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सुप्रीम कोर्ट ने जामिया और AMU के मामले में प्रदर्शनकारियों को उच्च न्यायालय का रास्ता दिखाया attacknews.in

नयी दिल्ली, 17 दिसम्बर । उच्चतम न्यायालय ने संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों पर पुलिस के कथित अत्याचार संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए मंगलवार को कहा कि राहत के लिये पहले उच्च न्यायालय जाना चाहिए। न्यायालयने ने यह भी पूछा कि दिल्ली में प्रदर्शन के दौरान बसों को कैसे जलाया गया।

प्रधान न्यायाधीश एस. ए. बोबडे की अगुवाई वाली पीठ ने कहा, ‘‘ हम तथ्य जानने में समय बर्बाद नहीं करना चाहते, आपको पहले निचली अदालत में जाना चाहिए। ’’

इससे पहले, जामिया विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रों के संगठन के वकील ने कहा था कि उच्चतम न्यायालय को शांतिपूर्ण प्रदर्शन के अधिकार की रक्षा करनी चाहिए।

वहीं प्रदर्शनकारियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि एएमयू, जामिया के छात्रों के खिलाफ एक के बाद एक प्राथमिकी दर्ज की गई।

इस पर पीठ ने कहा कि संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने जैसे अपराधों के लिए कानून के तहत प्राथमिकी दर्ज की जानी चाहिए।

पीठ ने कहा कि हमने अपनी सोच से अवगत करा दिया है कि नागरिक संशोधन कानून को लेकर विरोध प्रदर्शन के मामले में तथ्यों का पता लगाने की कवायद के लिये पहले उच्च न्यायालय जाना चाहिए।

जामिया विश्वविद्याल कुलपति के मीडिया को दिए बयान पर विचार करने से इंकार करते हुये न्यायालय ने किसी भी न्यायिक नतीजे पर पहुंचने के लिये समाचार पत्रों पर निर्भर नही रहेंगे। होंगे।

केन्द्र ने न्यायालय को बताया कि कोई भी छात्र जेल में नहीं है और घालय छात्रों को पुलिस अस्पताल ले गयी थी।

न्यायालय ने केन्द्र से सवाल किया कि प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार करने से पहले उन्हें कोई नोटिस क्यों नहीं दी गयी और क्या घायल छात्रों को मेडिकल सहायता दी गयी थी।

न्यायालय ने हिंसा पर गंभीर संज्ञान लेते हुए कहा था, तुरंत रोका जाना चाहिए:

इससे पहले कल उच्चतम न्यायालय ने संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान दंगे और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाए जाने पर सोमवार को सख्त रुख अपनाते हुए कहा था कि ‘‘इसे तुरंत रोका जाना चाहिए।’’

शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि प्रथम दृष्टया वह नहीं मानता है कि अदालत इस मामले में कुछ कर सकती है क्योंकि यह कानून व्यवस्था की समस्या है और पुलिस को इसे नियंत्रित करना है।

सीएए के विरोध में प्रदर्शन कर रहे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और यहां के जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के छात्रों पर पुलिस की बर्बर कार्रवाई के आरोप लगाने वाली याचिकाओं पर मंगलवार को सुनवाई करने पर शीर्ष न्यायालय ने सोमवार को सहमति जताई लेकिन कहा कि वह हिंसा के ऐसे माहौल में इस मुद्दे पर सुनवाई नहीं करेगा।

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अगुवाई वाली पीठ ने कहा, “हम बस इतना चाहते हैं कि हिंसा बंद हो जानी चाहिए।”

साथ ही पीठ ने कहा था कि , “अगर प्रदर्शन एवं हिंसा हुई और सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया गया तो हम इस मामले को नहीं सुनेंगे।”

इस पीठ में न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्य कांत भी शामिल थे।

पीठ ने यह बात तब कही जब वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह और कोलिन गोन्जाल्विस के नेतृत्व में वकीलों के एक समूह ने मामले को उसके समक्ष उठाया और प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर की गई कथित हिंसा का स्वत: संज्ञान लेने की अपील की थी।

पीठ ने कहा, “हम सबकुछ निर्धारित करेंगे लेकिन हिंसा के इस माहौल में नहीं। यह क्या है? सरकारी संपत्तियों को बर्बाद किया जा रहा है, बसें जलाई जा रही हैं।”

वकीलों द्वारा इस मुद्दे पर संज्ञान लेने के लिए बार-बार कहने पर, प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “हम पर इस तरह से दबाव मत बनाइए। यह सारी हिंसा रुकनी चाहिए।”

पीठ ने कहा, ‘‘ प्रथम दृष्टया, हम मानते हैं कि अदालत इसमें कुछ नहीं कर सकती है। यह कानून व्यवस्था की समस्या है और पुलिस को स्थिति को नियंत्रित करना है।’’

मामले का उल्लेख अदालत के सामने करते हुए, जयसिंह ने कहा कि शीर्ष अदालत को देश भर की, खास कर अलीगढ़ में छात्रों के खिलाफ की गई हिंसा का स्वत: संज्ञान लेना चाहिए।

उन्होंने अदालत को बताया कि उन्हें छात्रों के संदेश मिले हैं जिसमें वे खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं क्योंकि उनकी सुनने वाला कोई नहीं है।

वरिष्ठ वकीलों ने अदालत को बताया कि छात्रों के खिलाफ गंभीर हिंसा हुई है और उनमें से कई को टूटी हड्डियों के साथ अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

जयसिंह ने कहा, ‘‘यह मानवाधिकार उल्लंघन का गंभीर मामला है। उन्होंने कहा कि जब यहां की जिला अदालत के परिसर में वकीलों और पुलिस के बीच झड़प हुई थी तब दिल्ली उच्च न्यायालय ने मामले का स्वत: संज्ञान लिया था और आदेश पारित किया था।

उन्होंने कहा, “कोई भी शांतिपूर्ण प्रदर्शन को रोक नहीं सकता। हम कोई उपद्रव नहीं चाहते हैं। ये उपद्रव छात्रों के खिलाफ जानबूझ कर किए गए हैं।”

गोन्जाल्विस ने अदालत को बताया कि उन्होंने रविवार को अस्पताल और हिरासत कक्ष का दौरा किया था जहां जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्रों को पुलिस ने रखा था।

पीठ ने वकीलों के समूह से कहा कि वे एक साथ नहीं बोले और एक-एक कर अपनी बात रखें।

अदालत ने कहा, ‘‘ हम किसी पर आरोप नहीं लगा रहे। हम बस यह कह रहे हैं कि यह उपद्रव रुकना चाहिए।”

उसने कहा, “लेकिन पहले हिंसा रोकिए। अगर आप इस तरह से सड़कों पर उतरेंगे तो हम आपकी मदद नहीं कर पाएंगे। हम शांतिपूर्ण प्रदर्शन के खिलाफ नहीं हैं।”

गोन्जाल्विस ने अदालत से कहा कि अदालत को एएमयू के कुलपति और जामिया मिल्लिया इस्लामिया के मुख्य प्रॉक्टर ने उनके परिसरों में हुई हिंसा को लेकर जो कुछ कहा, उस पर विचार करना चाहिए।

उन्होंने कहा, “हम चाहते हैं कि पूर्व न्यायाधीशों की एक समिति एएमयू जाए और देखे कि वहां क्या हो रहा है।”

इस पर पीठ ने कहा, “हम ऐसा करेंगे लेकिन वहां पहले शांति आने दीजिए। हमें नहीं पता कि क्या हो रहा है।”

साथ ही पीठ ने वकीलों से उनकी याचिकाएं दायर करने को कहा। पीठ ने कहा कि वह मंगलवार को इन पर सुनवाई करेगी।

संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्रों और स्थानीय लोगों ने रविवार को दिल्ली के जामिया नगर में प्रदर्शन किया।

प्रदर्शनकारियों ने कथित रूप से दक्षिणी दिल्ली के न्यू फ्रैंड्स कॉलोनी में पुलिस के साथ झड़प के बाद चार बसों और दो पुलिस वाहनों को आग के हवाले कर दिया था।

पुलिस ने विश्वविद्यालय परिसर में प्रवेश से पहले भीड़ को तितर-बितर करने के लिए प्रदर्शनकारियों पर लाठी चार्ज किया और आंसू गैस के गोले छोड़े। इसके अलावा हिंसा में कथित तौर पर शामिल कई लोगों को हिरासत में ले लिया था।

इसके बाद दिन में जामिया मिल्लिया इस्लामिया के मौजूदा एवं पूर्व छात्रों द्वारा वाणी सासा और अन्य के नेतृत्व में याचिका दायर कर उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश के नेतृत्व में रविवार की घटना की स्वतंत्र न्यायिक जांच कराने और चूक करने वालों की जिम्मेदारी तय करने की मांग की गई।

याचिका में शीर्ष अदालत से केंद्र को विश्वविद्यालय परिसर में और पुलिस और सहयोगी सुरक्षा बलों को हटाने का निर्देश देने की भी मांग की गई है।

याचिकाकर्ताओं ने 15 दिसंबर की रात विश्वविद्यालय परिसर से गिरफ्तार वास्तविक छात्रों को रिहा करने का निर्देश देने और विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार को न्यायिक जांच के लिए प्राक्टर कार्यालय, छात्र मामलों के विभाग और सुरक्षा सलाहकार के कार्यालयों में लगे सीसीटीवी जब्त करने का निर्देश देने की मांग की ।

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