नई दिल्ली 5 जून । सरकारी नौकरी में प्रमोशन में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक बड़ा फैसला सुनाया। मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को एससी/एसटी कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण देने की इजाजत दे दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि जब तक संविधान पीठ इस पर अन्तिम फैसला नहीं ले लेती, तब तक सरकार प्रमोशन में आरक्षण को लागू कर सकती है।
कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी में यह भी कहा कि सरकार कानून के मुताबिक एससी/एसटी कर्मचारियों को प्रमोशन में रिजर्वेशन दे सकती है।
सरकार की तरफ से अतिरिक्त सलिसिटर जनरल (एसएसजी) मनिंदर सिंह ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि कमर्चारियों को प्रमोशन देना सरकार की जिम्मेदारी है।
सिंह ने कहा कि अलग अलग हाई कोर्ट के फैसलों के चलते यह प्रमोशन रुक गया है। इस पर कोर्ट ने कहा कि सरकार आखिरी फैसला आने से पहले तक कानून के मुताबिक एससी/एसटी कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण दे सकती है।
बता दें कि नौकरियों में प्रमोशन में आरक्षण को लेकर विभिन्न हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के कारण कई विभागों में सरकारी कर्मचारियों को प्रमोशन नहीं मिल रहा था। तब से प्रमोशन को लेकर परेशान कर्मचारी इधर से उधर भटक रहे हैं। यूपीए सरकार के समय से ही प्रमोशन में आरक्षण को लेकर काफी घमासान चल रहा है।
बता दें कि कई बड़े नेता प्रमोशन में आरक्षण लागू किए जाने की वकालत कर चुके हैं।
यह फैसला अवकाशकालीन बेंच के जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और जस्टिस अशोक भूषण की बेंच ने दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ केंद्र सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया।
दिल्ली हाईकोर्ट ने सरकार के 13 अगस्त 1997 की अधिसूचना को निरस्त कर दिया था जिसके तहत सभी विभागों में SC/ST कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण दिया गया था।पिछले साल 23 अगस्त को दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था सरकार प्रमोशन में आंख मूंदकर आरक्षण नहीं दे सकती।
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (एससी और एसटी) कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण के मामले सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा कि यह मामला संवैधानिक बेंच के पास है और जब तक इस पर अंतिम फैसला नहीं आ जाता तब तक केंद्र सरकार कानून के मुताबिक प्रमोशन में आरक्षण लागू कर सकती है।
यूपी का कानून रद्द कर दिया था
सुप्रीम कोर्ट ने तीन साल पहले उत्तरप्रदेश में पदोन्नति में आरक्षण देने का प्रावधान रद्द कर दिया था। यह प्रावधान तत्कालीन बसपा सरकार ने किया था। इस फैसले के बाद राज्य में सभी प्रोन्नत लोगों को पदावनत कर दिया गया था।
क्या है नगराज फैसला :
साल 2006 में नगराज फैसले में सुप्रीमकोर्ट ने कहा था कि राज्य एससी और एसटी को पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है। यदि वह आरक्षण के प्रावधान बनाना चाहते हैं, तो राज्य को गणनात्मक आंकड़े जुटाने होंगे, जिसमें यह बताया जा सके कि एससी-एसटी वर्ग पिछड़ा हुआ है। उसका सरकारी नौकरियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है। फैसले में साथ ही यह भी कहा गया था कि अगर आरक्षण देना बेहद जरूरी हो है, तो उसे ध्यान रखना होगा कि यह 50 फीसदी की सीमा से ज्यादा न हो, क्रीमी लेयर को समाप्त न करे तथा अनिश्चितकाल के लिए न हो। इससे कुलमिलाकर प्रशासनिक कार्यकुशलता भी प्रभावित न हो।
क्या है मामला :
यह मामला त्रिपुरा हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील से सामने आया है। इसमें त्रिपुरा एससी-एसटी (सेवा पोस्ट में आरक्षण) कानून, 1991 की धारा 4(2) को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि इस प्रावधान के कारण सामान्य श्रेणी के लोगों को बराबरी के अधिकार से वंचित कर दिया है क्योंकि सरकार ने आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों को प्रमोशन दे दिया है। यह नगराज मामले का सरासर उल्लंघन है। लेकिन राज्य सरकार ने दलील दी कि त्रिपुरा जैसे राज्य में जहां एससी एसटी की आबदी 48 फीसदी है वहां आरक्षण में 50 फीसदी की सीमा (इंदिरा साहनी फैसला 1992) नहीं मानी जा सकती। त्रिपुरा हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ राज्य ने अपील 2015 में दायर की थी, जो अब सुनवाई पर आई है।
जानिए क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने प्रमोशन में आरक्षण सुविधा को लेकर कोर्ट ने आदेश देते हुए कहा है कि प्रमोशन में रिजर्वेशन को लेकर जितनी भी याचिकाएं और केंद्र सरकार की Special Leave Petitions पेंडिंग हैं, उनका प्रमोशन नीति पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
ये प्रमोशन रिजर्वेशन कैटेगरी के पदों पर आरक्षण, जनरल कैटेगरी वाले पदों पर जनरल, मेरिट वाले पदों पर मेरिट के आधार पर होते रहेंगे।
कोर्ट के इस फैसले का स्वागत करते हुए ज्वॉइंट एक्शन फोरम फॉर फाइटिंग एट्रोसिटीज (जाफा) के कोऑर्डिनेटर अशोक जाटव ने कहा कि इससे उन SC/ST कर्मचारियों को उम्मीद और राहत मिली है, जिन पर डिमोशन का खतरा मंडरा रहा था।
वहीं इस मामले में जाफा के प्रेसिडेंट ओपी गौतम ने कहा कि कार्मिक मंत्रालय अगर इस आदेश को सभी जगह लागू कर दे, तो बहुत बड़ी राहत मिलेगी।
कोर्ट द्वारा किया गया यह फैसला सभी कैटेगिरी पर लागू किया जाएगा या नहीं, इस मामले को लेकर कार्मिक मंत्रालय अर्टानी जनरल से कानूनी मदद लेगा। सितंबर 2016 को कार्मिक विभाग ने आदेश जारी करते हुए सभी तरह के प्रमोशनों पर रोक लगा दी थी।
नौकरियों में प्रमोशन व आरक्षण को लेकर विभिन्न न्यायिक अदालतों के फैसलों के चलते कार्मिक विभाग ने यह आदेश निकाला था। मामले को लेकर सरकार कोर्ट के पास पहुंची तो, अब उच्च न्यायलय ने इस मसले पर संविधान पीठ का गठन करने का फैसला किया है।
कोर्ट ने कहा है कि कानून का पालन करते हुए प्रमोशन में अनुसूचित जाति और जनजाति के कर्मचारियों को आरक्षण दिया जा सकता है।
अदालत ने कहा है कि जब तक कि संवैधानिक बेंच द्वारा इस मुद्दे का निपटारा नहीं किया जाता, तब तक सरकार प्रमोशन में आरक्षण को लागू कर सकती है।
द पॉयनियर के मुताबिक 1992 में बहुचर्चित इंदिरा साहनी मामले में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार 1997 तक प्रमोशन में पांच साल तक आरक्षण देने की व्यवस्था लागू थी. लेकिन अगस्त 1997 में केंद्र ने नई अधिसूचना लाकर प्रमोशन में आरक्षण को पूरे सेवाकाल तक बढ़ा दिया था. लेकिन इस फैसले को एनजीओ ऑल इंडिया इक्वालिटी फोरम और अन्य लोगों ने दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दे दी थी. इस पर सुनवाई करने के बाद 23 अगस्त 2017 को हाई कोर्ट ने अगस्त 1997 में जारी अधिसूचना को रद्द कर दिया था.
दिल्ली हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई थी, जिस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने नवंबर 2017 में इस मामले को अपनी संवैधानिक बेंच को सौंप दिया था.
रिपोर्ट के मुताबिक इस संवैधानिक बेंच को इस पर विचार करना है कि पिछड़ेपन का आकलन एससी-एसटी कर्मचारियों के लिए प्रमोशन में आरक्षण का आधार होना चाहिए या नहीं.
वास्तव में, यह पूरा मामला एम नागराज मामले में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच के फैसले पर पुनर्विचार से जुड़ा है. इसमें शीर्ष अदालत ने कहा था कि एससी-एसटी के लिए प्रमोशन में आरक्षण की व्यवस्था को लागू करने से पहले राज्यों को उनके पिछड़ेपन, सरकारी सेवाओं में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व और संपूर्ण प्रशासनिक दक्षता से जुड़े कारणों की जानकारी देनी होगी. राज्य सरकारें संविधान के अनुच्छेद 16 (4ए) और अनुच्छेद 16(4बी) के तहत एससी-एसटी कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण दे सकती हैं. लेकिन 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने इन प्रावधानों के इस्तेमाल की शर्तों को सख्त बना दिया था. प्रमोशन में आरक्षण देने के पीछे का मूल विचार वंचित तबके के कर्मचारियों का प्रशासनिक व्यवस्था के शीर्ष पदों पर पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना है।attacknews.in