नयी दिल्ली, 13 फरवरी । भारतीय राजनीति को अपराधीकरण से मुक्त कराने की दिशा में उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को सभी राजनीतिक दलों को निर्देश दिया कि वे अपने प्रत्याशियों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों का विवरण सोशल मीडिया और अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करें। न्यायालय ने यह बताने का निर्देश भी दिया है कि ऐसे प्रत्याशियों का चयन करने और बगैर आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों का चयन क्यों नहीं किया।
न्यायालय ने कहा कि राजनीतिक दलों को प्रत्याशी के चयन के 48 घंटे के भीतर या फिर नामांकन पत्र दाखिल करने की पहली तारीख से कम से कम दो सप्ताह पहले, ये विवरण प्रकाशित किया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन और न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट ने अपने आदेश में कहा, ‘‘संबंधित राजनीतिक दल ऐसे प्रत्याशी के चयन के 72 घंटे के भीतर इन निर्देशों के अनुपालन के बारे में अपनी रिपोर्ट निर्वाचन आयोग को सौंपेंगे।’’
पीठ ने कहा कि यह विवरण फेसबुक और ट्विटर सहित राजनीतिक दलों के आधिकारिक सोशल मीडिया प्लेटफार्म और एक स्थानीय भाषाई अखबार तथा एक राष्ट्रीय दैनिक में प्रकाशित किया जाना चाहिए।
पीठ ने कहा कि जिन प्रत्याशियों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं उनके चुनाव जीतने की संभावना नहीं बल्कि योग्यता, उपलब्धियां और मेरिट के संदर्भ चयन की वजह भी बतानी चाहिए।
शीर्ष अदालत ने उसके समक्ष पेश आंकड़ों का जिक्र करते हुये कहा, ‘‘ऐसा लगता है कि पिछले चार आम चुनावों के दौरान राजनीति में अपराधियों के आने की घटनाओं में चिंताजनक बढ़ोत्तरी हुयी है।’’
पीठ ने कहा, ‘‘हमने देखा है कि राजनीतिक दल शुरूआत में ही आपराधिक पृष्ठभूमि वाले प्रत्याशियों के चयन के बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं देते हैं।’’
न्यायालय ने कहा कि अगर राजनीतिक दल निर्वाचन आयोग के निर्देशों का पालन करने मे विफल रहेगा तो आयोग इसका अनुपालन नहीं होने पर न्यायालय के आदेशों और निर्देशों की अवमानना के रूप में इस तथ्य की ओर शीर्ष अदालत का ध्यान आकर्षित करेगा।
शीर्ष अदालत ने देश में राजनीति को अपराधीकरण से मुक्त कराने के मुद्दे को लेकर दायर न्यायालय की अवमानना याचिका पर सुनाये गये फैसले में ये निर्देश दिये। इस याचिका में दावा किया गया था कि प्रत्याशियों की आपराधिक पृष्ठभूमि की जानकारी सार्वजनिक करने संबंधी न्यायालय के सितंबर, 2018 के निर्देशों का पालन नहीं किया जा रहा है।
न्यायालय ने इस तथ्य का भी जिक्र किया कि 2004 में 24 प्रतिशत सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित थे जबकि 2009 में इनका प्रतिशत बढ़कर 30 हो गया था। यही नहीं, 2014 में दागी सांसदों का प्रतिशत 34 हो गया और 2019 में यह 43 प्रतिशत तक जा पहुंचा है।
सितंबर, 2018 में पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से अपने फैसले में कहा था कि सभी प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने से पहले निर्वाचन आयोग के समक्ष अपनी आपराधिक पृष्ठभूमि की घोषणा करनी होगी। न्यायालय ने इस विवरण का प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में प्रमुखता से प्रचार और प्रकाशन करने पर भी जोर दिया था।
पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 129 और 142 में प्रदत्त अधिकारों का इस्तेमाल करते हुये निर्देश दिये। पीठ ने 2018 के फैसले का जिक्र करते हुये कहा कि इस निर्णय में न्यायालय ने भारत की राजनीति के अपराधीकरण में हो रही वृद्धि और नागरिकों के बीच ऐसे अपराधीकरण के बारे में जानकारी के अभाव का संज्ञान लिया था। पीठ ने कहा कि 2018 के फैसले में दिये गये निर्देशों का मकसद सूचना के अभाव को दूर करना था।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘राजनीतिक दलों (केन्द्रीय और राज्य चुनाव स्तर पर) के लिये अपनी वेबसाइट पर चुनाव में प्रत्याशियों के रूप में चुने गये व्यक्तियों के खिलाफ लंबित मामलों (अपराध का स्वरूप, और क्या आरोप निर्धारित किये गये हैं या नहीं, संबंधित अदालत और मुकदमे की संख्या का विवरण) की जानकारी अपलोड करनी होगी।’’
पीठ ने कहा कि राजनीतिक दलों को यह भी बताना होगा कि साफ सुथरी छवि वाले प्रत्याशियों का चयन क्यों नहीं किया गया।
न्यायालय ने गंभीर आपराधिक मामलों का सामना कर रहे व्यक्तियों को राजनीतिक परिदृश्य से रखने के लिये उचित कानून बनाकर राजनीति के अपराधीकरण की बीमारी के इलाज का मसला संसद पर छोड़ दिया था न्यायालय ने कहा था कि राजनीति की दूषित धारा को साफ करने की आवश्यकता है।
इस मामले में अवमानना याचिका पर सुनवाई के दौरान निर्वाचन आयोग ने न्यायालय से कहा था कि ऐसे सांसदों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही जिनके खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले लंबित हैं।
आयोग ने भाजपा नेता एवं याचिकाकर्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायण के इस सुझाव से सहमति व्यक्त की थी कि सभी राजनीतिक दलों के लिये अपने प्रत्याशियों की आपराधिक पृष्ठभूमि अपनी वेबसाइट पर अपलोड करना अनिवार्य किया जाये और यह भी बताया कि आखिर ऐसे व्यक्ति का चयन क्यों किया गया है।
बहरहाल, आयोग आपराधिक पृष्ठभूमि की घोषणा करने में विफल रहने वाले प्रत्याशियों और राजनीतिक दलों को संविधान के अनुच्छेद 324 के दंडित करने के सुझाव से सहमत नहीं था।
आयोग ने शीर्ष अदालत के फैसले के बाद 10 अक्टूबर, 2018 को फार्म 26 में संशोधन करते हुये एक अधिसूचना भी जारी की थी।
हालांकि, उपाध्याय ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि निर्वाचन अयोग ने चुनाव चिह्न आदेश 1968 और आदर्श आचार संहिता में संशोधन नहीं किया है और उसकी अधिसूचना की कानून की नजर में कोई स्थिति नहीं है।