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बाबरी मस्जिद ढहाने मामले की सुनवाई करनेवाले विशेष न्यायाधीश का कार्यकाल बढ़ाने का आदेश 2 सप्ताह के अंदर जारी किया जाये attacknews.in

नयी दिल्ली, 23 अगस्त । उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 1992 के बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के मामले की सुनवाई लखनऊ में कर रहे विशेष न्यायाधीश का कार्यकाल बढ़ाने के बारे में उत्तर प्रदेश सरकार को दो सप्ताह के अंदर आदेश जारी करने के लिए शुक्रवार को कहा। इस मामले में भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती आरोपी हैं। 

न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन तथा न्यायमूर्ति सूर्य कांत की पीठ ने कहा कि इस मुकदमे की सुनवाई कर रहे विशेष न्यायाधीश ने 27 जुलाई को एक नया पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने अपने लिये सुरक्षा मुहैया कराए जाने सहित पांच अनुरोध किए हैं।

पीठ ने राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता ऐश्वर्या भाटी को इन सभी पांच अनुरोधों पर दो सप्ताह के अंदर विचार करने का निर्देश दिया और कहा कि ये आग्रह तर्कसंगत प्रतीत होते हैं।

न्यायालय ने 19 जुलाई को विशेष न्यायाधीश का कार्यकाल इस मुकदमे की सुनवाई पूरी होने तथा फैसला सुनाए जाने तक बढ़ा दिया था। बहरहाल, राज्य सरकार को इस संबंध में आदेश जारी करना है जो उसने अब तक नहीं किया है।

विशेष न्यायाधीश से शीर्ष अदालत ने कहा है कि वह नौ माह के अंदर इस मुकदमे का फैसला सुनाये। न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि 30 सितंबर को सेवानिृत्त हो रहे विशेष न्यायाधीश का कार्यकाल केवल इसी मामले की सुनवाई करने और फैसला सुनाने के लिए है। सेवाविस्तार के बाद भी वह इलाहाबाद उच्च न्यायालय के प्रशासनिक नियत्रंण में बने रहेंगे। 

बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के मामले में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती आरोपी हैं। इन तीनों के अलावा, उच्चतम न्यायालय ने पूर्व भाजपा सांसद विनय कटियार तथा साध्वी ऋतंभरा पर भी 19 अप्रैल 2017 को षड्यंत्र के आरोप लगाए थे।

इस मामले में तीन अन्य रसूखदार आरोपियों.. गिरिराज किशोर, विश्व हिंदू परिषद के नेता अशोक सिंघल और विष्णु हरि डालमिया की सुनवाई के दौरान मृत्यु हो गई और उनके खिलाफ कार्यवाही रोक दी गई।

शीर्ष अदालत ने राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह, जिनके उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री रहते विवादित ढांचे को गिराया गया था, के बारे में कहा था कि उन्हें इस संवैधानिक पद पर रहने के दौरान मुकदमे से छूट है। 

उच्चतम न्यायालय ने 19 अप्रैल 2017 में मामले की रोजाना सुनवाई कर दो साल में मुकदमे का निपटारा करने के लिये कहा था। मध्यकालीन ढांचे के विध्वंस को अपराध बताते हुए शीर्ष अदालत ने आरोपियों के खिलाफ आपराधिक षडयंत्र का आरोप बहाल रखने की सीबीआई की अपील स्वीकार कर ली थी। 

शीर्ष अदालत ने 12 फरवरी 2001 को आडवाणी और अन्य पर आपराधिक साजिश की धारा हटाने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को त्रुटिपूर्ण करार दिया था। न्यायालय का 2017 में फैसले आने से पहले 6 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा गिराने के मामले में दो अलग-अलग मुकदमे लखनऊ और रायबरेली में चल रहे थे। 

पहले मामले में अज्ञात कारसेवकों के खिलाफ लखनऊ की अदालत में सुनवाई चल रही थी जबकि रायबरेली में चल रहा मामला आठ अति विशिष्ठ लोगों से जुड़ा था।

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