नयी दिल्ली, 30 अगस्त । उच्चतम न्यायालय ने आज कहा कि एक राज्य के अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय के सदस्य दूसरे राज्यों में सरकारी नौकरी में आरक्षण के लाभ का दावा नहीं कर सकते यदि उनकी जाति वहां अजा-अजजा के रूप में अधिसूचित नहीं है।
न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति के फैसले में कहा कि किसी एक राज्य में अनुसूचित जाति के किसी सदस्य को दूसरे राज्यों में भी अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जा सकता जहां वह रोजगार या शिक्षा के इरादे से गया है।
संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति आर भानुमति, न्यायमूर्ति एम शांतानागौडर और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं।
संविधान पीठ ने कहा, ‘‘एक राज्य में अनुसूचित जाति के रूप में अधिसूचित व्यक्ति एक राज्य में अनुसूचित जाति के रूप में अधिसूचित होने के आधार पर दूसरे राज्य में इसी दर्जे का दावा नहीं कर सकता।’’
न्यायमूर्ति भानुमति ने हालांकि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में अजा-अजजा के बारे में केन्द्रीय आरक्षण नीति लागू होने के संबंध में बहुमत के दृष्टिकोण से असहमति व्यक्त की।
पीठ ने 4:1 के बहुमत के फैसले में कहा कि जहां तक दिल्ली का संबंध है तो अजा-अजजा के बारे में केन्द्रीय आरक्षण नीति यहां लागू होगी।
संविधान पीठ ने यह व्यवस्था उन याचिकाओं पर दी जिनमें यह सवाल उठाया गया था कि क्या एक राज्य में अजा-अजजा के रूप में अधिसूचित व्यक्ति दूसरे राज्य में आरक्षण प्राप्त कर सकता है जहां उसकी जाति को अजा-अजजा के रूप में अधिसूचित नहीं किया गया है।
पीठ ने इस सवाल पर भी विचार किया कि क्या दूसरे राज्य के अजा-अजजा सदस्य दिल्ली में नौकरी के लिये आरक्षण का लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
पदोन्नति में आरक्षण पर सुनवाई पूरी:फैसला सुरक्षित
उच्चतम न्यायालय ने अनुसूचित जाति-जनजाति के कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण के बारे में शीर्ष अदालत के 2006 के निर्णय पर सात सदस्यीय संविधान पीठ द्वारा पुनर्विचार के लिये दायर याचिकाओं पर आज सुनवाई पूरी कर ली। इस पहलू पर न्यायालय अपनी व्यवस्था बाद में देगा।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस मामले में केन्द्र तथा अन्य सभी पक्षकारों को सुनने के बाद कहा कि वह अपनी व्यवस्था बाद में देगी।
पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 2006 में एम नागराज प्रकरण में अपने फैसले में कहा था कि राज्य इन समुदायों के सदस्यों को पदोन्नति में आरक्षण का लाभ देने से पहले सरकारी नौकरियों में इनके अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के बारे में तथ्य, अनूसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के पिछड़ेपन से जुड़ा आंकड़ा उपलब्ध कराने के लिये बाध्य हैं।
केन्द्र और विभिन्न राज्य सरकारों ने भी कई आधारों पर संविधान पीठ के निर्णय पर पुनर्विचार का अनुरोध किया है। इसमें एक आधार यह भी है कि अजा-अजजा के सदस्यों को पिछड़ा माना जाता है और उनकी जाति के तमगे को देखते हुये उन्हें नौकरी में पदोन्नति में भी आरक्षण दिया जाना चाहिए।
केन्द्र ने आरोप लगाया कि नागराज फैसले ने अजा-अजजा कर्मचारियों को आरक्षण देने के लिये अनावश्यक शर्ते लगा दी थीं और इन पर वृहद पीठ को पुनर्विचार करना चाहिए।
केन्द्र की ओर से अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने अजा-अजजा कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण का लाभ देने की जोरदार वकालत की और कहा कि पिछड़ेपन को मानना ही उनके पक्ष में है। उन्होंने कहा कि अजा-अजजा समुदाय लंबे समय से जाति पर आधारित भेदभाव का सामना कर रहे हैं और अभी भी उन पर जाति का तमगा लगा हुआ है।
पदोन्नति में आरक्षण का विरोध करने वालों का प्रतिनिधित्व करते हुये वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कल पीठ से कहा था कि पहले अजा-अजजा समुदायों के बारे में पिछड़ापन माना जाता था। उन्होंने कहा था कि उच्च सेवाओं में पदोन्नति में आरक्षण नहीं होना चाहिए क्योंकि सरकारी सेवा में आने के बाद यह पिछड़ापन खत्म हो जाता है।
उन्होंने कहा कि तृतीय और चतुर्थ श्रेणी की सेवाओं में पदोन्नति में आरक्षण जारी रखा जा सकता है परंतु उच्च सेवाओं में इसकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
शीर्ष अदालत ने भी इससे पहले इन समुदायों के उच्च पदों पर आसीन सदस्यों के परिजनों को सरकारी नौकरी में पदोन्नति में आरक्षण देने के औचित्य पर सवाल उठाये थे।
न्यायालय जानना चाहता था कि आरक्षण के लाभ से अन्य पिछड़े वर्गो में से सम्पन्न तबके (क्रीमी लेयर) को अलग रखने के सिद्धांत को अजा-अजजा के संपन्न वर्गो को पदोन्नति में आरक्षण के लाभ से वंचित करने के लिये क्यों नहीं लागू किया जा सकता।attacknews.in