नयी दिल्ली नौ मई । उच्चतम न्यायालय ने आज व्यवस्था दी कि संसदीय समितियों के प्रतिवेदनों की वैधता को अदालतों में न तो चुनौती दी जा सकती है और न ही उन पर सवाल उठाये जा सकते हैं।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि न्यायालय कानुन के अनुसार विधायी व्याख्या के मकसद से संसदीय प्रतिवेदनों का जिक्र कर सकते हैं।
संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति ए के सिकरी , न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर , न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति अशोक भूषण शामिल हैं।
संविधान पीठ ने कहा कि न्यायालय संसदीय समिति के प्रतिवेदनों का न्यायिक संज्ञान तो ले सकते हैं परंतु उनकी वैधता को चुनौती नहीं दी जा सकती।
पीठ ने कहा कि संविधान में लोकतंत्र के तीनों अंगों के अलग अलग अधिकारों को रेखांकित किया गया है और न्यायालय को विधायिका तथा न्यायपालिका के बीच संतुलन बनाना है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि न्यायिक कार्यवाही में संसदीय समिति के प्रतिवेदनों को आधार बनाने से संसदीय विशेषाधिकार का अतिक्रमण नहीं होता है।
न्यायालय ने सामाजिक कार्यकर्ता कल्पना मेहता और महिलाओं और स्वास्थ्य के संबंध में सामा संसाधान समूह की जनहित याचिका पर यह व्यवस्था दी।attacknews.in