वायनाड सीट से राहुल गांधी के चुनाव लड़ने पर कांग्रेस पार्टी और कम्युनिस्ट पार्टियों के संबंध पुराने दौर से चले आ रहे खटास वाले हो गए attacknews.in

नयी दिल्ली 08 अप्रैल । कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के केरल में वायनाड से चुनाव लड़ने के फैसले से कम्युनिस्ट खेमे में व्याप्त बेचैनी से दोनों दलों के बीच पूर्व में कई मौकों पर विरोधाभाष और संबंधों में आयी तल्खियों की स्पष्ट पुनरावृत्ति दिख रही है।

कांग्रेस-वामपंथी संंबंधों में यह तल्खियां 1959 के उस दौर की याद दिलाती है , जब तत्कालीन नेहरू सरकार ने विरोधाभाषों के चलते केरल की ईएमएस नंबूदरीपाद सरकार को बर्खास्त कर दिया था। ऐसा ही एक उदाहरण 2008 में उस समय सामने आया , जब अमेरिका के साथ परमाणु समझौते को लेकर डॉ. मनमोहन सिंह की गठबंधन सरकार में शामिल वाम दलों ने सरकार सेसमर्थन वापस ले लिया था।

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे पुत्र तत्कालीन सांसद संजय गांधी की कम्युनिस्टों के प्रति नापसंदगी एक समय इतनी तीव्र हो गयी थी , जब वह केरल युवा कांग्रेस के नेता वायलार रवि और अन्य से यह कहने से भी नहीं चूके कि आप सभी कम्युनिस्टों की तरह व्यवहार कर रहे हैं।

दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का मानना है कि श्री गांधी के वायनाड से चुनाव लड़ने से कांग्रेस और वाम दलों के बीच मतभेद की दरारें और बढ़ सकती हैं।

भाजपा नेताओं का कहना है कि श्री गांधी के इस कदम से उनकी पार्टी , विशेषकर केरल प्रदेश इकाई में जहां ‘आंतरिक कलह’ को व्यक्त करता है , वहीं यह स्थिति मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) में प्रकाश करात और सीताराम येचुरी गुटों के बीच बढ़ते शीत युद्ध की पुष्टि भी करता है।

भाजपा के एक नेता ने कहा, “ दिल्ली स्थित एक वामपंथी नेता ने बताया कि श्री गांधी ने केरल में एक गुट विशेष के दबाव में आकर वायनाड से चुनाव लड़ने का फैसला लिया है । इसके अलावा उन्होंने (श्री गांधी) उत्तर भारत, खासकर उत्तर प्रदेश में अपने प्रति हिन्दुओं की नाराजगी को भांपकर एक सुरक्षित और अल्पसंख्यक बहुल निर्वाचन क्षेत्र की मांग की है।”

कुछ समाजवादी नेताओं का भी कहना है कि वाम दल, विशेषकर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने 1960 के दशक में कांग्रेस के दोफाड़ होने के समय श्रीमती इंदिरा गांधी को सिंडिकेट के जरिए सत्ता हासिल करने में सहायता की थी , लेकिन बाद में वामदलों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया गया।

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पीएम नरेंद्र मोदी फिल्म पर सुप्रीम कोर्ट कल तभी कोई न कोई आदेश देगा यदि याचिकाकर्ता कोई आपत्तिजनक सबूत पेश करेगा attacknews.in

नयी दिल्ली 8 अप्रैल । उच्चतम न्यायालय ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर बनी बायोपिक के प्रदर्शन पर रोक के लिये कांग्रेस नेता की याचिका पर सोमवार को कोई आदेश देने से यह कहते हुये इंकार कर दिया कि इस फिल्म को अभी सेन्सर बोर्ड से प्रमाण पत्र मिलना बाकी है।

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने कहा कि इस मामले में मंगलवार को सुनवाई की जायेगी और वह कोई न कोई आदेश भी पारित कर सकता है यदि याचिकाकर्ता यह रिकार्ड पर लायें कि फिल्म में ऐसा क्या है जो बहुत ही आपत्तिजनक है।

पीठ ने कांग्रेस कार्यकर्ता अमन पंवार का यह अनुरोध ठुकरा दिया कि फिल्म की एक प्रति उन्हें उपलब्ध करायी जाये।

याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने जब फिल्म की प्रति उपलब्ध कराने का अनुरोध किया तो पीठ ने कहा, ‘‘हम किसी व्यक्ति को फिल्म की प्रति देने का निर्देश क्यों दे? हम समझ नहीं पा रहे हैं कि ऐसा निर्देश हम क्यों दें?’’

इससे पहले, मामले की सुनवाई शुरू होते ही प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि इस फिल्म को अभी सेन्सर बोर्ड का प्रमाण पत्र भी नहीं मिला है। उन्होंने इस संबंध में चार अप्रैल को सेन्सर बोर्ड के अध्यक्ष प्रसून जोशी द्वारा दिये गये एक बयान का जिक्र किया।

जोशी ने कहा था कि फिल्म इस समय जांच और प्रमाणन की प्रक्रिया में है।

उन्होंने कहा था कि चूंकि फिल्म के प्रमाण से जुड़े अनेक सवाल हैं और वह एक साफ तस्वीर पेश करना चाहते हैं। फिल्म निर्धारित दिशा-निर्देशों के अनुसार ही जांच और प्रमाणन प्रक्रिया के दौर में है और इसे अभी प्रमाणित किया जाना है।

याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिंघवी ने कहा कि फिल्म निर्माता संदीप सिंह ने बयान दिया था कि 11 अप्रैल को फिल्म प्रदर्शित की जायेगी।

इस पर पीठ ने कहा कि हो सकता है कि सेन्सर बोर्ड से प्रमाण पत्र मिल जाने की उम्मीद में निर्माता ने इस बायोपिक को 11 अप्रैल को प्रदर्शित करने के बारे में बयान दिया हो।

पीठ ने कहा कि इस समय फिल्म के प्रदर्शन को चुनौती देने की कोई वजह नजर नहीं आती है।

सिंघवी ने जब बायोपिक पर रोक लगाने का फिर अनुरोध किया तो पीठ ने कहा, ‘‘हम फिल्म का प्रदर्शन कैसे रोक सकते हैं। इसे अभी प्रमाण पत्र भी नहीं मिला है। फिल्म के प्रदर्शन के बारे में इसके निर्माता का सिर्फ बयान ही आया है।’’

हालांकि सिंघवी ने कहा कि इस फिल्म के प्रदर्शन की अनुमति देना संविधान के ढाचे पर सीधा हमला होगा।

पीठ ने कहा कि वह याचिकाकर्ता द्वारा पेश समस्या का फैसला नहीं कर सकती क्योंकि उसे नहीं मालूम की फिल्म में क्या है।

सिंघवी ने कहा कि न्यायाधीश खुद पहले फिल्म देख सकते हैं और फिर मामले का फैसला कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि अभिनेता विवेक ओबोराय को भाजपा ने लोकसभा चुनाव में स्टार प्रचारक नामित किया है। विवेक ओबेराय के पिता भी एक अभिनेता हैं और भाजपा के सदस्य हैं।

उन्होंने पीठ से कहा, ‘‘आप को फिल्म दिखाने का आदेश देने का अधिकार है। इस फिल्म का दूरगामी प्रभाव होगा क्योंकि इसे देश भर में करीब 40 दिन तक प्रदर्शित किया जायेगा।

‘‘पीएम नरेन्द्र मोदी’’ शीर्षक वाली बायोपिक पांच अप्रैल को प्रदर्शित होनी थी परंतु इसे अगली नोटिस तक के लिये टाल दिया गया है।

इससे पहले, बंबई उच्च न्यायालय और मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की इन्दौर पीठ फिल्म के प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगाने और इसका प्रदर्शन स्थगित करने के अनुरोध ठुकरा चुकी है।

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सुप्रीम कोर्ट ने लोकसभा चुनाव में हरेक विधानसभा क्षेत्र में 5 EVM के मतों को VVPAT की पर्चियों से मिलाने का दिया आदेश attacknews.in

नयी दिल्ली, 08 अप्रैल । उच्चतम न्यायालय ने लोकसभा चुनाव के दौरान प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में एक के बजाय पांच इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) के मतों को वोटर वेरीफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल्स (वीवीपैट) की पर्चियों के साथ मिलान कराने का आदेश दिया है।

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने सोमवार को अपने एक आदेश में कहा कि उसने निर्वाचन अधिकारियों से बातचीत की है। सबसे पहले तो वह यह स्पष्ट करती है कि उसे ईवीएम को लेकर कोई संदेह नहीं है। यह संभव है कि ईवीएम से बिल्कुल सही परिणाम मिलते हैं, लेकिन यदि ज्यादा वीवीपैट पर्चियों का मिलान ईवीएम से कराया जाये तो परिणाम को लेकर और अधिक संतुष्टि होगी।

न्यायालय का यह आदेश 21 विपक्षी दलों के नेताओं की ओर से दायर उस याचिका पर आया है, जिसमें उन्होंने प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र से कम से कम 50 फीसदी वीवीपैट मशीनों से निकली पर्चियों का मिलान ईवीएम से पड़े मतों से कराने के निर्देश देने का अनुरोध किया था।

इससे पहले निर्वाचन आयोग ने इस मांग को अव्यावहारिक करार देते हुए कहा था कि यदि ऐसा किया गया तो चुनाव परिणाम में छह से नौ दिन की देरी हो सकती है। आयोग ने कहा था कि ईवीएम से मतदान में किसी तरह की गड़बड़ी की गुंजाइश नहीं है।

याचिकाकर्ताओं में तेलुगुदेशम पार्टी प्रमुख चंद्रबाबू नायडु और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल सहित 21 विपक्षी दलों के प्रमुख नेता शामिल थे।

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पढ़ें : भाजपा का 50 पेज का घोषणापत्र ( PDF) :किसानों और व्यापारियों को कई सुविधाएं, कश्मीर से अनुच्छेद 370 एवं 35ए समाप्त करने का संकल्प, नरेन्द्र मोदी ने विकास को जनांदोलन बनाने की बात कही attacknews.in

PDF- BJP Manifesto 2019 – attacknews.inOP

नयी दिल्ली, 08 अप्रैल । भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने सत्ता में लौटने पर किसानों-छोटे व्यापारियों के लिए पेंशन एवं आसान ऋण के साथ कई अन्य सुविधाएँ देने तथा पाँच साल में गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों की संख्या 10 प्रतिशत से कम पर लाने का वादा किया है और जम्मू-कश्मीर से संबंधित अनुच्छेद 370 एवं 35ए को समाप्त करने तथा राममंदिर निर्माण की प्रतिबद्धता दोहरायी है।

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज यहाँ पार्टी मुख्यालय में अन्य वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी में ‘संकल्प पत्र’ नाम से पार्टी के चुनाव घोषणापत्र का लोकार्पण किया। इसमें किसान क्रेडिट कार्ड धारकों को एक लाख रुपये तक का कर्ज पाँच साल के लिए बिना ब्याज के देने, उद्यमियों को बिना किसी सिक्योरिटी के 50 लाख रुपये तक का ऋण देने, किसानों और छोटे व्यापारियों को 60 वर्ष की उम्र के बाद पेंशन की सुविधा, व्यापारियों की समस्याओं के समाधान के लिए राष्ट्रीय व्यापार आयोग गठित करने, हर परिवार को पाँच किलोमीटर के दायरे में बैंकिंग सुविधा देने तथा देश भर में 75 नये मेडिकल कॉलेज खोलने का वादा किया गया है।

पार्टी ने राम मंदिर पर अपना पुराना रुख दोहराते हुये कहा है कि इसके निर्माण के लिए सौहार्द्रपूर्ण वातावरण में सभी विकल्प तलाशे जायेंगे। जम्मू-कश्मीर पर भी उसने अपना पुराना राग अलापते हुये कहा है कि एक बार फिर सत्ता में आने पर वह राज्य से संबंधित विशेष प्रावधानों – अनुच्छेद 370 और 35ए – को समाप्त करेगी। पार्टी ने समान नागरिक संहिता लाने तथा नागरिकता संशोधन विधेयक को संसद के दोनों सदनों से पारित कराने, आतंकवाद पर ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति जारी रखने और देश की सुरक्षा से कोई समझाौता नहीं करने का संकल्प व्यक्त किया है।

सत्तारूढ़ दल ने अगले पाँच साल के दौरान बुनियादी ढाँचों के विकास पर 100 लाख करोड़ रुपये और ग्रामीण क्षेत्र के विकास पर 25 लाख करोड़ रुपये खर्च करने का वादा किया है। उसने कहा है कि वर्ष 2024 तक एमबीबीएस और स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की संख्या दोगुनी की जायेगी, डेढ़ लाख स्वास्थ्य और कल्याण केन्द्रों में टेलीमेडिसिन तथा डायग्नोस्टिक लैब की सुवाधाएँ उपलब्ध करायी जायेंगी, हर जिले में कम से कम एक मेडिकल कॉलेज या परास्नातक मेडिकल कॉलेज खोले जायेंगे और भारतीय शैक्षणिक संस्थानों का विश्व के शीर्ष 500 शैक्षणिक संस्थानों में स्थान सुनिश्चित किया जायेगा।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज कहा कि दोबारा सत्ता में आने पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार पांच वर्षों में विकास को जनांदोलन बनाकर आजादी के 100 वर्ष पूरे होने पर 2047 में भारत को विकसित राष्ट्र बनाने की मजबूत आधारशिला रखेगी।

श्री मोदी ने आज यहां पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और अन्य वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी में लोकसभा चुनावों के लिए पार्टी का संकल्प पत्र जारी किये जाने के मौके पर कहा ,“ हमारा संकल्प पत्र, सुशासन पत्र , राष्ट्र की सुरक्षा का पत्र और राष्ट्र की समृद्धि का पत्र भी है”। देश को तरक्की की राह पर तेज गति से दौड़ाने के लिए जनांदोलन की जरूरत पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि इसके लिए स्वच्छता की तर्ज पर जनांदोलन चलाना होगा।

उन्होंने कहा कि पार्टी प्रतिबद्ध है कि वह देश को समृद्ध बनाने के लिए, सामान्य मानवी के सशक्तिकरण को लेकर जन भागीदारी को बढ़ाते हुए, लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देगी और ‘एक मिशन , एक दिशा’ को लेकर आगे बढेगी। उन्होंने कहा कि भारतीय समाज में विविधताएं हैं। भाषाएं, जीवन स्तर, शिक्षा आदि की विविधता है। इसलिए विकास को बहुआयामी बनाने की योजना को भी संकल्प पत्र में शामिल किया गया है।

उन्होंने कहा कि मौजूदा कार्यकाल में भाजपा सरकार ने सामान्य मानवीय की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर शासन चलाया। अब उनकी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए क्या किया जा सकता है इसका खाका संकल्प पत्र में तैयार किया गया है। उन्होंने कहा ,“ दिल्ली में एयर कंडीशन मैं बैठे लोग गरीबी को हरा नहीं सकते। गरीब ही गरीबी को परास्त कर सकता है। ये हमारा मंत्र है और इसलिए गरीबों के सशक्तिकरण पर हमने बल दिया है। ” प्रधानमंत्री ने कहा कि गांव, गरीब और किसान भाजपा की विचारधारा के केन्द्र में है।

श्री मोदी ने कहा कि अक्सर कहा जाता है कि 21 वीं सदी एशिया की होगी। भारत को यह तय करना है कि आजादी के 100 वर्ष पूरे होने के मौके यानी 2047 में उसे विकासशील से विकसित राष्ट्र कैसे बनना है। इसके लिए वर्ष 2019 से 2024 के बीच इस लक्ष्य को हर भारतीय का सपना बनाना है और इस लक्ष्य की मजबूत नींव रखनी है। इसके लिए विकास का जनांदोलन चलाना जरूरी है। युवाओं को इस सपने के केन्द्र में रखा गया है क्योंकि वही 2047 का भविष्य तय करेंगे।

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी ने उसके कामकाज के लेखे-जोखे के लिए एक मध्यावधि बिन्दू भी तय किया है। इसके माध्यम से लोग सरकार को उसके वादों की कसौटी पर परख सकेंगे और इसके लिए 2022 में जब आजादी के 75 साल होंगे तब देश के उन महापुरुषों जिन्होंने आजादी की जंग लड़ी थी, उनके सपनों का भारत बनाने के लिए पार्टी ने 75 लक्ष्य तय किये हैं। उन्होंने इसके लिए ‘75 वर्ष , 75 लक्ष्य’ का नारा भी दिया।

उन्होंने कहा कि जल संकट देश के सामने खड़ी बड़ी चुनौतियों में से एक है और इसके समाधान के लिए पार्टी जल शक्ति मंत्रालय बनायेगी।

अरुण जेटली ने कहा:

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने लोकसभा चुनाव के लिए ‘संकल्प पत्र’ के नाम से जारी अपने घोषणापत्र में पाँच साल में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या घटाकर आबादी के 10 प्रतिशत से कम पर लाने का वायदा किया है।

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने यहाँ भाजपा मुख्यालय में घोषणापत्र जारी होने के बाद उसके बारे में अपने विचार रखते हुये कहा “देश के इतिहास में यह पहली सरकार है जिसने मध्य वर्ग को मजबूत किया है और जिसके कार्यकाल में गरीबी सबसे तेजी से घटी है। अगले पाँच साल में हम गरीबों की संख्या का प्रतिशत इकाई अंक में ले आयेंगे और धीरे-धीरे इसे पूरी तरह समाप्त कर देंगे।”

उन्होंने कहा कि पिछले पाँच साल में सरकार ने न सिर्फ गरीबों को संसाधन मुहैया कराया, बल्कि करों में सिर्फ कमी की है, कभी बढ़ाया नहीं। सरकार ने राजस्व बढ़ाने के लिए कर आधार बढ़ाया और इससे बढ़ी हुई आय का इस्तेमाल सड़कों तथा अन्य बुनियादी ढाँचों के विकास के लिए किया। वित्त मंत्री ने कहा “अगले पाँच साल में बुनियादी ढाँचे पर 100 लाख करोड़ रुपये खर्च किये जायेंगे।”

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राबर्ट वाड्रा कांग्रेस पार्टी के लिए करेंगे चुनाव प्रचार,अरुण जेटली ने कर दिया उनके प्रचार का आकलन attacknews.in

नयी दिल्ली 07 अप्रैल । भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता एवं वित्त मंत्री अरुण जेटली ने श्री रॉबर्ट वाड्रा के कांग्रेस के चुनाव प्रचार अभियान में भाग लेने की घोषणा पर चुटकी लेते हुए रविवार को कहा कि उन्हें समझना चाहिए कि इससे कांग्रेस को अधिक लाभ होगा या भाजपा को।

श्री जेटली ने यहां पार्टी के प्रचार अभियान की शुरुआत के मौके पर संवाददाताओं के सवालों के जवाब में कहा, “मैं नहीं जानता कि यह कांग्रेस पार्टी के प्रचार के लिए फायदेमंद होगा या भाजपा के प्रचार अभियान के लिए।” इससे पहले दिन में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के पति श्री वाड्रा ने कहा था कि वह लोकसभा चुनावों के लिए कांग्रेस पार्टी के लिए प्रचार करेंगे।

मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री कमलनाथ के विशेष कार्य अधिकारी के यहां आयकर के छापे काे कांग्रेस द्वारा राजनीतिक प्रतिशोध की कार्रवाई बताये जाने पर श्री जेटली ने कहा कि आदर्श आचार संहिता के लागू होने के बाद चुनावों में अनैतिक आचरण रोकने के लिए आयकर विभाग चुनाव आयोग के साथ मिलकर काम करता है और उसके अधिकारी सरकार को रिपोर्ट नहीं करते हैं।

उन्होंने कहा कि मगर यह बात सच है कि जहां जहां भी कांग्रेस की सरकार है, वहां खूब भ्रष्टाचार होता है। सरकार के भ्रष्टाचार के काले धन काे चुनावों में राजनीतिक ढंग से सफेद किया जाता है। भाजपा इसीलिए चुनावी बॉण्ड या चेक पर जोर देती है। उन्होंने कहा कि जो लोग इस कार्रवाई को लेकर आरोप लगा रहे हैं, उन्हें शर्म आनी चाहिए।

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आजमगढ़ से भाजपा प्रत्याशी भोजपुरी स्टार दिनेश यादव उर्फ़ निरहुआ ने अखिलेश यादव को विचारों की जंग के साथ चुनाव में धराशायी करने की बात कही attacknews.in

लखनऊ 7 अप्रैल । रूपहले पर्दे से सियासी मैदान में उतरकर आजमगढ़ सीट से सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के खिलाफ चुनाव लड़ने जा रहे भोजपुरी फिल्मों के मेगास्टार दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ का कहना है कि उन्होंने हमेशा मुश्किल डगर ही चुनी है और विचारों की इस जंग में जीत उनकी ही होगी।

फिल्म जगत में ‘निरहुआ’ के नाम से मशहूर यादव उत्तर प्रदेश की आजमगढ़ लोकसभा सीट से भाजपा के उम्मीदवार हैं। उनका कहना है कि अखिलेश ‘भैया’ के खिलाफ उनकी लड़ाई दरअसल विचारों की जंग है। उन्हें विश्वास है कि वह इसमें जीत हासिल करेंगे।

निरहुआ ने बातचीत में आजमगढ़ से बाहरी प्रत्याशियों के चुनाव लड़ने पर चिंता जाहिर की। ऐसा करके उन्होंने एक तरह से 2014 में यहां से जीते मुलायम सिंह यादव और इस बार यहां से चुनाव लड़ रहे सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पर अप्रत्यक्ष रूप से तंज किया।

उन्होंने कहा ‘आजमगढ़ में लोग चुनाव जीतने के लिये आते हैं और जीतकर निकल जाते हैं। ऐसे थोड़े ही चलेगा। हम पूर्वांचल के हैं। हम लोगों का सपना है कि हमारा आजमगढ़ भी बने—संवरे ताकि दुनिया देखे। अब जो लोग खाली जीतने आते हैं, उन्हें तो भगाना ही पड़ेगा।’ इस सवाल पर कि क्या उनका इशारा अखिलेश और सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव की तरफ है, निरहुआ ने कहा ‘हम मानते हैं कि अगर आपके पास समय नहीं है तो आप आजमगढ़ के ही रहने वाले किसी व्यक्ति को अपनी पार्टी से टिकट दें। क्या यहां काबिल लोगों की कमी है?’ मालूम हो कि अखिलेश वर्ष 2012 में मुख्यमंत्री बनने से पहले कन्नौज से चुनाव लड़ते रहे हैं। वह पहली बार आजमगढ़ से चुनाव लड़ रहे हैं।

निरहुआ ने कहा कि यह सच है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश ‘भैया’ ने जनवरी 2017 में मुझे यश भारती पुरस्कार दिया लेकिन राजनीति तो विचारों की लड़ाई है। इसमें यह देखना होगा कि जनता का भला किसमें है।

मूल रूप से गाजीपुर जिले के टड़वां गांव के रहने वाले दिनेश लाल यादव पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं। आजमगढ़ से उनकी राह आसान नहीं कही जा सकती, क्योंकि उनके सामने समाजवादियों का गढ़ कही जाने वाली इस सीट पर सपा अध्यक्ष अखिलेश मैदान में हैं। इस बारे में निरहुआ का कहना है ‘मैंने हमेशा ही मुश्किल डगर चुनी है, अगर आसान डगर लूंगा तो जीना बेकार है। मुझे असम्भव को सम्भव बनाना है।’ यह पूछे जाने पर कि फिल्मी हस्तियां अक्सर अपने कॅरियर और राजनीति के बीच तालमेल नहीं बैठा पाती है, भोजपुरी स्टार ने कहा ‘तालमेल नहीं बैठा पाते हैं, क्योंकि वे फिल्म जगत का मोह नहीं छोड़ पाते। मैं पूरी तरह यहीं रहूंगा। एक—दो अच्छी फिल्में बनानी होंगी तो यहीं बना लूंगा। अगर मैं सांसद बना तो आजमगढ़ को फिल्म निर्माण का गढ़ बनाऊंगा।’ उन्होंने कहा कि पूर्वांचल उनका घर है और वह यहां की मूल समस्याओं से वाकिफ हैं। उनका दर्शक वर्ग गरीब तबका है। उसे कहीं ना कहीं जाति, धर्म के नाम पर सिर्फ इस्तेमाल किया जाता है। जब उसको सम्मान देने की बात आती है तो हर पार्टी पीछे हट जाती है।

निरहुआ ने बसपा प्रमुख मायावती और सपा अध्यक्ष अखिलेश को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा ‘बहन जी दलितों की राजनीति करती हैं, मगर 38 में से एक भी सीट पर दलित को टिकट नहीं दिया। अखिलेश यादवों के नेता बनते हैं। वह बताएं कि उन्होंने पूर्वांचल में कितने यादवों को टिकट दिया है?’

उन्होंने कहा कि भाजपा एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसमें लोकतंत्र बाकी है। इसके साधारण कार्यकर्ता में भी अगर क्षमता है तो वह देश का प्रधानमंत्री बन सकता है।

दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ को वर्ष 2003 में आये अलबम ‘निरहुआ सटल रहे’ से लोकप्रियता मिली थी और इसने बिक्री के तमाम रिकॉर्ड तोड़ डाले थे। उनकी फिल्म ‘निरहुआ रिक्शावाला’ ऐसी पहली भोजपुरी फिल्म थी जो विदेश में भी रिलीज हुई।

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देश की औद्योगिक नगरी जमशेदपुर लोकसभा सीट पर भाजपा के सामने त्रिकोणीय कडी टक्कर attacknews.in

जमशेदपुर 07 अप्रैल । झारखंड की प्रतिष्ठित जमशेदपुर लोकसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए 2014 की जीत को दोहराना कठिन होगा और उसे विपक्षी गठबंधन से कड़ी टक्कर मिल सकती है।

इस सीट पर भाजपा ने मौजूदा सांसद बिद्युत बरन महतो को दोबारा टिकट दिया है। वहीं, विपक्षी गठबंधन की ओर से झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) ने सरायकेला से मौजूदा विधायक चंपई सोरेन को उम्मीदवार बनाया है। ‘कोल्हान टाइगर’ के नाम से प्रसिद्ध श्री सोरेन की इलाके में अच्छी लोकप्रियता है तथा एक कर्मठ नेता के रूप में उनकी प्रतिष्ठा है। आम आदमी पार्टी पहली बार इस सीट पर किस्मत आजमाने और इलाके में अपनी पहचान स्थापित करने का प्रयास कर रही है। उसने आरटीआई कार्यकर्ता दिनेश महतो को मैदान में उतारा है।

देश की पहली और बड़ी औद्योगिक नगरी जमशेदपुर में वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में श्री महतो ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी और झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम) के तत्कालीन सांसद अजय कुमार को करीब एक लाख मतों से पराजित किया था। कुल 10 लाख 49 हजार 783 मत पड़े थे जिनमें भाजपा के खाते में चार लाख 64 हजार153 और जेवीएम के खाते में तीन लाख 64 हजार 277 मत गये थे। उस चुनाव में जेएमएम तीसरे स्थान पर रही थी और उसके उम्मीदवार निरूप महंती को एक लाख 38 हजार 109 मत मिले थे।

इस बार के चुनाव की खासियत यह है कि श्री कुमार जेवीएम छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं और इस समय झारखंड कांग्रेस के अध्यक्ष हैं। शहर में उनकी खासी लोकप्रियता है। इस प्रकार इस बार जेएमएम के पारंपरिक जनजातीय वोट के साथ बड़ी संख्या में बाहर से आकर रोजी के लिए यहाँ बसने वाले विभिन्न राज्यों के लोगों का वोट भी उसके पक्ष में जा सकता है।

भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी श्री कुमार 1994 से 1996 में जमशेदपुर के पुलिस अधीक्षक रहे थे और शहर में उस समय जारी गैंगवार समाप्त करने के लिए उन्हें जाना जाता है। इसके बाद उन्होंने पुलिस की नौकरी छोड़कर टाटा मोटर्स, जमशेदपुर में वरिष्ठ कार्यकारी का पद स्वीकार कर लिया। बाद में टाटा मोटर्स छोड़कर वह राजनीति में आ गये। वर्ष 2011 में भाजपा सांसद अर्जुन मुंडा के मुख्यमंत्री बनने के बाद लोकसभा सीट के लिए हुये उपचुनाव में वह जेवीएम उम्मीदवार के रूप में विजयी रहे थे।
लौहनगरी जमशेदपुर की सीट पर पारंपरिक रूप से मजदूर नेताओं या जनजातीय नेताओं का कब्जा रहा है। हालांकि, वर्ष 2011 के उपचुनाव में श्री कुमार और 1996 के चुनाव में टीवी सीरियल महाभारत में भगवान कृष्ण की भूमिका निभाने वाले नितीश भारद्वाज इस सीट पर जीत चुके हैं।

यह सीट पहली बार 1957 के चुनाव में अस्तित्व में आयी और कांग्रेस के मोहिंद्र कुमार घोष विजयी यहाँ से विजयी हुये थे। उसके बाद 1962 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, 1967 और 1971 में कांग्रेस, 1977 में भारतीय लोकदल, 1980 में जनता पार्टी, 1984 में कांग्रेस, 1989 और 1991 में जेएमएम, 1996, 1998 और 1999 में भाजपा, 2004 में और 2007 के उपचुनाव में जेएमएम, 2009 में भाजपा, 2011 के उपचुनाव में जेवीएम और 2014 में भाजपा ने यहाँ अपना परचम लहराया है।

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लोकसभा चुनाव में कैसे बना अफ्सपा कानून चुनावी मुद्दा और जारी हैं पार्टियों के बीच जुबानी जंग, नरेन्द्र मोदी ने तो विपक्ष पर ‘ टुकड़े- टुकड़े ‘गैंग की भाषा बोलने का आरोप लगाया attacknews.in

नयी दिल्ली 7 अप्रैल । लाेकसभा चुनाव में एक बड़ा मुद्दा बनकर उभरा सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (अफस्पा) छह दशक पूर्व अस्तित्व में आया था और इसे सबसे पहले 1958 में असम के नगा पर्वतीय क्षेत्रों में लागू किया गया था जो समय-समय पर विवाद का विषय बनता रहा है।

मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के 2019 आम चुनाव के घोषणा पत्र में अफस्पा की समीक्षा करने की बात कही गयी है और इसको लेकर नया विवाद उठ खड़ा हुआ है। भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस पर देश तोड़ने का आरोप लगाते हुए इसे अपने प्रचार का मुख्य हथियार बना लिया है वहीं कांग्रेस यह कहते हुए पलटवार कर रही है कि अफस्पा को लेकर हाय तोबा मचाने वाली भाजपा ने त्रिपुरा से 2015, मेघालय से 2018 में और अरूणाचल के तीन हिस्सों से 2019 में इस कानून को समाप्त कर चुकी है।

इस मसले पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करते हुए वह ‘टुकड़े टुकड़े गैंग’ की भाषा बाेल रही है। उन्हाेंने कहा ,“आप अफस्पा का कानून हटाना चाहते हैं, लाए आप, आपको कभी नियमित रुप से समीक्षा करनी चाहिए थी, स्थिति देखनी चाहिए, लेकिन आंखें बंद रखी। हां दुनिया में कोई यह नहीं चाहेगा कि देश जेलखाना बनकर चले, लेकिन आपने स्थितियां सुधारते रहना चाहिए, जैसा हमने अरुणाचल प्रदेश में किया, जहां स्थिति सुधरी, उसे बाहर निकाला, लेकिन कानून खत्म कर देना, कानून को बदल देना, यह जो आप टुकड़े टुकड़े गैंग की भाषा बोल रहे हो, तो यह देश कैसे चलेगा?”

पूर्वोत्तर क्षेत्र में उग्रवाद और कानून व्यवस्था की स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए यह विशेष कानून बनाया गया था और इसे सबसे पहले 11 सितम्बर 1958 को असम के नगा पर्वतीय क्षेत्रों में लागू किया गया था। बाद में बदली परिस्थितियों में इसे अलग-अलग समय पर पूर्वोत्तर के सात अन्य राज्यों में लागू किया गया और 1990 के दशक में जम्मू -कश्मीर के आतंकवाद की गिरफ्त में आने के बाद इसे वहां भी लागू किया गया। निरंतर विवादों के केन्द्र में रहा यह कानून पिछले करीब तीन दशक से जम्मू-कश्मीर में लागू है।

मानवाधिकारों के हनन को लेकर कई वर्ग तथा मानवाधिकार संगठन इस कानून की आलोचना करते रहे हैं वहीं कुछ राष्ट्रीय नेताओं ने इसे हटाने की वकालत की है तो कुछ ने इसे शांति बनाये रखने के लिए जरूरी बताया है। अफस्पा उसी क्षेत्र में लागू किया जाता है जिसे केन्द्र अथवा राज्य सरकार द्वारा अशांत क्षेत्र घोषित किया जाता है। इस कानून के तहत सेना को कानून के खिलाफ काम करने और अशांति फैलाने वालों के खिलाफ बल प्रयोग और कड़ी कार्रवाई करने की अनुमति है भले ही इस कार्रवाई में कथित आरोपी की मौत ही क्यों न हो जाये। सेना को संज्ञेय अपराध करने वाले व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार करने की भी अनुमति होती है। वह किसी भी ठिकाने की तलाशी और जांच भी कर सकती है। गिरफ्तार व्यक्ति को यथासंभव कम समय में निकट के पुलिस स्टेशन में पेश किये जाने का भी प्रावधान है। कानून में सैन्यकर्मियों को इन दोषियों के खिलाफ की गयी कार्रवाई के लिए कानूनी संरक्षण दिया गया है। उनके खिलाफ इस तरह के मामलों में कोई मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।

अफस्पा के तहत आने वाले क्षेत्रों में सेना के साथ मुठभेड़ों में मारे गये लोगों के मानवाधिकारों का मुद्दा भी समय-समय पर उठता रहा है और इन मुठभेड़ों की जांच के लिए कई समितियों और आयोगों का भी गठन किया गया है। उच्चतम न्यायालय ने भी अपने एक आदेश में कहा है कि अफस्पा के नाम पर की गयी मुठभेड़ों को जांच के दायरे में रखा जाना चाहिए। अफस्पा के विरोध में मणिपुर की सामाजिक कार्यकर्ता शर्मिला इरोम ने 16 वर्षों तक भूख हड़ताल की। मणिपुर में एक बस स्टेन्ड पर सुरक्षा बलों की कार्रवाई में 10 लोगों के मारे जाने के विरोध में शर्मिला ने नवम्बर 2000 में भूख हड़ताल शुरू की थी जो वर्ष 2016 तक चली।

कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में कहा है कि वह उन परिस्थितियों का सम्मान करती है जिनके तहत जम्मू- कश्मीर ने भारत में विलय को स्वीकार किया, जिसके वजह से भारत के संविधान में अनुच्छेद 370 को शामिल किया गया। इस संवैधानिक स्थिति को बदलने की न तो अनुमति दी जायेगी, न ही ऐसा प्रयास किया जायेगा। पार्टी जम्मू-कश्मीर में सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम और अशांत क्षेत्र अधिनियम की समीक्षा करेगी और सुरक्षा की जरुरतों एवं मानवाधिकारों के संरक्षण में संतुलन के लिये कानूनी प्रावधानों में उपयुक्त बदलाव करेगी।

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पुरानी दिल्ली यानि चांदनी चौक संसदीय सीट पर कांग्रेस पार्टी अपनी बादशाहत कायम नहीं रख पाई attacknews.in

नयी दिल्ली 07 अप्रैल । लजीज व्यंजनों, सकरी गलियों और मुगलकालीन कई राष्ट्रीय धरोहरों को अपने आंचल में संजोये चांदनी चौक संसदीय क्षेत्र कभी भी किसी राजनीतिक दल का गढ़ नहीं बना हालांकि कांग्रेस ने यहां नौ बार और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने चार बार अपनी विजय पताका फहरायी।

पहले चांदनी चौक सीट की पहचान सामान्यत: पुरानी दिल्ली के रूप में ही थी। दिल्ली में आबादी बढ़ने के साथ-साथ इसका स्वरूप और आकार बदलता चला गया। सकरी गलियों के लिए मशहूर चांदनी चौक के संसदीय क्षेत्र में अब कई पाॅश कालोनियां भी शामिल हो गई हैं। किराना, कपड़ा, बिजली और दवाइयों के थोक बाजार के लिए पूरे भारत में पहचान रखने वाले इस संसदीय क्षेत्र में पहले मुस्लिम और वैश्य समुदाय का चुनाव परिणामों में खासा प्रभाव रखता था किंतु आबादी बढ़ने के बाद वोटरों की संख्या लाखों में पहुंच जाने से अब वह बात नहीं रही।

इस संसदीय सीट ने कई केंद्रीय मंत्री भी दिए जिनमें केंद्र की वर्तमान मोदी सरकार में हर्षवर्धन के अलावा कांग्रेस के कपिल सिब्बल, लोकदल के सिकंदर बख्त और भाजपा के विजय गोयल शामिल हैं। वर्ष 1991 और 1999 के आम चुनाव में यहां हार जीत का अंतर बहुत कम रहा था ।

वर्ष 1956 में अस्तित्व में आने के बाद 1957 से 2014 के बीच हुए आम चुनाव में यहां नौ बार कांग्रेस, चार बार भाजपा, एक- एक बार भारतीय जनसंघ और भारतीय लोकदल का प्रतिनिधि इस सीट से लोकसभा में पहुंचा।

वर्ष 1957 में पहले आम चुनाव में कांग्रेस के राधा मोहन ने भारतीय जनसंघ के बंसत राव को हराया था। इस चुनाव से लेकर 1967 तक लोकसभा चुनाव में विजयी उम्मीदवार को मिले कुल मतों की संख्या हजारों में ही रहती थी किंतु बाद में मतदाताओं की संख्या बढ़ने से जीत हार का अंतर लाखों में होने लगा।

दिल्ली में पहले विधानसभा नहीं थी। वर्ष 1966 से 1993 तक हुए आम चुनाव में महानगर परिषद के सिविल लाइन, चांदनी चौक, बल्लीमरान, अजमेरी गेट, कूचा पाती राम, मटिया महल , पहाड़गंज और कसाबपुरा इस संसदीय सीट के दायरे में आते थे। वर्ष 1993 में दिल्ली में विधानसभा बनी और 2008 तक इस संसदीय सीट के चुनाव में पहाड़गंज, मटिया महल, बल्लीमरान, चांदनी चौक, मिंटो रोड और राम नगर विधानसभा क्षेत्र के मतदाता लोकसभा के लिए अपना सांसद चुनते थे।

वर्ष 2008 में परिसीमन के बाद 2009 के आम चुनाव में इस संसदीय सीट के दायरे में दस विधानसभा आदर्श नगर, शालीमार बाग, शकूर बस्ती, त्रिनगर, वजीरपुर, माडल टाउन , सदर बाजार , चांदनी चौक, मटिया महल और बल्लीमरान आ गए।

वर्ष 2009 तक हुए आम चुनाव में इस संसदीय सीट पर मुख्य रुप से कांग्रेस और भाजपा में जोर आजमाइश होती थी लेकिन आम आदमी पार्टी(आप) के पार्दुभाव के बाद 2014 के चुनाव में भाजपा को जीत मिली तो कांग्रेस तीसरे स्थान खिसक गई।

सत्रहवीं लोकसभा के लिए 12 मई को होने वाले मतदान के लिए अभी दोनों बड़े राष्ट्रीय राजनीतिक दलों कांग्रेस और भाजपा ने उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है, किंत आप ने पंकज गुप्ता को मैदान में उतार कर चुनाव प्रचार शुरु कर दिया है।

इस संसदीय सीट के इतिहास पर नजर डालें तो 1957 के चुनाव में कांग्रेस के राधा मोहन ने 50758 मत हासिल कर भारतीय जनसंघ उम्मीदवार बंसत राव (40560) को पटखनी दी। वर्ष 1962 में कांग्रेस ने फिर बाजी मारी और इस बार शामनाथ (69508) ने जनसंघ के अमृतलाल जिंदल (40560) को हराया। वर्ष 1967 के चुनाव में शामनाथ अपनी सीट बचा नहीं पाये और भारतीय जनसंघ के रामगोपाल शालवाले (58928) से हार गये। शामनाथ को 41778 वोट मिले। रामगोपाल शाल वाले 1971 के चुनाव में कांग्रेस की सुभद्रा जोशी से हार गए ।

देश में आपातकाल के बाद 1977 में हुए आम चुनाव में भारतीय लोक दल के सिकंदर बख्त ने सुभद्रा जोशी को एक लाख 15 हजार 589 मतों के बड़े अंतर से हराया। श्री बख्त को इस चुनाव में एक लाख 85 हजार 850 मत हासिल किए और सुश्री जोशी केवल 69 हजार 861 मत ही हासिल कर पाई। वर्ष 1980 के आम चुनाव कांग्रेस में विभाजन के बाद हुआ। भीखूराम जैन ने कांग्रेस(इंदिरा) के टिकट पर चुनाव लड़ा और सिकंदर बख्त (जेएनपी) को पटकनी दी। वर्ष 1984 के आम चुनाव में श्री बख्त एक बार फिर मैदान में थे और भाजपा के टिकट पर लड़े किंतु कांग्रेस के जयप्रकाश अग्रवाल के हाथों पराजय झेलनी पड़ी।

श्री अग्रवाल ने 1989 में अपनी सीट बचाते हुए भाजपा के सतीश चंद्र खंडेलवाल को हराया लेकिन 1991 के चुनाव में भाजपा के ताराचंद खंडेलवाल ने उन्हें पराजित कर दिया । वर्ष 1996 के चुनाव में जय प्रकाश अग्रवाल फिर कांग्रेस के टिकट पर विजयी हुए और भाजपा के जे के जैन को हराया । इसके बाद हुए दो चुनाव में जयप्रकाश अग्रवाल कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े और उन्हें भाजपा के विजय गोयल से शिकस्त झेलनी पड़ी। श्री गोयल ने 1998 और 1999 के चुनाव में भाजपा की झोली में यह सीट डाली ।

कांग्रेस ने 2004 और 2009 के चुनाव में यहां तेज तर्रार वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल को मैदान में उतारा । वर्ष 2004 के चुनाव श्री सिब्बल ने भाजपा के टिकट पर लड़ी स्मृति ईरानी को हराया तो 2009 में भाजपा के विजेंद्र गुप्ता को शिकस्त दी किंतु 2014 के चुनाव में उन्हें क्षेत्र के मतदाताओं ने पसंद नहीं किया। भाजपा ने इस सीट से हर्षवर्धन को उतारा। पहली बार दिल्ली में हुए त्रिकोणीय चुनाव में कांग्रेस को बड़ा धक्का लगा। डा. हर्षवर्धन ने 437938 मत हासिल कर विजयी हुये । दूसरे स्थान पर रहे आप के आशुतोष (301618) को एक लाख 36 हजार 320 मतों से पराजित किया। श्री सिब्बल एक लाख 76 हजार 206 मत हासिल कर तीसरे स्थान पर बुरी हार का सामना करना पड़ा ।

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`अब होगा न्याय ‘ नारे के साथ कांग्रेस का शुरू हुआ प्रचार अभियान और देश के कोने-कोने में कंटेनर ट्रकों को भेजा attacknews.in

नयी दिल्ली 07 अप्रैल । कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा चुनावों के लिए रविवार को ‘अब होगा न्याय’ के नारे के साथ अपना देशव्यापी प्रचार अभियान आरंभ किया और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कांग्रेस के नेता राहुल गांधी के साथ न्यूनतम आय योजना (न्याय) पर खुली बहस करने की चुनौती दी जिसे सारा देश देखे और सुने।

कांग्रेस के बुजुर्ग नेता मोतीलाल वाेरा, राज्यसभा में कांग्रेस के उप नेता आनंद शर्मा और पार्टी के संचार विभाग के प्रमुख रणदीप सुरजेवाला ने यहां कांग्रेस मुख्यालय में पार्टी का प्रचार अभियान आरंभ किया।

इस मौके पर श्री शर्मा ने कहा कि देश में इस समय हताशा एवं निराशा का वातावरण है। अच्छे दिन का वादा करने वालों ने देश को बहुत खराब दिन दिखायें हैं। समाज के बहुत बड़े वर्ग के साथ अन्याय हुआ है।
श्री शर्मा ने कहा कि कांग्रेस का प्रचार अभियान लोगों की भावनाओं और राष्ट्र की प्राथमिकताओं पर आधारित होगा। आज देश में नौजवान रोजगार की, महिलाएं सुरक्षा की, किसान बेहतर दाम की चाह में न्याय की पुकार कर रहा है। देश को काम, दाम, सम्मान और न्याय की जरूरत है। सरकार ने वादाखिलाफी की है। प्रधानमंत्री आज भी खोखले दावे करके विपक्ष को बदनाम कर रहे हैं। उन्हें बताना चाहिए कि 2014 में जो कहा था, उन वादों का क्या हुआ। आज जो हालात खराब हैं, उसकी जिम्मेदारी किसकी है।

श्री सुरजेवाला ने भाजपा के राष्ट्रवाद के नारे से जुड़े एक सवाल का जवाब देते हुए कहा कि राष्ट्रवाद प्रधानमंत्री श्री मोदी या भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की जागीर नहीं है। कांग्रेस ने राष्ट्र के निर्माण के लिए बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया है। आतंकवाद से मुकाबला किया है और अपने दो शीर्ष नेताओं का बलिदान दिया है और देश की एकता अखंडता बनाये रखी है। देश में परमाणु विस्फोट 1974 में हुआ था। 1975 में आर्यभट्ट को प्रक्षेपित किया जा चुका था। 1971 में जब देश में एक करोड़ शरणार्थी आ गये तो सेना ने युद्ध लड़कर बंगलादेश बनवा दिया लेकिन श्रीमती इंदिरा गांधी ने कभी श्रेय नहीं लिया।

प्रधानमंत्री को सलाह है कि वह असली मुद्दों पर बात करें। उन्होंने कहा कि श्री मोदी प्रधानमंत्री नहीं हैं, वास्तव में वह प्रचार मंत्री एवं परिधान मंत्री हैं।

श्री मोदी द्वारा न्याय योजना की आलोचना के बारे में एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री घबरा गये हैं। उन्होंने कांग्रेस का घोषणापत्र पढ़ा नहीं है। उनमें बात करने की शालीनता तक नहीं है। कांग्रेस ने जो भी वादा किया है, उसे निभाया है। हम जनता की जरूरत को समझते हैं। श्री मोदी जनता की गरीबी का मजाक उड़ा रहे हैं। वह सत्ता के अहंकार में इतना डूब गये हैं कि 25 करोड़ गरीबों का अपमान कर रहें हैं। हर गरीब घर की गृहिणी के खाते में साल में 72 हजार रुपए जाएंगे, इससे उन्हें नफरत क्यों हो रही है।

श्री सुरजेवाला ने कहा कि वह श्री मोदी को चुनौती देते हैं कि एक तरफ कांग्रेस, दूसरी और देश के गरीब और तीसरी तरफ स्वयं श्री मोदी आ जायें और न्याय योजना पर सार्वजनिक रूप से मीडिया के सामने खुली बहस करें। बहस करने के लिए वह खुद आयें, अपने ‘बोगस ब्लॉग मंत्री’ को ना भेजें।

कांग्रेस के प्रचार अभियान के बारे में श्री शर्मा ने बताया कि पार्टी देश के कोने कोने में कंटेनर ट्रकों को भेजेगी जिसके दोनों ओर कांग्रेस के प्रचार वाले होर्डिंग पेंट होंगे। इसके अलावा सोशल मीडिया, पारंपरिक मीडिया के हर प्लेटफार्म का इस्तेमाल किया जाएगा।

उन्होंने बताया कि इस बार प्रचार का थीम स्लोगन है -अब होगा न्याय। इससे जोड़ कर युवाओं को रोज़गार, महिलाओं को सुरक्षा, व्यापारियों को सरल जीएसटी, किसानों का कल्याण आदि विषयों पर पोस्टर आदि प्रचार सामग्री तैयार की गयी है।

एक सवाल के जवाब में श्री सुरजेवाला ने कहा कि कांग्रेस पार्टी, प्रचार के संसाधन के मामले में भारतीय जनता पार्टी के करीब 30 हजार करोड़ रुपए के खर्च वाले महंगे प्रचार का मुकाबला नहीं कर पाएगी लेकिन उसके वादों एवं नारों में सच्चाई है और इसी से वह भाजपा के प्रचार को मात दे पायेगी।

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सन् 1999 का 13वां लोकसभा चुनाव : अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा ने जीती 182 सीटें और गठबंधन सरकार ने पूरे 5 साल सत्ता संभाली attacknews.in

नयी दिल्ली 07 अप्रैल । वर्ष 1999 में हुए तेरहवें लोकसभा चुनाव में भी यद्यपि किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला लेकिन केंद्र में राजनीतिक अस्थिरता का दौर खत्म हुआ और स्थिर साझा सरकारें बनने का सिलसिला शुरु हुआ।

एक वोट से सरकार गंवाने वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने राजनीतिक दलों से गठबंधन कर अपनी स्थिति सुदृढ कर ली थी और श्री अटल बिहारी वाजपेयी एक बार फिर से प्रधानमंत्री बने और उनके नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार बनी और पूरे समय चली। इस चुनाव में कांग्रेस की स्थिति और खराब हुयी तथा उसकी सीटों की संख्या में और कमी आयी। भाजपा को इस चुनाव में 182 सीटें मिली थी और कांग्रेस 114 सीटों पर ही सिमट गयी थी ।

इस चुनाव की विशेषता यह थी कि कांग्रेस का नेतृत्व संभालने वाली सोनिया गांधी निर्वाचित हुयी थी जबकि राजद नेता लालू प्रसाद यादव पराजित हो गये थे। सपा नेता मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश में दो सीटों पर विजयी हुये थे जबकि मेनका गांधी निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर जीती थीं।

इस चुनाव में सात राष्ट्रीय पार्टियों, 40 राज्य स्तरीय पार्टियों तथा 122 निबंधित पार्टियों ने अपने उम्मीदवार उतारे थे। राष्ट्रीय पार्टियों ने कुल 1299 उम्मीदवार चुनाव लड़ाये थे जिनमें से 369 निर्वाचित हुये थे। राष्ट्रीय पार्टियों 67.11 प्रतिशत वोट आया था। राज्य स्तरीय पार्टियों 750 प्रत्याशी खड़े किये थे और पहली बार इन पार्टियों ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए 158 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इन पार्टियों को लगभग 27 प्रतिशत वोट आये थे। निबंधित पार्टियों के 654 उम्मीदवारों में से दस जीत गये थे। इस बार 1945 निर्दलीय उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था जिनमें से केवल छह जीत सके थे।

लोकसभा की 543 सीटों के लिए हुये इस चुनाव में 61 करोड़ 95 लाख से अधिक मतदाताओं में से 59.99 प्रतिशत ने वोट डाले थे। चुनाव में कुल 4648 उम्मीदवारों ने अपना राजनीतिक भविष्य आजमाया था। राष्ट्रीय पार्टियों में शामिल जनता दल (एस) को केवल एक सीट आयी थी जबकि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी चार सीटों पर सिमट गयी थी।

कांग्रेस ने 453 सीटोें पर चुनाव लड़ा था और उसके 114 उम्मीदवार निर्वाचित हुए थे । उसे 28.30 प्रतिशत वोट आया था। भाजपा ने 339 सीटों पर चुनाव लड़ा। उसेे 23.75 प्रतिशत वोट मिले और उसके 182 उम्मीदवार चुनाव जीत गये थे। भाकपा के 54 उम्मीदवारोंं में से चार चुने गये थे जबकि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के 72 प्रत्याशियों में से 33 विजयी हुये थे। जनतादल (एस) के 96 में से एक और जनतादल (यू) के 60 में से 21 उम्मीदवार निर्वाचित हुये थे।

कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में दस, बिहार में चार, आन्ध्र प्रदेश में पांच, अरुणाचल प्रदेश में दो, असम में दस, गुजरात में छह, कर्नाटक में 18, केरल में आठ, मध्य प्रदेश में 11, महाराष्ट्र में दस, पंजाब में आठ, पश्चिम बंगाल में तीन , राजस्थान में नौ, ओडिशा में दो, तमिलनाडु में दो तथा मेघालय ,नागालैंड, चंडीगढ , दमन एवं दीव, लक्षद्वीप और पांडिचेरी में एक-एक सीट मिली थी। भाजपा को उत्तर प्रदेश में 29, बिहार में 23, आन्ध्र प्रदेश में सात, असम में दो, गोवा में दो, गुजरात में 20, हरियाणा में पांच, हिमाचल प्रदेश में तीन, जम्मू कश्मीर में दो, कर्नाटक में सात, मध्य प्रदेश में 29, महाराष्ट्र में 13, ओडिशा में नौ, पंजाब में एक, राजस्थान में 16, तमिलनाडु में चार, पश्चिम बंगाल में दो, अंडमान निकोबार में एक तथा दिल्ली में सात सीटें मिली थी ।

भाकपा को पश्चिम बंगाल में तीन और पंजाब में एक सीट मिली थी। माकपा की स्थिति पश्चिम बंगाल में थाेड़ी कमजोर हुयी थी और इस राज्य में उसे 21 सीटें मिली थी। इसके अलावा उसे केरल में आठ, त्रिपुरा में दो तथा बिहार और तमिलनाडु में एक-एक सीट मिली थी। जनतादल (एस) को महाराष्ट्र में एक तथा जनतादल (यू) को बिहार में 18 और कर्नाटक में तीन सीटें मिली थी। समाजवादी पार्टी को उत्तर प्रदेश में 26, बहुजन समाज पार्टी को इसी राज्य में 14, बीजू जनता दल को उड़ीसा में दस, तृणमूल कांग्रेस को पश्चिम बंगाल में आठ, अन्नाद्रमुक को तमिलनाडु में दस, द्रमुक को इसी राज्य में 12, इंडियन नेंशनल लोकदल को हरियाणा में पांच, राष्ट्रीय जनतादल को बिहार में सात, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को महाराष्ट्र में छह, मणिपुर और मेघालय मेंं एक-एक, अकालीदल को पंजाब में दो, शिवसेना को महाराष्ट्र में 15 तथा तेलुगू देशम पार्टी को आन्ध्र प्रदेश में 29 सीटें आयी थी । निर्दलीय उम्मीदवारों को असम , बिहार, महाराष्ट्र , मिजोरम, उत्तर प्रदेश और दादर नागर हवेली में एक – एक सीट मिली थी।

उत्तर प्रदेश के अमेठी में कांग्रेस के टिकट पर सोनिया गांधी ने जीत हासिल की जबकि रायबरेली में कांग्रेस के सतीश शर्मा ने समाजवादी पार्टी को हराया था। लखनऊ सीट पर भाजपा उम्मीदवार अटल बिहारी वाजपेयी ने कांग्रेस के कर्ण सिंह को पराजित किया था। श्री वाजपेयी को 3,62,709 तथा श्री सिंह को 2,39,085 वोट मिले थे।

कांग्रेस के टिकट पर नारायणदत्त तिवारी ने नैनीताल में भाजपा के बलराज पासी को पराजित किया था। श्री तिवारी को 3,50,381 तथा श्री पासी को 2,37,974 मत मिले थे। संभल सीट पर सपा के मुलायम सिंह यादव ने भाजपा के भूपेन्द्र सिंह को हराया था। श्री यादव कोे 2,59,430 और श्री सिंह को 1,43,596 वोट आये थे। श्री मुलायम सिंह यादव कन्नौज सीट पर भी जीते थे। पीलीभीत सीट पर मेनका गांधी निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर जीती थीं। बलिया में समाजवादी जनता पार्टी के टिकट पर चन्द्रशेखर निर्वाचित हुये थे। बसपा नेता मायावती अकबरपुर से चुनी गयी थीं।

बिहार के मधेपुरा में राजद के लालू प्रसाद यादव जनता दल (यू) के शरद यादव से चुनाव हार गये थे। श्री शरद यादव को 3,28,761 तथा श्री लालू प्रसाद यादव को 2,98,441 वोट मिले थे। भाजपा के राधा मोहन सिंह मोतिहारी में तथा इसी पार्टी के हुकुमदेव नारायण यादव मधुबनी में चुनाव जीत गये थे। जद (यू) के टिकट पर रामविलास पासवान हाजीपुर से, नीतीश कुमार बाढ से तथा जार्ज फर्नाडीस नालंदा से निर्वाचित हुये थे ।

पश्चिम बंगाल में कलकत्ता दक्षिण सीट पर तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी माकपा के सुभंकर चक्रवर्ती को लगभग ढाई लाख मतों से हराया था। मिदनापुर में भाकपा के दिग्गज नेता इन्द्रजीत गुप्त और बोलपुर में माकपा के वरिष्ठ नेता सेमनाथ चटर्जी एक बार फिर जीतने में कामयाब रहे थे। गुजरात के गांधीनगर में भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी निर्वाचित हुये थे लेकिन कांग्रेस नेता भजनलाल हरियाणा में करनाल सीट पर चुनाव हार गये थे। मध्य प्रदेश के गुना में कांग्रेस के माधवराव सिंधिया ने भाजपा के देशराज सिंह यादव को भारी अंतर से हराया था। छिंदवाड़ा में कांग्रेस के कमलनाथ तथा भोपाल में भाजपा की फायर ब्रांड नेता उमा भारती निर्वाचित हुयी थी। इंदौर में भाजपा की सुमित्रा महाजन एक बार फिर जीत दर्ज करने में सफल रही थी। पंजाब के गुरदासपुर में भाजपा के विनोद खन्ना और अमृतसर में कांग्रेस के रधु नंदन लाल भाटिया चुने गये थे।

महाराष्ट्र के बारामती में राकांपा के शरद पवार ने भाजपा की प्रतिभा लोखंडे को लगभग तीन लाख मतों से हराया था। शोलापुर में कांग्रेस के सुशील कुमार शिंदे विजयी हुये थे।

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नरेन्द्र मोदी के विरोध में सक्रिय और पटना क्षेत्र के निष्क्रिय सांसद शत्रुघ्न सिन्हा कांग्रेस पार्टी में आने के बाद फिसली जुबां से कांग्रेसियो को भी भाजपाई कहते रहे attacknews.in

नयी दिल्ली, 06 अप्रैल । मशहूर फिल्म अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा शनिवार को भारतीय जनता पार्टी छोडकर कांग्रेस में शामिल हो गये और पार्टी ने उन्हें बिहार की पटना साहिब लोकसभा सीट से उम्मीदवार घोषित कर दिया है। पिछले चुनाव में वह इसी सीट से भाजपा के टिकट पर जीते थे।

श्री सिन्हा ने शनिवार को यहां कांग्रेस मुख्यालय में पार्टी महासचिव के. सी. वेणुगोपाल, पार्टी मीडिया विभाग के प्रमुख रणदीपसिंह सुरजेवाला, पार्टी के बिहार के प्रभारी शक्तिसिंह गोहिल और बिहार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मदन मोहन झा की मौजूदगी में कांग्रेस की औपचारिक सदसयता ग्रहण की।

इस मौके पर आयोजित संवाददाता सम्मेलन में श्री सिन्हा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम लिए बिना आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी में सिर्फ एक व्यक्ति की ‘तानाशाही’ चल रही है जो किसी और की बात नहीं सुनते हैं इसलिए उन्होंने कांग्रेस में शामिल होने का निर्णय लिया।

श्री सिन्हा ने कहा कि भाजपा में उन्होंने नानाजी देशमुख जैसे प्रखर राजनीतिज्ञ से राजनीति सीखी और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे बड़े नेता के साथ काम किया। भाजपा जिन लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, जसवंतसिंह, यशवंत सिन्हा जैसे दिग्गजों के मार्गदर्शन में आगे बढी आज उन्हीं सब बड़े नेताओं को निष्क्रिय मार्गदर्शक मंडल में डाल दिया गया है।

अभिनेता ने कहा कि भाजपा में उन्होंने पिछले पांच साल के दौरान बड़े बदलाव देखे हैं। एक व्यक्ति के कारण यह पार्टी लोकशाही से तानाशाही में परिवतित हुई है। उन्होंने आरोप लगाया कि वह व्यक्ति किसी की सुनने को तैयार ही नहीं हैं। उन्हें जो भी सलाह दी जाती है उसे सुनने के बजाय वह सलाह देने वाले को बागी मानने लगते हैं।

शत्रुघ्न सिन्हा ने दावा किया कि भाजपा में लोकतंत्र को तानाशाही बदल दिया गया जिसकी वजह से उन्हें इस पार्टी से अलग होना पड़ा।

सिन्हा यह भी कहा कि वह उस कांग्रेस में शामिल हुए हैं जिसका देश की आजादी में सबसे बड़ा योगदान है।

उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को ‘देश का भविष्य’ करार देते हुए कहा कि गांधी एक बहुआयामी और दूरदर्शी नेता के तौर पर सामने आए हैं।

कांग्रेस में शामिल होने के बाद सिन्हा ने संवाददाताओं से कहा, ‘भाजपा में मेरी परवरिश हुई। धीरे धीरे मैं आगे बढ़ता गया। बाद में परिवर्तन शुरू हुआ, लेकिन वह परिवर्तन अच्छा नहीं था। धीरे धीरे भाजपा में लोकतंत्र तानाशाही में बदल गया।’ उन्होंने कहा कि बड़े महारथियों को मार्गदर्शकमण्डल में डाल दिया जिसकी कोई बैठक नहीं हुई। यशवंत सिन्हा, मुरली मनोहर जोशी, सुमित्रा महाजन और अरुण शौरी के साथ क्या किया गया, सबको पता है।

सिन्हा ने कहा कि आज तक उनके ऊपर किसी तरह आरोप खासकर भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा। इसके बावजूद उनसे दूरी बनाई गई।

नोटबन्दी और जीएसटी को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, ‘100 स्मार्ट सिटी का वादा किया लेकिन एक भी स्मार्ट नहीं दिखा सकते। मैंने देश हित की बात की थी। कभी राफेल या किसी दूसरे मामले में कमीशन नहीं मांगा। कोई डील नहीं की।’ उन्होंने दावा किया कि ‘वन मैन शो’ और ‘टू मैन आर्मी’ वालों के पैमाने पर जो खरा नहीं उतरा उसे किनारे लगा देते हैं। अब तो आडवाणी जी को भी ब्लॉग लिखना पड़ा।

सिन्हा ने कहा, ‘पूरे सम्मान के साथ कहना चाहूंगा कि प्रचार पर हजारों करोड़ रुपये खर्च करने की जगह अगर विकास पर ध्यान दिया होता बहुत कुछ हो जाता।’ उन्होंने कहा, ‘ मैं राहुल जी से सहमत हूँ कि नोटबन्दी सबसे बड़ा घोटाला है।’ सिन्हा ने यह भी कहा कि उन्हें लालू प्रसाद का भी सहयोग मिला। मैं उनका आभारी हूं।

क्षेत्र में निष्क्रिय सांसद रहे हैं शत्रुघ्न सिन्हा:

भारतीय जनता पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शनिवार को शामिल हुए लोकसभा सदस्य शत्रुघ्न सिन्हा पिछले पांच साल के दौरान संसद में लगभग निष्क्रिय रहे लेकिन इस अवधि में उन्होंने अपनी सांसद निधि का पूरा इस्तेमाल किया।

श्री अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार में पोत परिवहन मंत्रालय में राज्य मंत्री रहे श्री सिन्हा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार में मंत्री पद नहीं मिलने के कारण आरंभ से ही बगावती तेवर अपना लिए थे। पिछले पांच साल में उन्होंने श्री मोदी और उनकी सरकार की जमकर आलोचनायें की और आरोप लगाते रहे कि भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) अब श्री मोदी की जेबी पार्टी बन गयी है।

कांग्रेस ने आज ही भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा बिहार के पटना साहिब से उम्मीदवार बनाया है।

कांग्रेस की केंद्रीय चुनाव समिति के प्रभारी मुकुल वासनिक ने शनिवार को इसके साथ ही चार और लोकसभा सीटों के लिए पार्टी उम्मीदवारों की सूची जारी की। इन्हें मिलाकर पार्टी अब तक लोकसभा चुनाव के लिए अपने 377 उम्मीदवारों के नाम घोषित कर चुकी है।

कांग्रेस का मंच और शत्रुघ्न की जुबां पर भाजपा का ही नाम आता है:

करीब ढाई दशक तक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में रहे फिल्म अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा की जुबान पर शनिवार को कांग्रेस में शामिल होते समय भी भाजपा का नाम था। उन्होंने कई बार भाजपा का उल्लेख किया और इस दौरान ऐसा भी मौका आया जब उन्होंने कांग्रेस नेता शक्ति सिंह गोहिल को भी भाजपा नेता कह दिया।

पत्रकारों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, “बिहार में भाजपा को मजबूत बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले भाई शक्तिसिंह गोहिल का आभार।”

इसी दौरान कुछ पत्रकारों ने उन्हें टोका तो खुद को संभालते हुए उन्होंने अपने अंदाज में कहा, “भाजपा का नाम थोड़ा आएगा ही। भाजपा का आज 39वां स्थापना दिवस है। मुझे लगता है कि आप यह समझने के लिए काफी परिपक्व हैं कि मैंने ये सब जानबूझकर नहीं कहा। अभी तो मैं कांग्रेस का नया खिलाड़ी बना हूं।”

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बिहार की पाटलिपुत्र और पटना साहिब सीटों पर राज्यसभा सांसदों के सामने लडेंगे लोकसभा सांसद attacknews.in

पटना 06 अप्रैल । बिहार में इस बार के चुनावी महासंग्राम में दो सीटों पटना साहिब और पाटलिपुत्र पर लोकसभा एवं राज्यसभा सांसदों के बीच टक्कर देखने को मिलेगी।

सतरहवें आम चुनाव (2019) में पटना साहिब सीट के दंगल में कांग्रेस की टिकट पर लोकसभा सांसद शुत्रघ्न सिन्हा और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की टिकट पर राज्यसभा सांसद एवं केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद आमने-सामने हैं।

इस सीट पर लगातार दो बार वर्ष 2009 और वर्ष 2014 में भाजपा की टिकट पर श्री सिन्हा विजयी होते रहे हैं। दोनों बार श्री सिन्हा के सामने कांग्रेस प्रत्याशियों ने ही ताल ठोका है।

वर्ष 2009 में श्री सिन्हा ने कांग्रेस उम्मीदवार शेखर सुमन जबकि 2014 में कांग्रेस प्रत्याशी कुणाल सिंह को परास्त किया था। वर्ष 2019 के आम चुनाव में श्री सिन्हा और श्री प्रसाद के बीच टक्कर काफी दिलचस्प होने वाली है।

पाटलिपुत्रा संसदीय सीट पर राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव की पुत्री एवं राज्यसभा सांसद मीसा भारती एक बार फिर किस्मत आजमा रही हैं वहीं लोकसभा सांसद एवं भाजपा प्रत्याशी रामकृपाल यादव उन्हें चुनौती देने के लिए डटे हुये हैं।

वर्ष 2014 के आम चुनाव में श्रीमती भारती और भाजपा उम्मीदवार रामकृपाल यादव के बीच कांटे की टक्कर थी। कभी राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद के बेहद करीबी माने जाने वाले रामकृपाल यादव ने मीसा भारती को 40 हजार से अधिक मतो के अंतर से पराजित किया था। लोकसभा सांसद राम कृपाल यादव और राज्यसभा सासंद मीसा भारती के बीच इस बार भी टक्कर काफी दिलचस्प मानी जा रही है।
लोकसभा और राज्यसभा सांसदों के बीच वर्ष 2019 की चुनावी जंग में जहां लोकसभा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा और रामकृपाल यादव के लिये करो अथवा मरो की स्थिति होगी वहीं राज्यसभा सांसद मीसा भारती और रविशंकर प्रसाद यदि चुनाव हार भी जाते हैं तो वे राज्यसभा सांसद बने ही रहेंगे।

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मध्यप्रदेश में भाजपा द्वारा आज घोषित प्रत्याशियों की सूची में खत्म नहीं हुआ सुमित्रा महाजन और सुषमा स्वराज के उत्तराधिकारी का चयन और ऐसा है 3 नये प्रत्याशियों का परिचय और उनकी राजनीति attacknews.in

नयी दिल्ली/भोपाल  06 अप्रैल । भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव के लिए अपने 24 और उम्मीदवार शनिवार को घोषित कर दिये जिनमें केन्द्रीय मंत्री राव इन्द्रजीत सिंह को गुड़गांव सीट से फिर से टिकट दिया गया है।

भाजपा की केन्द्रीय चुनाव समिति के सचिव जे पी नड्डा द्वारा जारी इस 18वीं सूची में हरियाणा से आठ , उत्तर प्रदेश और राजस्थान से चार – चार , मध्य प्रदेश और झारखंड से तीन -तीन तथा पश्चिम बंगाल और ओडिशा से एक – एक उम्मीदवार के नाम शामिल हैं ।

पार्टी ने हरियाणा की अंबाला (सु) सीट से रतनलाल कटारिया , कुरुक्षेत्र सेे नयाब सिंह सैनी , सिरसा (सु) से सुनीता दुग्गल , करनाल से संजय भाटिया , सोनीपत से राजेश चन्द्र कौशिक , भिवानी- महेन्द्रगढ से धरमवीर सिंह , गुड़गांव से राव इन्द्रजीत सिंह और फरीदाबाद से किशनपाल गुर्जर को उम्मीदवार बनाया है ।

उत्तर प्रदेश के झासी निर्वाचन क्षेत्र से अनुराग शर्मा , बांदा से आर के पटेल , फूलपुर से केसरी पटेल और लालगंज (सु) से नीलम सोनकर को प्रत्याशी बनाया गया है । राजस्थान के भरतपुर (सु) से श्रीमती रंजना कोहली , करौली धौलपुर से मनोज राजुरिया , बारमेड़ से कैलाश चौधरी और राजसमंद से दिया कुमारी को चुनाव मैदान में उतारा गया है ।

पार्टी ने मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा से नाथन शाह , ग्वालियर से विवेक सेजवालकर , देवास (सु) से महेन्द्र सोलंकी तथा झारखंड के चतरा से सुनील सिंह , कोडरमा से अन्नपूर्णा देवी यादव और रांची से संजय सेठ को उम्मीदवार बनाया है ।

पश्चिम बंगाल के पुरुलिया से ज्योर्तिमय महतो और ओडिशा के जगतसिंहपुर (सु) से विभू प्रसाद तराई को टिकट दिया गया है ।

तीसरी सूची, पर खत्म नहीं हुआ महाजन-स्वराज के उत्तराधिकारी का इंतजार:

लोकसभा अध्यक्ष और मध्यप्रदेश के इंदौर से भारतीय जनता पार्टी सांसद सुमित्रा महाजन के लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा के 24 घंटे से ज्यादा समय बाद भी पार्टी इस सीट पर अपने चेहरे को तय नहीं कर पाई है।

पार्टी की ओर से आज तीन संसदीय सीटों पर अपने प्रत्याशी घोषित किए गए, लेकिन इस सूची में भी बहुप्रतीक्षित इंदौर, विदिशा, भोपाल और गुना-शिवपुरी को लेकर स्थिति साफ नहीं हो सकी। हालांकि इनमें से तीन सीटों इंदौर, विदिशा और गुना-शिवपरी को लेकर कांग्रेस भी अब तक संभवत: संशय की स्थिति में है। इन सीटों पर कांग्रेस के भी अब तक चेहरे सामने नहीं आए हैं।

मध्यप्रदेश के इन 3 प्रत्याशियों का यह है परिचय और लोकसभा सीट की राजनीति:

भारतीय जनता पार्टी ने आज मध्यप्रदेश की तीन संसदीय सीटों और छिंदवाड़ा विधानसभा क्षेत्र पर होने वाले उपचुनाव के लिए अपने प्रत्याशियों की घाेषणा कर दी।

पार्टी ने छिंदवाड़ा संसदीय क्षेत्र से पूर्व विधायक नथन शाह को कांग्रेस प्रत्याशी और मुख्यमंत्री कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारा है। भाजपा के यहां से गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से लाए गए आदिवासी नेता मनमेाहन बट्टी को चुनाव मैदान में उतारने की चर्चाएं जोरों पर थीं, लेकिन पार्टी की जिला इकाई में ही श्री बट्टी के खिलाफ विरोध के स्वर मजबूत हो रहे थे।

ग्वालियर सीट से इस बार महापौर विवेक शेजवलकर को अवसर दिया गया है। यहां से मौजूदा सांसद और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की इसके पहले सीट बदल कर उन्हें मुरैना से प्रत्याशी बनाया गया था, जिसके बाद यहां से श्री शेजवलकर और पूर्व मंत्री माया सिंह का नाम चर्चाओं में था।

देवास संसदीय क्षेत्र पर भी इस बार नए चेहरे महेंद्र सोलंकी को अवसर दिया गया है। यहां के मौजूदा सांसद मनोहर ऊंटवाल के विधानसभा चुनाव में जीत के बाद इस सीट पर पार्टी को किसी नए चेहरे की तलाश थी। श्री सोलंकी का मुकाबला कांग्रेस के प्रहलाद टिपानिया से होगा।

भाजपा की आज की सूची के बाद भी प्रदेश की हाईप्रोफाइल भोपाल, विदिशा, इंदौर और गुना-शिवपुरी समेत आठ सीटों पर पार्टी के चेहरे सामने नहीं आ सके हैं।

पार्टी की इस सूची के बाद प्रदेश की कुल 29 लोकसभा सीटों में से भाजपा के 21 और कांग्रेस के 22 प्रत्याशियों को लेकर स्थिति साफ हो गई है।

छिंदवाड़ा विधानसभा पर होने वाले उपचुनाव के लिए भाजपा ने मुख्यमंत्री कमलनाथ के खिलाफ विवेक साहू को मैदान में उतारा है।

प्रदेश में कुल 29 लोकसभा सीटें हैं। प्रदेश में चौथे चरण में छह लोकसभा सीटों सीधी, मंडला, जबलपुर, छिंदवाड़ा, बालाघाट और शहडोल में 29 अप्रैल को मतदान होना है।

पांचवें चरण में सात लोकसभा क्षेत्र टीकमगढ़, दमोह, सतना, रीवा, खजुराहो, होशंगाबाद और बैतूल में छह मई को, छठें चरण में आठ संसदीय सीटों मुरैना, भिंड, ग्वालियर, गुना, सागर, विदिशा, भोपाल और राजगढ़ में 12 मई को मतदान होना है। शेष आठ लोकसभा क्षेत्र देवास, उज्जैन, इंदौर, धार, मन्दसौर, रतलाम, खरगोन और खंडवा में सातवें और अंतिम चरण में 19 मई को मतदान होगा। नतीजे 23 मई को आएंगे।

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सन् 1998 का 12वां लोकसभा चुनाव : अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में फिर से बनी गठबंधन की सरकार, भाजपा को मिली थी 182 सीटें attacknews.in

नयी दिल्ली 06 अप्रैल । वर्ष 1998 में हुए लोकसभा चुनाव में अस्थिरता का दौर समाप्त नहीं हुआ तथा एक बार फिर किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अन्य दलों के साथ मिलकर सरकार बनायी जो ज्यादा चल नहीं सकी।

इस चुनाव में कांग्रेस को देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में एक भी सीट नहीं मिली। उसका पंजाब और तमिलनाडु में भी सफाया हो गया था जबकि भाजपा अपनी स्थिति कुछ बेहतर की और श्री अटल बिहारी वाजपेयी दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने में सफल रहे थे।
कांग्रेस का न केवल उत्तर प्रदेश में सफाया हुआ था बल्कि नेहरु-गांधी परिवार की सीट अमेठी भी उसके हाथ से निकल गयी। पश्चिम बंगाल में उसे केवल एक सीट से संतोष करना पड़ा था। दूसरी ओर भाजपा ने राजनीति को नयी दिशा देने वाले राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार में अपनी स्थिति मजबूत कर ली थी तथा दक्षिण में आन्ध्र प्रदेश और तमिलनाडु में भी कुछ सीटें जीत ली थी। कांग्रेस को कुल 141 सीटें मिली थी जबकि भाजपा 182 सीटें जीत कर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) को नौ, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) को 32, समाजवादी पार्टी (सपा) को 20 , जनता दल (जद) को छह, समता पार्टी को 12, अन्नाद्रमुक को 18, बीजू जनता दल (बीजद) को नौ तथा कुछ अन्य राजनीतिक दलों को सीटें मिली थी। इस चुनाव में सात राष्ट्रीय पार्टियों, 30 राज्य स्तरीय पार्टियों तथा 40 निबंधित दलों ने आम चुनाव में अपने उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे थे। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने बिहार में, सपा ने उत्तर प्रदेश में तथा अकाली दल ने पंजाब में अपनी स्थिति सुदृढ कर ली थी। माकपा का पश्चिम बंगाल में दबदबा बना रहा।

लोकसभा की 543 सीटों के लिए हुये इस चुनाव में 60 करोड़ 58 लाख से अधिक मतदाताओं में से 61.97 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। इस चुनाव में कुल 4750 उम्मीदवारों में से 1915 निर्दलीय थे। राष्ट्रीय पार्टियों के 1493 उम्मीदवार चुनाव लड़े थे जिनमें से 387 विजयी हुये थे। राष्ट्रीय पार्टियों को 67.98 प्रतिशत वोट मिला था। राज्य स्तरीय पार्टियों ने 471 उम्मीदवार उतारे थे जिनमें से 101 निर्वाचित हो गये थे। निबंधित पार्टियों के 871 उम्मीदवारों में से 49 चुने गये थे। अपने दमखम पर चुनाव लड़े 1915 निर्दलीय प्रत्याशियों में से छह जीते थे।

कांग्रेस ने इस चुनाव में 477 उम्मीदवार उतारे थे जिनमें से 141 निर्वाचित हुये थे। उसे 25.82 प्रतिशत वोट मिले थे। भाजपा ने 388 उम्मीदवार उतारे थे जिनमें से 182 विजयी हुये थे। उसे 25.59 प्रतिशत वोट मिले थे। समता पार्टी के 57 प्रत्याशियों में से 12, भाकपा के 58 में से नौ तथा माकपा के 71 में से 32 उम्मीदवारों की जीत हुयी थी।

कांग्रेस को आन्ध्र प्रदेश में 22, असम में दस, बिहार में पांच, गोवा में दो, गुजरात में सात, हरियाणा में तीन, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, अंडमान निकोबार और लक्ष्यद्वीप में और नागालैंड में एक-एक, कर्नाटक में नौ, केरल में आठ, मध्य प्रदेश में दस, महाराष्ट्र में 33, राजस्थान में 18, मेघालय में दो, ओडिशा में पांच सीट मिली थी।

भाजपा को उत्तर प्रदेश में 57, बिहार में 20, आन्ध्र प्रदेश में चार, गुजरात में 19, असम, हरियाणा में एक-एक , हिमाचल प्रदेश में तीन, जम्मू कश्मीर में दो, कर्नाटक में 13, मध्य प्रदेश में 30, महाराष्ट्र में चार, ओडिशा में सात, दिल्ली में पांच, पंजाब में तीन, राजस्थान में पांच, तमिलनाडु में तीन, पश्चिम बंगाल, चंडीगढ, दादर नागर हवेली और दामनदीव में भी एक-एक सीट मिली थी।

भाकपा को आन्ध्र प्रदेश में दो, केरल में दो, मणिपुर में एक, तमिलनाडु में एक और पश्चिम बंगाल में तीन सीटें मिली थी। जनतादल को बिहार में एक, आन्ध्र प्रदेश में एक, कर्नाटक में तीन और पंजाब में एक सीट मिली थी। जनता पार्टी को तमिलनाडु में एक सीट मिली थी जबकि समता पार्टी को बिहार में दस और उत्तर प्रदेश में दो सीटें मिली थी। राजद को बिहार में 17, अकाली दल को पंजाब में आठ, बीजद को ओडिशा में नौ, अन्नाद्रमुक को तमिलनाडु में 18, द्रमुक को इसी राज्य में पांच और पांडिचेरी में एक सीट मिली थी।

बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को उत्तर प्रदेश में चार और हरियाणा में एक सीट मिली थी। तेलगू देशम पार्टी को आन्ध्र प्रदेश में 12 तथा शिवसेना को महाराष्ट्र में छह सीटें मिली थी। निर्दलीय उम्मीदवारों को उत्तर प्रदेश, पंजाब, असम, मिजोरम, राजस्थान और तमिलनाडु में एक-एक लोकसभा क्षेत्र में कामयाबी मिली थी।

उत्तर प्रदेश के लखनऊ में भाजपा प्रत्याशी अटल बिहारी वाजपेयी ने सपा के मुजफ्फर अली को दो लाख से अधिक मतों से हराया था जबकि अमेठी में गांधी परिवार के नजदीकी सतीश शर्मा को भाजपा के उम्मीदवार संजय सिंह ने पराजित किया था। नैनीताल क्षेत्र में कांग्रेस नेता नारायणदत्त तिवारी भाजपा की इला पंत से हार गये थे। सपा के मुलायम सिंह यादव संबल सीट पर भाजपा के धर्मपाल यादव से भारी मतों से चुनाव जीत गये थे।

इस चुनाव में पीलीभीत से श्रीमती मेनका गांधी निर्दलीय उम्मीदवार के रुप में जीती थी। रामपुर में भाजपा के टिकट पर मुख्तार अब्बास नकवी निर्वाचत हुये थे। अकबरपुर में बसपा नेता मायावती ने सपा उम्मीदवार को हराया था जबकि बलिया में समाजवादी जनता पार्टी के टिकट पर चन्द्रशेखर निर्वाचित हुये थे।

बिहार में हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र में जनता दल के टिकट पर राम विलास पासवान ने समाजवादी जनता पार्टी के राम सुन्दर दास को हराया था। समता पार्टी के उम्मीदवार नीतीश कुमार ने बाढ में राजद के विजय कृष्ण को हराया था। राजद के लालू प्रसाद यादव ने जनता दल के शरद यादव को तथा नालंदा में समता पार्टी के जार्ज फर्नाडीस ने राजद के राम स्वरुप प्रसाद को पराजित किया था। तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में कलकत्ता दक्षिण सीट पर माकपा के प्रशांत सूर को हराया था। भाकपा के दिग्ग्ज नेता इन्द्रजीत गुप्त मिदनापुर में भाजपा पर तथा माकपा के सोमनाथ चटर्जी ने तृणमूल कांग्रेस के हरिचन्द्र गौड़ पर जीत दर्ज की थी। दक्षिण दिल्ली में भाजपा की सुषमा स्वराज ने कांग्रेस के अजय माकन को भारी मतों से हराया था ।

राजस्थान के बीकानेर सीट पर कांग्रेस के बलराम जाखड़ तथा जोधपुर में इसी पार्टी के अशोक गहलोत निर्वाचित हुये थे। कांग्रेस ने दोनों स्थानों पर भाजपा उम्मीदवारों को हराया था। झालावाड़ में भाजपा की वसुन्धरा राजे निर्वाचित हुयी थी। पंजाब में जनता दल के इन्द्र कुमार गुजराल ने कांग्रेस के उमराव सिंह को हराया था।

महाराष्ट्र के बारामती में कांग्रेस नेता शरद पवार ने भाजपा के बिरज बाबू लाल तथा लातुर में कांग्रेस के शिवराज पाटिल ने भाजपा के गोपालराव पाटिल को हराया था। श्री पावार को पांच लाख 29 हजार से अधिक वोट मिले थे जबकि भाजपा उम्मीदवार दो लाख 60 हजार से कुछ अधिक वोट पाने में सफल हुये थे।

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