नयी दिल्ली, आठ मई । उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि वह संकटग्रस्त कंपनी आम्रपाली समूह की सभी 15 प्रमुख रिहायशी संपत्ति नोएडा और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरणों को दे सकता है क्योंकि कंपनी परेशान 42,000 मकान खरीदारों के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में नाकाम रही है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि आम्रपाली समूह ने स्वयं यह स्वीकार किया कि उसने मकान खरीदारों से 11,652 करोड़ रुपये लिये और इसमें से केवल 10,630 करोड़ रुपये रिहायशी परियोजनाओं के निर्माण पर खर्च किये।
न्यायालय ने यह भी सवाल पूछा कि आम्रपाली समूह ने कैसे पूरी परियोजनाएं बैंकों के पास गिरवी रख दिए और बैंकों से हजारों करोड़ रुपये कर्ज में हासिल कर लिए जबकि वह केवल संपत्ति का विकास करने वाले एजेंट के रूप में काम कर रही थी।
न्यायाधीश अरूण मिश्र और न्यायाधीश यू यू ललित ने कहा कि वह हजारों मकान खरीदरों के अधिकारों की रक्षा करेंगे और आम्रपाली समूह को परियोजनाओं से बाहर करेंगे।
पीठ ने कहा, ‘‘हम यह देख रहे हैं कि आम्रपाली समूह, प्राधिकरण (नोएडा तथा ग्रेटर नोएडा) तथा बैंकों ने मकान खरीदारों के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करने में विफल रहा है। आपने (आम्रपाली) न तो कभी कोई परियोजना पूरी की और न ही परियोजनाओं में पैसा लगाया। हमें लगता है कि आप उनमें से एक है जिसे इन संपत्तियों से बाहर का रास्ता दिखाया जाना चाहिए। हम इन संपत्तियों का अधिकार नोएडा और ग्रेटर नोएडा को देंगे।’’
न्यायालय ने कहा कि उसके बाद नोएडा और ग्रेटर नोएडा को किसी बिल्डर को जोड़ने तथा अटकी पड़ी परियोजनाओं को पूरा करने एवं उसे अपनी निगरानी में बेचने के लिये कहा जा सकता है।
पीठ ने यह भी कहा कि आम्रपाली समूह ने भूखंडों के ऊपर जो कर्ज लिये थे, उसे वित्तीय संस्थान कंपनी के निदेशकों या कारपोरेट गारंटी देने वालों से प्राप्त कर सकते हैं।
न्यायालय ने कहा, ‘‘हम यह सुनिश्चित करेंगे बैंक इन संपत्तियों के परिसरों में फटके नहीं और मकान खरीदारों को को संपत्तियों पर पहला अधिकार मिले।’’
शीर्ष अदालत ने नोएडा और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरणों के वकील से सभी जरूरी आंकड़े देने को कहा। इसमें आम्रपाली समूह ने अबतक कितना पैसा दिया, मूल पट्टा राशि और परियोजनावार ब्याज तथा कंपनी को दी जमीन का ब्योरा शामिल हैं।
आम्रपाली की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव भाटिया ने कहा कि समूह ने अबतक दोनों प्राधिकरणों तथा रीयल एस्टेट नियामकीय प्राधिकरण (रेरा) कानून के तहत 998 करोड़ रुपये दिए हैं। यह राशि कंपनी के अधिकारों के संरक्षण के लिये दिये गये।
उन्होंने कहा कि मकान खरीदारों से लिये गये 11,652 करोड़ रुपये में से 10,630 करोड़ रुपये विभिन्न परियोजनाओं के निर्माण तथा पट्टा राशि के रूप में 998 करोड़ रुपये प्राधिकरणों को देने में खर्च किये गये।
पीठ ने भाटिया से पूछा कि समूह की कंपनी स्टनिंग कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लि. ने कैसे चेयरमैन और प्रबंध निदेशक अनिल कुमार शर्मा तथा अन्य निदेशकों के आयकर कैसे भुगतान किया। कंपनी के कोष से निदेशकों की कर देनदारी नहीं चुकायी जा सकती।
इस पर वकील ने दावा किया कि शर्मा ने 5.5 करोड़ रुपये लौटा दिया जिसे स्टनिंग कंस्ट्रक्शन के खाते से दिया गया था। अन्य निदेशक शवि प्रिय ने कहा कि 4.3 करोड़ रुपये की कर देनदारी को बाद में उनके बकाये वेतन से समायोजित किया गया।
इस पर न्यायालय ने हलफनामा देकर पूरा ब्योरा देने को कहा।
मामले में अगली सुनवाई 10 मई को होगी।
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