मुंबई,11 नवंबर ।एक इंटीरियर डिजाइनर को आत्महत्या के लिये उकसाने के आरोप में गिरफ्तार रिपब्लिक टेलीविजन के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी बुधवार शाम तलोजा जेल से रिहा कर दिया गया
उच्चतम न्यायालय ने आज दिन में गोस्वामी और दो अन्य आरोपियों नीतीश सारदा और प्रवीण राजेश सिंह को 50-50 हजार रुपये के निजी बॉन्ड पर अंतरिम जमानत देते हुए तुरंत रिहा करने का आदेश दिया था। इससे पहले बॉम्बे उच्च न्यायालय ने अर्णब की जमानत याचिका खारिज करते हुए निचली अदालत के पास जाने को कहा था।
श्री गोस्वामी जैसे ही सफेद कार में तलोजा जेल से बहार आये वहां मौजूद लोगों के हूजूम ने कार को घेर लिया।
उन्होंने कार की सनरुफ से बाहर निकलते हुए विक्ट्री का चिन्ह बनाया और ‘भारत माता की जय, वंदेमातरम’ का जयघोष किया।
श्री गोस्वामी ने कहा,“मैं सुप्रीम कोर्ट का आभारी हूं, ये देश के लोगों की जीत है।”
महाराष्ट्र पुलिस ने एक सप्ताह पहले अर्नब को गिरफ्तार किया था।
न्यायालय का अर्नब मामले में महा. सरकार से सवाल, कहा यह मामला व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित है:
उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को पत्रकार अर्नब गोस्वामी के खिलाफ आत्महत्या के लिये उकसाने के 2018 के मामले में महाराष्ट्र सरकार पर सवाल उठाये और कहा कि इस तरह से किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत आजादी पर बंदिश लगाया जाना न्याय का मखौल होगा।
न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चंद्रचूड और न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी की पीठ ने राज्य सरकार से जानना चाहा कि क्या गोस्वामी को हिरासत में लेकर उनसे पूछताछ की कोई जरूरत थी क्योंकि यह व्यक्तिगत आजादी से संबंधित मामला है।
पीठ ने टिप्पणी की कि भारतीय लोकतंत्र में असाधारण सहनशक्ति है और महाराष्ट्र सरकार को इन सबको (टीवी पर अर्नब के ताने) नजरअंदाज करना चाहिए।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘उनकी जो भी विचारधारा हो, कम से कम मैं तो उनका चैनल नहीं देखता लेकिन अगर सांविधानिक न्यायालय आज इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा तो हम निर्विवाद रूप से बर्बादी की ओर बढ़ रहे होंगे।’’
पीठ ने कहा कि सवाल यह है कि क्या आप इन आरोपों के कारण व्यक्ति को उसकी व्यक्तिगत आजादी से वंचित कर देंगे।
शीर्ष अदालत 2018 के एक इंटीरियर डिजायनर और उनकी मां को आत्महत्या के लिये कथित रूप से उकसाने के मामले में अंतरिम जमानत के लिये गोस्वामी की अपील पर सुनवाई कर रही है।
गोस्वामी ने बंबई उच्च न्यायालय के नौ नवंबर के आदेश को चुनौती दी है जिसमें उन्हें और दो अन्य को अंतरिम जमानत देने से इंकार कर दिया था और उन्हें राहत के लिये निचली अदालत जाने का निर्देश दिया गया था।