इंदौर 22 फरवरी। मध्यप्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री सुरेश सेठ का निधन हो गया. वे 87 वर्ष के थे. इंदौर के महापौर भी रह चुके सुरेश सेठ लंबे समय से बीमार चल रहे थे. सुरेश सेठ को शेर-ए-इंदौर कहा जाता था.शुक्रवार को अंतिम संस्कार किया जाएगा।
सुरेश सेठ का इंदौर के मेदांता अस्पताल में इलाज चल रहा था. डॉक्टरों ने कुछ दिनों से उनकी हालत बेहद नाजुक बताई थी. इंदौर में मजदूर आंदोलन से लेकर शहर को स्ट्रीट लाइट की सौगात देने वाले सुरेश सेठ की गिनती बेहद बेबाक नेताओं में होती थीं.
सुरेश सेठ अपनी पार्टी के नेताओं की गलती होने पर सार्वजनिक रूप से बोलने से नहीं चूकते थे. इंदौर से ही कई बार विधायक रहे सुरेश सेठ इस शहर के प्रथम नागरिक यानी महापौर भी रहे थे.
उम्र की सांझ में भी उन्होंने भिड़ने का जज्बा कायम रखा था और बीजेपी के कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय और रमेश मेंदोला को सुगनीदेवी जमीन घोटाले का केस दर्ज कराया था. हालांकि, बाद में विजयवर्गीय को इस मामले में राहत मिल गई थी और उनका नाम केस से हटा दिया गया था.
जीवन परिचय
18 नवंबर 1931 को जन्मे सुरेश इंदौर समाचार के मालिक थे। उनकी पत्नी प्रभादेवी का 3 साल पहले निधन हो चुका है। उनके बेटे विवेक सेठ वकील हैं और पूरा कारोबार संभालते हैं।
सेठ की गिनती कांग्रेस के दबंग नेताओं में होती थी। इंदौर को लालटेन से छुटकारा दिलाकर सड़कों पर स्ट्रीट लाइट सेठ की ही देन है।
आमतौर पर नेता पार्टी लाइन से बंधे रहते हैं, लेकिन सेठ देश और प्रदेश के मुद्दों पर पार्टी लाइन की जगह जनहित को तरजीह देते थे।
1992 में बीजेपी की सुंदरलाल पटवा सरकार विस में कश्मीर से धारा 370 हटाने के संबंध में एक प्रस्ताव लेकर आई थी। उस समय सेठ कांग्रेस के अकेले विधायक थे, जिन्होंने पार्टी लाइन से हटकर ना सिर्फ इसका समर्थन किया था, बल्कि इसे हटाने के लिए सदन में भाषण भी दिया था।
सेठ इंदौर के महापौर रहने के साथ ही प्रदेश में रही कांग्रेस सरकार में मंत्री भी रहे। जब वे इंदौर के मेयर चुने गए तब इंदौर की सड़कों को रात में रोशन करने के लिए लालटेन लगाई जाती थीं। स्ट्रीट लाइटों से जगमग इंदौर की सड़कों में उनके कार्यकाल में ही पहली बार स्ट्रीट लाइटें लगीं।
अपनी ईमानदार छवि के लिए पहचाने जाने वाले सेठ की पहचान एक मजदूर नेता के रूप में भी होती थी। उन्होंने मजूदरों के लिए कई बड़े आंदोलन की अगुवाई की थी।
इंदौर के सबसे चर्चित सुगनीदेवी घोटाले को उन्होंने ही उजागर किया था। इस मामले में उन्होंने बीजेपी के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और विधायक रमेश मेंदोला को कोर्ट तक घसीटा था।
इसलिए बनाई राजनीति से दूरी
सेठ ने 1999 में हुए इंदौर महापौर के चुनाव के बाद दूरी बना ली थी। उस चुनाव में उनके सामने भाजपा के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय महापौर का चुनाव लड़े थे और इसमें सेठ की हार हुई थी।
इसके बाद उन्होंने लंबे समय तक चुनाव नहीं लड़ा। सेठ ने आखिरी चुनाव 10 साल बाद 2008 में लड़ा, लेकिन वे जीत हासिल नहीं कर सके।attacknews.in