नयी दिल्ली , 11 मई । उच्चतम न्यायालय ने आज सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों और कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीशों से कहा कि वे 2013 के कानून के अनुरूप दो महीने के भीतर सभी अदालतों में यौन उत्पीड़न निरोधक समितियां गठित करें।
शीर्ष अदालत ने दिल्ली उच्च न्यायालय की कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल से अनुरोध किया कि वह उच्च न्यायालय के साथ ही राजधानी की सभी जिला अदालतों में एक सप्ताह के भीतर ये समितियां गठित करें।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा , न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने तीस हजारी अदालत की महिला वकील और बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों से कहा कि वे अपने विवाद मिलजुल कर सुलझायें। न्यायालय ने निर्देश दिया कि दोनों ही पक्षों के वकीलों को एक दूसरे के खिलाफ दर्ज करायी गयी प्राथमिकियों के सिलसिले में गिरफ्तार नहीं किया जाये।
पीठ ने दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा को दोनों पक्षों के वकीलों की शिकायतों की जांच का निर्देश दिया है।
पीठ ने इन दोनों प्राथमिकियों से जुड़े मुकदमे की सुनवाई पटियाला हाउस अदालत को स्थानांतरित कर दी और बार के नेताओं से कहा कि वे न्याय के प्रशासन में हस्तक्षेप नहीं करें।
न्यायालय ने वकीलों अैर दिल्ली बार एसोसिएशन के कुछ सदस्यों के खिलाफ महिला वकील की याचिका का निबटारा कर दिया।
कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न ( रोकथाम , प्रतिबंध और निदान ) कानून , 2013 के तहत प्रत्येक कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न की शिकायतों की जांच के लिये समिति का गठन अनिवार्य है।attacknews.in