नई दिल्ली, 27 नवंबर । उच्चतम न्यायालय ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधानों को निष्प्रभावी करने के बाद लागू प्रतिबंधों के खिलाफ कुछ याचिकाओं पर बुधवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
न्यायमूर्ति एन वी रमन, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सुभाष रेड्डी की पीठ ने सभी संबद्ध पक्षों की विस्तृत दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा।
केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलीलें पेश करते हुए कहा कि राज्य में शांति बहाली के लिए पाबंदियां लगाई गई थी।
गौरतलब है कि जम्मू कश्मीर में पांच अगस्त से लगाई गई पाबंदियों के खिलाफ कई याचिकाएं दायर की गई थी।
राज्य में अनुच्छेद 370 और 35 ए को निष्प्रभावी किए जाने के फैसले की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर संविधान पीठ अलग से सुनवाई कर रही है।
देश आतंकवाद का सामना कर रहा है लेकिन जम्मू-कश्मीर की समूची आबादी को बंद नहीं किया जा सकता : आजाद
कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि वह स्वीकार करते हैं कि देश आतंकवाद की समस्या से जूझ रहा है लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधान खत्म करने के बाद लगाये गये प्रतिबंधों के तहत जम्मू कश्मीर की 70 लाख की आबादी को ही बंधक बना दिया जाये।
आजाद ने कहा कि सरकार का दावा है कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 144 के तहत लगायी गयी निषेधाज्ञा जम्मू कश्मीर के सभी थाना क्षेत्रों से वापस ले ली गयी है लेकिन इसे वापस लेने संबंधी कोई भी आदेश जनता की जानकारी में नहीं है।
न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने जम्मू कश्मीर में संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधान खत्म करने के बाद वहां लगायी गयी पाबंदियों के खिलाफ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद और कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन और कई अन्य की याचिकाओं पर सभी पक्षों को विस्तार से सुनने के बाद कहा कि फैसला बाद में सुनाया जायेगा।
इस दौरान पीठ ने टिप्पणी की कि नागरिकों के अधिकारों और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता है।
आजाद की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि जम्मू कश्मीर में राष्ट्रीय सुरक्षा के मसले को वह समझते हैं लेकिन इस वजह से घाटी की समूची 70 लाख की आबादी को ‘ताले में बंद’ नहीं किया जा सकता।
सिब्बल ने कहा कि हालात समान्य होने संबंधी दावों के समर्थन में प्रशासन द्वारा पेश आंकड़े हकीकत से बहुत परे हैं और शीर्ष अदालत को कानूनी सिद्धांतों के आधार पर इन पाबंदियों की वैधता के बारे में फैसला करना होगा।
अनुराधा भसीन की ओर से अधिवक्ता वृन्दा ग्रोवर ने इन पाबंदियों को ‘असंवैधानिक ’ बताया और कहा कि इन प्रतिबंधों आनुपातिक परीक्षण से गुजरना होगा।
जम्मू कश्मीर प्रशासन की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधान खत्म करने के बाद पूर्व राज्य में इंटरनेट सेवाओं पर लगायी गयी पाबंदियों को मंगलवार को न्यायोचित ठहराया था।
मेहता ने कहा था कि उनकी लड़ाई भीतर सक्रिय दुश्मनों से ही नहीं बल्कि सीमापार से सक्रिय शत्रुओं से भी है। उन्होंने अनुच्छेद 35ए हटाये जाने के खिलाफ पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती और नेशनल कांफ्रेन्स पार्टी के नेताओं के भाषणों और सोशल मीडिया पर अपलोड पोस्ट का हवाला दिया । अनुच्छेद 35ए राज्य के स्थाई निवासियों को विशेष अधिकार प्रदान करता था और अनुच्छेद 370 में राज्य को विशेष दर्जा प्रदान करने संबंधी प्रावधान थे।
मेहता ने सोशल मीडिया ऐप ट्विटर का जिक्र करते हुये कहा कि पाकिस्तानी सेना, अफगान तालिबान और अन्य आतंकी समूहों के आधिकारिक ट्विटर हैंडल्स पर जम्मू कश्मीर की जनता को भड़काने वाले हजारों संदेश हैं।
सॉलिसीटर जनरल ने कहा कि पाकिस्तानी सेना का दुष्प्रचार चल रहा है। यदि हमने एहतियाती कदम नहीं उठाये होते तो हम अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में विफल हो जाते।
उन्होंने कहा कि इसका एकमात्र समाधान यही है कि या तो आप इंटरनेट सेवा रखें या नहीं रखें क्योंकि इन्हें अलग करना, विशेषकर इतने बड़े क्षेत्र में, बहुत ही मुश्किल काम है। उन्होंने कहा कि वहां निषेधाज्ञा लगायी गयी ताकि लोग एकत्र नहीं हो सकें क्योंकि ऐसा होने पर कानून व्यवस्था की समस्या खड़ी हो सकती थी।
केन्द्र ने भी 21 नवंबर को अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधान खत्म किये जाने के बाद जम्मू कश्मीर में लगायी गयी पाबंदियों को न्यायोचित ठहराया था। केन्द्र ने कहा था कि एहतियात के तौर पर उठाये गये कदमों की वजह से घाटी में एक भी व्यक्ति की जान नहीं गयी और न ही सुरक्षा बल को एक भी गोली चलानी पड़ी।
केन्द्र ने कश्मीर घाटी में आतंकी हिंसा का जिक्र किया था और कहा था कि पिछले कई साल से सीमा पार से आतंकवादियों को यहां भेजा जा रहा है, स्थानीय उग्रवादियों और अलगाववादी संगठन ने नागरिकों को बंधक बना रखा था और ऐसी स्थिति में यदि सरकार ने नागरिकों के जीवन की सुरक्षा के लिये एहतियाती कदम नहीं उठाये होते तो यह बहुत ही मूर्खतापूर्ण होता।