manepalli 1
    55.. Andhra Pradesh 8 Rajahmundry Satya Gopinath dasparavasthu 1
  54. Andhra Pradesh 9 Narsapuram Paidikonda Manikyalarao 1
    57 . Andhra Pradesh 10 Eluru Chinnam Ramkotaya 1
    58.. Andhra Pradesh 11 Machilipatnam Gudivaka Ramanjaneyulu 1
  55. Andhra Pradesh 12 Vijayawada Dilip Kumar Kilaru 1
    60.. Andhra Pradesh 13 Guntur ValluruJayaprakash Narayana 1
  56. Andhra Pradesh 15 Bapatla (SC) Dr. Challagali Kishore Kumar 1
    62 . Andhra Pradesh 16 Ongole Thogunta Srinivas
  57. Andhra Pradesh 17 Nandyal Dr. AdinarayanaInti
  58. Andhra Pradesh 18 Kurnool Dr. P V Parthasarthi
    65.. Andhra Pradesh 19 Anantapur HamsaDevineni
    66.. Andhra Pradesh 20 Hindupur Pogala Venkata Parthasarthi
    67.. Andhra Pradesh 21 Kadapa Singa Reddy Ramchandra Reddy
    68.. Andhra Pradesh 22 Nellore Suresh Reddy
    69.. Andhra Pradesh 23 Tirupati (SC) Bommi Sri Hari Rao
  59. Andhra Pradesh 24 Rajampet Pappireddi Maheswara Reddy
    71.. Andhra Pradesh 25 Chittoor (SC) Jayaram Duggani
  60. Assam 9 Tezpur Sjt. Pallab Lochan Das
    73.. Maharashtra 3 Jalgaon Mrs. Smita Uday Wagh
    74.. Maharashtra 16 Nanded Shri Pratap Patil Chikkalikar
    75.. Maharashtra 20 Dindori (ST) Dr. Bharati Pawar
    76.. Maharashtra 34 Pune Shri Girish Bapat
    77.. Maharashtra 35 Baramati Mrs. Kanchan Rahul Kul
  61. Maharashtra 42 Solapur (SC) Dr. Jaysidhesvar Swami
  62. Meghalaya 1 Shillong (ST) Shri Sanbor Shullai, MLA
  63. Odisha 1 Bargarh Shri Suresh Pujari
    81.. Odisha 3 Sambalpur Shri Nitesh Ganga Deb
    82.. Odisha 11 Kalahandi Shri Basanta Kumar Panda
    83… Odisha 17 Puri Dr. Sambit Patra
  64. . Odisha 21 Koraput (ST) Shri Jayaram Pangi

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उतराखण्ड की सबसे चुनौतीपूर्ण संसदीय सीट अल्मोड़ा- पिथौरागढ़ में चुनावी नजारा भी केवल कांग्रेस और भाजपा के बीच वर्चस्व का होगा attacknews.in

नैनीताल, 23  मार्च । उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल की अल्मोड़ा – पिथौरागढ़ सीट के अंतर्राष्ट्रीय सीमा से सटी होने तथा इस क्षेत्र में सैनिक पृष्ठभूमि के लोगों की बहुलता के चलते के चुनाव में राष्ट्रवाद अन्य मुद्दों पर हावी रहता है लेकिन बहुद्देश्यीय पंचेश्वर बांध परियोजना को लेकर उपजे स्वर यहां की फिजां में तैर रहे हैं जिससे यहां का राजनीतिक गणित काफी दिलचस्प हो गया है।

अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र 1957 में हुए परिसीमन के चलते पहली बार अस्तित्व में आया। इसमें अल्मोडा़, पिथौरागढ़, बागेश्वर और चंपावत समेत चार जनपद शामिल हैं तथा इन चार जिलों की 14 विधानसभायें इसमें समाहित हैं। इन 14 सीटों में से 11 पर भाजपा का कब्जा है। यह लोकसभा सीट 2009 में आरक्षित हुई और तब से लेकर आज तक अनुसूचित जाति का प्रतिनिधित्व करती आ रही है। इस निर्वाचन क्षेत्र की 89 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्र में निवास करती है। मात्र 11 प्रतिशत क्षेत्र ही शहरी है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस सीट पर चुनौतियां भी अधिक हैं।

इस लोकसभा सीट की सीमा तिब्बत और नेपाल से लगी हुई है। कैलाश मानसरोवर यात्रा यहीं से होकर गुजरती है। चीन से सटे होने के चलते इस क्षेत्र का सामरिक महत्व अधिक है। उच्च हिमालयी क्षेत्र से होकर गुजरने वाले खूबसूरत दर्रे, घाटियां, बर्फ के पठार तथा सदानीरा नदियां भी इस निर्वाचन क्षेत्र की खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं। यह क्षेत्र पर्यटन, तीर्थाटन और ट्रैकिंग के लिये बेहद मुफीद है। यहां साहसिक पर्यटन की संभावनायें बेहद अधिक हैं। खासकर सीमांत पिथौरागढ़ और बागेश्वर जिलों में।

इस सीट की खासियत इसमें दो सबसे कम जनसंख्या वाले चंपावत अौर बागेश्वर जनपद का भी शामिल होना है। इन जनपदों में मात्र दो-दो विधानसभा सीटें हैं। यहां की संस्कृति और सभ्यता पड़ोसी देश नेपाल से मिलती-जुलती है। नेपाल से रोटी-बेटी का संबंध दशकों पुराना है। इस निर्वाचन क्षेत्र का अधिकांश भूभाग पहाड़ी है। यहां सैनिक पृष्ठभूमि के लोगों की बहुलता है। इसीलिये राष्ट्रवाद के मुद्दे यहां के लोगों अधिक प्रभावित करते हैं।

जहां तक राजनीतिक पृष्ठभूमि का सवाल है इस सीट पर भाजपा और कांग्र्रेस दोनों का ही वर्चस्व रहा है। यहां कभी भी किसी तीसरे विकल्प को राजनीतिक रूप से तरजीह नहीं मिली है। स्थानीय स्तर पर कुछ हद तक उत्तराखंड क्रांति दल (उक्रांद) जैसे क्षेत्रीय दल को मान्यता मिली लेकिन लोगों ने उतना ही जल्दी उन्हें नकार भी दिया। इस लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व 1977 में मुरली मनोहर जोशी जैसे दिग्गज भी कर चुके हैं। कांग्रेस से हरीश रावत और भाजपा से बच्ची सिंह रावत यहां से तीन-तीन बार लोकसभा की सीढ़ी चढ़ चुके हैं। भाजपा के जीवन शर्मा भी यहां से एक बार सांसद रहे।

पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के चलते यह सीट भाजपा के खाते में आ गयी। भाजपा के अजय टमटा ने कांग्रेस के प्रदीप टमटा को 95690 मतों से शिकस्त दी। भाजपा को 27 प्रतिशत वोट मिले जबकि कांग्रेस को मात्र 20 प्रशित वोट से ही संतोष करना पड़ा। इससे पहले 2009 में यह सीट कांग्रेस के पास थी। तब प्रदीप टमटा ने अजय टमटा को 6523 मतों के मामूली अंतर से हराया था।
चालीस हजार करोड़ की लागत से नेपाल और भारत के बीच बनने वाली पंचेश्वर बहुद्देशीय बांध परियोजना यहां की राजनीतिक दिशा और दशा तय करने में अहम भूमिका निभा सकती है। अल्मोड़ा, पिथौरागढ व चंपावत जिलों के डूब क्षेत्र में आने वाले 100 से अधिक गांवों की जनता में इसे लेकर नाराजगी है। कांग्रेस ने पिछले विधानसभा चुनाव में इस नाराजगी को भुनाने की कोशिश की थी लेकिन उसे अधिक सफलता हाथ नहीं लगी। इस क्षेत्र में बेरोजगारी, पलायन, स्वास्थ्य सुविधा, जंगली जानवरों का आतंक के अलावा सड़क, शिक्षा जैसे बुनियादी मुद्दे आज भी हाशिये पर हैं।

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