नयी दिल्ली, 11 जून । उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परम बीर सिंह की उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ सभी मामलों को केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) अथवा किसी अन्य राज्य को स्थानांतरित करने की मांग की थी।
अदालत ने कहा, “आपकोे अपने बलों (महाराष्ट्र पुलिस) पर संदेह नहीं होना चाहिए।”
न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम की अवकाशकालीन पीठ ने परम बीर सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए इसे “चौंकाने वाला वाकिया” बताया कि महाराष्ट्र पुलिस बल में 30 साल से अधिक समय तक सेवा करने वाला व्यक्ति अब कह रहा है कि उसे राज्य पुलिस पर भरोसा नहीं है।
पीठ ने कहा, “जिनके घर शीशे के हो वो दूसरे के घरों पर पत्थर नहीं फेंकते हैं।”
पीठ ने कहा कि इस याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता है।
पूर्व पुलिस आयुक्त सिंह ने महाराष्ट्र के तत्कालीन गृह मंत्री अनिल देशमुख के बारे में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे और इसके बाद उन्होंने कहा था कि ऐसा खुलासा करने के बाद से ही राज्य पुलिस बल उनके पीछे पड़ गया है।
वर्चुअल सुनवाई के दौरान परम बीर सिंह की ओर से पेश वरिष्ठ वकील महेश जेठमलानी ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल के खिलाफ मामले दर्ज किए जा रहे हैं और उन्हें श्री देशमुख के संबंध में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को पत्र लिखने की सजा का सामना करना पड़ रहा है।
श्री जेठमलानी ने यह भी कहा कि उनके खिलाफ दर्ज मामले के प्रभारी अधिकारी ने परम बीर सिंह पर पूर्व गृह मंत्री के खिलाफ शिकायत वापस लेने का दबाव बनाया और उन्हें कई आपराधिक मामलों में फंसाने की धमकी दी गयी।
इस पर शीर्ष अदालत ने पूछा कि क्या डीजीपी रैंक का कोई अधिकारी दबाव के आगे झुक सकता है, तो पुलिस बल के अन्य लोगों की हालत क्या होगी।
गौरतलब है कि 20 मार्च को भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस)के इस वरिष्ठ अधिकारी ने एक बहुत ही चौंकाने वाले पत्र में आरोप लगाया था कि तत्कालीन गृह मंत्री देशमुख ने कथित तौर पर एक गिरफ्तार-निलंबित सहायक पुलिस निरीक्षक सचिन वाज़े को बार और हुक्का से प्रति माह 100 करोड़ रुपये वसूली करने के लिए कहा था।
बाद में श्री देशमुख ने श्री सिंह के आरोपों ‘को यह कहकर खारिज कर दिया था कि एंटीलिया बम मामले और ठाणे के व्यवसायी मनसुख हिरन की हत्या से खुद को बचाने की कोशिश” के तहत वह इस तरह की बातें कर रहे हैं।
शीर्ष अदालत ने भी उनकी पहले की याचिका पर भी विचार करने से इनकार कर दिया था और उनके आरोपों को ‘गंभीर प्रकृति’ का बताते हुए, उन्हें पहले बॉम्बे उच्च न्यायालय में जाने का निर्देश दिया था।