नई दिल्ली 27 जून । कार्यस्थलों पर कर्मचारियों को बेहतर करने के लिए कई बार दवाब का सामना करना पड़ता है। किसी कंपनी या किसी सरकारी कार्यालय में आपके अधिकारी द्वारा दिए जा रहे वर्कलोड से परेशान होकर यदि आप आत्महत्या जैसे कदम उठाते हैं तो इसके पीछे आपके बॉस को जिम्मेदार नहीं माना जाएगा।
ज्यादा काम देना शोषण करना नहीं
देश की सर्वोच्च अदालत ने कार्यस्थलों पर वर्कलोड के संबंध में कहा है कि अगर कोई कर्मचारी दफ्तर में ज्यादा काम की वजह से परेशान है और वह इस कारण आत्महत्या करता है तो इसके लिए बॉस जिम्मेदार नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कर्मचारी को ज्यादा काम देने की वजह से यह नहीं माना जा सकता कि उसका बॉस अपराधी और उसने कर्मचारी का शोषण करने या उसे आत्महत्या के लिए उकसाने की मंशा से ज्यादा काम दिया है।
कोर्ट ने खारिज किया औरंगाबाद बेंच का तर्क
सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के औरंगाबाद बेंच के उस तर्क को भी खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि अगर अधिकारी सीधे तौर पर कर्मचारी को उकसा नहीं रहा है तो भी उसे ऐसी परिस्थितियां पैदा करने का अपराधी माना जाएगा, जिससे असहनीय मानसिक तनाव पैदा हुआ हो।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा
महाराष्ट्र सरकार में औरंगाबाद के डेप्युटी डायरेक्टर ऑफ एजुकेशन किशोर पराशर ने अगस्त 2017 में आत्महत्या कर ली थी। उनकी पत्नी ने पुलिस में पति से सीनियर ऑफिसर के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का केस दर्ज कराया था। पत्नी ने सीनियर ऑफिसर पर आरोप लगाया था कि उन्होंने पराशर को हद से ज्यादा काम दिया, जिसकी वजह से वह देर शाम तक काम करते रहते थे।
छुट्टी के दिन भी कराया काम, सेलरी रोकी, नहीं मिला इंक्रीमेंट
पराशर की पत्नी ने अपनी शिकायत में यह भी कहा था कि उनके पति से छुट्टी के दिन भी काम कराया जाता था। उनकी एक महीने की सैलरी भी रोक ली गई थी और इंक्रीमेंट रोकने की भी धमकी मिली थी। जिसके बाद उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया था।attacknews.in