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राहुल गांधी की ब्रिटिश नागरिकता की सुनवाई में चीफ जस्टिस ने याचिका खारिज करते हुए कहा: ब्रिटिश नागरिक बताने मात्र से वहां का नागरिक नहीं माना जा सकता attacknews.in

नयी दिल्ली, 09 मई । उच्चतम न्यायालय ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की कथित ब्रिटिश नागरिकता को लेकर उन्हें चुनाव लड़ने से रोकने संबंधी याचिका गुरुवार को निरस्त कर दी।

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने याचिकाकर्ताओं -जय भगवान गोयल और चंदर प्रकाश त्यागी- की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि किसी कंपनी में श्री गांधी को ब्रिटिश नागरिक बताने मात्र से उन्हें ब्रिटिश नागरिक नहीं मान लिया जा सकता।

न्यायमूर्ति गोगोई ने सवालिया लहजे में कहा, “कुछ समाचार पत्र उसे ब्रिटिश नागरिक करार देते हैं, तो क्या इससे वह ब्रिटिश नागरिक हो गये। किसी कंपनी ने राहुल गांधी को ब्रिटिश नागरिक बताया है, तो क्या वह ब्रिटिश नागरिक हो गये? याचिका खारिज की जाती है।”

इससे पहले याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि श्री गांधी देश के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हैं। इस पर न्यायमूर्ति गोगोई ने फिर कहा, “देश की एक अरब की आबादी का हर नागरिक प्रधानमंत्री बनना चाहता है। यदि आपको अवसर मिलेगा तो क्या आप प्रधानमंत्री बनना नहीं चाहेंगे?”

याचिकाकर्ताओं का कहना था कि कांग्रेस अध्यक्ष ने स्वेच्छा से ब्रिटिश नागरिकता हासिल की है, इसलिए उन्हें चुनाव लड़ने और सांसद बनने से रोका जाये। याचिका में कहा गया था कि यह स्पष्ट है कि श्री गांधी ने ब्रिटिश नागरिकता हासिल की है। यह मामला तब सामने आया जब ब्रिटेन की बैकऑप्स नामक कंपनी ने अपना आयकर रिटर्न भरा था। याचिका में कहा गया था कि श्री गांधी घोषणा पत्र दें कि वह भारतीय नागरिक नहीं है और वह जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के प्रावधानों के अनुसार चुनाव लड़ने में अक्षम हैं।

अदालत में यह याचिका तब दाखिल की गयी थी, जब गत 30 अप्रैल को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने श्री गांधी को नोटिस जारी करते हुए 15 दिनों में जवाब देने के लिए कहा है। यह नोटिस उन्हें भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी की शिकायत के आधार पर भेजा गया है। श्री स्वामी का आरोप है कि राहुल के पास ब्रिटिश नागरिकता है।

गौरतलब है कि दिसंबर 2015 में सर्वोच्च न्यायालय श्री गांधी की नागरिकता के संबंध में पेश किये गये सबूतों को खारिज कर चुका था। याचिका वकील एम.एल. शर्मा ने दायर की थी, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने फर्जी बताया था। न्यायालय ने उस समय दस्तावेजों की प्रामाणिकता पर सवाल उठाये थे।

तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एच.एल. दत्तू की अध्यक्षता वाली पीठ ने पूछा था, “आपको कैसे पता कि ये दस्तावेज प्रामाणिक है?” श्री शर्मा द्वारा सुनवाई पर जोर दिये जाने को लेकर न्यायमूर्ति दत्तू ने कहा था,“मेरी सेवानिवृत्ति के बस दो दिन शेष बचे हैं। आप मुझे मजबूर मत कीजिए कि मैं आपके ऊपर जुर्माना लगा दूं।”

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