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राम जन्मभूमि मामले में मुस्लिम पक्षकार के वकील द्वारा बहस से छुट्टी मांगने पर सुप्रीम कोर्ट ने मांग लिया बहस पूरी करने का समय पक्षकारों से attacknews.in

नयी दिल्ली, 17 सितंबर । अयोध्या विवाद पर आज 25वें दिन की सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने सभी पक्षकारों के वकीलों को यह बताने को कहा कि वे अपनी दलीलें पूरी करने में कितना समय लेंगे।


मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सुनवाई के दौरान सभी पक्षकारों के वकीलों से पूछा कि उन्हें अपनी दलीलें पूरी करने के लिए कितना वक्त चाहिए।


संविधान पीठ में न्यायमूर्ति गोगोई के अलावा न्यायमूर्ति एस. ए. बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नज़ीर शामिल हैं।


दरअसल सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन ने कहा कि वह शुक्रवार को बहस से छुट्टी लेंगे, लेकिन न्यायमूर्ति गोगोई ने कहा कि क्या यह संभव है कि शुक्रवार को कोई अन्य पक्ष बहस कर ले, ताकि समय का सदुपयोग हो जाए।

इस पर श्री धवन ने कहा कि वह नहीं चाहते कि बहस की उनकी निरंतरता खराब हो।


उन्होंने कहा, ‘‘हम भी चाहते हैं कि फैसला जल्दी आए लेकिन हम बहस की निरंतरता भंग नहीं होने देना चाहेंगे।”

इसके बाद मुख्य न्यायाधीश ने सभी पक्षकारों से कहा कि वे यह बताएं कि उन्हें कितना समय चाहिए अपनी बहस पूरी करने के लिए।


इससे पहले श्री धवन ने अल्लामा इक़बाल का एक शेर पढ़ा जिसमें राम को इमामे हिन्द कहा गया है। उन्होंने कहा कि भगवान राम की पवित्रता पर कोई विवाद नहीं है। इसमें भी विवाद नहीं है कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में कहीं हुआ था, लेकिन इस तरह की पवित्रता स्थान को एक न्यायिक व्यक्ति में बदलने के लिए पर्याप्त कब होगी?


सुनवाई के दौरान श्री धवन ने अल्लामा इकबाल के इस शेर का जिक्र कर राम को इमामे हिन्द बताते हुए उन पर नाज की बात की, लेकिन फिर कहा कि बाद में इकबाल बदल गए थे और पाकिस्तान के समर्थक बन गए थे।


श्री धवन ने दलील दी कि ‘जन्मस्थान’ एक न्यायिक व्यक्ति नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि जन्माष्टमी भगवान कृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनायी जाती है लेकिन कृष्ण न्यायिक व्यक्ति नहीं हैं।


शिया वक्फ़ बोर्ड के दावे को खारिज करते हुए श्री धवन ने दलील दी कि बाबरी मस्जिद वक़्फ की संपत्ति है और सुन्नी वक्फ़ बोर्ड का उस पर अधिकार है। उन्होंने कहा कि 1885 के बाद ही बाबरी मस्जिद के बाहर के राम चबूतरे को राम जन्म स्थान के रूप में जाना गया।


उधर कल उच्चतम न्यायालय में अयोध्या विवाद की 24वें दिन की सुनवाई के दौरान एक बार फिर मुस्लिम पक्षकार के वकील राजीव धवन ने सोशल मीडिया के जरिये अपने खिलाफ भ्रम फैलाने की शिकायत की थी, लेकिन शीर्ष अदालत ने उनकी बातों को कोई तवज्जो नहीं दी।


सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील श्री धवन ने सोशल मीडिया पर कथित रूप से फैलाये जा रही अफवाह पर मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की संविधान पीठ का ध्यान आकृष्ट किया कि किसी ने सोशल मीडिया पर लिखा है, “मैंने शीर्ष अदालत के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाया है। उनके खिलाफ अवमानना का मामला दर्ज किया जाये।”


सुनवाई शुरू होते ही उन्होंने कहा, “मुझे कुछ बताना है। फेसबुक पर कोई आदमी कह रहा है कि उसने 100 से ज्यादा पत्र मुख्य न्यायाधीश को लिखे हैं।” इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि उनके पास इसे देखने के लिए टीम है। उन्होंने कहा, “मैं उसकी पोस्ट की प्रति आपको देना चाहता हूं।”


इस पर न्यायमूर्ति गोगोई ने कहा, “दे दीजिए।” उसके बाद श्री धवन ने मुस्लिम पक्षकार की ओर से जिरह शुरू की। आज जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बनाने से उत्पन्न परिस्थितियों से जुड़ी विभिन्न याचिकाओं की सुनवाई के लिए विशेष पीठ बैठने के कारण अयोध्या विवाद की सुनवाई देर से शुरू हुई।


मुस्लिम पक्षकार ने खुद के दावे को कमजोर करने का बताया:



उच्चतम न्यायालय में अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद की आज 24वें दिन हुई सुनवाई के दौरान सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कहा कि पूरे जन्मस्थान को पूजा की जगह बताकर मुस्लिम पक्ष के दावे को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है।


सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नज़ीर की संविधान पीठ के समक्ष अपनी जिरह आगे बढ़ाते हुए कहा, “ पूजा के अधिकार पर जो दलीलें रखी गई हैं, उससे लगता है कि वेटिकन पर केवल ईसाइयों का और मक्का पर केवल मुसलमानों का हक है। पूरे जन्मस्थान को पूजा की जगह बताकर मुस्लिम पक्ष के दावे को कमज़ोर करने की कोशिश की जा रही है।”


मुस्लिम पक्षकार ने ‘जन्मस्थान’ की याचिका का विरोध करते हुए कहा कि जन्मस्थान ‘ज्यूरिस्ट पर्सन’ यानी न्यायिक व्यक्ति नहीं हो सकता। श्री धवन ने कहा कि जब जमीन यानी जन्मस्थान ही देवता हो गयी तो फिर किसी और का दावा ही नहीं बन सकता, इसलिए जन्मस्थान को इस उद्देश्य से पार्टी बनाया गया है।


उन्होंने दलील में यह भी कहा कि ‘जन्मस्थान’ को सदियों से विवादित स्थान पर होने की दलील देकर यह कोशिश की गई है कि उस पर न तो कानून के सिद्धांत ‘लॉ ऑफ लिमिटेशन’ लागू हो और न ही ‘एडवर्स पोजेशन।’ लॉ ऑफ लिमिटेशन के तहत किसी दीवानी मुकदमे में वाद दायर करने की समय सीमा तय होती है जबकि ‘एडवर्स पोजेशन’ का मतलब होता है प्रतिकूल कब्जा।


इससे पहले न्यायालय ने अयोध्या विवाद की सुनवाई के सीधे प्रसारण के मसले पर कोर्ट रजिस्ट्री को नोटिस जारी करके इस संबंध में रिपोर्ट मांगी है। संविधान पीठ ने रजिस्ट्री ऑफिस से रिपोर्ट मांगी है कि अगर अभी आदेश दिया जाये तो कितने दिनों में सीधे प्रसारण की शुरुआत की जा सकती है। पीठ ने कहा कि वह इस रिपोर्ट के बाद ही लाइव स्ट्रीमिंग पर फैसला लेगी।


गौरतलब है कि अयोध्या विवाद की सुनवाई के सीधे प्रसारण संबंधी याचिका पूर्व संघ विचारक के एन गोविंदाचार्य ने की है। उन्होंने याचिका में यह भी कहा है कि अगर अयोध्या मामले की कार्यवाही का सीधा प्रसारण करना संभव नहीं हो तो कम से कम इस सुनवाई की ऑडियो रिकार्डिंग या लिपि तैयार की जानी चाहिए।

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